अफगानिस्तान और भारत पुराने समय से रिश्तेदारी में बंधे रहे और आज भी कुछ दुःख साझे हैं. नौकरियों की किल्ल्त लोगों को दूसरी धरती पर ले जाती है और हमारे बहुत से मंत्रियों संतरियों को ये गोरे पूछते भी नहीं और सोचिये अगर इन्हीं अंतरि मंत्री संत्री को वहीं इनकी जी हुजूरी करनी पड़े तब? बिलकुल जैसे अफगानिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री आज विदेशी धरती पर उबर के डिराइवर बने फिर रहे हैं. चालीस वर्षीय खालिद पाईंदा आज वाशिंगटन डीसी में उबर चलाते हैं. आंख मल मल कर दोबारा न पढ़े बिलकुल सही लिखा है. जी हां एक ज़माने का अफगानिस्तान जहां डेमोक्रेसी की पुरज़ोर कोशिश बीस साल तक हुई और उसके बाद आतंक का झींगा लाला होते हुए देखा गया. देखा सुना क्या, हम सबने उसे लाइव अपने घरों में बैठ कर धर्म के पागलपन में जकड़ते, कसमसाते और घुटते देखा है. उसी अफगानिस्तान के वित्त मंत्री आज अमरीका में ड्राइवर बनने को मजबूर हैं.
अपने देश को छोड़ने पर मजबूर हो गए और तेरी दुनिया से होके मजबूर चला मैं बहुत दूर चला. कुछ ऐसा ही हुआ हाल इनका. आज करीब डेढ़ सौ डॉलर प्रति छह घंटो के कमा कर परिवार का पेट पाल रहे मतलब बर्गर फिश एन्ड चिप्स खिला रहे.
कसम ऊपर वाले की ये अमरीकी जो न करें वो थोड़ा. कोई जैसी भी पाल्टी आ जाये इनके इहां लेकिन हाल वही वाले कि बकरे की जान गयी और खाने वाले को मजा न आया. किसी न किसी की फ़टे में टांग देते ही रहते ये गोरे. बड़े बुश साहब थे जो बगदाद में जाने कौन से हथियार की खोज पर निकले और तबाह कर वापस आये. तसल्ली न हुई तो छोटे साहब को भी पट्टी पढ़ा सीखा कर भेजा.
छोटे बुश साहब भी कुछ कम नहीं उनकी सत्ता को चुनौती नहीं दी गयी थी बल्कि अमरीका सबसे ताकतवर इस ख्वाब को...
अफगानिस्तान और भारत पुराने समय से रिश्तेदारी में बंधे रहे और आज भी कुछ दुःख साझे हैं. नौकरियों की किल्ल्त लोगों को दूसरी धरती पर ले जाती है और हमारे बहुत से मंत्रियों संतरियों को ये गोरे पूछते भी नहीं और सोचिये अगर इन्हीं अंतरि मंत्री संत्री को वहीं इनकी जी हुजूरी करनी पड़े तब? बिलकुल जैसे अफगानिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री आज विदेशी धरती पर उबर के डिराइवर बने फिर रहे हैं. चालीस वर्षीय खालिद पाईंदा आज वाशिंगटन डीसी में उबर चलाते हैं. आंख मल मल कर दोबारा न पढ़े बिलकुल सही लिखा है. जी हां एक ज़माने का अफगानिस्तान जहां डेमोक्रेसी की पुरज़ोर कोशिश बीस साल तक हुई और उसके बाद आतंक का झींगा लाला होते हुए देखा गया. देखा सुना क्या, हम सबने उसे लाइव अपने घरों में बैठ कर धर्म के पागलपन में जकड़ते, कसमसाते और घुटते देखा है. उसी अफगानिस्तान के वित्त मंत्री आज अमरीका में ड्राइवर बनने को मजबूर हैं.
अपने देश को छोड़ने पर मजबूर हो गए और तेरी दुनिया से होके मजबूर चला मैं बहुत दूर चला. कुछ ऐसा ही हुआ हाल इनका. आज करीब डेढ़ सौ डॉलर प्रति छह घंटो के कमा कर परिवार का पेट पाल रहे मतलब बर्गर फिश एन्ड चिप्स खिला रहे.
कसम ऊपर वाले की ये अमरीकी जो न करें वो थोड़ा. कोई जैसी भी पाल्टी आ जाये इनके इहां लेकिन हाल वही वाले कि बकरे की जान गयी और खाने वाले को मजा न आया. किसी न किसी की फ़टे में टांग देते ही रहते ये गोरे. बड़े बुश साहब थे जो बगदाद में जाने कौन से हथियार की खोज पर निकले और तबाह कर वापस आये. तसल्ली न हुई तो छोटे साहब को भी पट्टी पढ़ा सीखा कर भेजा.
