ए सुनो, हमारा भी म्यूटेशन हो गया है. कल तक हम मनुष्य थे, अब हम चुम्बक हैं. कल तक लिखने-पढ़ने की वज़ह से कहीं हमारा जिक्र होता था, अब चलते-फिरते बर्तन स्टैंड बन जाने की व ज़ह से चर्चा में हैं. सच कहें तो हम सेलिब्रिटी बन चुके हैं- 'स्टेनलेस स्टील सेलिब्रिटी'. वैसे एक बात तो हमें बचपन से पता थी कि हममें कुछ तो स्पेशल है, भिया. बस, डिस्कवरी अभी हुई है.
वैसे ये दावा तो कुछ और लोगों ने भी किया कि उनके शरीर पर लोहा चिपक रहा है. लेकिन, आत्मविश्वास की कमी के चलते उन्होंने इसकी जिम्मेदारी कोरोना वैक्सीन पर डाल दी. और फिर ज्ञानियों से चार बातें सुन भी ली, कि ऐसा वैक्सीन की वजह से बिल्कुल नहीं है. आम लोगों का यही हश्र होता है. एक्सपर्टों की सफाई के बाद से हम सातवें आसमान पर हैं. कुछ एक्सपर्ट हमारी खुशी मेें खलल डालने वाली बात कह रहे हैं कि ये चुंबकीय प्रभाव सर्फेस टेंशन की वजह से आ रहा है. अब जिसकी वजह से भी आ रहा हो, हमारी बला से. और, हमको जो अब तक सर्फेस पर टेंशन माना गया, तो हम एक्सपर्ट ओपिनियन को सच मानने का टेंशन क्यों लें? हमें पक्का यक़ीन हो गया है कि हमारे भीतर ये शक्ति कुछ खास वजह से आई है. अब हम अलौकिक हो गए हैं. लौकी नहीं रहे. पहले आम तरकारी की तरह डील कर लिए जाते थे. भले तमाम तीर मार रहे हों. अब तक जो हम अपनी आसपास की दुनिया की रखवाली करते आए थे, उस भूमिका का क्रेडिट तो 'गृहिणी' नाम की कचरा पेटी में कब का डाल दिया गया. कि हुँह! इसमें क्या खास बात है.
लेकिन, ग्रेविटी को मुंह चिढ़ाते हुए ये जो प्लेट हमारे बदन से चिपकी है न, क़सम से! उसने हमें एक चैंपियनशिप वाला कप दे दिया है. इस जिंदगी के सही मायने समझ...
ए सुनो, हमारा भी म्यूटेशन हो गया है. कल तक हम मनुष्य थे, अब हम चुम्बक हैं. कल तक लिखने-पढ़ने की वज़ह से कहीं हमारा जिक्र होता था, अब चलते-फिरते बर्तन स्टैंड बन जाने की व ज़ह से चर्चा में हैं. सच कहें तो हम सेलिब्रिटी बन चुके हैं- 'स्टेनलेस स्टील सेलिब्रिटी'. वैसे एक बात तो हमें बचपन से पता थी कि हममें कुछ तो स्पेशल है, भिया. बस, डिस्कवरी अभी हुई है.
वैसे ये दावा तो कुछ और लोगों ने भी किया कि उनके शरीर पर लोहा चिपक रहा है. लेकिन, आत्मविश्वास की कमी के चलते उन्होंने इसकी जिम्मेदारी कोरोना वैक्सीन पर डाल दी. और फिर ज्ञानियों से चार बातें सुन भी ली, कि ऐसा वैक्सीन की वजह से बिल्कुल नहीं है. आम लोगों का यही हश्र होता है. एक्सपर्टों की सफाई के बाद से हम सातवें आसमान पर हैं. कुछ एक्सपर्ट हमारी खुशी मेें खलल डालने वाली बात कह रहे हैं कि ये चुंबकीय प्रभाव सर्फेस टेंशन की वजह से आ रहा है. अब जिसकी वजह से भी आ रहा हो, हमारी बला से. और, हमको जो अब तक सर्फेस पर टेंशन माना गया, तो हम एक्सपर्ट ओपिनियन को सच मानने का टेंशन क्यों लें? हमें पक्का यक़ीन हो गया है कि हमारे भीतर ये शक्ति कुछ खास वजह से आई है. अब हम अलौकिक हो गए हैं. लौकी नहीं रहे. पहले आम तरकारी की तरह डील कर लिए जाते थे. भले तमाम तीर मार रहे हों. अब तक जो हम अपनी आसपास की दुनिया की रखवाली करते आए थे, उस भूमिका का क्रेडिट तो 'गृहिणी' नाम की कचरा पेटी में कब का डाल दिया गया. कि हुँह! इसमें क्या खास बात है.
