हाल ही में अहमदाबाद (Ahmedabad) में एक प्रेमी जोड़े को पुलिस द्वारा गिरफ़्तार (Arrest) कर लिया गया. पुलिस के अनुसार दोनों ने लॉकडाउन (Lockdown) का उल्लंघन किया और कार में पकड़े गए. बताइये, ये भी कोई बात हुई? कार लॉक तो कर रखी थी न दोनों ने. अब आख़िर प्रेमी लोग जाएं तो जाएं कहां? घर में पहले से ही बैन चल रहा तो कैसे भी करके, छुपते-छुपाते मिलने के 100 आइडियाज आते थे. मॉल, सिनेमा, पार्क, रेस्टोरेंट, कॉलेज केंटीन, हाईवे, टूरिस्ट स्पॉट इतने तो हमें ही बिना जाए पता हैं तो जिसको जाना है उसके पास तो कितनी लम्बी लिस्ट होगी मिलने-मिलाने वाली जगहों की. लेकिन ये मुआ लॉकडाउन तो बजरंग दल की वैलेंटाइन लाठी (सहारे वाली नहीं, कुटाई वाली) बन गया है कि जहां जाओ वहीं से बेइज़्ज़ती का मुकुट पहन निकल जाना पड़ता है. तब्लीग़ी ज़मात (Tablighi Jamaat) के लोग जमा हो गए. हाईवे पर हजारों की भीड़ इकट्ठी हुई. मुंबई (Mumbai) में भी यही दृश्य लेकिन प्रेमी! उफ़! उनका इस जगत में कोई खिवैया, कोई पालनहार नहीं.
अब पिलीज़ इसे भड़काऊ पोस्ट समझकर इस लॉकडाउन के मौसम में हमें लॉकअप में मत डाल देना पर जरा एक बार सोचकर तो देखो कि थाली संगीत वाले दिन या फिर आतिशबाज़ी के समय अगर प्रेमी जोड़े 'प्यार किया तो डरना क्या' पर साल्सा या चलो भरतनाट्यम (देसी नृत्य से देशभक्ति की भीनी सुगंध आती है जी) करते हुए सड़कों पर निकलते तो कितना ग़ज़ब का प्रेममयी वातावरण होता.
कुछ नहीं तो इन्हें वो नई वाली ट्रेन की बोगियों में बिठाने की ही व्यवस्था कर दी जाती कि वे एक-दूसरे के आंखों में आंखें डाल (यह विश्व की बिना औज़ार वाली पहली शल्य क्रिया के रूप में प्रचलित है) कुछ कह सकें, सुन सकें, कोरोना को जी भर कोस सकें.
मेरी तो यह बेशक़ीमती राय है कि एक संडे विश्वभर के सभी प्रेमी अपनी-अपनी छतों पर इकट्ठे हों 'कोरोना तेरा सर्वनाश हो' भजन का नौ बार पाठ करें. उसके बाद नीचे वाले फ्लोर की खिड़की (जहां इंतज़ार में पहले पगलाते थे, वही स्थान) से गुलाब की इक्यावन पंखुड़ियां पूर्व दिशा की तरफ़ उछाल...
हाल ही में अहमदाबाद (Ahmedabad) में एक प्रेमी जोड़े को पुलिस द्वारा गिरफ़्तार (Arrest) कर लिया गया. पुलिस के अनुसार दोनों ने लॉकडाउन (Lockdown) का उल्लंघन किया और कार में पकड़े गए. बताइये, ये भी कोई बात हुई? कार लॉक तो कर रखी थी न दोनों ने. अब आख़िर प्रेमी लोग जाएं तो जाएं कहां? घर में पहले से ही बैन चल रहा तो कैसे भी करके, छुपते-छुपाते मिलने के 100 आइडियाज आते थे. मॉल, सिनेमा, पार्क, रेस्टोरेंट, कॉलेज केंटीन, हाईवे, टूरिस्ट स्पॉट इतने तो हमें ही बिना जाए पता हैं तो जिसको जाना है उसके पास तो कितनी लम्बी लिस्ट होगी मिलने-मिलाने वाली जगहों की. लेकिन ये मुआ लॉकडाउन तो बजरंग दल की वैलेंटाइन लाठी (सहारे वाली नहीं, कुटाई वाली) बन गया है कि जहां जाओ वहीं से बेइज़्ज़ती का मुकुट पहन निकल जाना पड़ता है. तब्लीग़ी ज़मात (Tablighi Jamaat) के लोग जमा हो गए. हाईवे पर हजारों की भीड़ इकट्ठी हुई. मुंबई (Mumbai) में भी यही दृश्य लेकिन प्रेमी! उफ़! उनका इस जगत में कोई खिवैया, कोई पालनहार नहीं.
अब पिलीज़ इसे भड़काऊ पोस्ट समझकर इस लॉकडाउन के मौसम में हमें लॉकअप में मत डाल देना पर जरा एक बार सोचकर तो देखो कि थाली संगीत वाले दिन या फिर आतिशबाज़ी के समय अगर प्रेमी जोड़े 'प्यार किया तो डरना क्या' पर साल्सा या चलो भरतनाट्यम (देसी नृत्य से देशभक्ति की भीनी सुगंध आती है जी) करते हुए सड़कों पर निकलते तो कितना ग़ज़ब का प्रेममयी वातावरण होता.
