इंसान को ईश्वर ने फुर्सत से बनाया और बहुत करीने से बनाया. इंसान को ईश्वर को चुनौती देनी थी, उसने गोलगप्पा बनाया. जब पहली बार गोलगप्पा बना होगा यक़ीनन आटे से ही बना होगा. मगर आटे के गोलगप्पे सूजी के गोलगप्पे या मैदे के गोलगप्पे सरीखे क्रिस्पी नहीं होते. भले ही हेल्थ कॉन्शियस लोग अनहेल्थी कह कर फैसला सुना दें, मगर मजा तो सूजी या मैदे के गोलगप्पे में ही है. बाकी इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि हर "गोलगप्पे" का अपना मनोविज्ञान होता है. मतलब कि अगर आप लखनऊ में गोलगप्पा खाएं तो उसमें फिलिंग के तौर पर मटर भरी जाती है. साथ ही यहां लोग अलग - अलग किस्म के पानी को प्रिफ़र करते हैं. वहीं इलाहाबाद और बनारस में गोलगप्पे के पानी में मिर्च का बहुतायत से इस्तेमाल होता है और उसे खट्टा नहीं तीखा किया जाता है. आगरा, अलीगढ़, दिल्ली, नॉएडा के गोलगप्पे मैदे से नहीं बल्कि सूजी से बनते हैं. जो गोल न होकर के ओवल होते हैं और इसमें आलू भरा जाता है. साथ ही यहां पानी तीखा नहीं खट्टा होता है. झारखण्ड, ओड़िशा, जमशेदपुर में गोलगप्पे में आलू और मटर के अलावा काला चना भरा जाता है और यहां भी लोग तीखा गोलगप्पा खाना पसंद करते हैं. इसलिए हर गोलगप्पा अपने में एक शहर को दर्शाता है जो उसकी संस्कृति का प्रतिबिम्ब होता है. अब जबकि इतनी बातें हो गयी हैं. आप बताइये कि अगर कोई गोलगप्पे जैसी सात्विक या आध्यात्मिक चीज के साथ क्रिएटिविटी का हवाला देकर भौंडा मजाक कर दे तो क्या होना चाहिए? कोई गोलगप्पे को गोलगप्पा शेक बनाकर सामने हाजिर कर दे तो इस अपराध के लिए दोषी को क्या सजा मिलनी चाहिए?
चकराने या विचलित होने की कोई जरूरत नहीं है. एक ऐसे समय में जब ज़िंदगी भर दाल चावल या बिरयानी खाने के बाद देश का हर खलिहर अपने...
इंसान को ईश्वर ने फुर्सत से बनाया और बहुत करीने से बनाया. इंसान को ईश्वर को चुनौती देनी थी, उसने गोलगप्पा बनाया. जब पहली बार गोलगप्पा बना होगा यक़ीनन आटे से ही बना होगा. मगर आटे के गोलगप्पे सूजी के गोलगप्पे या मैदे के गोलगप्पे सरीखे क्रिस्पी नहीं होते. भले ही हेल्थ कॉन्शियस लोग अनहेल्थी कह कर फैसला सुना दें, मगर मजा तो सूजी या मैदे के गोलगप्पे में ही है. बाकी इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि हर "गोलगप्पे" का अपना मनोविज्ञान होता है. मतलब कि अगर आप लखनऊ में गोलगप्पा खाएं तो उसमें फिलिंग के तौर पर मटर भरी जाती है. साथ ही यहां लोग अलग - अलग किस्म के पानी को प्रिफ़र करते हैं. वहीं इलाहाबाद और बनारस में गोलगप्पे के पानी में मिर्च का बहुतायत से इस्तेमाल होता है और उसे खट्टा नहीं तीखा किया जाता है. आगरा, अलीगढ़, दिल्ली, नॉएडा के गोलगप्पे मैदे से नहीं बल्कि सूजी से बनते हैं. जो गोल न होकर के ओवल होते हैं और इसमें आलू भरा जाता है. साथ ही यहां पानी तीखा नहीं खट्टा होता है. झारखण्ड, ओड़िशा, जमशेदपुर में गोलगप्पे में आलू और मटर के अलावा काला चना भरा जाता है और यहां भी लोग तीखा गोलगप्पा खाना पसंद करते हैं. इसलिए हर गोलगप्पा अपने में एक शहर को दर्शाता है जो उसकी संस्कृति का प्रतिबिम्ब होता है. अब जबकि इतनी बातें हो गयी हैं. आप बताइये कि अगर कोई गोलगप्पे जैसी सात्विक या आध्यात्मिक चीज के साथ क्रिएटिविटी का हवाला देकर भौंडा मजाक कर दे तो क्या होना चाहिए? कोई गोलगप्पे को गोलगप्पा शेक बनाकर सामने हाजिर कर दे तो इस अपराध के लिए दोषी को क्या सजा मिलनी चाहिए?
