कलुआ शहर से कुछ दिन के लिए गांव आया है. अब वो चट्टी पर दिन भर लिबीर लिबीर करने वाला कलुआ नहीं रहा. सोशल मीडिआ इन्फ्लुएंसर बन गया है. बताते हैं कि दो राज्यों में उसके खिलाफ मुकदमा चल रहा है. 40 हज़ार से ज्यादा उसके फॉलोवर हैं और उसके जन्मदिन पर बड़े बड़े तीसमारखां उसे बधाई सन्देश भेजते हैं. कलुआ अपने गांव की मण्डली के बीच किसी हीरो से कम नहीं है, ट्रांसफार्मर खराब होने पर उसके एक ट्वीट मात्र से ऊर्जामंत्री ने खुद 24 घंटे के अंदर बिजली सप्लाई सुचारु रूप से चालू करने के आदेश दे दिए थे.
कलुआ राजनीति भी खूब समझता है. बंगाल से लेकर कश्मीर तक के मुद्दों पर उसके ज्ञान को कौड़ा ताप गैंग बड़े चाव से सुनती है. यहाँ तक की आम बजट से लेकर आर्थिक नीतियों और किसान आंदोलन से लेकर छात्रों के मुद्दों पर भी कलुआ बेबाकी से अपनी राय रखता है. इस बार जब कलुआ गांव पहुंचा तो हर बार से ज्यादा लोग उसे गाँव में मिले. बचपन के सभी साथी जो रोज़ी के लिए आसपास के राज्यों में थे वो भी अब वापिस गांव में हैं. कुछ बुजुर्ग साथ जरूर छोड़ गए, बताते हैं पिछले महीने उन्हें हल्की खांसी, सांस लेने में तकलीफ और बुखार की समस्या थी. एक दिन सुबह अचानक खबर आयी की वो नहीं रहे. शुक्र है की उन्हें कोरोना नहीं था, क्यूंकि जिले में कोरोना के सिर्फ 12 केस ही मिले थे.
शहर के लोग ना जाने कैसी कैसी डिमांड करते रहे, आक्सीजन सिलेंडर, रेमढिसवीर, टोसुमूलीजुमैब और ना जाने क्या क्या. उसके विपरीत गांव से सब ठीक रहा, पैरासीटामाल ने अकेले लड़ाई लड़ ली. कलुआ 'इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस' पर लेख लिख चुका है. सरकारें लाखों करोड़ के लोन देकर कैसे देश खड़ा कर दे रही हैं? उसपर ज़ूम कॉल के माध्यम से वेबीनार तक कर चुका है. उसे मनोज की बंद हो चुकी चाट की दुकान छोटी समस्या लगती है. रिफाइंड के दोगुने हो चुके दाम पर रामचंदर के समोसों का छोटा होता साइज गैरजरूरी मुद्दा लगता है. महंगे तेल, महंगी DAP, महंगी सिंचाई से दोगुनी हो चुकी कृषि लागत तो नहीं दिखती, 500 रु महीने की आर्थिक मदद एक क्रांतिकारी फैसला लगता...
कलुआ शहर से कुछ दिन के लिए गांव आया है. अब वो चट्टी पर दिन भर लिबीर लिबीर करने वाला कलुआ नहीं रहा. सोशल मीडिआ इन्फ्लुएंसर बन गया है. बताते हैं कि दो राज्यों में उसके खिलाफ मुकदमा चल रहा है. 40 हज़ार से ज्यादा उसके फॉलोवर हैं और उसके जन्मदिन पर बड़े बड़े तीसमारखां उसे बधाई सन्देश भेजते हैं. कलुआ अपने गांव की मण्डली के बीच किसी हीरो से कम नहीं है, ट्रांसफार्मर खराब होने पर उसके एक ट्वीट मात्र से ऊर्जामंत्री ने खुद 24 घंटे के अंदर बिजली सप्लाई सुचारु रूप से चालू करने के आदेश दे दिए थे.
कलुआ राजनीति भी खूब समझता है. बंगाल से लेकर कश्मीर तक के मुद्दों पर उसके ज्ञान को कौड़ा ताप गैंग बड़े चाव से सुनती है. यहाँ तक की आम बजट से लेकर आर्थिक नीतियों और किसान आंदोलन से लेकर छात्रों के मुद्दों पर भी कलुआ बेबाकी से अपनी राय रखता है. इस बार जब कलुआ गांव पहुंचा तो हर बार से ज्यादा लोग उसे गाँव में मिले. बचपन के सभी साथी जो रोज़ी के लिए आसपास के राज्यों में थे वो भी अब वापिस गांव में हैं. कुछ बुजुर्ग साथ जरूर छोड़ गए, बताते हैं पिछले महीने उन्हें हल्की खांसी, सांस लेने में तकलीफ और बुखार की समस्या थी. एक दिन सुबह अचानक खबर आयी की वो नहीं रहे. शुक्र है की उन्हें कोरोना नहीं था, क्यूंकि जिले में कोरोना के सिर्फ 12 केस ही मिले थे.
शहर के लोग ना जाने कैसी कैसी डिमांड करते रहे, आक्सीजन सिलेंडर, रेमढिसवीर, टोसुमूलीजुमैब और ना जाने क्या क्या. उसके विपरीत गांव से सब ठीक रहा, पैरासीटामाल ने अकेले लड़ाई लड़ ली. कलुआ 'इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस' पर लेख लिख चुका है. सरकारें लाखों करोड़ के लोन देकर कैसे देश खड़ा कर दे रही हैं? उसपर ज़ूम कॉल के माध्यम से वेबीनार तक कर चुका है. उसे मनोज की बंद हो चुकी चाट की दुकान छोटी समस्या लगती है. रिफाइंड के दोगुने हो चुके दाम पर रामचंदर के समोसों का छोटा होता साइज गैरजरूरी मुद्दा लगता है. महंगे तेल, महंगी DAP, महंगी सिंचाई से दोगुनी हो चुकी कृषि लागत तो नहीं दिखती, 500 रु महीने की आर्थिक मदद एक क्रांतिकारी फैसला लगता है.
