'जनता का भोलापन' भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश की एक बड़ी खूबी है. जनता खुद इस बात को बखूबी जानती-समझती है कि समय समय पर दलों द्वारा उससे लुभावने वादे किये जाते हैं, धोखा दिया जाता है. बावजूद इसके,इसमें भी कोई शक नहीं है कि जनता, नेताओं और दलों पर आंखें मूंदकर विश्वास करती है. स्थिति नियंत्रित रहे, जनता बेकाबू होकर बगावत पर न उतरे इसलिए कुछ एक मौकों पर दलों द्वारा संसद में जनता से जुड़े मुद्दे उठा लिए जाते हैं. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ये कि पब्लिक को इसका सीधा फायदा नहीं मिलता और कई बार ऐसा होता है कि नौबत हंसी ठिठोली तक आ जाती है.
असल में अभी बीते दिन ही राज्यसभा में महंगाई जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जमकर बहस बाजी हुई. मगर जैसा रवैया हमारे विपक्षी नेताओं का संसद में रहा, साफ़ महसूस होता है कि उन्हें जनता के मुद्दों से कोई विशेष सारोकार नहीं है और उनके लिए महंगाई का मुद्दा, उसपर चर्चा और परिचर्चा बस मनोरंजन का माध्यम है. असल में संसद के इस मानसून सत्र में तमाम अहम मोर्चों पर विफल हमारा विपक्ष लगातार बढ़ती महंगाई को एक बड़े मुद्दे की तरह पेश कर रहा है. महंगाई को लेकर विपक्ष का मानना यही है कि इसे रोकने के लिए जो सरकार के प्रयास हैं वो नाकाफी हैं. महंगाई को लेकर विपक्ष के सरकार पर आरोप गंभीर हैं और बात वजनदार लगे इसके लिए जो कुछ भी कांग्रेस सांसद. ने किया वो फर्जीवाड़े की पराकाष्ठा है. रजनी पाटिल गले में सब्जियों की माला डाले हुए नजर आईं. उनका कहना था कि सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, ऐसे में आम व्यक्ति अपना घर कैसे चला सकेगा.
रजनी को इस तरह माला में देखकर संसद में हर आदमी भौचक्का था. इसलिए जब माला को लेकर रजनी से सवाल हुआ तो...
'जनता का भोलापन' भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश की एक बड़ी खूबी है. जनता खुद इस बात को बखूबी जानती-समझती है कि समय समय पर दलों द्वारा उससे लुभावने वादे किये जाते हैं, धोखा दिया जाता है. बावजूद इसके,इसमें भी कोई शक नहीं है कि जनता, नेताओं और दलों पर आंखें मूंदकर विश्वास करती है. स्थिति नियंत्रित रहे, जनता बेकाबू होकर बगावत पर न उतरे इसलिए कुछ एक मौकों पर दलों द्वारा संसद में जनता से जुड़े मुद्दे उठा लिए जाते हैं. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ये कि पब्लिक को इसका सीधा फायदा नहीं मिलता और कई बार ऐसा होता है कि नौबत हंसी ठिठोली तक आ जाती है.
असल में अभी बीते दिन ही राज्यसभा में महंगाई जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जमकर बहस बाजी हुई. मगर जैसा रवैया हमारे विपक्षी नेताओं का संसद में रहा, साफ़ महसूस होता है कि उन्हें जनता के मुद्दों से कोई विशेष सारोकार नहीं है और उनके लिए महंगाई का मुद्दा, उसपर चर्चा और परिचर्चा बस मनोरंजन का माध्यम है. असल में संसद के इस मानसून सत्र में तमाम अहम मोर्चों पर विफल हमारा विपक्ष लगातार बढ़ती महंगाई को एक बड़े मुद्दे की तरह पेश कर रहा है. महंगाई को लेकर विपक्ष का मानना यही है कि इसे रोकने के लिए जो सरकार के प्रयास हैं वो नाकाफी हैं. महंगाई को लेकर विपक्ष के सरकार पर आरोप गंभीर हैं और बात वजनदार लगे इसके लिए जो कुछ भी कांग्रेस सांसद. ने किया वो फर्जीवाड़े की पराकाष्ठा है. रजनी पाटिल गले में सब्जियों की माला डाले हुए नजर आईं. उनका कहना था कि सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, ऐसे में आम व्यक्ति अपना घर कैसे चला सकेगा.