लेकिन, ग्रेविटी को मुंह चिढ़ाते हुए ये जो प्लेट हमारे बदन से चिपकी है न, क़सम से! उसने हमें एक चैंपियनशिप वाला कप दे दिया है. इस जिंदगी के सही मायने समझ आने लगे हैं. ये शक्ति हमें क्यों मिली है, इसका राज तो धीरे- धीरे खुलेगा. हो सकता है कि हमें इस दुनिया को बचाने की महती जिम्मेदारी उठानी पड़े. हम तैयार हैं.
अब ज़िंदगी भर यूं ही टीशर्ट और लोअर में तो नहीं फिरते रहेंगे. जरूरत पड़ी तो सुपरहीरो के कैरेक्टर से मेल खाती कॉस्ट्यूम सिलवा ली जाएगी. एवेंजर्स ये जान लें कि आयरन मैन को जंग लग सकता है, लेकिन हम ज्यादा भरोसेमंद हैं. स्टेनलेस स्टील वाले. अच्छा, हम एक ताकत और महसूस करते थे, जो अब सुपरवुमन के रोल में काम आएगी.
वो क्या है न कि हम मोटा चश्मा लगाते हैं, और इसे हमारी कमजोरी माना गया. लेकिन, अब दुनिया ये मानेगी कि लोगों के आर पार देखने की शक्ति हममें हमेशा से थी. खुराफातियों को तो हम यूं ही धर लिया करते थे. अब अपने बारे में और का बताएं, अभी तो जीवन में जो घट रहा है उसी पर फोकस करते हैं.
तो साब! पिछले दो दिन में हमारी दुनिया पूरी तरह से बदल गई है. मामला शुरू हुआ था एक टीवी न्यूज़ से. कोई शख्स कह रहा कि उसके शरीर पर धातु की चीजें चिपक रही हैं. बस, ये सुन हमारे भीतर का साइंटिस्ट जाग गया. डाइनिंग टेबल के पास खड़े थे तो ज्यादा मशक्कत नहीं करना पड़ी. एक चम्मच उठाकर बांह पर धरा, तो वो वहीं रुक गया.
फिर हमने एक प्लेट धर ली. धीरे- धीरे डाइनिंग टेबल का सारा सामान हमारी बांहों पर था. जैसे जैसे बर्तन चिपक रहे थे, आत्मा हमारी 'यूरेका, यूरेका' कह बलैयां लिए जा रही थी. तभी मन में कौंधा कि ऐसे कमाल का फायदा ही क्या, जिसका कोई गवाह न हो. खुशी में चीखते हुए बेटी को आवाज़ दी. हमें बर्तनों से भरपूर देख वो तो एकदम घबरा गई, पर हमने मुस्कियाते हुए कहा, 'घबरा मत! अब तेरी मां सेलिब्रिटियों की जमात में शामिल होने जा रही है.
चल, तू फटाफट वीडियो बना!' वो बोली, 'पर मम्मी, आप तो घर के कपड़ों में हो!" हमने उसके मस्तक को चूमते हुए कहा, 'अरी, पगली! एक बार इस वीडियो को वायरल तो होने दे, फिर देखियो, तेरी माँ की अपनी वैनिटी वैन होगी और डिजाइनर ड्रेस में वो पेज थ्री पर जलवे बिखेरेगी, जलवे! लेकिन, किसी को जलवाअफरोज होते हुए देखना दुनिया के लिए आसान कब हुआ है. और बिना सवालों के सेलिब्रिटी बने तो काहे के सेलिब्रिटी. भई कंट्रोवर्सी भी तो मांगता है न!
