(भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी ने फिल्मों पर पार्टी नेताओं के रुख को लेकर जो कुछ कहा उसे ठीक से डिकोड नहीं किया गया. भ्रम की स्थिति है. लोग समझ ही नहीं पा रहे, क्योंकि सुविधाजनक व्याखाएं आ रही हैं. यही वजह है कि पीआर मामलों में उस्तादों के उस्ताद बॉलीवुड के पीआरबाज अब उसी लाइन पर फिल्म का प्रचार करने लगे हैं. उसका असर यह है कि अभी तक जो फिल्म मोदी घृणा के नाम पर बेची जा रही थी, मोदी सपोर्ट के नाम पर बिकते दिख रही है. मोदी के बयान को आईचौक थोड़ा व्यंग्य में डिकोड कर रहा है. बॉलीवुड और उसकी रिपोर्टिंग करने वाले तमाम जमूरों के साथ आप भी आनंद लें. ज्यादा गंभीर ना हों.)
दो दिनी पार्टी बैठक में पीएम मोदी ने अपने तमाम नेताओं को भरसक समझाने की कोशिश की. मोदी ने बिना किसी फिल्म का नाम लिए कहा- 'क्या जरूरत है हर फिल्म पर बयान देने की. हर फिल्म का विरोध मत करो.' आई चौक को सूत्रों से पता चला है कि मोदी जी ने बिना कुछ कहे असल में यह कहना चाहा- 'भैये हर फिल्म का विरोध मत करो. मगर कुछ फिल्मों का जरूर विरोध करो. लेकिन पठान का विरोध मत करो. यह एक ऐतिहासिक फिल्म है. जर्मनी के दर्शक भले ही इसे देखें ना देखें, मगर हर भारतीय को जरूर देखना चाहिए. जो देखने में अक्षम हों, उन्हें भी देखकर बताना चाहिए. शायद यही वजह है कि फिल्म के निर्माताओं को दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि यह फिल्म दिव्यांग (आंख-कान से असमर्थ) भी देख सकें, निर्माता सब टाइटल वगैरह के जरिए व्यवस्था करें.'
सूत्रों का कहना है कि मोदी ने असल में कहना चाहा कि पठान का विरोध मत करो. मगर ऐसी फिल्मों का विरोध जरूर करो, जिसमें खाड़ी और तुर्की सिंडिकेट आतंक के चेहरे को बदलना चाह रहे हैं. आतंक के केंद्र को बदलना चाह रहे हैं. देश में ग्लोबल टेरर की परिभाषा बदलना चाह रहे हैं. भारत से जुड़ी ऐसी अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मी कहानियों का विरोध करना मत भूलना जिसमें देश के दुश्मन के रूप पाकिस्तान और चीन को ना दिखाया जाए. और उसकी जगह रूस का रूपक गढ़ा जाए. विरोध इसलिए जरूरी है कि विजुअल से...
(भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी ने फिल्मों पर पार्टी नेताओं के रुख को लेकर जो कुछ कहा उसे ठीक से डिकोड नहीं किया गया. भ्रम की स्थिति है. लोग समझ ही नहीं पा रहे, क्योंकि सुविधाजनक व्याखाएं आ रही हैं. यही वजह है कि पीआर मामलों में उस्तादों के उस्ताद बॉलीवुड के पीआरबाज अब उसी लाइन पर फिल्म का प्रचार करने लगे हैं. उसका असर यह है कि अभी तक जो फिल्म मोदी घृणा के नाम पर बेची जा रही थी, मोदी सपोर्ट के नाम पर बिकते दिख रही है. मोदी के बयान को आईचौक थोड़ा व्यंग्य में डिकोड कर रहा है. बॉलीवुड और उसकी रिपोर्टिंग करने वाले तमाम जमूरों के साथ आप भी आनंद लें. ज्यादा गंभीर ना हों.)
