जबसे कोरोना (Corona) महाराज ने देश में चेक इन किया है तब से इनकी बुरी नज़र से बचने के लिए होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक इम्युनिटी बूस्टर्स काफ़ी डिमांड में हैं. इस वायरस ने देश की जो ऐसी-तैसी की है वो तो सब जानते ही हैं. ठप्प पड़े बिज़नेस को CPR देने की भी ताबड़तोड़ कोशिशें की जा रहीं. बड़ी-बड़ी बैठकें बुला अर्थव्यवस्था पर भाषण वितरण कार्यक्रम चल रहा. हुआ धेला भी न. पर अब इस दुष्ट कोरोना जी की ख़ैर नहीं. इनको टक्कर देने तथा इनके अशोभनीय व्यवहार का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए गुजराती खाखरा पधार चुका है. जी, हां हमारा प्यारा गोलू खाखरा कब का वायरल हो चुका और बिज़नेस भी धमाधम कर रहा. आप सब जुटे रहिये लगाई-बुझाई में पर भैये, जीतेगा तो गुजराती ही. वो क्या है न कि यहां रगों में व्यापार बहता है जी. लेकिन ‘रगों में दौड़ते-फिरने के हम नहीं क़ायल, जो तुम्हारी जेब से न निकला तो फिर मनी क्या है?’
इधर सूरत निवासी स्तुति फूड्स के मालिक योगेश पटेल के 'कोरोना इम्युनिटी बूस्टर' खाखरे के आईडिया ने देश भर में खलबली पैदा कर दी है. लोगों के घरों तक पहुंचने से पहले ही ये भारी डिमांड में है. इसकी एंट्री सुपर हीरो की तरह कुछ यूं हुई है कि पूरा देश स्वैग के साथ इनका स्वागत करने को तैयार खड़ा है.
क्यों न करे. जब हम सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी साड़ी को हाथों-हाथ लेते हैं तो कोरोना स्पेशल ख़ुराक़ के रूप में बने खाखरे को प्यार काहे नहीं देंगे बे? ये खाखरा, कोनो सर्जिकल स्ट्राइक से कम है का.
कम्पनी की जादूगरी तो देखो, ingredients वही हैं जो हम रोज सब्जी या दाल में डाल कर खा रहे हैं, लेकिन मालिक भाई ने कोरोना स्पेशल खाखरे में इसको अलग ही ढंग से प्रस्तुत कर patent करवा लिया. इसे कहते हैं मार्केटिंग स्ट्रेटजी. इसमें धनिया, पुदीना, मिर्च, तुलसी, मोरिंगा (Drumstick) पाउडर, अदरक, नींबू, नमक वो सब कुछ है जो लार टपकाने के लिए काफ़ी होता है.
कोरोना से निपटने के लिए गुजरात वालों ने खाखरे को हथियार बनाया है
अब उस पर इसे स्वास्थ्य के नाम पर ग्रहण किया जाए तो फिर इसका जलवा ही निराला है. दुःख किस बात का! अब हर कोई दवाई तो नहीं खा सकता न. कोई-कोई हम जैसे भी बेहूदे होते हैं कि टैबलेट हाथ में लेते ही BP आठ पायदान और नीचे गिर जाता है. जी घबराने लगता है. बुरे-बुरे ख़्याल आते हैं. अब ज़िंदा भी रहना है और स्वाद कलिकाओं को भी तृप्तिपुर पहुंचाना है.
इसलिए ऐसे चटोरों के लिए ही इस प्रकार के 'इम्युनिटी बूस्टिंग स्नैक' का जन्म हुआ. बोले तो ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय!' जरा सोचिये, कोरोना के इलाज के नाम पर देश भर में कैसा फर्जीवाड़ा चल रहा. झूठे दावे करते हुए लोग दवा के नाम पर कुछ भी बेच रहे हैं.
नकली वेंटिलेटर ने कितनों की जान ले ली. पर यहां कम्पनी की ईमानदारी देखिए. क़ीमत के साथ सारे ingredients भी लिख रखे हैं. अब और कितना विकास चाहिये? बस, इसे खाएं और corona virus को मंगल ग्रह पर ब्रेक लेने भेज दें. सोच लीजिए 80 रुपये बचाने हैं या जान? क़ीमती तो जान ही है न शोना बाबू.
हमारे प्रिय मोदी जी कितने दूरदर्शी हैं. लेकिन कुछ पगलेट उन्हें समझ ही न पाए अब तक. अरे साहब, वो उस दिन 'आपदा में अवसर' की इश्श्टोरी इसीलिए तो बताये थे जिसे कुछ सयानों ने बेफ़िजूल ही दिल पर ले लिया था. हम कह रहे हैं न कि आप इम्युनिटी बूस्टर नहीं बना पा रहे तो चिंता मत कीजिये. आपको आत्मनिर्भर बनाने का एक फड़कता आईडिया हमारे पास भी है.
आप चाहे जो भी बिज़नेस करते हों, फ़िक़र नॉट! बस अपने हर सामान को प्लास्टिक में पैक कीजिये. तत्पश्चात उस पर कोरोना फ्री का स्टिकर चेप दीजिये. मसलन कोरोना फ्री बर्तन, कोरोना फ्री कपड़े, चादर, तकिया, अटैची, साईकल, कॉस्मेटिक, ज्वैलरी, चूल्हा, कैमरा, प्रिंटर जो भी समझ आये. खाद्य पदार्थों के साथ भी यही कीजिये.
टिफ़िन सर्विस हो या चाट का ठेला, सब्जी मंडी हो या फ़ूड जॉइंट. बस एक स्टिकर लगाइये और फिर देखिये फ्री का चुंबकीय प्रभाव. मुझे पूरा यक़ीन है जल्द ही वो दिन आएगा जब हम सब खिड़कियों से लटक-लटककर सारी दुनिया को बता देंगे कि 'देखो, दुनिया वालों हमारे यहां सब कुछ कोरोना मुक्त है'.
उफ़, उस मंज़र की कल्पना करते हुए भी ख़ुशी से मेरी पलकें भीगी जा रहीं. चलो अब मिल-जुलकर, चाय का महकता कप थामा जाए और दिल्ली से अहमदाबाद तक खाखरे के चटख़ारे लेते-लेते इस दुष्ट कोरोना को टुश्श करके लतिया दिया जाए.
अच्छा, चलते-चलते ये भी बताती चलूं कि ‘Taste plus health’ की टैगलाइन के साथ 'Turmeric cake' भी आया है बाज़ार में. 'कोरोना धूप' भी बन गई है. इम्युनिटी सिस्टम बढ़ाने वाली कोरोना पिल्स भी आ गई हैं. इनका नाम कोरोनिल (Coronil) है. ये सब भी गुजरात की भूमि से ही उपजे हैं. अब जलकर खाक़ न हो जाइएगा. हिन्द देश के निवासी सभी रंग एक हैं.
ये भी पढ़ें -
कोरोना का करण जौहर के दरवाजे पर दस्तक देना पूरे बॉलीवुड के लिए डरावना है!
कोरोना के बाद टिड्डियों ने भी पीएम मोदी को आंखें दिखा ही दीं!
मोबाइल और बच्चे एक दूसरे के दोस्त नहीं, दुश्मन हैं!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.