Brahmin Appeasement In P Before P Assembly Elections 2022 : बात तब की है जब राहुल गांधी छोटे और पीएम मोदी की दाढ़ी के दो चार बाल पकने शुरू हुए थे. यूपी में तब भी चुनाव होते थे. विधानसभा में भले ही कुछ खास न रहा हो, मगर यूपी के नेताओं के दिल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व था. मुसलमान जिसे कांग्रेस जैसी पार्टी ने गमले का फूल बना दिया था, जब भी कोई नेता रमजान टाइप किसी पावन महीने में उसके दर पर आता और गोल जालीदार टोपी लगाकर पहले खजूर फिर बिरयानी खाता. उसकी खुशी का ठिकाना न रहता. तब उस दौर में जिसे देखो वही मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर जान दिए पड़ा था. इन बातों पर यकीन न हो तो भारतीय राजनीति से संबंधित किताबों को देखिये. खंगालिए उत्तर प्रदेश से जुड़ी उन तस्वीरों को जिनमें चुनाव प्रचार के हर फॉरमेट पर प्रकाश डाला गया है. राजनीतिक पंडितों की एक बड़ी आबादी ऐसी है जो डंके की चोट पर इस बात को स्वीकार करती है कि यदि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का चौपटानास हुआ तो उसका बड़ा कारण मुस्लिम तुष्टिकरण था. अब चूंकि हर दिन समान नहीं होते 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद से हिसाब किताब बदल गया है. 22 में चुनाव है और 2017 और उससे पहले तक जो स्थिति मुसलमानों की थी आज उस मुकाम पर ब्राह्मण हैं. अब उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को नहीं पूछा जा रहा बल्कि उस मुकाम पर सूबे के ब्राह्मण है. दल चाहे भाजपा हो या फिर सपा, बसपा हर कोई बस इसी फिराक में है कि कुछ भी कर लो. कैसे भी कर लो लेकिन भइया चुनाव जीतना है तो 'पंडिज्जी' को रिझा लो.
पंडिज्जी और उनका समुदाय किसके हाथ में यूपी की सत्ता देगा? क्या भाजपा पर सूबे का ब्राह्मण विश्वास कर पाएगा? क्या यूपी में फिर से भाजपा...
Brahmin Appeasement In P Before P Assembly Elections 2022 : बात तब की है जब राहुल गांधी छोटे और पीएम मोदी की दाढ़ी के दो चार बाल पकने शुरू हुए थे. यूपी में तब भी चुनाव होते थे. विधानसभा में भले ही कुछ खास न रहा हो, मगर यूपी के नेताओं के दिल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व था. मुसलमान जिसे कांग्रेस जैसी पार्टी ने गमले का फूल बना दिया था, जब भी कोई नेता रमजान टाइप किसी पावन महीने में उसके दर पर आता और गोल जालीदार टोपी लगाकर पहले खजूर फिर बिरयानी खाता. उसकी खुशी का ठिकाना न रहता. तब उस दौर में जिसे देखो वही मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर जान दिए पड़ा था. इन बातों पर यकीन न हो तो भारतीय राजनीति से संबंधित किताबों को देखिये. खंगालिए उत्तर प्रदेश से जुड़ी उन तस्वीरों को जिनमें चुनाव प्रचार के हर फॉरमेट पर प्रकाश डाला गया है. राजनीतिक पंडितों की एक बड़ी आबादी ऐसी है जो डंके की चोट पर इस बात को स्वीकार करती है कि यदि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का चौपटानास हुआ तो उसका बड़ा कारण मुस्लिम तुष्टिकरण था. अब चूंकि हर दिन समान नहीं होते 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद से हिसाब किताब बदल गया है. 22 में चुनाव है और 2017 और उससे पहले तक जो स्थिति मुसलमानों की थी आज उस मुकाम पर ब्राह्मण हैं. अब उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को नहीं पूछा जा रहा बल्कि उस मुकाम पर सूबे के ब्राह्मण है. दल चाहे भाजपा हो या फिर सपा, बसपा हर कोई बस इसी फिराक में है कि कुछ भी कर लो. कैसे भी कर लो लेकिन भइया चुनाव जीतना है तो 'पंडिज्जी' को रिझा लो.
पंडिज्जी और उनका समुदाय किसके हाथ में यूपी की सत्ता देगा? क्या भाजपा पर सूबे का ब्राह्मण विश्वास कर पाएगा? क्या यूपी में फिर से भाजपा को बहुमत प्राप्त होगा और योगी आदित्यनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे? क्या मायावती यूपी के ब्राह्मणों को एकजुट कर पाएंगी? क्या समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव ब्राह्मणों को इस बात का यकीन दिला पाएंगे कि उनका दल सिर्फ मुसलमानों और यादवों के लिए नहीं है?
सवाल भतेरे हैं. लेकिन क्यों कि practice makes a man perfect दल इसी प्रयास में हैं कि लोभ का चारा डाले रहो ब्राह्मण रूपी मछली पकड़ते रहो. यूं तो इस मैटर पर कहने बताने सोचने, समझाने के लिए चार सौ पैतीस चीजें हैं लेकिन बात भाजपा से. सूबे का ब्राह्मण गेयर में रहे इसलिए राजधानी लखनऊ में मेयर रह चुके लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉक्टर दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनवा दिया.
