जींस (Jeans) अपने आप में कम्प्लीट अटायर है. गर्मी हो तो भी कोई टेंशन नहीं. जाड़ा हो तो कहने ही क्या. जींस बरसात में भी पहनी जा सकती है. ऐसे ही इसे बर्थडे पार्टी से लेकर शादी ब्याह, पार्टियों, दफ्तर, स्कूल- कॉलेज तक कहीं भी पहना जा सकता है. जैसी सार्वभौम लोकप्रियता जींस की है, अब जींस कोई स्टाइल स्टेटमेंट नहीं रह गया है. यानी आज के समय में व्यक्ति की वार्डरॉब में कुछ हो न हो जींस जरूर होती है. जिसके पास न हो, वो भले ही 'कुछ हो' मगर स्टाइलिश तो हरगिज नहीं हो सकता. जींस एक दिलचस्प परिधान इसलिए भी है क्योंकि इस कपड़े का कोई जेंडर यानी 'लिंग' नहीं होता. मर्द पहन ले तो जींस मैसकुलिन जेंडर है अगर कोई महिला इसे धारण कर ले तो ये फेमिनिन जेंडर बन जाता है. जींस ग्लोबल है और ये ग्लोबल हो भी क्यों न? बात जब जब आराम के मामले की आएगी जींस तब तब याद की जाएगी.
सवाल होगा कि जींस पर इतनी बातें क्यों? ये जींस पुराण किसलिए? ताजा कारण है काशी से आई एक उड़ती उड़ती खबर. खबर में बताया गया कि अब वो दिन दूर नहीं है जब वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में ड्रेस कोड (Kashi Vishvanath sparsh darshan dress code) लागू कर दिया जाएगा. खबर में कहा तो यहां तक गया कि अब मंदिर में स्पर्श दर्शन के लिए महिलाओं को साड़ी पहनना होगा और पुरुषों को धोती-कुर्ता. निर्धारित ड्रेस की बजाए जींस, शर्ट, सूट आदि कपड़े पहनने वाले भी दर्शन कर सकेंगे मगर उन्हें स्पर्श दर्शन की इजाजत नहीं मिलेगी.
जब ये अफवाह कुछ ज्यादा ही फैल गई तो राज्य सरकार भी हरकत में आई. प्रदेश सरकार के पर्यटन राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभारी नीलकंठ तिवारी ने इन खबरों का खंडन करते हुए कहा है कि काशी विश्वनाथ...
जींस (Jeans) अपने आप में कम्प्लीट अटायर है. गर्मी हो तो भी कोई टेंशन नहीं. जाड़ा हो तो कहने ही क्या. जींस बरसात में भी पहनी जा सकती है. ऐसे ही इसे बर्थडे पार्टी से लेकर शादी ब्याह, पार्टियों, दफ्तर, स्कूल- कॉलेज तक कहीं भी पहना जा सकता है. जैसी सार्वभौम लोकप्रियता जींस की है, अब जींस कोई स्टाइल स्टेटमेंट नहीं रह गया है. यानी आज के समय में व्यक्ति की वार्डरॉब में कुछ हो न हो जींस जरूर होती है. जिसके पास न हो, वो भले ही 'कुछ हो' मगर स्टाइलिश तो हरगिज नहीं हो सकता. जींस एक दिलचस्प परिधान इसलिए भी है क्योंकि इस कपड़े का कोई जेंडर यानी 'लिंग' नहीं होता. मर्द पहन ले तो जींस मैसकुलिन जेंडर है अगर कोई महिला इसे धारण कर ले तो ये फेमिनिन जेंडर बन जाता है. जींस ग्लोबल है और ये ग्लोबल हो भी क्यों न? बात जब जब आराम के मामले की आएगी जींस तब तब याद की जाएगी.
सवाल होगा कि जींस पर इतनी बातें क्यों? ये जींस पुराण किसलिए? ताजा कारण है काशी से आई एक उड़ती उड़ती खबर. खबर में बताया गया कि अब वो दिन दूर नहीं है जब वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में ड्रेस कोड (Kashi Vishvanath sparsh darshan dress code) लागू कर दिया जाएगा. खबर में कहा तो यहां तक गया कि अब मंदिर में स्पर्श दर्शन के लिए महिलाओं को साड़ी पहनना होगा और पुरुषों को धोती-कुर्ता. निर्धारित ड्रेस की बजाए जींस, शर्ट, सूट आदि कपड़े पहनने वाले भी दर्शन कर सकेंगे मगर उन्हें स्पर्श दर्शन की इजाजत नहीं मिलेगी.