कलुआ एक ट्वीट के ही 5000 रु लेता है, उसे एक महीना मजदूरी कर 5000 कमा कर 5 लोगों का परिवार चलाने वालों का दुःख दर्द दिखता तो है, पर उसे भरोसा है एक दिन सब ठीक हो जाएगा, यह कष्ट कुछ दिनों का है. कलुआ व्यापारिक, आर्थिक और भौगोलिक दृष्टिकोण से आगे निकलते चीन को देखता है, पर PB-जी जैसे महत्वपूर्ण एप्स को बैन कर कैसे भारत ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया उसपर बात करने से पीछे नहीं हटता.
कलुआ असम और मिजोरम में हुई हिंसा पर चिंतित है और नेहरू जी की नीतियों से नाराज भी. कलुआ 100 रु लीटर पेट्रोल भरवाते हुए पिता की आँखों में बेबसी देखता है, पर राष्ट्रहित में दिए गए उनके योगदान पर गर्व भी महसूस करता है. कलुआ आरक्षण और सब्सिडी की राजनीति को विकास विरोधी समझता था, पर अब उसे उसका महत्त्व समझ में आने लगा है.
कलुआ कूटनीति भी खूब समझता है. जोड़ तोड़ की राजनीति के पक्ष में तर्क देने से भी पीछे नहीं हटता. कलुआ अक्सर ट्विटर पर अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं और भाषण शेयर करता है, उनके विचारों को आत्मसात करने की बातें कहता है, पर राजनीतिक मजबूरियां भी खूब समझता है. कलुआ को पता चला रबी की बुआई से ठीक पहले कुछ इलाकों में बारिश के चलते सब्जियों की फसल खराब हुई, कलुआ बाढ़ की वजह से बेघर हुए लोगों का दर्द भी समझता है. और 60 साल तक इन समस्याओं पर सोने वाले 'सिस्टम' को खूब कोसता है.
सरकारी नौकरियों में हुई कटौती की मार झेल रहे कई प्रतियोगी छात्र कलुए के मित्र भले हैं, पर अब कलुआ समझ चुका है कि कामचोर और भ्रष्ट तंत्र को समाप्त कर भारत को विश्वगुरु बनाने का यही एक तरीका है. उन छात्रों से आँख में आँख मिला कर बात तो नहीं कर सकता, पर कोरोना के वैश्विक प्रभाव पर कुछ आंकड़े देकर उनका गुस्सा जरूर कम कर देता है.
कलुए को अब गांव में अच्छा नहीं लग रहा, उसे लगता है ग्रामीण लोगों की उदासीनता इस देश को पीछे ले जा रही है, कुछ वर्ष पहले जो कलुए की हर बात पर ताली बजाते थे वो कलुए से सवाल पूछ रहे हैं. कलुआ के जवाब से अब वो संतुष्ट नहीं नज़र आते, कलुआ बड़ी पिक्चर दिखाना चाहते हैं और कुछ लोग हैं कि बुनियादी समस्याओं में ही फंस कर पूरा जीवन निकाल देना चाहते हैं.
खैर, कलुआ उन्हें माफ़ कर देता है, क्यूंकि वो उतने जागरूक नहीं है. वहीं बड़े बड़े सम्पादकों का लेख पढ़ने वाला कलुआ होशियार बन चुका है. उसे पूरा भरोसा है कि एक दिन देश जरूर समझेगा कि उसे कड़वी गोली क्यों निगलनी पड़ रही है. माताजी ने कलुए से रिश्तेदारी में एक शादी के लिए कुछ पैसे मांगे थे, पर कलुआ उनके लिए माइक्रो-वेव अवन लाया है. वो चाहता है अब उसके परिवार की जीवनशैली बदले, वो खुशियां बेक करना चाहता है.
माताजी से यह तोहफा भी हल्की मुस्कान से स्वीकार लिया, उन्हें कलुए पर गर्व है, शादी का क्या है, वो तो कहीं न कहीं से हो ही जाएगा. पिताजी ने बस स्वास्थ्य और नियमित भोजन आदि पर चिंता जाहिर की और कलुए को स्टेशन छोड़ आये. बड़े स्टेशन से तो उसका AC में रिजर्वेशन है, पर वो उसके गांव से 12 स्टेशन दूर है.
पैसेंजर गाड़ी में कलुआ टिकट लेकर बैठने की जगह खोजता रहा. कोरोना काल में भी ठसाठस भरी बोगी पर लोगों की लापरवाही पर ट्वीट किये, स्टेशन पर नया नेमप्लेट और डस्टबिन रखा है, आपका महंगा टिकट आपकी सुविधाओं को कैसे बढ़ा रहा है इसपर लेख लिखने की योजना बनाने लगा.
हां, खिड़की से बाहर ताकती एक रोती हुई बच्ची, दरवाजे के स्टैंड पर पैर लटकाये कुछ स्थानीय सब्ज़ी वाले, टॉयलेट के पास बस्ता लटकाये खड़े SSC की तैयारी कर रहे छात्र और गमछा बिछा कर दहला पक्कड़ खेलते हुए राजनीतिक पंचायत लगाए लोग, सभी को एक निगाह देख कलुआ अपने कान में हेडफोन लगाकार संगीत सुनने लगा और आँखें बंद कर ली.
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