इन दिनों पार्टी से जुड़ा ब्राह्मण काडर थोड़ा इधर उधर हो रहा है लेकिन भाजपा को उम्मीद है कि अयोध्या में जो मंदिर बन रहा है उसकी जड़े इतनी गहरी और पकड़ इतनी मजबूत है कि वो पार्टी के अलावा सूबे के ब्राह्मणों को कहीं यहां वहां जाने नहीं देंगी. कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को लेकर भाजपा बिल्कुल बेफिक्र है.
वहीं बात अगर बसपा की हो तो जैसे समीकरण 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2019 के आम चुनाव के बाद देखने को मिले हैं और जिस तरह फ्रंट फुट पर पार्टी सुप्रीमो मायावती की जगह सतीश चंद्र मिश्रा बड़ी पारियां खेल रहे हैं कभी कभी तो लगता है कि 22 के इस रण में बसपा के मद्देनजर अर्जुन मायावती हैं और कृष्ण की भूमिका में सतीश चंद्र मिश्रा हैं.
ब्राह्मणों के मद्देनजर मायावती से डेढ़ दो हाथ आगे चल रहे सतीश चंद्र मिश्रा अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन करवा कर इशारा दे चुके हैं कि भले ही दलित भाई बंधू आहत होने हों तो हों. मगर क्योंकि पार्टी को 22 के चुनाव से पहले पहले मेन स्ट्रीम में लाना है तो गाड़ी सिर्फ और सिर्फ भाई ही चलाएगा. बात बसपा के दलित नहीं ब्राह्मण प्रेम की हुई है. तो अभी बीते दिनों कानपुर के चर्चित विकास दुबे मामले में ख़ुशी दुबे की पैरवी की बात कहकर बसपा ने बढ़त बना ली है.
माना जा रहा है कि यदि मिश्रा इनिंग सही खेल गए तो यकीनन 22 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी की कायापलट होगी.ब्राह्मण को खुश करो वाले इस खेल में भाजपा पर भी बात हो गई. बसपा का भी जिक्र हो गया. चूंकि बुआ के बिना बबुआ अधूरा है इसलिए अब जिक्र समाजवादी पार्टी का.
ईर बीर की देखा देखी फत्ते भी हलकान हैं. बात बीते दिनों की है आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के तहत समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने पार्टी के पांच ब्राह्मण नेताओं से मुलाकात भी की. मुलाकात में सभी ने परशुराम की फ़ोटो पकड़ पकड़ के तस्वीरें क्लिक करवाई हैं. बताया जा रहा है कि बसपा की तरह समाजवादी पार्टी भी एक ब्राह्मण सम्मेलन करवाएगी जिसका श्री गणेश चंद्र शेखर की भूमि बलिया में होगा.
अखिलेश द्वारा बलिया में शुरू की जाने वाली ये पहल पार्टी के अंदर कितने यादवों को बागी बनाएगी ये तो नहीं पता. लेकिन पार्टी के बड़े बूढ़े यही कह रहे हैं कि यदि अखिलेश ब्राह्मणों को अपने में मिलाने में कामयाब हो गए तो पार्टी को दोबारा सत्ता में आने से कोई माई का लाल नहीं रोक सकता. होने को तो यूपी में 13 फीसदी ब्राह्मण हैं जिन्हें लुभाने के लिए पार्टियां ऐसे ऐसे हथकंडे अपना रही हैं जिसे देखकर सूबे के मुसलमान एक दूसरे से बस यही कहते फिर रहे हैं कि बड़े बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले.
बहरहाल बात मुसलमानों की चली है और उधर हैदराबाद से असदुद्दीन यूपी आ ही रहे हैं तो अब जब सबने ब्राह्मणों के लिए अपने पत्ते फेंक दिए हैं तो वो क्यों पीछे हटें. मुसलमानों की एक बड़ी आबादी तो उनकी है ही वो भी सपा बसपा की तरह सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, लखनऊ या आज़मगढ़ में एक ब्राह्मण कॉन्क्लेव करा दें. जब ब्राह्मण समुदाय को रिझाने के तहत मौज लेने का अधिकार सबका है तो असदुद्दीन ओवैसी और उनका दल एआईएमआई एम क्यों पीछे रहे?
ध्यान रहे राजनीति और राजनीति में तुष्टिकरण बड़ी दिल फरेब चीज है. ख़ुद सोचिये 13 प्रतिशत ब्राह्मण वोटों के लिए यदि ओवैसी ने यूपी के किसी हिस्से में ब्राह्मण बचाओ अभियान चला दिया तो स्थिति क्या होगी. कल्पना कीजिये. वास्तविकता से कहीं ज्यादा कल्पना मजेदार है और इसमें ऐसा बहुत कुछ जो पब्लिक को पूरी तरह से एंटरटेन करेगी।
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