जब ये अफवाह कुछ ज्यादा ही फैल गई तो राज्य सरकार भी हरकत में आई. प्रदेश सरकार के पर्यटन राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभारी नीलकंठ तिवारी ने इन खबरों का खंडन करते हुए कहा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में अभी कोई ड्रेस कोड नहीं लागू है और न लागू करने की योजना है. वहीं मंदिर प्रबंधन ने भी साफ़ कर दिया कि फिलहाल ड्रेस कोड को लेकर ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
अच्छा हुआ. देर आए दुरुस्त आए. ऐसा कम ही होता है. वरना फॉर्मल-इनफॉर्मल मौकों पर सबस आसान निशाना जींस ही बनती है. लगभग हर प्रदेश के किसी न किसी कॉलेज से जींस पर पाबंदी की खबरें आ ही जाती हैं. यदि हुक्मरान ऐसे फरमान जारी नहीं करते हैं, तो समाज के अलग-अलग तबके से जींस के बारे में बकवास कह दी जाती है.
जींस और उसकी मासूमियत पर गौर करें तो मिलता है कि हमें उसका शुक्रगुजार रहना चाहिए. इसके आगे हमें सुबह और शाम सजदे करने चाहिए. हमने हमेशा उसकी आलोचना की है और उसकी भावना को आहत करते हुए उसके साथ विश्वासघात किया है.
खुद कल्पना करके देखिये. क्या कुछ नहीं किया है जींस ने हमारे लिए? लेकिन हमने उसके साथ क्या किया. वो लड़के और लड़कियां जिन्होंने स्कूल कॉलेजों में जींस पहनी सिर्फ उनकी जींस के कारण हमने उन्हें आवारा और बदचलन कह दिया यहां हमने लड़के और लड़कियों को बदचलन कहा मगर जब यही लोग जींस उतार दें तो ये हमारे लिए सभ्य हो जाएंगे यानी खराबी इनमें नहीं है. इनके कपड़ों में है. इनकी जींस में है. इसी तरह हम वो बयान भी सुन ही चुके हैं जिसमें हमारे द्वारा चुने हुए नुमाइंदे ने ये तक कह दिया कि वो लोग जो जींस पहनते हैं वो बलात्कारी होते हैं.
बलात्कार एक विकृति है. अब ईश्वर ही जाने कौन सी ऐसी फिजिक्स केमिस्ट्री इस्तेमाल हुई कि इसको जींस से रिलेट कर दिया गया? इन बातों के बाद अब जब हम खाप पंचायतों का रुख करें तो वहां भी स्थिति मिलती जुलती है. खाप में बैठने वाले बूढ़े बुजुर्ग क्यों जींस को नफ़रत की निगाह से देखते हैं इसपर शोध करके पीएचडी की जा सकती है और थीसिस को ग्रांट के लिए विदेश भेजा जा सकता है.
जींस किसी ज़माने में कैलिफ़ोर्निया के मज़दूरों का कपड़ा था. मजबूत, टिकाऊ और कम्फ़र्टेबल होने के कारण इसे परदे पर हमारे नायक ने पहना. और फिर कब ये अपने कम्फर्ट के कारण फिल्मों से निकल कर हमारे अपने घरों में आ गया. यदि बात इसपर हो तो कई दिनों तक चर्चा हो सकती है. हजारों की संख्या में शब्द रचे जा सकते हैं. जींस की जैसी महत्ता हमारे जीवन में है ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि जींस एक शानदार और बराबरी का पहनावा है. आपके पास कोई पुरानी जींस हो तो निकालें और पहनें वाह वाही होगी और जमकर होगी.
आज भले ही धोती को भारतीय संस्कृति का प्रतीक बताया जा रहा हो. कहा जा रहा हो कि धोती पहनना ही भारतीय होने की पहली निशानी है. आलोचना के घेरे में जींस है तो ऐसे में बता दें कि जिस नजर से भारत में धोती देखी जाती है कुछ वैसा ही सम्मान विदेशों में जींस को मिला है. मजबूत और आरामदायक जींस भी है और धोती भी. बड़ा मसला कम्फर्ट है. बात जब कम्फर्ट की आएगी तो कोई समझौता नहीं किया जाएगा.
बहरहाल अंग्रेजी में कहावत है कि Charity Begins at home मैं इस बात को समझता हूं कि जींस से मुझे कम्फर्ट मिला है और इसके लिए मुझे उसका धन्यवाद करना चाहिए. तो मैं डंके की चोट पर कह रहा हूं. बार बार कह रहा हूं- Thank You Jeans. Thank you for making my life comfortable.
ये भी पढ़ें -
कीचड़ से सनी यह जींस जानिए किसके लिए बेशकीमती है !
अब गुलाबी शर्ट या बैगनी सूट भी आपको दिलवा सकते हैं अदालतों में, तारीख पर तारीख..
हरियाणा सरकार का टीचर्स के लिए वो नोटिस जो जारी नहीं हो पाया !
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.