चकराने या विचलित होने की कोई जरूरत नहीं है. एक ऐसे समय में जब ज़िंदगी भर दाल चावल या बिरयानी खाने के बाद देश का हर खलिहर अपने को फ़ूड ब्लॉगर कह रहा हो. हमारा प्यारा. लड़कियों और महिलाओं का दुलारा. गोलगप्पा भी रचनात्मकता के नाम पर आपदा की जद में आया है. जालिम, निर्दय, निर्मोही दुनिया ने गोलगप्पे का गोलगप्पा शेक बना दिया है और जाने अनजाने एक ऐसा अपराध कर दिया है जिसकी कोई माफ़ी नहीं है.
गोलगप्पे के गोलगप्पा शेक में परिवर्तित होने पर ढेरों बातहोंगी. आलोचना में मोटे मोटे ग्रन्थ लिखे जाएंगे लेकिन उससे पहले आइये मामले को समझ लें. दरअसल इंटरनेट पर एक वीडियो वायरल हुआ है. वायरल वीडियो को देखें तो मिलता है कि एक आदमी चटनी, मसले हुए आलू, गोलगप्पे और उसके खट्टे मीठे पानी को मिक्सर में शेक कर रहा है. शेक होने के बाद व्यक्ति ने उसे गिलास में निकाला फिर उसमें गोलगप्पे को तोड़कर डाला और जब सब कुछ तैयार हो गया तो पूरा गोलगप्पा डालकर इस अतरंगी डिश को फाइनल टच अप दिया गया.
इस वीडियो या ये कहें कि इस डिश का सामने आना भर था. पूरे इंटरनेट का दिमाग ख़राब हो गया है. जैसी लोगों की प्रतिक्रियाएं हैं लोगों का नाराज होना स्वाभाविक भी है. कोई अपने को फूडी कहे और भले ही वो हल्का हो या भारी ऐसी हरकत हर हाल में गुनाह ए अजीम ही कहलाएगी.
इस पूरे मामले पर आदमी कहने बताने को कई बातें कह सकता है लेकिन जैसी क्रिएटिविटी के नामपर ये हरकत हुई है कह सकते हैं अब जबकि ये गोल गप्पा शेक हमारे सामने आ गया है, प्रलय आ जानी चाहिए. धरती को फट जाना और हमें उसमें समा जाना चाहिए. बात बहुत सीधी है. गोलगप्पे को शेक में देखने के बाद दुनिया में अब देखने को कुछ बचा नहीं है.
नहीं आप खुद बताइये। क्या कोई समझ और विवेक वाला इंसान इस मजाक को जायज ठहरा सकता है? देखिये साहब! क्रिएटिविटी का हवाला देकर करने के लिए हमारे पास बहुत कुछ है लेकिन गोलगप्पे के साथ हुए इस मजाक को कभी भी, किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता। कह सकते हैं कि वो तमाम लोग जो अपने को फूडी कहते हैं, जिन्हें गोलगप्पे से मुहब्बत है उन्हें एकजुट होना चाहिए और जंतर मंतर या किसी भी ऐसे स्थान पर जहां उन्हें मीडिया अटेंशन मिले धरना प्रदर्शन कर देना चाहिए।
गोल गप्पा लवर्स इस बात का खास ख्याल रखें कि यदि आज उन्होंने अपना मुंह बंद किया या फिर वो खामोश रहे तो कल जब दुश्मन टिक्की पर, दही वड़े पर, पाव भाजी पर, मटर पर, चने पर, छोले भठूरे पर हमला करेंगे तो इन लोगों पास संभालने को रहेगा नहीं।स चूंकि कोरोना काल में ही हमें इस बात को बता दिया गया था कि जानकारी ही बचाव है इसलिए जानकारी हमने मुहैया करा दी है. अपनी पसंदीदा चीजों का बचाव कैसे करना है जनता अब स्वयं अपना देख ले तो बेहतर है.
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