छोटे बुश साहब भी कुछ कम नहीं उनकी सत्ता को चुनौती नहीं दी गयी थी बल्कि अमरीका सबसे ताकतवर इस ख्वाब को नेस्तनाबूद कर दो जोड़ी बिल्डिंग तो ज़मींदोज़ कर दिया और उन साहब ने तो घुस के मारा. ये वाला अच्छा लगा था बाई गॉड! हालांकि उनको कोई ह्यूमन राइट नहीं याद दिलाता.
हां भाई जिसकी लाठी उसकी भैस ये भी इसी दुनिया की हकीकत है. लेकिन भैया मोहल्ले की सबसे नकचढ़ी और लड़ाका लेकिन सुंदर भौजाई जैसा है अमरीका. यहां वह आग लगाए पड़ी है और मजाल कोई इसको रोक कर कहे की अपना घर देखो यार! तुम्हारी कंपनियां हॉस्पिटल चलाएं हम और तुम हो की लगाए पड़े हो - आग !
तो अफगानिस्तान की जो लंका लगाई मतलब जो आग लगाया उस शहर में की पूछिए मत. लेकिन वहां का किस्सा ज़रा लम्बा है और बड़ी हिचकोले वाले झूले कि सी फिलिंग आएगी. कुल मिलकर समझिये की बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले. अमरीकियों को निकाल दिया आतंकियों ने ! (वैसे एरिया की रवायत है. है की नहीं? डेमोक्रेसी पर फ़ौज भारी !)
और शहहह... अभी अभी ताज़ा खबर ये भी है की अफगानिस्तान के आतंकियों को ही सरकार होने की मान्यता मिल गयी है वो भी यूएन की! यूएन का हाल इन देशो ने वो किया है मानो गब्बर हर दस मिंट पर बोले, 'नाच बसंती' और बसंती शुरू !
तो बगदाद अफगानिस्तान के बाद मजे के लिए यूक्रेन को अपना मोहरा बनाया और ऊंगली करनी शुरू की. नए नवेले बिडेन या बाइडेन जो भी है जनाब उनको समझने में बड़ी गलती हुई लेकिन अब क्या! और यूक्रेन हमसे भी बेवकूफ क्योंकि हम तो सिध्दू को रोक ले गए ये न रोक पाया.
ज़िलेन्स्की इनके सिद्धू ही हैं. तो कॉमरेड कॉमेडियन को देश की बागडोर दोगे तब कुछ यही हाल होगा, और इसका शिकार हो रही है यूक्रेनी जनता. अहाहा... दिमाग दुःख गया. वॉर से नहीं भाई वो तो खैर...
अरे अफगानिस्तान से वाशिंगटन डीसी और रशिया यूक्रेन - इतनी विदेश यात्रा - सब एक ही लेख में घूमें तो दिमाग तो दुखेगा न. यूं तो हम हिन्दुस्तानियों ने अफगानिस्तान के उस पार को ही विदेश माना है.
न्यू इंडिया इंटेलेक्चुअल इंटरप्शन क्वेश्चन - उस पार क्यों. पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी तो विदेश है.
न्यू इंडिया इंटेलेक्चुअल इंटरप्शन आंसर - अमा जाओ यार. पाकिस्तान क्या खा के विदेश बनेगा. शोरबे का टमाटर तो हम देते है और अफगानिस्तान ? आज भी शकुनि के कन्वर्टेड वंशज बवाल मचाये हैं. अब जैसे भी है हैं तो ननिहाल पक्ष वाले तो भला विदेशी कैसे ?
न्यू इंडिया इंटेलेक्चुअल इंटरप्शन फिनिश- वैसे देश गरीब था ये भी तय हो ही गया. अपने देश में तो 2 साल एमएलसी बन जाये तो करोड़पति हो जाएं. वित्त मंत्री के वित्त का तो कोई हिसाब ही नहीं. ये जाने कैसे मिनिस्टर थे? ऐसे वैसे जैसे भी थे, थे तो अपने ही न और अब अमरिकी कैब चलाना दुखद तो है. वैसे जेलिंस्की गाड़ी चलाना जानते हैं या उनके शो का सेकंड सीज़न उनको दाल रोटी देगा ये देखने वाली बात होगी.
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