भारत में टमाटर की कीमतें क्या बढ़ी, वही हुआ जिसका अंदेशा था. कंपनियों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. मैक डॉनल्डस के बाद अब बर्गर किंग इंडिया ने भी अपने बर्गर से कटे टमाटर के लच्छों को गायब कर दिया है. यूं तो इसमें ऐसा कुछ नहीं था जिससे बहुत ज्यादा फर्क पड़े. लेकिन क्योंकि विरोध की आग को एक चिंगारी काफी होती है. बर्गर किंग के कुछ लॉयल कस्टमर्स ने इसकी शिकायत की और मामला ट्विटर पर आया. वाद विवाद चल ही रहा था कि बर्गर किंग ने भी सफाई दी और व्यंग्य को ढाल बनाकर कह दिया है कि टमाटर को भी छुट्टी चाहिए. बाद में बढ़ी हुई कीमतों का हवाला दिया गया और कहा गया कि हमारे बर्गर टमाटर के बिना भी उतने ही स्वादिष्ट हैं जितने सुस्वादु वो टमाटर के साथ हैं.
महंगाई के नाम पर जो बर्गर किंग ने किया वो दिल दुखाने वाला था
बर्गर किंग के इस रिप्लाई के बाद खानपान के शौक़ीन दो वर्गों में बंट गए हैं. एक वर्ग है, जो ये मानता है कि जब कीमतें बढ़ रही हैं तो कोई क्यों नुकसान की भरपाई अपनी जेब से करेगा. वहीं एक वर्ग वो भी है जिसे बर्गर किंग की ये बात कोरी लफ्फाजी लग रही है. और जो ये मान रहा है कि अपने बर्गर और रैप से टमाटर को गायब कर बर्गर किंग ने आपदा को अवसर में परिवर्तित किया है.
सवाल ये है कि टमाटर और उसकी बढ़ी हुई कीमतों को लेकर जो बातें बर्गर किंग जैसे ब्रांड ने की हैं क्या वो पचाने लायक हैं? सवाल की तय में जाएं तो जवाब है नहीं. चाहे वो महंगाई का रोना रोकर कॉस्ट कटिंग करने वाला मैक डॉनल्ड्स हो या फिर एक स्थापित कंपनी के रूप में बर्गर किंग इन्हें इस बात को समझना होगा कि दोनों ही कंपनियां कुछ हजार या लाख की कंपनियां नहीं हैं.
बात अगर मैकडॉनल्ड्स की हो तो वेस्टलाइफ डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड (डब्ल्यूडीएल) द्वारा संचालित मैकडॉनल्ड्स का कुल राजस्व वित्तीय वर्ष 2022 में 15 बिलियन भारतीय रुपये से अधिक था, जो वित्तीय वर्ष 2021 में लगभग दस बिलियन भारतीय रुपये से अधिक था. वहीं बात अगर बर्गर किंग की हो तो वित्त वर्ष 2012 में बर्गर किंग इंडिया का राजस्व 15,127 मिलियन रुपये था, जो वित्त वर्ष 2011 में रिपोर्ट किए गए 10,380 मिलियन रुपये की तुलना में 45.7% अधिक था.
सोचने वाली बात ये है कि वो कंपनियां जो हर साल सफलता के नए मानक स्थापित कर रही हैं. यदि वो टमाटर की आड़ लेकर महंगाई का रोना रोएं और कॉस्ट कटिंग करें तो बात सोचने वाली है. विषय बहुत सीधा है. चाहे वो मैक डॉनल्ड्स रहा हो या फिर बर्गर किंग यदि इन्हें अपने बर्गर और रैप से टमाटर गायब ही करने थे तो कितना अच्छा रहता कि ये लोग कोई ऐसा बहाना बनाते जिसे हम कस्टमर आराम से पचा पाते या फिर जिस लफ्फाजी को हमारे जैसे भोले भले ग्राहक हजम कर लेते.
सिर्फ बर्गर किंग नहीं तमाम कंपनियां हैं जो टमाटर के नाम पर लोगों से झूठ बोल रही हैं
एक कंपनी के रूप में बर्गर किंग को ये भी बताना होगा कि क्या वो अपना बर्गर और रैप बहुत मामूली कीमतों पर बेच रहे हैं? ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इनका बर्गर और रैप आम आदमियों के लिए हैं. कह सकते हैं कि जिस तरह के रेट हैं आज भी बर्गर किंग का बर्गर खाना हम जैसे आम आदमियों के लिए किसी फैंटेसी से कम नहीं हैं.
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि बर्गर किंग हमें अगर बर्गर और रैप में टमाटर डाल के खिला रहा है तो कोई एहसान कर रहा है. ये जानते हुए कि बर्गर की कीमत दस, बीस, पचास रूपये से ज्यादा नहीं है यदि हम कस्टमर उस बर्गर के दो सौ ढाई सौ रुपए चुका रहे हैं तो स्पष्ट है कि हम ही कंपनी पर एहसान कर रहे हैं और अगर उस एहसान के बदले हमें दो टुकड़े टमाटर न मिलें तो फिर बुराई से लेकर आलोचना तक सब होगी.
बताया जा रहा है कि टमाटर को सबसे पहले मुद्दा मैक डॉनल्ड्स ने बनाया
हम बिलकुल इस बात से सहमत हैं कि महंगाई बढ़ रही है और अगर कोई कॉस्ट कटिंग कर रहा है तो ये उसकी मजबूरी है. ऐसे में जब हम बर्गर किंग या फिर मैक डॉनल्ड्स जैसी कंपनियों को देखते हैं और उन अलग अलग टैक्स को देखते हैं जो ये कंपनियां हमसे वसूल रही हैं तो इस बात का यकीन हो जाता है कि बतौर कस्टमर उन कंपनियों द्वारा हमें मुर्ख बनाकर हमारी कोने में किनारे पड़ी भावना को आहात किया जा रहा है.
बतौर कस्टमर हम इन कंपनियों से किसी तरह के कोई डिस्काउंट के तलबगार नहीं हैं. हम बस इतनी सी बात कह रहे हैं कि जब हमसे बर्गर और रैप के नाम पर मोटा पैसा वसूला जा रहा है तो हमें सही चीज मिले ये हमारा हक़ है. बतौर कस्टमर हम इस बात के पक्षधर हैं कि जब हमारी लड़ाई अधिकारों की हो. तो हम ऐसे किसी भी फरमान को नहीं मानेंगे जिसे कंपनी द्वारा लाया ही इसलिए गया ताकि वो फायदे में रहे और उसका उद्देश्य भोले भाले ग्राहकों को बेवकूफ बनाना हो.
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