बड़ी हसरत थी पाकिस्तान की कि उसे भी भ्रष्टाचार के दीमक से निजात दिलाने कोई अण्णा हजारे बने. अब अण्णा हजारे तो वहां पैदा नहीं हो पाए हां, उन्हें अपना केजरीवाल जरूर मिल गया. वैसे भी 2016 की वसंत ऋतु में जब इमरान खान दिल्ली आए थे तो अरविंद केजरीवाल से मिले थे. तब केजरीवाल ने उनको अपने सरकारी 'बंगले' में राजनीति और जीत के गुरुमंत्र दिये थे. ये अलग बात है कि गुरुमंत्र देने के बाद गुरु गुड़ ही रह गये और चेला शक्कर हो गया. यानी केजरीवाल सीएम रह गये और इमरान पीएम बनने की राह पर आगे बढ़ चले.
हालांकि दोनों की राजनीति के तौर तरीके, लटके-झटके और मकसद बिल्कुल एक जैसा है. दोनों ने आंदोलन के जरिये जनता से सीधी बात की. केजरीवाल वाया आरटीआई और आंदोलन सत्ता तक पहुंचे तो इमरान ने साफ कर दिया कि सत्ता हासिल करना ही उनका मकसद है. दोनों की महत्वाकांक्षा सत्ता हासिल करने की ही है. डायरेक्ट डेमोक्रेसी की बातें बनाने वाले इन दोनों का फोकस भी समाज के निचले और शहरी मध्य वर्ग पर ही रहा. क्योंकि इन पर डोरे डालना सबसे आसान होता है. थोड़े से से ही ये खुश हो जाते हैं. यानी ये कम इन्वेस्टमेंट में ज्यादा रिटर्न वाले बांड हैं. गोल्ड बांड... हीरा है सदा के लिए...
अब देखिये.. इमरान भी बातें उसी अंदाज में बना रहे हैं जैसे केजरीवाल बोलते रहे हैं. बस अभी तक गीत नहीं गाया है...इंसान का इंसान से हो भाई चारा....हालांकि जीतने के बाद देश से खिताब करते हुए इमरान ने ये जरूर कहा है कि उनके हाथ में देश की कमान आयेगी तो अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का ज्यादा खयाल रखा जाएगा. केजरीवाल भी इसी के हामी रहे हैं. तभी तो कभी गोल टोपी लगाये दिखते हैं तो कभी सरदारों वाली पगड़ी में भी चमके हैं.
आम आदमी पार्टी की तरह ही तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी...
बड़ी हसरत थी पाकिस्तान की कि उसे भी भ्रष्टाचार के दीमक से निजात दिलाने कोई अण्णा हजारे बने. अब अण्णा हजारे तो वहां पैदा नहीं हो पाए हां, उन्हें अपना केजरीवाल जरूर मिल गया. वैसे भी 2016 की वसंत ऋतु में जब इमरान खान दिल्ली आए थे तो अरविंद केजरीवाल से मिले थे. तब केजरीवाल ने उनको अपने सरकारी 'बंगले' में राजनीति और जीत के गुरुमंत्र दिये थे. ये अलग बात है कि गुरुमंत्र देने के बाद गुरु गुड़ ही रह गये और चेला शक्कर हो गया. यानी केजरीवाल सीएम रह गये और इमरान पीएम बनने की राह पर आगे बढ़ चले.
हालांकि दोनों की राजनीति के तौर तरीके, लटके-झटके और मकसद बिल्कुल एक जैसा है. दोनों ने आंदोलन के जरिये जनता से सीधी बात की. केजरीवाल वाया आरटीआई और आंदोलन सत्ता तक पहुंचे तो इमरान ने साफ कर दिया कि सत्ता हासिल करना ही उनका मकसद है. दोनों की महत्वाकांक्षा सत्ता हासिल करने की ही है. डायरेक्ट डेमोक्रेसी की बातें बनाने वाले इन दोनों का फोकस भी समाज के निचले और शहरी मध्य वर्ग पर ही रहा. क्योंकि इन पर डोरे डालना सबसे आसान होता है. थोड़े से से ही ये खुश हो जाते हैं. यानी ये कम इन्वेस्टमेंट में ज्यादा रिटर्न वाले बांड हैं. गोल्ड बांड... हीरा है सदा के लिए...