कुछ नहीं तो इन्हें वो नई वाली ट्रेन की बोगियों में बिठाने की ही व्यवस्था कर दी जाती कि वे एक-दूसरे के आंखों में आंखें डाल (यह विश्व की बिना औज़ार वाली पहली शल्य क्रिया के रूप में प्रचलित है) कुछ कह सकें, सुन सकें, कोरोना को जी भर कोस सकें.
मेरी तो यह बेशक़ीमती राय है कि एक संडे विश्वभर के सभी प्रेमी अपनी-अपनी छतों पर इकट्ठे हों 'कोरोना तेरा सर्वनाश हो' भजन का नौ बार पाठ करें. उसके बाद नीचे वाले फ्लोर की खिड़की (जहां इंतज़ार में पहले पगलाते थे, वही स्थान) से गुलाब की इक्यावन पंखुड़ियां पूर्व दिशा की तरफ़ उछाल दें.
तत्पश्चात फरवरी माह में प्राप्त हुए टेडी को डेटॉल से धोकर तीन चॉकलेट का सेवन करें. सभी जातकों के लिए यह उत्तम फलदायी रहेगा. कृपया, इसे हास्य समझकर अपने दन्तकांति( ऊप्स प्रचार हो गया) के दर्शन न करवाएं यह बेहद गंभीर समस्या है जिसका शीघ्र ही निदान आवश्यक है. वैसे भी खाली उदास, मुंह लटकाये बैठने से अच्छा कुछ कीजिये.
जहां तक पुलिस और प्रशासन की बात है तो उनके हिसाब से तो वे अपनी ड्यूटी ही निभा रहे हैं वरना प्रेमियों को अलग करना किसे अच्छा लगता और फिर अपने देश में तो भाई लोग ही आधों के सिर फोड़ आते हैं. कुछ के माता-पिता उनकी शादी कहीं और कर देते हैं. तो अब बचे कितने प्रतिशत? उतने ही न, जितने कोरोना से बचते हैं. लेकिन हम इन प्रेमियों के प्रतिनिधि बनकर दुश्मनों को ठीक वही समझाए देते हैं जो वर्ष 1991, माह दिसंबर, शुक्ल पक्ष में 'सड़क' फिल्म के माध्यम से कुमार शानू एवं अनुराधा पौडवाल जी समझा चुके हैं, कि
'जब-जब प्यार पे पहरा हुआ है/ प्यार और भी गहरा, गहरा हुआ है
दो प्यार करने वालों को,जब-जब दुनिया तड़पाएगी/ मोहब्बत बढ़ती जाएगी'
मैं विश्वभर के समस्त प्रेमियों के प्रति सहानुभूति रखती हुई इस 'कोरोना वायरस' की कड़े शब्दों में निंदा करती हूं. साथ ही सरकार से यह मांग भी करती हूं कि यथाशीघ्र इसे कठोरतम सजा दिलवाने का प्रबंध करें जिससे यह नासपीटा विषाणु किसी को मुंह भी न दिखा सके. इसकी हरकतों की वज़ह से कितने दिलों को आघात पहुंचा है, कितनी भावनायें आहत हुई हैं, इसका निश्चित आंकड़ा अभी तक प्राप्त नहीं हो सका है. वो क्या है न कि आधी प्रेम कहानियां तो छुपकर चलती रहती हैं. खी-खी-खी
पर फिर भी मेरा प्रश्न आप सबके गले में तलवार की तरह झूलता रहेगा कि आख़िर हर मौसम में गाज़ प्रेमियों पर ही क्यों गिरती है? प्रेमियों के हिस्से में ही झिड़की- दुत्कार और चौराहों पर मुर्गा बनना क्यों लिखा है? व्यवस्था की बलिवेदी पर प्यार के पंछियों के फुर्र वाले पर काट क्यों दिए जाते हैं जी? आख़िर सारा ज़माना, प्रेम का दीवाना क्यों नहीं है जज साहब? मैं पूछती हूं नफ़रतों से भरी इस दुनिया को, आख़िर प्रेम इतना अखरता क्यों है?
प्रेम, इश्क़, मोहब्बत और लव करने वालों, मेरी सारी संवेदनायें तुम्हारे साथ हैं. देखना, इस दुष्ट कोरोना के जाते ही प्रशासन आपको किसी पहाड़ या झील के पास भेजने की व्यवस्था करेगा. तब तक के लिए मैं अखिल भारतीय प्रेमी संघ से फ़ोन रिचार्ज राशि के लिए अनुरोध याचिका लगा रही हूं. पर कोरोना याद रखना तुम भी बचोगे नहीं! देख लेना इस लॉकडाउन के समय में तुम्हें सबसे ज्यादा हाय प्रेमियों की ही लगेगी.
और प्रेमियों आप भी समझो थोड़ा... ईश्वर आप और आपके प्रेम को सदैव बनाये रखे इसके लिए जरुरी है कि आप नियमों का पालन करें. जीवित रहेंगे तभी तो प्रेम निभा पाएंगे न. उदास न होइए. ये समय भी कट जाएगा जैसे एग्जाम वाला काटा था. यह भी आपके प्रेम की परीक्षा ही तो है. अब आपके लिए इस प्रेरक गीत की पंक्तियां छोड़ मैं विदा लेती हूं-
एक डाल पर तोता बोले, एक डाल पर मैना
दूर-दूर बैठे हैं लेकिन प्यार तो फिर भी है न
बोलो है न?
कठिन काल में यही मुस्कान सलामत रहे! आमीन
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