बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने शराबबंदी पर सीएम नीतीश कुमार को एक बेहतरीन सुझाव दिया है. जीतनराम मांझी का कहना है कि 'शराबबंदी की वजह से बिहार की जेलें भर गई हैं. और, एक क्वार्टर यानी पउवा शराब पीने वालों को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए.' वैसे, शराब पीने वालों के पक्ष में जीतनराम मांझी ने जितना अतरंगी लॉजिक दिया है. अगर इसके बारे में शराबियों से पूछेंगे, तो पता चलेगा कि ये लॉजिक किसी भी हाल में हल्के में नहीं लिया जा सकता है. शराबियों की भीड़ में संतुलित रहने की कला रखने वालों का जो सम्मान होता है. उसे एक शराबी ही जान सकता है.
करीब दो दशक पहले टेलीविजन पर अमिताभ बच्चन की फिल्म 'शराबी' देखी थी. जिसके बाद पता चला था कि दिन भर नशे में धुत्त रहने वाले विक्की बाबू का सम्मान भी शराबियों के बीच उनके संतुलित रहने की वजह से ही था. वैसे, फिल्म शराबी में विक्की बाबू शराब के नशे में धुत्त जरूर रहते थे. लेकिन, यूं ही सरेराह मिल जाने वाले सस्ती शराब पीने वाले शराबियों को मुफ्त में महंगे जाम पिलाने की बात हो. या फिर किसी अंजान गरीब शख्स के बच्चे का अस्पताल में अपने खर्च पर इलाज कराना हो. इस तरह की दरियादिली उनके किरदार के अमीर होने की वजह से नहीं थी.
दरअसल, शराबियों के हर ग्रुप में ऐसा एक शख्स होना अनिवार्य यानी मेंडेटरी होता है. क्योंकि, सभी शराबियों को पता है कि एक क्वार्टर पीने वाला शख्स कभी नशे में आउट नहीं होता है. और, शराब पीकर आउट होने वालों को तो खुद शराबी अच्छी नजर से नहीं देखते हैं. यही वजह है कि शराबियों में एक क्वार्टर या पउवा पीने वालों को जितना मान-सम्मान दिया जाता है. शायद ही किसी और को दिया जाता होगा. आसान शब्दों में कहें, तो एक क्वार्टर पीने वाले शख्स शराबियों के झुंड में किसी सुपरमैन की तरह होता है. जिसके पास बड़ी से बड़ी मुश्किलों का हल होता है. आइए उन मुश्किलों और उनके हल पर एक नजर मार लेते हैं...
शराबियों के ग्रुप में सिर्फ एक क्वार्टर पीने वाले आसानी से नहीं मिलते हैं.
मुश्किलें और उनका हल
- युवा शराबियों की बात की जाए, तो जो सबसे कम पीता है. और, संतुलित व्यवहार करता है. उसे ग्रुप का नेता कहा जा सकता है. उसके पास शराब पीने के दौरान होने वाली मूंहाचाही या वाद-विवाद पर 'वीटो' का इस्तेमाल करने का हक होता है. वो कह सकता है कि 'कल जब नशा उतर जाए, इस पर तब लड़ लेना.' इसी तरह अगर घर लौटते वक्त रास्ते में कोई बवाल होता है. तो, मौके पर उसे ही विवाद सुलझाने के लिए आगे कर दिया जाता है.
- वैसे, शराबियों की महफिल में एक क्वार्टर पीने वाले शख्स को ही सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी दी जाती है. उदाहरण के तौर पर, अगर किसी मॉडल शॉप में बैठकर शराब पी जा रही है. तो, आखिर में हिसाब-किताब का जिम्मा सिर्फ एक क्वार्टर पीने वाले को ही दिया जाता है. क्योंकि, संतुलित होने की वजह से उसकी गणित कमजोर नहीं पड़ती है. और, वो बिल में जुड़े एक्सट्रा ग्लास के पैसों से लेकर पीनट मसाला की उस प्लेट को भी हटवा देता है, जो टेबल पर सर्विस करने वाले ने उनके नशे में होने की वजह से जोड़ दी होती है.
- इतना ही नहीं, अगर किसी के घर में शराब पार्टी चल रही है. और, बीच में कोई जरूरत की चीज जैसे कि आइसक्यूब, खाने की कोई चीज या शराब की कमी हो जाती है. तो, वहां बैठे सभी शराबियों की व्याकुल दृष्टि उसी शख्स पर आ टिकती है. क्योंकि, वहां बैठे पूरे ग्रुप में वो इकलौता ऐसे है, जो संतुलित है. और, वो आसानी से इन चीजों की व्यवस्था कर लेता है.
- वैसे, महफिल के दौरान नशे में धुत्त शराबियों में से किसी के परिवार या पत्नी का फोन आ जाए. तो, वो शख्स ही फोन उठाकर आंटी जी या भाभी जी को बताता है कि 'राकेश बस 10 मिनट के लिए बाहर तक गया है. हम लोग आनंद के घर पर ही हैं. आप परेशान मत होइए. मैं उसे ज्यादा पीने नहीं दूंगा.' वैसे, मम्मी और पत्नी के लिए इन अचूक लाइनों में थोड़ा सा ही हेर-फेर होता है. आसान शब्दों में कहें, तो शराबियों के घर तक में उस शख्स की इज्जत बढ़ जाती है. क्योंकि, वो राकेश को आउट होने से बचाने की हर संभव कोशिश करता है. वो अलग बात है कि सुरेश की पीकर उलट जाने की हर बार की आदत बन चुकी है.
- और, सबसे बड़ी बात तो यही है कि एक क्वार्टर पीकर संतुलित व्यवहार करने वाले शख्स के जिम्मेदार कंधों पर ही सभी आउट हो चुके लोगों को घर पहुंचाने की भी जिम्मेदारी होती है. क्योंकि, शराब के नशे में धुत्त आदमी तो यही कहता है कि आज गाड़ी तेरा भाई चलाएगा. लेकिन, उसे समझाना और घर तक छोड़ कर आना सिर्फ एक क्वार्टर पीने वाला शख्स ही कर सकता है.
वैसे, जीतनराम मांंझी के इस तर्क को देखते हुए एक चुटकुला याद आ गया. जो कुछ इस तरह है कि 'शराब एक सामाजिक बुराई है. और, इसे खत्म करने की जिम्मेदारी हम सबकी है.' इतना कहकर शराबियों ने अपने-अपने ग्लास उठा लिये. इसे चुटकुला कहने का हक सबके पास है. लेकिन, इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए न जाने कितने लोग हर साल अपनी जान गंवा देते हैं.
किसी की किडनी बोल गई है, तो किसी के लीवर ने जवाब दे दिया है. लेकिन, पीने वालों ने जो इस सामाजिक बुराई को खत्म करने की कसम खाई है. उससे पीछे नहीं हटते हैं. हालांकि, कुछ ऐसे भी होते हैं. जो बीच में ही हथियार डाल देते हैं. क्योंकि, डॉक्टर उन्हें चेतावनी दे चुका होता है कि 'अबकी बार लीवर या किडनी में पंचर हुआ, तो सही कराने हमारे पास मत आना.' लेकिन, ये भी सच है कि एक क्वार्टर पीकर संतुलित व्यवहार करने वाले बहुतायत लोग ऐसे डॉक्टरों के पास भी नहीं जाते हैं. क्योंकि, उन्हें खुद को संतुलित करने की कला आती है.
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