दो दिनी पार्टी बैठक में पीएम मोदी ने अपने तमाम नेताओं को भरसक समझाने की कोशिश की. मोदी ने बिना किसी फिल्म का नाम लिए कहा- 'क्या जरूरत है हर फिल्म पर बयान देने की. हर फिल्म का विरोध मत करो.' आई चौक को सूत्रों से पता चला है कि मोदी जी ने बिना कुछ कहे असल में यह कहना चाहा- 'भैये हर फिल्म का विरोध मत करो. मगर कुछ फिल्मों का जरूर विरोध करो. लेकिन पठान का विरोध मत करो. यह एक ऐतिहासिक फिल्म है. जर्मनी के दर्शक भले ही इसे देखें ना देखें, मगर हर भारतीय को जरूर देखना चाहिए. जो देखने में अक्षम हों, उन्हें भी देखकर बताना चाहिए. शायद यही वजह है कि फिल्म के निर्माताओं को दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि यह फिल्म दिव्यांग (आंख-कान से असमर्थ) भी देख सकें, निर्माता सब टाइटल वगैरह के जरिए व्यवस्था करें.'
सूत्रों का कहना है कि मोदी ने असल में कहना चाहा कि पठान का विरोध मत करो. मगर ऐसी फिल्मों का विरोध जरूर करो, जिसमें खाड़ी और तुर्की सिंडिकेट आतंक के चेहरे को बदलना चाह रहे हैं. आतंक के केंद्र को बदलना चाह रहे हैं. देश में ग्लोबल टेरर की परिभाषा बदलना चाह रहे हैं. भारत से जुड़ी ऐसी अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मी कहानियों का विरोध करना मत भूलना जिसमें देश के दुश्मन के रूप पाकिस्तान और चीन को ना दिखाया जाए. और उसकी जगह रूस का रूपक गढ़ा जाए. विरोध इसलिए जरूरी है कि विजुअल से मानस तैयार किया जाता है. और ऐसी फिल्म का विरोध जरूर करना जिसमें आतंकी 'कूल डूड' दिखता हो. जैसे फ़ना आदि में दिखा है. क्योंकि आतंकी, सबकुछ हो सकता है. वह कूल डूड तो कभी नहीं हो सकता. आतंकी वैसे ही होता है जैसे है. जैसे दिख रहा है, यहां तक कि बॉलीवुड की ही फिल्मों में दिखाया जाता रहा है. दक्षिण में भी दिखाया जाता है. और वह बिल्कुल वैसा ही होता है जैसे कैथोलिक विजय सेतुपति की बीस्ट में दिखाया गया. बावजूद अरब देशों ने उसे प्रतिबंधित कर दिया.
सूत्रों के मुताबिक़ मोदी की मूल चिंता फिल्मों के विरोध को लेकर अनावश्यक श्रम लागत और अपने नेताओं की भूमिका पर थी. असल में मोदी जी अपने नेताओं को समझाना चाह रहे थे- 'यार बहादुर, ये मामला तो दर्शकों और फिल्म निर्माताओं का है. दर्शकों और अभिनेताओं का है. आप वहां किस हैसियत से कूद रहे हो? आपको समझ है. लाल खड़वा टीका लगाने भर से समझदार हो जाओगे. हिंदू हृदय सम्राट हो जाओगे. आपसे बड़ा टीका उद्धव ठाकरे लगाते हैं- उन्हें देखो. ठीक है. बड़ा नेता बनना चाहते हो आप. बन जाओ. किसने रोका है?'
'आपके पास तो तमाम काम हैं. गीता के सिद्धांत को भूल गए. जो काम मिला है पहले उसे निपटाओ. हमारा-तुम्हारा केआरए जनादेश पूरा करना है. हमारा आपका केआरए फिल्मों का बायकॉट करना नहीं है. अपने केआरए में उसे साबित करो और बड़ा नेता बन जाओ. बस आप यह देखो कि हिंसा ना हो. जैसे पहले रोजा आदि पर बवाल हो जाया करते थे. सिर्फ इस बात पर कि कोई मुस्लिम लड़की किसी हिंदू लड़के से कैसे प्यार और शादी कर सकती है? बाकी तमाम काम दर्शकों का अपना है. वे कर भी रहे हैं. सीधा संवाद कर रहे हैं बॉलीवुड से. अब उनकी बात पहुंच रही है. उसमें दम होगा तो लोग सुनेंगे भी. दर्शकों को जनता को आप जैसे नेताओं की अब जरूरत नहीं. अब उन्हें तमाम चीजों में नेताओं की जरूरत नहीं पड़ती. सोशल मीडिया के जरिए वे अपने जैसे तमाम लोगों के साथ ऐसे मुद्दों पर राय बना लेते हैं. और जो उचित होता है, फैसला लेते हैं. आप क्यों परेशान हो यार? ठीक है- उन्हें लगता है कि इसके पीछे आप ही हो, अब इस लगने का तो कुछ कर नहीं सकते. क्योंकि एक यही मुद्दा नहीं है. उन्हें तमाम चीजों पर ऐसा ही लगता है. आप तो आरोप लगाने वालों की तरह खलिहर नहीं बैठे हैं. आप फिलहाल जी 20 पर ध्यान दो.'