हमारा वीडियो सोशल मीडिया पर आते ही लोगों के फोन आए. वो तो कोरोना ने रोक रखा है, वरना कुछ 'शुभचिंतक' तो इतने उतावले थे कि हमें समझाने घर ही चले आते. पहली समझाइश तो यही आई कि इस चुंबकत्व को कोरोना वैक्सीनेशन से जोड़कर न देखें. उनके ज्ञान को हमने प्रणाम किया, और स्पष्ट किया कि ऐसा मानकर हम खुद को कमतर क्यों आंके?
बेटे को चिंता हुई तो उसने आयरन चेक कराने की सलाह दे डाली. हमने हंस के कहा कि अरे सब नॉर्मल है. लेकिन, हम भीतर ही भीतर समझ रहे थे कि अब हम स्पेशल वाले नॉर्मल हैं. सच ये है कि चुम्बक बनके मजा बहुत आ रहा है. कुछ लोगों को हमारे में अचानक आकर्षण नजर आने लगा है, तो उनसे करबद्ध निवेदन किया गया कि अब खिंचे मत चले आना. वो क्या है न कि हम अपने सपनों के राजकुमार को पा चुके हैं.
बताइए अब हम भी क्या करें! घर बैठे- बैठे स्पेशल फ़ील हो रहा है तो इसे क्यों न सेलिब्रेट करें. सुबह शाम बर्तन, सिक्के चिपकाकर वीडियो बना रहे हैं. रुका नहीं जा रहा है. मन कर रहा है कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय रोज एक वीडियो ठेल दें. हमने तो हर कमरे में चार चम्मच, पांच प्लेट, और सात सिक्के रख छोड़े हैं.
पता नहीं कहां मूड बन जाए. बाहर लॉकडाउन लगा है, इसलिए घर बैठे वायरल होने का सबसे सेहतमंद तरीका अपन ने ढूंढ निकाला है. बेटी को थोड़ी फुर्सत है तो उसको वीडियो बनाने के लिए मोबाइल पकड़ा दिया है. हालांकि, अब वो भी झुंझला रही है. हमने आजमाया है कि जब वो भिनकती है, तो उस समय अपने चुंबक का असर अचानक कम हो जाता है. चार सिक्के यूं ही गिर जाते हैं.
अब इतना सा ख्वाब है...
अब आगे हुआ ये कि जैसे ही हमने वीडियो डाला, उधर खलबली मच गई. इधर हमारे दिल में गुदगुदी होने लग गई कि मान लो, खुदा न खास्ता! हम सेलिब्रिटी न भी बन पाए, तो का हुआ! जब 'कोरोना मैया' का मंदिर बन सकता है तो 'माता चुंबक देवी मंदिर' काहे नहीं! हम खूबसूरती में कोनू से कम थोड़े न हैं! और फिर हम अपने इस मौलिक मंदिर' के नाम की देहरी पर मत्था टेक उसकी कल्पनाओं में खो गए! कि कैसे नित दिन खूब प्रसाद चढ़ेगा और 'कट्टर बेरोज़गार' का कलंक हमारे माथे से हमेशा-हमेशा के लिए हट जाएगा.
वैसे भी पड़ोस के पटेल साब सुबह पूछ रहे थे. बेन जी पूजा करने आ जाएं क्या? सुना है, आप में देवी आ गई है. फ़िलहाल हम ठसका दिखलाते हुए मौन ही हैं. लेकिन, मन ही मन हमने एक आशीर्वाद सोच लिया है. जब भी कोई हमें प्रणाम कहेगा, हम तत्काल कहेंगे- 'चुंबक भव'. भव्य चुम्बक समाज के निर्माण से अब हमें कोई नहीं रोक सकता. हमने कठोर प्रण कर लिया है 'चुम्बक यहीं बनाएंगे'. 'मथुरा से काशी तक, चुम्बक जाए झांसी तक'. क्या कोई रोक सकता है इस चुंबकीय सोच को?
PS: हमें चुंबक बना देख कुछ लोग भीषण अवसाद में चले गए हैं. क्योंकि उनके चम्मच और सिक्कों को उनकी त्वचा पसंद नहीं आई. मैं ऐसे सभी अचुंबकीय और अल्प-चुंबकीय लोगों से आग्रह करूंगी कि वे खुद पर विश्वास रखें. उनके चुंबकीय प्रभाव को तेज करने में, मैं पूरी मदद करूंगी. अभी तो बहुत काम करना है मुझे.
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