1 फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली संसद में 2018 का बजट पेश करेंगे. बजट को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं "अबकी बार का बजट सख्त होगा". सख्त बजट की घोषणा से ठीक 13 दिन बाद, वलेंटाइन डे है. बजट की घोषणा से वलेंटाइन डे के बीच भी कई सारे डे हैं जैसे चॉकलेट डे, टेडी डे, रोज डे, ये डे, वो डे, फलाना डे, धिमाका डे. कह सकते हैं कि बजट के मद्देनजर, देश का आम आदमी बड़ी चिंता में है. चौक से लेकर चौराहे तक, उसे दाएं हाथ की बीच वाली अंगुली में लगे नाखून को दांतों से काटते हुए देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि उसकी टेंशन का आलम क्या होगा.
देश के इन आम आदमियों में भी सबसे ज्यादा वो लोग परेशान हैं, जो प्यार के पचड़े में पड़े हैं. और "बेबी ने खाया खाया से लेकर "बेबी सोया या नहीं" जैसी बातों ने उनकी रातों की नींद और दिन का चैन चुरा रखा है. बजट आने को है, हो सकता है ऐसे लोग ये भी सोच लें कि कहीं सफ़ेद कुर्ते में ज्यादा नील पड़ने, या कलफ़ के लिए ज्यादा अरारोट के गिरने से अगर मोदी जी खफा हो गए और उन्होंने वित्त मंत्री को कोई नया फरमान सुना दिया तो उससे उनके अन्दर के प्यार वाले "कालिया" का क्या होगा?
अब जब आशिकों को इस बजट से उम्मीदें हैं तो आइये कुछ बिन्दुओं के जरिये जानें कि आशिक समुदाय सरकार से बजट के सन्दर्भ में क्या उम्मीद लगाए बैठा है.
1- बेबी को दी जाने वाली चॉकलेट के दाम सस्ते होंगे या फिर महंगे.
प्यार और गिफ्ट के मामले में लड़कों के मुकाबले लडकियां ज्यादा चूजी होती हैं. अब चाहे टेडी हो या फिर व्रिस्ट वॉच इनपर सरकार कोई भी, कितना भी टेक्स लगा...
1 फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली संसद में 2018 का बजट पेश करेंगे. बजट को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं "अबकी बार का बजट सख्त होगा". सख्त बजट की घोषणा से ठीक 13 दिन बाद, वलेंटाइन डे है. बजट की घोषणा से वलेंटाइन डे के बीच भी कई सारे डे हैं जैसे चॉकलेट डे, टेडी डे, रोज डे, ये डे, वो डे, फलाना डे, धिमाका डे. कह सकते हैं कि बजट के मद्देनजर, देश का आम आदमी बड़ी चिंता में है. चौक से लेकर चौराहे तक, उसे दाएं हाथ की बीच वाली अंगुली में लगे नाखून को दांतों से काटते हुए देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि उसकी टेंशन का आलम क्या होगा.
देश के इन आम आदमियों में भी सबसे ज्यादा वो लोग परेशान हैं, जो प्यार के पचड़े में पड़े हैं. और "बेबी ने खाया खाया से लेकर "बेबी सोया या नहीं" जैसी बातों ने उनकी रातों की नींद और दिन का चैन चुरा रखा है. बजट आने को है, हो सकता है ऐसे लोग ये भी सोच लें कि कहीं सफ़ेद कुर्ते में ज्यादा नील पड़ने, या कलफ़ के लिए ज्यादा अरारोट के गिरने से अगर मोदी जी खफा हो गए और उन्होंने वित्त मंत्री को कोई नया फरमान सुना दिया तो उससे उनके अन्दर के प्यार वाले "कालिया" का क्या होगा?
अब जब आशिकों को इस बजट से उम्मीदें हैं तो आइये कुछ बिन्दुओं के जरिये जानें कि आशिक समुदाय सरकार से बजट के सन्दर्भ में क्या उम्मीद लगाए बैठा है.
1- बेबी को दी जाने वाली चॉकलेट के दाम सस्ते होंगे या फिर महंगे.
प्यार और गिफ्ट के मामले में लड़कों के मुकाबले लडकियां ज्यादा चूजी होती हैं. अब चाहे टेडी हो या फिर व्रिस्ट वॉच इनपर सरकार कोई भी, कितना भी टेक्स लगा ले.बेचारी लड़कियां अपने मस्कारे, आई-लाइनर, नेल पेंट और लिप बाम की खपत में कटौती कर उसे अपने बॉय फ्रेंड के लिए खरीद ही लेंगी. मगर लड़के, लड़कों के लिए गिफ्ट का मतलब चॉकलेट और सिर्फ चॉकलेट है.
बेबी नाराज हुई तो चॉकलेट, बेबी का या फिर उसके कुत्ते का बर्थ डे है तो चॉकलेट, बेबी को नई जॉब की ट्रीट देनी हो तो चॉकलेट, बेबी ने व्हाट्स ऐप पर किसी दूसरी बेबी से की जा रही चैट पकड़ ली तो बात सुलटाने के लिए चॉकलेट. मतलब ये समझिये कि लकड़ों के लिए रामबाण है चॉकलेट, हर मर्ज की दवा है चॉकलेट.