मोदी ने अपने नेताओं से साफ़-साफ़ कहा कि आपको जनादेश विकास शिकास भर के लिए नहीं, बल्कि प्रोटेक्शन के लिए ज्यादा मिला है. विकास शिकास तो हो रहा है. होता रहेगा. नेहरू से लेकर इंदिरा जी राजीव तक हर चुनाव में गरीबी ही मिटाते रहे. क्या गरीबी मिट गई. गरीबी तो नहीं मिटी, लेकिन दूसरी चीजें जरूर मिट गईं. आप बस यह देखो कि फ्रीडम ऑफ़ स्पीच के लिए लोगों को प्रोटेक्शन बिना भेदभाव के मिल रहा है या नहीं. और ईमानदारी से मिल रहा है कि नहीं. आप यह सुनिश्चित करो कि मेरा गला काटने वाले इमरान मसूद को जो प्रोटेक्शन मिल रहा है, दुनियाभर में मुझे घूम-घूम कर गाली देने वाली राणा अय्यूब को जो प्रोटेक्शन मिल रहा है, क्या वही प्रोटेक्शन उन आम लोगों को भी मिल रहा है जिनपर दो रुपये में ट्वीट करने का आरोप लगता है. लेकिन वहां आप लोगों का ध्यान नहीं जाता और एक बेगुनाह दर्जी की गला काटकर हत्या कर दी जाती है. प्रोटेक्शन के मामले में इस तरह भेदभाव नहीं होने चाहिए. मुझे जनादेश प्रोटेक्शन के लिए मिला है.
इस बार मोदी जी पार्टी नेताओं से बातचीत करते हुए बिल्कुल भी भावुक नहीं हुए. अलबत्ता उन्होंने पार्टी नेताओं के फ़िल्मी प्रेम को अहम भी माना. सूत्रों के अनुसार फिल्म में रूचि लेने वाले पार्टी नेताओं को सलाह देते हुए उन्होंने कहा- 'अगर किसी फिल्म पर बोलने की चुल है तो एक दर्शक की हैसियत से बात रखिए. आपके बयान से वह हैसियत झलकनी भी चाहिए. फिल्मों का शौक है और दर्शक की तरह बोलना है तो बोलो, किसी ने रोका नहीं है. यह जनता की सरकार है. मोदी की सरकार है. यहां किसी को विवश नहीं किया जा सकता. मगर यार ऐसा तो मत बोलो कि बैन करवा देंगे. नहीं चलने देंगे. आप हैं कौन भई? बैन करवा देंगे तो लोग क्या देखकर पता लगाएंगे कि ये कौन सी केजीएफ़ बनी है?' मोदी यहां थोड़ा आक्रामक नजर आए.
उन्होंने कहा- 'बोलने से किसी ने रोका थोड़े है. और जो मन करे वह भी बोल सकते हो. बोलना है तो इमरान प्रतापगढ़ी की तरह बोलो. सीना ठोककर बोलो. जैसे वह जिंदा पीर की कब्र पर जाकर हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह को याद करता है. तो जब इमरान कर सकता है, आपको अपनी केजीएफ़ दिखाने से किसी ने रोका थोड़े है. इमरान जैसी केजीएफ़ दिखाओ. लेकिन अपनी. फिल्मों का विरोध कर रहे लोगों के काम में नेता की हैसियत से श्रेय क्यों लेना चाहते हो. नेता बनने का शौक है तो अपनी केजीएफ़ बनाओ इमरान की तरह. और यह काम भी आप नहीं करोगे तो मैं किससे उम्मीद करूं? अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव से करूं कि नीतीश कुमार से करूं. या फिर तमिलनाडु कगौवान्वित कैथोलिक स्टालिन से करूं. या ब्राह्मण ह्रदय सम्राट ममता बनर्जी से करूं. महाप्राण यह काम आप लोग नहीं करेंगे तो कौन करेगा. और आप हैं कि जो काम लोगों का है- उसी में संभावनाएं तलाश कर राजनीति करते रहना चाहते हैं. नई केजीएफ नहीं बना पा रहे. केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री बनने को लेकर इतने उतावले क्यों हैं?'
