बात पुरानी है और तब की है जब ऑनलाइन पढ़ाई के बारे में बच्चों की तो छोड़िए, ख़ुद स्कूल के हेड मास्टर को नहीं पता था. बच्चे मंडे-ट्यूजडे के अलावा सैटरडे को भी आधे दिन के लिए स्कूल आते. दूसरा पीरियड ख़त्म होते होते टिफिन में आए दो पराठों में से पौना पराठा निपटा देते. चिंटू जो कि इस लघु कथा में मेन लीड है वो भी आम बच्चों की तरह स्कूल जाता. अपना सींक सलाई चिंटू, 8 साल का पढ़ाई लिखाई में बहुत तेज लड़का था. क्लास में मास्टर जी के सवाल पूछने की देर रहती. फ्रंट रो में बैठने वाला चिंटू न केवल हाथ खड़े करता बल्कि सही जवाब भी देता. यही बात चिंटू के लिए मुसीबत की जड़ बनी. क्लास के वो बड़े बड़े मुस्टंडे लड़के और उन लड़कों को अपना गुरु मानने वाले मीडियम साइज के लड़के दोनों ही हर बार चिंटू की वजह से कभी बत्तख तो कभी मुर्गा बनते और मास्टर जी का कोप भोगते. उन्होंने एक दिन स्कूल के बाथरूम में चिंटू को धुन दिया. पढ़ाई में तेज चिंटू ने ये बात मां बाप को बताई और वो लोग सीधा स्कूल में. टीचर ने चिंटू को क्लास का मॉनिटर बना दिया. शरारती बच्चों के नाम चिंटू ब्लैक बोर्ड पर लिखता और क्लास की तो छोड़िए मॉर्निंग असेंबली में पीटी वाले सर भी शरारती बच्चों को सजा देते. चिंटू जब तक स्कूल में रहा उससे अपने दुश्मनों से जमकर 'बाथरूम कांड' का बदला लिया.
चिंटू की इस कहानी से हमें वो प्रेरणा मिली जिसे शायद सब समझें सिवाए एआईएमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी के. यूपी चुनाव से पहले और हापुड़ कांड के बाद जैसी आओ भगत हो रही है. जैसे सुरक्षा के नाम पर Z Plus Security मिल रही है. विपक्ष के नेता ख़ासतौर से कांग्रेस पार्टी वाले और कांग्रेस पार्टी में भी राहुल गांधी तरसते हैं ऐसी और इस तरह की...
बात पुरानी है और तब की है जब ऑनलाइन पढ़ाई के बारे में बच्चों की तो छोड़िए, ख़ुद स्कूल के हेड मास्टर को नहीं पता था. बच्चे मंडे-ट्यूजडे के अलावा सैटरडे को भी आधे दिन के लिए स्कूल आते. दूसरा पीरियड ख़त्म होते होते टिफिन में आए दो पराठों में से पौना पराठा निपटा देते. चिंटू जो कि इस लघु कथा में मेन लीड है वो भी आम बच्चों की तरह स्कूल जाता. अपना सींक सलाई चिंटू, 8 साल का पढ़ाई लिखाई में बहुत तेज लड़का था. क्लास में मास्टर जी के सवाल पूछने की देर रहती. फ्रंट रो में बैठने वाला चिंटू न केवल हाथ खड़े करता बल्कि सही जवाब भी देता. यही बात चिंटू के लिए मुसीबत की जड़ बनी. क्लास के वो बड़े बड़े मुस्टंडे लड़के और उन लड़कों को अपना गुरु मानने वाले मीडियम साइज के लड़के दोनों ही हर बार चिंटू की वजह से कभी बत्तख तो कभी मुर्गा बनते और मास्टर जी का कोप भोगते. उन्होंने एक दिन स्कूल के बाथरूम में चिंटू को धुन दिया. पढ़ाई में तेज चिंटू ने ये बात मां बाप को बताई और वो लोग सीधा स्कूल में. टीचर ने चिंटू को क्लास का मॉनिटर बना दिया. शरारती बच्चों के नाम चिंटू ब्लैक बोर्ड पर लिखता और क्लास की तो छोड़िए मॉर्निंग असेंबली में पीटी वाले सर भी शरारती बच्चों को सजा देते. चिंटू जब तक स्कूल में रहा उससे अपने दुश्मनों से जमकर 'बाथरूम कांड' का बदला लिया.
