पहले पीएम मोदी (PM Modi), फिर हर कॉल पर अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) 'दो ग़ज़ दूरी मास्क (Mask) है जरूरी' ये स्टेटमेंट इतनी बार हमारे कान से गुज़र चुका है कि कभी कभी तो यही लगता है कि मास्क ही भगवान है. बाकी जैसा कोरोना का हाल है और जिस तेजी से बीमारी फैल रही है कहना अतिश्योक्ति न होगा कि मास्क बिन जीवन सून है. इस बात को लेकर भले ही WHO में चीफ से लेकर चपरासी तक में मतभेद हो कि मास्क कोरोना से बचा सकता है या ये यूं ही एक प्रोपोगेंडा है लेकिन मास्क लगाना है तो बस लगाना है कोई If, But नहीं. WHO तो दूर की कौड़ी है. भारत में कोरोना के मद्देनजर केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक सब के सब गंभीर हैं और सबसे ज्यादा गंभीर अगर कोई दिख रहा है तो वो राज्य सरकारों के अंडर काम करने वाली पुलिस है. भले ही मास्क लगाने के चलते थाने का दीवान अपने कोतवाल को और कोतवाल अपने सिपाही को पहचान पाने में असमर्थ हो लेकिन चूंकि बीमारी से बचना है तो सभी मास्क लगा रहे हैं. अब जब पुलिस वाले नियम को फॉलो कर रहे हैं तो जाहिर है जनता भी करेगी और जो नहीं करेगा वो न केवल जेल जाएगा बल्कि थाने की कुर्सी पर बैठ अपने को मच्छरों से कटवाते हुए निबंध लिखेगा और 'कोरोना वायरस' के गुण दोष बताएगा. सुनने में भले ही ये अटपटा लगे मगर एमपी के ग्वालियर का नजारा कुछ कुछ ऐसा ही है. ग्वालियर में जिन्हें मास्क लगाने में बेचैनी हो रही है पुलिस ने निबंध (Essay On Covid 19) लिखवाकर उनकी बेचैनी में और अधिक इजाफा कर दिया है.
बता दें कि एक ऐसे समय में जब देश में कोरोना का प्रकोप दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा हो ग्वालियर में वो लोग जो मास्क न लगाकर...
पहले पीएम मोदी (PM Modi), फिर हर कॉल पर अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) 'दो ग़ज़ दूरी मास्क (Mask) है जरूरी' ये स्टेटमेंट इतनी बार हमारे कान से गुज़र चुका है कि कभी कभी तो यही लगता है कि मास्क ही भगवान है. बाकी जैसा कोरोना का हाल है और जिस तेजी से बीमारी फैल रही है कहना अतिश्योक्ति न होगा कि मास्क बिन जीवन सून है. इस बात को लेकर भले ही WHO में चीफ से लेकर चपरासी तक में मतभेद हो कि मास्क कोरोना से बचा सकता है या ये यूं ही एक प्रोपोगेंडा है लेकिन मास्क लगाना है तो बस लगाना है कोई If, But नहीं. WHO तो दूर की कौड़ी है. भारत में कोरोना के मद्देनजर केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक सब के सब गंभीर हैं और सबसे ज्यादा गंभीर अगर कोई दिख रहा है तो वो राज्य सरकारों के अंडर काम करने वाली पुलिस है. भले ही मास्क लगाने के चलते थाने का दीवान अपने कोतवाल को और कोतवाल अपने सिपाही को पहचान पाने में असमर्थ हो लेकिन चूंकि बीमारी से बचना है तो सभी मास्क लगा रहे हैं. अब जब पुलिस वाले नियम को फॉलो कर रहे हैं तो जाहिर है जनता भी करेगी और जो नहीं करेगा वो न केवल जेल जाएगा बल्कि थाने की कुर्सी पर बैठ अपने को मच्छरों से कटवाते हुए निबंध लिखेगा और 'कोरोना वायरस' के गुण दोष बताएगा. सुनने में भले ही ये अटपटा लगे मगर एमपी के ग्वालियर का नजारा कुछ कुछ ऐसा ही है. ग्वालियर में जिन्हें मास्क लगाने में बेचैनी हो रही है पुलिस ने निबंध (Essay On Covid 19) लिखवाकर उनकी बेचैनी में और अधिक इजाफा कर दिया है.