अब इसे विडंबना कहें या कुछ और सरकार ने आशिक लड़कों की उस चॉकलेट पर भी जी 18 परसेंट का gst लगा दिया है. यानी जो चॉकलेट पहले 50 रुपए की थी वो अब 59 की है. अब आप ही बताइए जो बेबी दिन में 7 बार चॉकलेट खाती हो उसके आशिक पर क्या बीत रही होगी. माशूक के मुकाबले आशिक रोज, टेडी, घड़ी जैसी चीजों पर ज्यादा यकीन नहीं करते उनके लिए चॉकलेट ही वो कश्ती थी जिसपर बैठकर उन्हें इश्क का गहरा सागर पार करना था. इस बजट से आशिकों के बीच इसलिए भी बेचैनी है कि उन्हें ये देखना है कि सरकार चॉकलेट को सस्ता करती है या महंगा.
2- क्या एंटी रोमियो स्क्वॉड, डायल 100 और 1090 की तरह आशिकों की सुरक्षा के लिए भी क्पोई संगठन बनेगा ?
देश में आशिकों की स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं है. कभी ऑनर किलिंग तो कभी लव जिहाद. मतलब लड़का लड़की ने अभी प्यार की पतंग में मांझा कसा भी नहीं की तमाम तरह के विरोध शुरू हो जाते हैं. बजट 2018 में, आशिक सरकार से ये उम्मीद लगाए बैठे हैं कि वो एंटी रोमियो स्क्वॉड, डायल 100 और 1090 की तरह उनके भी मानवाधिकारों के लिए एक संगठन बनाए. साथ ही जिसका खर्चा पूरा सरकार की जेब से दिया जाए.
ये संगठन एक ऐसी जगह हो जहां आशिकों को बिल्कुल घर जैसी फीलिंग आए. ध्यान रहे कि इस संगठन में जो भी लोग रहेंगे उनका काम आशिक समुदाय के युवक युवतियों को बजरंग दल और इससे मिलते जुलते संगठनों से बचाना रहेगा. आशिकों द्वारा ये उम्मीद इस लिए भी अहम मानी जा सकती है क्योंकि उन्हें डर है कि 1000 और 500 की तरह कहीं सरकार इसे स्वच्छ भारत अभियान का हिस्सा मान झाड़ न दे.
3 - पेट्रोल के दाम कम और सभी मोड ऑफ ट्रासंपोर्ट में छूट
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. देश का आशिक जब भी अपनी बेबी के साथ डेट पर जाता है तो उसके खर्चे का एक बड़ा हिस्सा पेट्रोल भराने में खर्च हो जाता है जिससे उसके व्यक्तिगत राजस्व में भारी कमी होती है. इस बजट में आशिक समुदाय सरकार की तरफ टकटकी बांध के देख रहा है कि वो पेट्रोल के दाम बेहद करे. साथ ही जिन आशिकों के पास अपना पर्सनल वाहन नहीं है उनके लिए ओला, उबेर, ऑटो, बस, ट्रेन, टैक्सी, मेट्रो जैसी चीजों की राइड फ्री की जाए और इसका भी खर्च सरकार दे. इस कड़ी के तहत आशिक समुदाय ये उम्मीद लगाए बैठा है कि एक ऐसा विभाग हो जहां ये लोग अपने टिकट और बिल जमा कर दें और पैसा रिफंड हो जाए.
4 - रेस्टुरेंट के बड़े-बड़े बिलों में मिले बड़ी राहत
जब भूखे पेट भजन नहीं हो सकता तो प्यार की कल्पना व्यर्थ है. खाली पेट प्यार संभव नहीं है. इस मामले में आशिक समुदाय सरकार से ये उम्मीद लगाए बैठा है कि सरकार रेस्टुरेंट और होटल मालिकों को निर्देशित करे कि वो लवबर्ड्स की आर्थिक स्थिति के मद्देनजर एक प्लेट चाउमीन, 6 गोलगप्पों, 2 कोल्ड ड्रिंक, हाफ प्लेट पनीर टिक्का और 2 स्कूप आइसक्रीम वाले दो कोनों का बिल इतना न दे दे कि बेचारे लव बर्ड्स को अपनी गांव वाली ज़मीन किसी साहूकार के पास गिरवी रखनी पड़ जाए. साथ ही सरकार रेस्टुरेंट मालिकों को ये भी बताए कि वो प्यार करने वालों को एक ऐसा बिल दें जिसमें रेट कम हों और कोई टैक्स न हो.
5 - ऐसे कूपन जिसको दिखाकर फिल्मों के टिकट के दाम और थियेटर में मिलने वाली चीजें सिर्फ लागत मूल्य पर मिलें
भीड़ भाड़ में प्यार करने वालों को सुकून नहीं मिलता. इनकी तलाश होती है एक ऐसी जगह की जहां ये फुर्सत के पल बिता सकें. इसके लिए थियेटर से बेहतर कोई जगह नहीं होती. आशिक समुदाय की सरकार से ये उम्मीद इसलिए भी खास है क्योंकि अब तक उसका सबसे ज्यादा शोषण सिनेमाहॉल में ही हो रहा है. आशिक समुदाय की मांग है कि योगी आदित्यनाथ, खट्टर, वसुंधरा और गिरिराज सिंह जैसे लोग बजट के बाद अपने अपने राज्यों में आशिकों को ऐसे कूपन बांटें जिससे पीवीआर का टिकट हाफ रेट और पॉपकॉर्न और पेप्सी लागत मूल्य से दो रुपए अधिक पर मिले.
कुल मिलकर हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करते हैं कि बजट का सूटकेस खुलने में कुछ ही घंटे बाक़ी हैं. देखने वाली बात ये होगी कि सरकार बेचारे आशिकों के लिए कुछ करती है या फिर हर बार की तरह इन्हें धोखा ही मिलेगा. वैसा व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि भले ही पीएम को आलोचक निर्मोही कहें मगर इस बार वो जरूर आशिकों का ख्याल रखेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि ये आशिक भी देश के पीएम मोदी के वोटर हैं.
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