राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बाजार के सारे प्रोडक्ट्स एक तरफ, तो पेट्रोल एक तरह. कह सकते हैं कि एकसाथ कई चीजों से लोहा लेता है अपना पेट्रोल. अब सवाल ये है कि क्या पेट्रोल हर बार भारी पड़ जाएगा? शायद लोग हां बोलें लेकिन ऐसा नहीं है और जब बात भारत के संदर्भ में हो रही हो तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. और किसी की तो छोड़िए वो बाइकें जो बिना पेट्रोल के कूड़े का ढेर हैं उन बाइकों तक ने लोकलाज की परवाह किये बगैर अपने आपको ऐसा ट्रांसफॉर्म किया है कि अपना मूल ही भूल गई हैं. पेट्रोल की कीमतों को देखते हुए लोग जुगाड़ यूनिवर्सिटी से अर्जित ज्ञान का सहारा ले रहे हैं और अपनी अपनी बाइकों में से पेट्रोल इंजन हटाकर उसे इलेक्ट्रिक इंजन में तब्दील करा रहे हैं.
नहीं सच में. हमने अपने जीवन में एक से एक विरली चीजें देखी हैं. हमने ठेले पर बिकती गरम मसाले और हल्दी वाली चाउमीन से लेकर सोयाबीन की बिरयानी और कबाब देखे हैं. हमने लोगों को अंडे से लेकर लौकी करेले टिंडे का हलवा खाते देखा है. साथ ही हमने देखे हैं वो लोग भी जो घर आए और पूरे दो घंटे बैठे मेहमान को बिन चाय पिलाए ये कहकर अलविदा कह देते हैं कि अरे बैठिए बस चाय आ ही रही होगी. जैसा हम भारतीयों का स्वभाव है, जुगाड़ टेक्नोलॉजी हमारी नस नस में है.
बाइकों से पेट्रोल इंजन हटाकर बैटरी/इलेक्ट्रिक इंजन लगाने का काम एक दो जगह नहीं, देश के तमाम शहरों में हो रहा है. तमाम शहरों में तमाम मिस्त्री हैं जिसे देखो वही हाथ में पाना, पेचकस और प्लास पकड़े अपनी अपनी तरकीबें लगा रहा है और सोच रहा है कि तेल से चल रही इस जंग में आखिर कैसे तेल को हराया जाए.
अच्छा हां बाइक को ई बाइक बनाने की ये तरकीब है बड़ी आसान. मिस्त्री...
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बाजार के सारे प्रोडक्ट्स एक तरफ, तो पेट्रोल एक तरह. कह सकते हैं कि एकसाथ कई चीजों से लोहा लेता है अपना पेट्रोल. अब सवाल ये है कि क्या पेट्रोल हर बार भारी पड़ जाएगा? शायद लोग हां बोलें लेकिन ऐसा नहीं है और जब बात भारत के संदर्भ में हो रही हो तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. और किसी की तो छोड़िए वो बाइकें जो बिना पेट्रोल के कूड़े का ढेर हैं उन बाइकों तक ने लोकलाज की परवाह किये बगैर अपने आपको ऐसा ट्रांसफॉर्म किया है कि अपना मूल ही भूल गई हैं. पेट्रोल की कीमतों को देखते हुए लोग जुगाड़ यूनिवर्सिटी से अर्जित ज्ञान का सहारा ले रहे हैं और अपनी अपनी बाइकों में से पेट्रोल इंजन हटाकर उसे इलेक्ट्रिक इंजन में तब्दील करा रहे हैं.
नहीं सच में. हमने अपने जीवन में एक से एक विरली चीजें देखी हैं. हमने ठेले पर बिकती गरम मसाले और हल्दी वाली चाउमीन से लेकर सोयाबीन की बिरयानी और कबाब देखे हैं. हमने लोगों को अंडे से लेकर लौकी करेले टिंडे का हलवा खाते देखा है. साथ ही हमने देखे हैं वो लोग भी जो घर आए और पूरे दो घंटे बैठे मेहमान को बिन चाय पिलाए ये कहकर अलविदा कह देते हैं कि अरे बैठिए बस चाय आ ही रही होगी. जैसा हम भारतीयों का स्वभाव है, जुगाड़ टेक्नोलॉजी हमारी नस नस में है.
बाइकों से पेट्रोल इंजन हटाकर बैटरी/इलेक्ट्रिक इंजन लगाने का काम एक दो जगह नहीं, देश के तमाम शहरों में हो रहा है. तमाम शहरों में तमाम मिस्त्री हैं जिसे देखो वही हाथ में पाना, पेचकस और प्लास पकड़े अपनी अपनी तरकीबें लगा रहा है और सोच रहा है कि तेल से चल रही इस जंग में आखिर कैसे तेल को हराया जाए.