बता दें कि एक ऐसे समय में जब देश में कोरोना का प्रकोप दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा हो ग्वालियर में वो लोग जो मास्क न लगाकर हालात और बेकाबू कर रहे हैं एक के बाद एक पुलिस के हाथों दबोचे जा रहे हैं. चाहे मध्य प्रदेश की हो या फिर बंगाल, बिहार यूपी और राजस्थान की भारत में पुलिस, इस बात से वाकिफ़ हैं कि हिंदुस्तान की एक बड़ी आबादी ढीठ है और ढिठाई का इलाज सिर्फ सजा है. अब किसी को मार पीट दो तो क्या ही सजा इसलिए ऐसे लोगों से निपटने के लिए एमपी के ग्वालियर की पुलिस ने एक यूनिक आईडिया निकाला है.
ग्वालियर पुलिस मास्क घर भूल आए लोगों को सही रास्ते पर लाने और उनको ये बताने के लिए कि कोरोना वाक़ई डरावना है उनसे इसी जानलेवा बीमारी पर निबंध लिखवाकर उन्हें बताने का प्रयास कर रही है कि 'जब मास्क लगाना हो गैर जरूरी तो फिर इसी टॉपिक पर निबंध लिखने से कैसी दूरी? 'ग्वालियर में अलग अलग स्थानों पर हुई चेकिंग में पुलिस ने ऐसे 18 लोगों को सजा दी है जिन्होंने मास्क नहीं लगाया या ये कहें कि उसे नजरअंदाज किया. पुलिस इन लोगों को पकड़कर रूप सिंह स्टेडियम ले गयी जहां पर अस्थाई खुली जेल का निर्माण किया गया है इन लोगों को यही पर ले जाया गया जहां इन्होंने कोरोना विषय पर निबंध भी लिखा.
बात ग्वालियर की चल रही है तो बता दें कि शहर में लोग कोरोना की चपेट में न आएं इसलिए जगह जगह अभियान चलाया गया है. ऐसा कोई भी व्यक्ति जो मास्क को नजरअंदाज कर रहा है और उसे पुलिस पकड़ रही है उसे रूप सिंह स्टेडियम ले जाया जा रहा है जहां अपने में अनोखी इस सजा का प्रावधान किया गया है.
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि लोग हंसी ख़ुशी रूप सिंह स्टेडियम में बैठकर एस्से राइटिंग में भाग ले रहे हैं. जो लोग नहीं लिख पा रहे हैं या फिर वो, जिन्हें लिखने में तमाम तरह की दुश्वारियों का सामना करना पद रहा है उनकी भी खूब हो रहा है. लोग यही कह रहे हैं कि नहीं चलेगी नहीं चलेगी ये तानाशाही नहीं चलेगी. सवाल हो रहा है कि आज जिस कोरोना को लेकर तमाम तरह का हव्वा राज्य सरकार और ग्वालियर पुलिस द्वारा बनाया जा रहा है ये उस वक़्त कहां थी जब अभी हाल उपचुनाव हो रहे थे?
अच्छा लोगों का ये सवाल वाजिब भी है. अभी बेटी दिनों ही हमने ऐसे सैकड़ों विजुअल्स टीवी पर देखे हैं जिनमें उपचुनाव की रैलियों में लोगों का जमघट लगा हुआ था जहां कोरोना वायरस संक्रमण और सोशल डिस्टेंसिंग की जमकर धज्जियां जमकर उड़ाई गयीं.
बहरहाल बात सजा की हुई है तो लोग इसे कोरोना के प्रति सरकार की दोहरी नीति मान रहे हैं. लोग कह रहे हैं कि नहीं इस टाइप से तो नहीं चल पाएगा. अगर कोरोना है तो वो आम आदमी के लिए नेताओं की रैलियों और उपचुनावों के लिए भी है. अगर नियम बना है तो उसे हर सूरत में सभी के लिए फॉलो किया जाना चाहिए.
मास्क न लगाने के चलते सजा पाए लोगों की इन बातों का राज्य सरकार और पुलिस पर कितना असर होगा इसका फैसला तो वक़्त करेगा लेकिन जो वर्तमान है लोगों की इन बातों का संज्ञान राज्य सरकार और पुलिस को अवश्य ही लेना चाहिए. अगर कोरोना आया तो ये कभी भी कहीं भी आ सकता है और जैसा कि अमिताभ बच्चन ने टेलीफोन कॉल पर और पीएम मोदी ने मन की बात में कहा था. अभी कोरोना ख़त्म नहीं हुआ है. दो गज दूरी सीरियसली मास्क है बहुत जरूरी.
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