CBSE 12 वीं के नतीजे घोषित हुए हैं. जिस तरह के नतीजे आए हैं कह सकते हैं कि बीते चार सालों से CBSE में लड़कियों का जलवा है. नतीजों के बाद वो लोग बहुत खुश हैं जिनके बच्चों / रिश्तेदारों ने CBSE बोर्ड से परीक्षा दी और बहुत अच्छे नंबरों से पास हुए. चारों तरफ CBSE के इन शूरवीरों की जय जयकार हो रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ यूपी, बिहार और मध्यप्रदेश बोर्ड के बच्चे हैं जो CBSE के इन सूरमाओं को देखकर अवसाद में आ गए हैं और एक दूसरे से सवाल कर रहे हैं भाई! भला कोई ऐसे भी नंबर लाता है?
किसी और की क्या बात की जाए मैं अपनी बात करता हूं. हम लोग यूपी बोर्ड यानी उत्तर प्रदेश बोर्ड वाले लोग हैं. हमारे यहां का रिजल्ट भी हमारी सरकारों से जुड़ा है. इस बात को ऐसे समझिये कि उत्तर प्रदेश में जब कल्याण सिंह की सरकार थी तो एक से एक पढ़ाकू फेल हुए वहीं जब मुलायम सिंह आए तो उनके भी 10 वीं की परीक्षा में 100 में से 72 नंबर आए जिन्हें न तो समकोण त्रिभुज ही पता था और न ही 17 का पहाड़ा.
एक पाठक के तौर पर कोई भी इस बात को पढ़ेगा फिर नकार देगा. मगर रूककर, ठहरकर, थमकर जब इसका अवलोकन करियेगा तो पता चलेगा कि हम यूपी बोर्ड के लड़के पढाई लिखाई के चलते जितना खराब नहीं हुए उससे ज्यादा खराब तो हमें हमारी सरकारों ने किया.
आज जब CBSE का रिजल्ट हमारे सामने हैं इतिहास की बात करने से क्या फायदा. खराब इतिहास के लिए तो यूं भी नेहरू जिम्मेदार हैं. बात वर्तमान पर की जाए तो अच्छा है. खबर है कि गाजियाबाद की वो लड़की यानी हंसिका शुक्ला जिसने 500 में से...
CBSE 12 वीं के नतीजे घोषित हुए हैं. जिस तरह के नतीजे आए हैं कह सकते हैं कि बीते चार सालों से CBSE में लड़कियों का जलवा है. नतीजों के बाद वो लोग बहुत खुश हैं जिनके बच्चों / रिश्तेदारों ने CBSE बोर्ड से परीक्षा दी और बहुत अच्छे नंबरों से पास हुए. चारों तरफ CBSE के इन शूरवीरों की जय जयकार हो रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ यूपी, बिहार और मध्यप्रदेश बोर्ड के बच्चे हैं जो CBSE के इन सूरमाओं को देखकर अवसाद में आ गए हैं और एक दूसरे से सवाल कर रहे हैं भाई! भला कोई ऐसे भी नंबर लाता है?
किसी और की क्या बात की जाए मैं अपनी बात करता हूं. हम लोग यूपी बोर्ड यानी उत्तर प्रदेश बोर्ड वाले लोग हैं. हमारे यहां का रिजल्ट भी हमारी सरकारों से जुड़ा है. इस बात को ऐसे समझिये कि उत्तर प्रदेश में जब कल्याण सिंह की सरकार थी तो एक से एक पढ़ाकू फेल हुए वहीं जब मुलायम सिंह आए तो उनके भी 10 वीं की परीक्षा में 100 में से 72 नंबर आए जिन्हें न तो समकोण त्रिभुज ही पता था और न ही 17 का पहाड़ा.
एक पाठक के तौर पर कोई भी इस बात को पढ़ेगा फिर नकार देगा. मगर रूककर, ठहरकर, थमकर जब इसका अवलोकन करियेगा तो पता चलेगा कि हम यूपी बोर्ड के लड़के पढाई लिखाई के चलते जितना खराब नहीं हुए उससे ज्यादा खराब तो हमें हमारी सरकारों ने किया.
आज जब CBSE का रिजल्ट हमारे सामने हैं इतिहास की बात करने से क्या फायदा. खराब इतिहास के लिए तो यूं भी नेहरू जिम्मेदार हैं. बात वर्तमान पर की जाए तो अच्छा है. खबर है कि गाजियाबाद की वो लड़की यानी हंसिका शुक्ला जिसने 500 में से 499 नंबर हासिल किये हैं. सिर्फ इस बात से आहत हैं कि उनके 1 नंबर कम आए हैं और वो 500 में से 500 नहीं हासिल कर सकीं.
मजेदार बात ये है कि इस बड़े से दुर्भाग्य के लिए हंसिका ने सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहराया हुई और कहा है कि यदि वो कुछ दिन सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम करती तो वो चीज मुमकिन हो जाती जिसे हमारी आपकी भाषा में नामुकिन कहा जाता है. हंसिका, दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से मनोविज्ञान पढ़ना चाहती हैं और उनका सपना आईएएस या आईएफएस बनने का है.
अब चूंकि हंसिका का इंटरेस्ट मनोविज्ञान में है तो उन्हें हम यूपी बिहार वालों का मनोविज्ञान समझना चाहिए. यदि अपने जमाने में इतने नंबर बल्कि इसके भी 70-75 परसेंट नंबर हमारे आ गए होते तो मारे खुशी के गांव में किसी के प्लाट पर कब्ज़ा करके वो जमीन भी हमारे करीबी रिश्तेदारों ने हमारे नाम कर दी होती.
हंसिका 500 में से 499 नंबर लाई हैं और इसके बाद भी खुश नहीं हैं. इनके विपरीत एक हम हैं जो जैसे तैसे पास हुए और उस उपलब्धि के लिए आज भी भगवान को थैंक यू कहते हैं. हंसिका को सोचना चाहिए कि किसी भी चीज की अति बुरी है. इंसान को जितना मिले उसपर संतोष करना चाहिए.
बाक़ी सारी मुसीबत की जड़ सोशल मीडिया को माना गया है तो कहा बस यही जा सकता है कि कुशल विद्यार्थी जीवन वही है जहां व्यक्ति हर चीज के साथ सामंजस्य बैठाए वरना जिस तरह की आजकल की शिक्षा व्यवस्था हो रखी है विद्यार्थी विद्या की अर्थी पर लेट चुका है जहां वो ज्यादा से ज्यादा नंबर लाने के फेर में अपने आस पास से अपने परिवेश से और अपने करीबियों से कट गया है.
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