पता नहीं क्यों घर का फ्रिज देखकर डर सा लगने लगा है. अब तक नहीं लगता था. बल्कि महसूस भी नहीं होता था कि वो घर में है भी. उसका रोल चौराहे के उस खंबे की तरह था जहां से मुड़ो तो सड़क आ जाती थी. ऐसा ही केस फ्रिज का भी था यानी ये जहां खड़ा हो वहां उस स्थान से किचन की दहलीज की शुरुआत होती है. पहले मुझे इसकी लाइट अच्छी लगती थी, जब ये खुलता और उसके अंदर से पीली लाइट झांकती वो उम्मीद की किरण होती और एहसास दिलाती की अगर मिड नाईट क्रेविंग हो तो बस यही वो जगह है जो भूख की तृष्णा को शांत कर सकती है. बाकी जीवन में फ्रिज खोलने के मौके कम ही मिले. और वो भी तब मिले, जब गर्मियों की शुरुआत होती. मां के साथ साथ पिता जी के भी सख्त निर्देश थे कि फ्रिज से बोतल कोई भी निकाले भरने की ड्यूटी तुम्हारी (मेरी) है तो इसलिए न फ्रिज खोलना तब ही बहुत ज्यादा अच्छा लगा और अब का तो बता ही चुका हूं. अब ये डरा रहा है.
डराए भी क्यों न? बात भी तो ऐसी ही है. शायद ही कभी दिमाग में ये ख्याल आया हो कि कहीं किसी शहर में कोई कातिल डेड बॉडी को स्टोर करने के लिए इसका इस तरह से इस्तेमाल करेगा. दो तीन दिन से पहले तक मेरे जीवन में फ्रिज एक ऐसी चीज थी जिसका कोई अस्तित्व नहीं था मगर अब... जैसा हाल है फ्रिज विलेन है. जो इसके साथ हुआ है देखते देखते, अब तो वो लोग भी जिनके घरों में इस विंटर सीजन शादी थी. वो भी इसे देखकर घबराए-घबराए, भागे-भागे फिर रहे हैं. जिन्होंने देने के लिए लिया है वो अपने को कोस रहे हैं. अपना माथा पीट रहे हैं.
जैसा कि मैंने बताया फ्रिज अब मेरे डर का पर्याय है. तो अब जब देर रात घर का कोई सदस्य इसे खोल रहा. मैं मारे डर के पसीने पसीने हो जा रहा हूं. इसकी जो पीली लाइट किसी...
पता नहीं क्यों घर का फ्रिज देखकर डर सा लगने लगा है. अब तक नहीं लगता था. बल्कि महसूस भी नहीं होता था कि वो घर में है भी. उसका रोल चौराहे के उस खंबे की तरह था जहां से मुड़ो तो सड़क आ जाती थी. ऐसा ही केस फ्रिज का भी था यानी ये जहां खड़ा हो वहां उस स्थान से किचन की दहलीज की शुरुआत होती है. पहले मुझे इसकी लाइट अच्छी लगती थी, जब ये खुलता और उसके अंदर से पीली लाइट झांकती वो उम्मीद की किरण होती और एहसास दिलाती की अगर मिड नाईट क्रेविंग हो तो बस यही वो जगह है जो भूख की तृष्णा को शांत कर सकती है. बाकी जीवन में फ्रिज खोलने के मौके कम ही मिले. और वो भी तब मिले, जब गर्मियों की शुरुआत होती. मां के साथ साथ पिता जी के भी सख्त निर्देश थे कि फ्रिज से बोतल कोई भी निकाले भरने की ड्यूटी तुम्हारी (मेरी) है तो इसलिए न फ्रिज खोलना तब ही बहुत ज्यादा अच्छा लगा और अब का तो बता ही चुका हूं. अब ये डरा रहा है.
डराए भी क्यों न? बात भी तो ऐसी ही है. शायद ही कभी दिमाग में ये ख्याल आया हो कि कहीं किसी शहर में कोई कातिल डेड बॉडी को स्टोर करने के लिए इसका इस तरह से इस्तेमाल करेगा. दो तीन दिन से पहले तक मेरे जीवन में फ्रिज एक ऐसी चीज थी जिसका कोई अस्तित्व नहीं था मगर अब... जैसा हाल है फ्रिज विलेन है. जो इसके साथ हुआ है देखते देखते, अब तो वो लोग भी जिनके घरों में इस विंटर सीजन शादी थी. वो भी इसे देखकर घबराए-घबराए, भागे-भागे फिर रहे हैं. जिन्होंने देने के लिए लिया है वो अपने को कोस रहे हैं. अपना माथा पीट रहे हैं.
जैसा कि मैंने बताया फ्रिज अब मेरे डर का पर्याय है. तो अब जब देर रात घर का कोई सदस्य इसे खोल रहा. मैं मारे डर के पसीने पसीने हो जा रहा हूं. इसकी जो पीली लाइट किसी ज़माने में मुझे अपनी तरफ खींचती थी. आज मैं उससे दूर भाग रहा हूं. कहीं जो गलती से मुझे बड़ा फ्रिज दिख रहा है. यहां बड़े से मेरा मतलब उस कलमुंहे 300 लीटर वाले फ्रिज से है. जो अब अगर गलती से भी मेरे सामने आ रहा है तो मेरे रौंगटे खड़े हो जा रहे हैं.
फ्रिज मुझे क्यों डरा रहा है इस विषय पर मुझे कुछ कहना बताना है ही नहीं लेकिन बड़ी बात नहीं कि कल की डेट में जब कोई फ्रिज लेने जाए और सोने पर सुहागा ये कि बड़ा फ्रिज लेने जाए तो उसकी ठीक वैसे ही इन्क्वायरी हो जैसी तब होती है जब हम पासपोर्ट बनवाते हैं. या फिर वैसी जांच जिसका सामना हमने तब किया हो जब कहीं किसी बैंक में लोन के लिए अप्लाई किया हो.
बाकी जैसी दहशत हाल फ़िलहाल में फ्रिज ने पैदा की कोई बड़ी बात नहीं कि कल की डेट में कोई कपल फ्रिज लेने जाए और उसमें भी लड़के को बड़ा, मजबूत और हट्टा कट्टा फ्रिज पसंद आ जाए तो काउंटर पर बैठा स्टोर मैनेजर और एक्सेक्यूटिव उसे ग्राहक की निगाह से नहीं बल्कि शक की निगाह से देखें. जैसी दहशत हमारे समाज में फ्रिज ने मचाई है कोई बड़ी बात नहीं कि कल की डेट में कोई ऐसी मॉनिटरिंग कमिटी बन जाए जो रात में 2 बजे, 3 बजे या फिर 4 बजे हमारे घरों की डोरबेल बजाए और फ्रिज कैसा है? कितना बड़ा है? उसमें क्या रखा है इसका औचक निरिक्षण करे.
कहीं ऐसा न हो कई फ्रिज लेने और वो भी 300 लीटर का फ्रिज लेने के लिए हमें घरवालों से दोस्तों से, रिश्तेदारों से, मुहल्ले वालों पड़ोसियों और अगर किराए के माकन में हों तो नोटरी में एफिडेविट देकर एनओसी लेनी पड़े. हो सकता है उपरोक्त लिखी बातें मजाक लगें लेकिन फैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा क्या ही रखना. हो कुछ भी सकता है. संभव सब है यूं भी अब तो ये मुआ यूं भी डराने लगा है.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.