पता नहीं लोगों को रोज रोज कहां जाना होता है. इन दिनों दिल्ली एयरपोर्ट का हाल बड़ा बुरा है. भारी भसड़ मची है. बस कोई पूड़ी सब्जी, मूंगफली, चना दाल, चाय बेचने आ जाए, तो मंजर वैसे ही होंगे जैसे हमारी आंखों ने रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन पर देखे. एयरपोर्ट पर जहां भी नजर उठाइये सिर्फ लोगों का हुजूम सिर ही सिर. कहीं दाएं सिर तो कहीं बाएं सिर. हर आदमी हैरान परेशान. ऐसे दृश्य रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन पर आम होतें हैं तो कहां ही किसी के पास इतना वक़्त है जो इसकी सुध ले लेकिन बात क्योंकि एयरपोर्ट की थी और साथ ही देश के एलीट क्लास ने ट्वीट कर करके ट्विटर पर गंध फैला दी थी तो अपने केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली एयरपोर्ट का औचक निरिक्षण करने आ गए. मंत्री जी सामने थे तो लोग भी भावुक हो गए और फिर जो शिकायतों का दौर चला. मैटर तब थमा जब उन्होंने अधिकारियों की क्लास ली.
तो मुद्दा है दिल्ली एयरपोर्ट से भीड़ भाड़ को मैनेज करना. कितनी आसानी से इतना बड़ा फैसला ले लिया गया. तमाम इंतेजाम किए गए कि अब एयरपोर्ट के काउंटरों पर भीड़ न लगे. मगर इस सबसे पहले किसी ने ये सोचा कि हम भारतीयों ने भीड़ भाड़ में एडजस्ट करने वाली फितरत कितनी मुश्किलों से डेवलप की है.
सवाल होगा कैसे तो हम फिर इस बात को कहेंगे कि एयरपोर्ट जैसी एलीट जगह से निकलिये और कुछ पल गुजारिये अपने नजदीकी रेलवे स्टेशन या बस अड्डे पर. मंजर देखा है वहां का? क्या धूम धड़क्का, चिल्ल पों रहती है वहां. जैसे हालात इन जगहों के होते हैं, यहां आपको वो सारे एलिमेंट्स मिलेंगे जो ये बतांएगे कि यूं ही भारत को बढ़ी हुई आबादी वाला देश नहीं कहते. चाहे वो कुत्ते या बंदर हों या फिर गाय, सांड, सुअर जैसे अन्य छुट्टा जानवर इन...
पता नहीं लोगों को रोज रोज कहां जाना होता है. इन दिनों दिल्ली एयरपोर्ट का हाल बड़ा बुरा है. भारी भसड़ मची है. बस कोई पूड़ी सब्जी, मूंगफली, चना दाल, चाय बेचने आ जाए, तो मंजर वैसे ही होंगे जैसे हमारी आंखों ने रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन पर देखे. एयरपोर्ट पर जहां भी नजर उठाइये सिर्फ लोगों का हुजूम सिर ही सिर. कहीं दाएं सिर तो कहीं बाएं सिर. हर आदमी हैरान परेशान. ऐसे दृश्य रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन पर आम होतें हैं तो कहां ही किसी के पास इतना वक़्त है जो इसकी सुध ले लेकिन बात क्योंकि एयरपोर्ट की थी और साथ ही देश के एलीट क्लास ने ट्वीट कर करके ट्विटर पर गंध फैला दी थी तो अपने केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली एयरपोर्ट का औचक निरिक्षण करने आ गए. मंत्री जी सामने थे तो लोग भी भावुक हो गए और फिर जो शिकायतों का दौर चला. मैटर तब थमा जब उन्होंने अधिकारियों की क्लास ली.
तो मुद्दा है दिल्ली एयरपोर्ट से भीड़ भाड़ को मैनेज करना. कितनी आसानी से इतना बड़ा फैसला ले लिया गया. तमाम इंतेजाम किए गए कि अब एयरपोर्ट के काउंटरों पर भीड़ न लगे. मगर इस सबसे पहले किसी ने ये सोचा कि हम भारतीयों ने भीड़ भाड़ में एडजस्ट करने वाली फितरत कितनी मुश्किलों से डेवलप की है.
सवाल होगा कैसे तो हम फिर इस बात को कहेंगे कि एयरपोर्ट जैसी एलीट जगह से निकलिये और कुछ पल गुजारिये अपने नजदीकी रेलवे स्टेशन या बस अड्डे पर. मंजर देखा है वहां का? क्या धूम धड़क्का, चिल्ल पों रहती है वहां. जैसे हालात इन जगहों के होते हैं, यहां आपको वो सारे एलिमेंट्स मिलेंगे जो ये बतांएगे कि यूं ही भारत को बढ़ी हुई आबादी वाला देश नहीं कहते. चाहे वो कुत्ते या बंदर हों या फिर गाय, सांड, सुअर जैसे अन्य छुट्टा जानवर इन स्थानों पपर ये पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. और हम इतने भोले होते हैं कि हंसी ख़ुशी इनके साथ एडजस्ट कर देते हैं.
आप ही बताइये रेलवे स्टेशन या बस अड्डों पर भले ही घड़ियां न लगी हों, नलों में पानी के नाम पर काई आ रही हो, बेंचें न हों, गन्दगी का अंबार लगा हो, मक्खियां भिनक रही हों लेकिन कभी सुना आपने कि इसके लिए कभी किसी न कोई शिकायत की? आदमी ये मान के ही इन स्थानों पर जाता है कि थोड़ी देर की ही तो बात है फिर दोबारा कहां यहीं रहना है.
उन स्थानों पर हमारे आपके एडजस्टमेंट का लेवल क्या होता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बेंच पर जगह नहीं मिली तो वहीं स्टेशन या बस अड्डे पर चादर बिछा ली और पसर गए वरना अपना बैग, अटैची, बस्ता, बक्सा तो है ही. खाने पीने की बात आई तो वहीं से धूल पड़े समोसे या पूड़ी ले ली. नहीं तो फिर चाय तो है ही. बस स्टैंड-रेलवे स्टेशन हमारे लिए किसी ट्रेनिंग सेंटर से कम नहीं रहे हैं, जो हमें आंधी-तूफानों से लड़ना सिखाते हैं- वहां की धक्का मुक्की, गाली गलौज, चोरी चकारी... असली मकसद तो यही रहा है कि इन सबसे कैसे बचा जाए. अब यही ट्रेनिंग अगर एयरपोर्ट पर और मिलें तो कौन सा बवाल हो जाएगा?
कह सकते हैं कि भीड़ के मद्देनजर एयरपोर्ट पर व्यर्थ का प्रोपोगेंडा फैलाया जा रहा है. अरे भइया हम लोग भीड़ भाड़ को मूंगफली और केला खाकर और उस केले के छिलके को वहीं फर्श पर फेंककर एन्जॉय करने वाले लोग हैं. जब तक आसपास लोग न हों हमें ट्रेवल वाला फील ही नहीं आता. हम तो वो हैं जिन्हें अगर मौका मिले तो वो चलते जहाज में से उतरें, और चिप्स-समोसा लेकर दोबारा अपनी अपनी सीट्स पर आ जाएं.
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