अब देखिये.. इमरान भी बातें उसी अंदाज में बना रहे हैं जैसे केजरीवाल बोलते रहे हैं. बस अभी तक गीत नहीं गाया है...इंसान का इंसान से हो भाई चारा....हालांकि जीतने के बाद देश से खिताब करते हुए इमरान ने ये जरूर कहा है कि उनके हाथ में देश की कमान आयेगी तो अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का ज्यादा खयाल रखा जाएगा. केजरीवाल भी इसी के हामी रहे हैं. तभी तो कभी गोल टोपी लगाये दिखते हैं तो कभी सरदारों वाली पगड़ी में भी चमके हैं.
आम आदमी पार्टी की तरह ही तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के भी नाज और अंदाज तो वही हैं जो 2015 में केजरीवाल के थे. बकौल कुमार विश्वास 'शपथ से पहले इमरान खान कह रहे हैं मैं बंगला नहीं लूंगा जी', यानी यहां भी वही सब वादे और दावे. सिक्योरिटी नहीं लूंगा, लंबा काफिला साथ नहीं होगा कोई लाव लश्कर नहीं. दिल्ली भी ऐसे दावों की गवाह रही और उन दावों की हकीकत की भी.
इतिहास के पन्ने पलटें तो इमरान और केजरीवाल के बयान, सोच और राजनीतिक के पैंतरों में काफी समानता दिखती है. इमरान भी केजरीवाल की तरह राजनीति और समाज की गंदगी साफ करने आये हैं. सफाई के दावेदार केजरीवाल की पार्टी का निशान झाड़ू है तो इमरान भी विपक्ष को ऑलआउट करने की गरज से क्रिकेट का बल्ला निशान के साथ आगे बढ़े. दोनों सुशासन की बात कहते हैं. आम आदमी पार्टी और तहरीक-ए-इंसाफ दोनों का दावा है कि वो पुराने ढर्रे वाली राजनीतिक पार्टियों को ढेर कर देंगे. जनता को जगाएंगे और समाज व राजनीति में सालों से पनप रहे भ्रष्टाचार के कचरे को साफ करेंगे. तमाम आदर्शवाद...जनता के मशविरे से सारा काम करेंगे, साफ सुथरा शासन देंगे. सारे अधिकार हासिल कर लेंगे. लेकिन लोकपाल की चर्चा करने वालों को बाहर भगा देंगे.
मीडिया को लेकर भी दोनों के ख्याल एक जैसे ही हैं. इधर केजरीवाल भी मीडिया से खफा-खफा दिखते हैं तो इमरान ने भी जीतते ही भारतीय मीडिया पर ही निशाना साध दिया. इमरान बोले भारतीय मीडिया का रवैया निराश करने वाला था. क्योंकि भारतीय मीडिया ने इमरान खान के मिजाज को भारत विरोधी माना था. हालांकि भारत से रिश्ते बेहतर रखने की बात बनाने वाले इमरान ने जब अपनी प्राथमिकता बताई तो भारत पांचवें पायदान पर था. भारत से ऊपर, चीन, अफगानिस्तान, अमेरिका और ईरान को रखा.
इमरान को भारतीय मीडिया की टिप्पणियां चुभती रहीं. वो भूल गये कि पाकिस्तानी मीडिया उनके कितने कपड़े फाड़ रहा था. यानी अपनी छोड़ कर दूसरों की पंचायत में केजरीवाल की भी दिलचस्पी रहती है और उधर इमरान भी अपने यहां के मीडिया में हो रही आलोचनाओं से बेपरवाह हैं लेकिन भारतीय मीडिया पर तबसरा करने से नहीं चूके.
हारने पर केजरीवाल को भी ईलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन बेईमान लगने लगती है. लेकिन जीतते ही सब कुछ भाने लगता है. इमरान भी पिछले चुनाव में हारे तो धांधली का राग अलाप रहे थे. लेकिन इस बार उनको लगता है सब कुछ सही हुआ है. जिनको शिकायत है वो जांच करा लें. यानी मीठा मीठा गप्प गप्प और कड़वा कड़वा थू थू. अपने फायदे की बात हो तो सब कुछ साफ सुथरा. मोदी या नवाज को फायदा हो तो रायता तैयार है.
फिलहाल तो नया मुल्ला बने इमरान प्याज ज्यादा खा रहे हैं. अगर दिल्ली की तरह ही राजनीति और समाज में गहरे तक धंसी भ्रष्टाचार की दीमक साफ नहीं हुई तो... क्या-क्या खाएंगे...?
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