अच्छा हां बाइक को ई बाइक बनाने की ये तरकीब है बड़ी आसान. मिस्त्री समुदाय की मानें तो इस अतरंगे जुगाड़ में पेट्रोल इंजन में से गियर बॉक्स निकाल दिया जाता है और बाइक का कंट्रोक सीधे एक्सिलेटर को दे दिया जाता है. जैसे ही ये ट्रांसफॉर्मेशन होता कई सौ सीसी की बाइक वेट गेन की हुई स्कूटी बन जाती है. लेकिन हां इस जुआड़ में जो सबसे बड़ी परेशानी है वो और कुछ नहीं बल्कि पैसा है. ये एक बहुत महंगा नाटक है.
तेल बचाने का ये जुआड़ वाला फार्मूला कितना कामयाब है अभी इसकी कोई ठीक ठीक जानकारी सामने नहीं आई है मगर बताया यही जा रहा है कि गर जो किसी ने 2 घंटे के लिए बैटरी चार्ज कर ली तो वो बड़ी ही आसानी के साथ 40 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकती है. वहीं अगर बैटरी को पूरी तरह से चार्ज किया जाए तो बाइक बिना रुके, बिना थके 300 किलोमीटर तक की यात्रा कर लेगी.
खैर इतनी बातें पढ़ने के बाद अगर किसी को अपनी बाइक को भारी भरकम स्कूटी बनाने का मन कर गया है तो वो भाई बंधु जान ले ये प्रोसीजर पूर्णतः इल्लीगल है. आदमी पकड़ लिया जाए तो इस लेवल का चालान कट जाएगा कि अगला अगले 2 महीनों तक का पेट्रोल खरीद ले. जान लीजिए समझ लीजिए मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के सेक्शन 52 का वो फरमान जिसमें बड़े ही साफ और सख्त लहजे में इस बात पर बल दिया गया है कि किसी भी मोटर व्हीकल में फेरबदल या छेड़छाड़ कराना कानूनी अपराध है. इसके लिए भारी जुर्माने का प्रावधान है.
हम समस्या और समाधान से पहले उसका जुगाड़ खोजते हैं. यानी जितना दिमाग हम प्लान बी पर लगाते हैं यदि उसका आधा भी प्लान ए में लगाया होता तो एक देश के रूप में हम कहीं ज्यादा सशक्त होते साथ ही हमारी इज्जत भी दोगुनी होती. चूंकि बात पेट्रोल डीजल की बढ़ी हुई कीमतों के मद्देनजर शुरू हुई है तो बताना बेहद ज़रूरी है कि देश के आम आदमी को इससे कोई मतलब नहीं है कि भारत प्रति बैरेल के हिसाब से कच्चा तेल कितने में खरीद रहा है.
उसे इस बात से मतलब है कि 10 रुपए फूंककर यदि हम पेट्रोल टंकी गए तो 30 रुपए या फिर 40 रुपए का तेल डलवाने के बाद गाड़ी कितना भागेगी. अपनी फटफटिया में तेल डलवाने टंकी पर पहुंचा ग्राहक जब 10 के 4 सिक्के निकाल के गाड़ी में 40 रुपए का तेल डलवा रहा होता है तो उसका ध्यान सिर्फ 40 रुपए के तेल पर नहीं होता. एक पूरी कैलकुलेशन होती है जो बिजली की रफ्तार से उसके दिमाग में आती है और गोली की स्पीड से चली जाती है.
आदमी वही पेट्रोल टंकी पर खड़ा खड़ा बाइक से बीवी को मायके पहुंचाने से लेकर बच्चों को स्कूल से लाने तक हर वो काम सोच लेता है जो उसके डे प्लान में प्रायॉरिटी वाले कॉलम में होते हैं. पर अफसोस अब जबकि बाइकों में से उसका मूल, उसका ओरिजिनल पेट्रोल इंजन हटाकर उसे बैटरी/ इलेक्ट्रिक इंजन से रिप्लेस किया जा रहा है तो अब ये सब चीजें किस्से और कहानियों में ही दिखाई/ सुनाई पड़ेंगी.
बाकी दाम बढ़ ही गए हैं पेट्रोल के और इसका जिम्मेदार विपक्ष ने पीएम मोदी को माना है. तो बिना इस पंक्ति के बात खत्म ही नहीं हो सकती जिसमें कवि की कल्पना बस इतनी थी कि अगर पीएम मोदी ने किया है तो कुछ सोच समझकर ही किया होगा. पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों के फायदे नोटबंदी और जीएसटी की तरह हमें आने वाले वक्त में दिखाई देंगे.
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