रजनी को इस तरह माला में देखकर संसद में हर आदमी भौचक्का था. इसलिए जब माला को लेकर रजनी से सवाल हुआ तो उन्होंने ये कहकर अपने को गरीबों का हिमायती दिखाने की कोशिश की कि, 'आज देश भर की महिलाएं परेशान हैं. गृहिणियां परेशान हैं. हमने आज ये सब्जियां उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करने के लिए पहनी थीं. कीमतें गिरने तक हम महिलाओं को राहत की भावना नहीं होगी. लेकिन वित्त मंत्री सुनने को तैयार नहीं हैं.'
रजनी की बात सही है वाक़ई महंगाई बहुत है. मार्केट में सब्जी लेने जाओ तो 500 रुपए देने पर उतनी ही सब्जी मिलती है, जो दो टाइम तो चल जाए. लेकिन कोई माई का लाल उसे तीसरे टाइम नहीं पका सकता मगर क्या इस बात को समझाने के लिए सच में सब्जियों का नेकलेस धारण करने की जरूरत उन्हें थी? सवाल ये है कि अपनी इस हरकत से आखिर रजनी देश और देश की जनता को क्या मैसेज देना चाहती हैं?
क्या इस तरह सब्जियों की माला धारण करने वाले टोटके जनता की थाली में आलू, टमाटर, प्याज, गोभी, मशरूम जैसी सब्जियां आ जाएंगी? क्या पेट्रोल और गैस के आसमान छूते दाम वापस नियंत्रित हो जाएंगे? स्पष्ट जवाब है नहीं.
विषय बहुत सीधा है. जिस तरह रजनी ने सब्जियों की माला पहन कर अपने को गरीबों का हिमायती दिखाने की कोशिश की. ये सारा तिकड़म उस मीडिया अटेंशन के लिए था जो उन्होंने हासिल कर ली है. महंगाई वहीं है जहां पहले वो थी हां लेकिन रजनी जरूर ट्विटर और फेसबुक के ट्रेंड्स में छाई हैं. हमारे आपके लिए भले ही महंगाई एक चुनौती की तरह हो मगर चूंकि रजनी कांग्रेस पार्टी से जुडी एक सांसद हैं., जैसा उन्होंने संसद में किया और जिस तरह वो सब्जियों की माला पहन पोज देती नजर आईं, खुद-ब-खुद साफ़ हो जाता है कि रजनी जैसे लोगों के लिए महंगाई पब्लिसिटी पाने और फोटो क्लिक कराने का जरिया है.
दोष सिर्फ रजनी का नहीं है विपक्ष के नेताओं की महंगाई को लेकर बातें कुछ भी हों लेकिन इनकी असल सोच क्या है गर जो इसका अंदाजा लगाना हो तो हम अभी बीते दिनों वायरल हुए उस वीडियो को देख सकते हैं जिसमें संसद में महंगाई को लेकर अपना पक्ष रखने वाली तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ काकोली घोष दस्तीदार के भाषण के दौरान अपना 1.6 लाख रुपए कीमत का लुई विंता का बैग छुपाती हुई नजर आईं.
वहीं बात अगर तृणमूल सांसद काकोली घोष दस्तीदार की हो तो पूरा संसद भवन उस वक़्त हंस हंसकर लोटपोट हो गया जब महंगाई का हवाला हुए काकोली ने बैगन को कच्चा ही चबा डाला. अब आप खुद बताइये क्या ये महंगाई के साथ साथ गरीबों और उनकी ग़ुरबत का मजाक उड़ाना नहीं है?
हम फिर इस बात को दोहराना चाहेंगे कि सरकार को जवाब देने के लिए देश को एक मजबूत विपक्ष की दरकार है. लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं है कि अपनी बात रखने के लिए हमारे सांसद उन गतिविधियों पर उतर पाएं जिन्हें सभ्य समाज नौटंकी से ज्यादा और कुछ नहीं समझता. जैसा विपक्ष का हाल है संसद में महंगाई को लेकर चर्चा कम और हंसी ठिठोली ज्यादा हो रही है और देश मजबूर होकर इस मूर्खता का गवाह बन रहा है.
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