अयोध्या के राम मंदिर विवाद में एक पन्ना और जुड़ा है. ये पन्ना लिखा है प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी ने. वे खुद के दिल्ली के आखिरी सुुुुलतान बहादुरशाह जफर का वंशज बता रहे हैं. पहले पढ़ लेते हैं कि उन्होंने लिखा क्या है, फिर जानेंगे उसका मतलब क्या है:
'मेरे पूर्वज बाबर के सेनापति मीरबाकी द्वारा 1528 अयोध्या में बने भव्य श्रीराम मंदिर को तोड़े जाने को जाहिलाना, निन्दनीय एवं कुकृत्य मानते हुए विश्व के समस्त हिन्दुओं से पूरे होशोहवास में दिल की गहराइयों से क्षमा मांगता हूं. माननीय सुप्रीम कोर्ट में श्री राम जन्मभूमि विवाद में सभी मुस्लिम पक्षकारों से निवेदन करता हूं कि वो अपना श्रीराम जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद के नाम से राजनीति करना बंद करें व अपने झूठे वायदों को वापस लेते हुए श्री राम जन्मभूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण हेतु मार्ग प्रशस्त करें जिससे हिन्दू-मुस्लिम सद्भावना कायम हो सके.
मैं श्री राम मंदिर निर्माण हेतु तन मन धन से सहयोग देने का वचन देता हूं एवं निर्माण के समय एक सोने का ईंट अपनी तरफ से देने का वादा करता हूं जो हिन्दू मुस्लिम एकता में मील का पत्थर साबित होगा.'
अब इस चिट्ठी के आगे की कहानी जानते हैं...
प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी का पूरा परिचय
उपरोक्त बातों तक तो ठीक है मगर ये नाम 'प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी' आपको जरूर विचलित कर गया होगा. तो कुछ और बताने से पहले आपको 'प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी' से रू-ब-रू करा दें. प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी के लैटर पैड के अनुसार...
अयोध्या के राम मंदिर विवाद में एक पन्ना और जुड़ा है. ये पन्ना लिखा है प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी ने. वे खुद के दिल्ली के आखिरी सुुुुलतान बहादुरशाह जफर का वंशज बता रहे हैं. पहले पढ़ लेते हैं कि उन्होंने लिखा क्या है, फिर जानेंगे उसका मतलब क्या है:
'मेरे पूर्वज बाबर के सेनापति मीरबाकी द्वारा 1528 अयोध्या में बने भव्य श्रीराम मंदिर को तोड़े जाने को जाहिलाना, निन्दनीय एवं कुकृत्य मानते हुए विश्व के समस्त हिन्दुओं से पूरे होशोहवास में दिल की गहराइयों से क्षमा मांगता हूं. माननीय सुप्रीम कोर्ट में श्री राम जन्मभूमि विवाद में सभी मुस्लिम पक्षकारों से निवेदन करता हूं कि वो अपना श्रीराम जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद के नाम से राजनीति करना बंद करें व अपने झूठे वायदों को वापस लेते हुए श्री राम जन्मभूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण हेतु मार्ग प्रशस्त करें जिससे हिन्दू-मुस्लिम सद्भावना कायम हो सके.
मैं श्री राम मंदिर निर्माण हेतु तन मन धन से सहयोग देने का वचन देता हूं एवं निर्माण के समय एक सोने का ईंट अपनी तरफ से देने का वादा करता हूं जो हिन्दू मुस्लिम एकता में मील का पत्थर साबित होगा.'
अब इस चिट्ठी के आगे की कहानी जानते हैं...
प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी का पूरा परिचय
उपरोक्त बातों तक तो ठीक है मगर ये नाम 'प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी' आपको जरूर विचलित कर गया होगा. तो कुछ और बताने से पहले आपको 'प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी' से रू-ब-रू करा दें. प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तूसी के लैटर पैड के अनुसार ये अपने को शाही मुगल परिवार बाबर एवं बहादुरशाह जफ़र की छठवी पीढ़ी का वंशज बता रहे हैं और मानते हैं कि श्री राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को केवल दरियादिली दिखाकर सुलझाया जा सकता है.
आपने चिट्ठी लिखने में देर कर दी तूसी साहब
अब ये बात किसी से छुपी नहीं है कि मामला कोर्ट में है. रोज सुनवाई भी हो रही है. रोजाना कोई नया बखेड़ा भी खड़ा हो रहा है. ऐसे में इस नए ड्रामे को देखकर कहा जा सकता है कि तूसी साहब ने चिट्ठी लिखने में देर कर दी. बाक़ी अगर आज बहादुर शाह जफ़र या बाबर खुद भी होते और इनकी जगह उन्होंने खत लिख कर अपने को दरियादिल साबित करने का काम किया होता तो भी कुछ नहीं होता. इस मामले में होगा वही जो कानून चाहेगा.
बहरहाल इस पूरे मामले को देखकर हम बस ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि अपने को बाबर और बहादुरशाह जफ़र की छठवी पीढ़ी बताने वाले तूसी फर्जी का मीडिया अटेंशन पाने के लिए खत लिखना बंद करें और चुप रहें तूसी जान लें कि फिल्हाल मामला इतना संवेदनशील है कि चुप्पी में ही भलाई है.
इस विवादस्पद मामले में कानून अपना काम बखूबी कर रहा है. तूसी या तूसी जैसे लोगों को याद रखना होगा कि कानून को इससे मतलब नहीं है कि कौन किस घराने का है, और क्या कह रहा है. चूंकि तूसी ने चिट्ठी लिखकर एक नए विवाद को जन्म दिया है तो तूसी ये भी जान लें कि देश का कानून सबूत और गवाहों पर चलता है. कहना गलत नहीं है कि ऐसे चिट्ठी लिखकर उन्होंने न सिर्फ लोगों को अपने पर अंगुली उठाने का मौका दिया है बल्कि शून्य में कहीं विराजे अपने पूर्वजों जैसे बाबर और बहादुरशाह जफ़र को भी कष्ट देने का काम किया है.
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