उत्तर प्रदेश की मेरठ पुलिस ने गुड वर्क किया है. ताली बजाने या वाह वाह सीएम योगी की पुलिस करने से पहले जान लीजिये कि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि पुलिस ने रंगदारी मांगने वाले किसी छुटभैये बदमाश को गिरफ्तार किया है या फिर कट्टे के दमपर हाईवे पर ट्रक लूटने वाला कोई शातिर मेरठ पुलिस की गिरफ्त में आया है. पुलिस ने 'जूते' पकडे हैं. एक या दो नहीं बल्कि पूरे 11 लाख रुपए के नकली जूते. असल में अभी बीत दिन ही मेरठ में पुलिस ने Nike, Reebok, Puma, Adidas जैसे ब्रांड्स की आड़ में नकली जूते बेचने वालों के ठिकानों पर की. इस कार्रवाई में पुलिस ने करीब 11 लाख रुपये के जूते बरामद किए.
मामले में दिलचस्प ये है कि, ये शिकायत पुलिस को किसी और से नहीं बल्कि कंपनी के एडवाइजर से मिली. मेरठ की मार्केट में नकली जूते बिकते देख एडवाइजर इस हद तक आहत हो गया कि उसने पुलिस के पास जाना और अपना दुखड़ा रोना ही बेहतर समझा. मामला बड़े ब्रांड्स से जुड़ा था तो पुलिस भी तत्काल प्रभाव में हरकत में आई और उसने एडवाइजर की निशानदेही पर रेड को अंजाम दिया और ये ऐतिहासिक गुड वर्क किया.
मेरठ में पुलिस ने बड़े ब्रांड्स के नकली जूते बेचने वालों पर नकेल कसी है और दो लोगों को गिरफ्तार किया है
अच्छा हां पुलिस खुद उस वक़्त आश्चर्य में पड़ गयी जब उसने पाया कि अलग अलग ब्रांड्स के डिजाइन और लोगो कॉपी करके न केवल नकली जूते तैयार किये गए बल्कि उन्हें धड़ल्ले से बेचा भी जा रहा है. मामले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया. जो पूछताछ हुई है उसमें ये बात निकल कर सामने आई है कि ये लोग दिल्ली की गफ्फार मार्केट से माल लाते थे और मेरठ में अपनी अपनी दुकानों पर बेचते थे.
भले ही मेरठ के एसएसपी के दिशा निर्देशों के बाद ये कार्रवाई हुई हो. दुकानदारों पर मुकदमा पंजीकृत कर लिया गया हो. लेकिन जो कुछ भी हुआ है वो ठीक नहीं हुआ है. मेरठ पुलिस के इस एक्शन से भले ही कंपनियां खुश हों मगर स्पष्ट तौर पर हम आम आदमियों की भावना को गहरा झटका लगा है.
क्योंकि दुःख के ये बादल हमपर मंडरा ही चुके हैं इसलिए इसपर चर्चा होनी ही चाहिए. लेकिन उससे पहले हम कंपनी से कुछ बातों को ज़रूर शेयर करना चाहेंगे. सबसे पहले तो चाहे वो Nike, Reebok, Puma, Adidas हो या फिर कोई और कंपनी उन्हें हम भारतीयों का एहसानमंद रहना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जो काम इन कंपनियों के बड़े बड़े विज्ञापन नहीं कर पाए, वो काम फर्स्ट कॉपी, सेकंड कॉपी, थर्ड कॉपी के नाम पर वो लोग कर गए जिनकी बाजार में गहरी पकड़ है.
अगर आज ये बड़े बड़े और महंगे ब्रांड्स हम भारतीयों के घरों में पहुंचे हैं तो इसका पूरा क्रेडिट उन्हीं लोगों को जाता है जो चाहे दिल्ली का गफ्फार मार्केट हो या फिर लखनऊ का लवलेन वहां अपनी अपनी दुकानें डाले बैठे हैं. ब्रांड कोई भी हो. क्या वो इस बात को नहीं जानता कि जैसी उनके जूतों की कीमत है उतनी छोटे शहरों में काम कर रहे लड़कों की सैलरी नहीं है.
वो चाहे Nike, Reebok हों या फिर Puma, Adidas इन तमाम ब्रांड्स को यूपी. बिहार, ओड़िसा, राजस्थान जैसे राज्यों की यात्रा करनी चाहिए और देखना चाहिए कि वहां क्या लोगों में इतना सामर्थ्य है कि वो इतने भारी भरकम एमआरपी वाले जूते खरीद लें? अब क्योंकि शौक बड़ी चीज है ऐसे में यदि ये बेचारे नकली जूते पहन कर अपने शौक पूरे कर रहे हैं तो इसमें क्या बुराई है? क्या इनको अधिकार नहीं है चंद पलों के लिए ही सही खुश होने का?
वो यूपी पुलिस जिसने मेरठ में दुकानदारों को नकली जूते बेचने के लिए गिरफ्तार किया क्या वो पुलिस ऑनलाइन साइट्स पर चल रही नकली प्रोडक्ट्स की जालसाजी का संज्ञान लेगी? क्या कभी कंपनी का कोई एडवाइजर उसके प्रति भी मेरठ मामले की तरह आहात होगा.
बहरहाल अब जबकि मेरठ में गिरफ़्तारी हो ही गयी है इंसानियत से हमारा भरोसा उठ चुका. चाहे वो ब्रांड्स और एड वाइजर हों, या फिर पुलिस. किसी को भी देश के उस युवा का बिलकुल भी ख्याल नहीं है. जिसे आज भी पॉकेट मनी के नाम पर हफ्ते के 500 रुपए मिलते हैं. जोकि देखते ही देखते खर्च हो जाते हैं और फिर वो युवा ठगा सा महसूस करती है.
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