चिंटू की इस कहानी से हमें वो प्रेरणा मिली जिसे शायद सब समझें सिवाए एआईएमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी के. यूपी चुनाव से पहले और हापुड़ कांड के बाद जैसी आओ भगत हो रही है. जैसे सुरक्षा के नाम पर Z Plus Security मिल रही है. विपक्ष के नेता ख़ासतौर से कांग्रेस पार्टी वाले और कांग्रेस पार्टी में भी राहुल गांधी तरसते हैं ऐसी और इस तरह की इज्जत के लिए.
लेकिन! अब इसे इज्जत का रास न आना कहें या पब्लिसिटी स्टंट Z Plus Security को लेकर ओवैसी का रवैया खफा सास सरीखा है और दिलचस्प ये कि मामले पर भाजपा ननद तो ख़ुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज्ञा कारी बहू जैसे हैं. शाह लगातार खुशामद कर रहे हैं कि ले लो, प्लीज ले लो, भगवान के लिए ले लो Z Plus Security लेकिन ओवैसी हैं जो मुंह दूसरी तरफ करे हुए उसे लेने से इंकार कर रहे हैं.
क्योंकि विषय चिंटू जो पहले क्लास के दबंगों से पिता फिर क्लास का मॉनिटर बना उससे शुरू हुआ है तो सोचिए अगर ओवैसी की जगह अपना चिंटू होता तो क्या करता? अरे भइया इस सीधे से क्वेश्चन के आंसर के लिए ज्यादा दिमाग पर जोर अब क्या ही डालना. अपना चिंटू न तो इतना मूर्ख है न ही उसमें ईगो ही भरा है. चिंटू जानता है कि कैसे और किस तरह दुश्मन को उसी के हथियार से पराजित करना है.
जैसा कि दुनिया जानती है राजनीति दिलफरेब चीज है और आदमी जब ओवैसी जैसा ठेठ राजनीतिक हो तो ऐसे मुद्दे पर वो राजनीति नहीं करेगा तो और कौन करेगा? इस बात को समझने के लिए अब कहीं दूर क्या ही जाना हमले के फौरन बाद जो स्पीच उन्होनें संसद में दी थी उसी पर गौर कर लीजिए.
जिस तरह उन्होंने तमाम बातें की और जैसे उन्होंने सरकार से A Class Citizen वाली बात की थी उसी पल एहसास हो गया था कि ओवैसी कुछ बड़ा सोच रहे हैं. मामले के मद्देनजर लोगों को इंतजार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का था. जैसे ही ये ख़बर फ्लैश हुई कि एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी पर हुए हमले पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह न केवल अपना पक्ष रखेंगे बल्कि कुछ प्रबंध भी करेंगे तमाम तरह के कयास लगने शुरू हो गए.
तरह तरह की बातें हुईं और कहा गया कि ओवैसी राजनीति के घाघ आदमी है इतनी जल्दी उस मुर्गी को नहीं काटेंगे जिससे सोने का अंडा मिल रहा है. हुआ भी कुछ ऐसा ही. ओवैसी नहीं मानें तो फिर नहीं माने और गृहमंत्री अमित शाह की घोषणा के बाद ऐसे ऐसे लॉजिक दे दिए कि दो चार तो उनमें ख़ुद ऐसे थे कि बेचारा लॉजिक भी शर्मिंदा हो गया.
सवाल ये है कि वो ओवैसी जो गोली से नहीं डरे वो आख़िर Z Plus Security से क्यों डर गए? इस सवाल पर भी बहुत ज्यादा दिमाग अब क्या ही लगाना. मैटर एकदम सीधा है. ओवैसी ने अगर Z Plus Security ले ली होती तो सारा मसला ही खत्म हो जाता. क्योंकि यूपी में चुनाव हैं तो साफ है कि जहां एक तरफ ओवैसी ने तमाम तरह की बातें कहकर विक्टिम कार्ड खेला है तो वहीं वो अपने वोट बैंक विशेषकर यूपी के मुस्लिम समुदाय की सिम्पैथी लेना चाहते हैं.
बाकी बात ये है कि प्रोपोगेंडा की दुनिया है और एजेंडे की राजनीति है. ओवैसी कोई चिंटू थोड़ी हैं जो बदले से मन की आग ठंडी हो जाएगी. उन्हें तो धर्म पर आधारित राजनीति करनी है और इस तरह की राजनीति का पहला उसूल यही है कि नितांत निजी फायदे के लिए व्यक्ति को साम दाम दंड भेद एक करना आता हो.
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