मोदी जी ने कहा- 'हर फिल्म का विरोध मत करिए, मगर जिस डॉक्युमेंट्री में मेरा नाम लिया गया है उसका भी विरोध मत करिए. क्या कर लेंगे उसका विरोध करके. बल्कि लोगों को इसे और देखने के लिए प्रेरित करिए. इसके बारे में बताइए.यह कोई ऐसी बात नहीं कि लोगों को सच-झूठ और सही-गलत का फर्क नहीं पता है. आप लोग इतना डरते क्यों हैं. मैं वही मोदी हूं ना जिसे बुचर ऑफ़ गुजरात और पता नहीं क्या-क्या कहा गया. तो क्या मैं घर में बैठ गया. क्या लोगों ने मुझे खारिज कर दिया. उसी बुचर ऑफ़ गुजरात को जनता ने जनादेश दिया. कैसा जनादेश दिया- देख ही रहे हैं. और क्यों दिया क्या आपको भी यह बताने की जरूरत है. और जिन्हें बुचर ऑफ़ दिल्ली, बुचर ऑफ़ कश्मीर, बुचर ऑफ़ पंजाब, बुचर ऑफ़ यूपी, बुचर ऑफ़ बिहार, बुचर ऑफ़ ओडिशा, बुचर ऑफ़ नॉर्थ ईस्ट, बुचर ऑफ़ छत्तीसगढ़ आदि आदि कहा जाना चाहिए था- नहीं कहा गया, बावजूद देख लीजिए वे आज इतिहास के किस पन्ने में ख़त्म होने की कगार पर हैं.
पीएम ने कहा- आप देखिए कि दो बुचर ऑफ़ कश्मीर भारत जोड़ो यात्रा में कितना खुशी-खुशी शामिल हैं. रात दिन भारतीय सेना, कश्मीरी अल्पसंख्यकों की बैंड बजाने की धमकियां देने वाले बुचर ऑफ़ कश्मीर. और वही अगर द कश्मीर फाइल्स को एजेंडा फिल्म नहीं कहेंगे तो क्या आप कहेंगे? आप हर बात पर इतने नाराज क्यों हो जाते हैं? आपको समझ में नहीं आता कि बुचर ऑफ़ कश्मीर भारत जोड़ने निकला है तो उसका क्या मतलब है. इरफान हबीब जैसा ईमानदार इतिहासकार किस वजह से गांधी नेहरू के श्रेष्ठ वारिस राहुल की यात्रा में आ रहे हैं. अहमक हैं आप लोग. सब अपना काम कर रहे हैं. एक आप लोग हैं जो केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री बनने को आतुर हैं. लेकिन उसके लिए नया काम नहीं करना है. उदाहरण पेश नहीं करना है बल्कि जनता के बनाए आंदोलन में 'उड़ान चक' (कूद कर) बनकर श्रेय लूटना है.
सूत्रों के मुताबिक़ मोदी ने बहुत तीखे लहजे में कहा- कब तक आप दूसरों का श्रेय लूटकर राज करते रहेंगे. जनता सक्षम है भई. उसे अपना हित-अहित पता है. तो हर फिल्म का विरोध करना आप लोगों का काम नहीं. जिस फिल्म के विरोध में आपकी हैसियत की जरूरत पड़ेगी, बताया जाएगा. सूत्रों ने यह भी बताया कि मोदी ने किसी फिल्म का नाम तो नहीं लिया. मगर यह जरूर कहा कि अब पठान जैसी फिल्म के लिए भी आप लोगों को जोर लगाना पड़ रहा है यह दुखद है. जनता को खुद तय करने दीजिए वह मिशन मजनू वाला भारत चाहता है या पठान वाला.
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