हमें अहमदाबाद आए हुए पूरे इक्कीस बालिग वर्ष हो चुके हैं. बीते वर्षों में इस शहर और प्रदेश के समस्त गुणधर्मों को अपनी अंतरात्मा में चस्पा कर लिया है हमने. यहां की बुराई हमसे तनिक भी बर्दाश्त नहीं होती जी! इसीलिए जब ये खबर हमारे कानों में पड़ी कि दोपहर में सोने के कारण एक महिला से उसके पति और ससुराल वालों ने मारपीट की, तो हमारी आंखों में ही लालिमा गहरी नहीं हुई बल्कि कानों से भी खून के फव्वारे बह निकले. मतलब हद्द ही कर दी इन लोगों ने तो! सबसे पहली बात तो ये कि किसी स्त्री से मारपीट करने का दुस्साहस कैसे किया उन दुष्टों ने. और दूसरी सख्त आपत्ति इस बात से भी है कि दोपहर में सोना कोई अपराध है क्या? मतलब इंसान काम तो खूब करे, पर आराम नहीं! वो भी गुजरात में? ओ हैलो, तुमको यहां के कायदे-कानून नहीं मालूम क्या? वाह जी वाह! ये तो महानता का नेक्स्ट लेवल ही रच दिया, ससुराल वालों ने. क्रोध के साथ आश्चर्य रस का भाव इसलिए भी विकसित हो रहा कि यह उसी प्रदेश का शहर है जहां हमने दोपहर में दुकानदारों को भी निश्चिंत भाव से सोते देखा है.
मल्लब आप आराम से प्रवेश करके चाहे जितनी दुकान लूट लो पर बंदा न उठने वाला. अब ये अलग बात है कि यहां के लोग ईमानदार हैं और चोर-उचक्कों के लिए सीसीटीवी कैमरा पान वालों ने भी लगवाए हुए हैं. अच्छा, एक विषयेतर जानकारी भी ले लीजिए कि यहां 'पान पार्लर' होते हैं भिया. आप तो स्टैंडर्ड का लेवल देखते जाओ बस!
एक हमारे टेलर काका हैं, जो रिपेयरिंग का काम करते हैं. वो सुबह 9 बजे मशीन लेकर बैठते हैं. 12 बजे खाना खाकर सो जाते हैं और फिर 2 बजे उठते हैं. आदरणीय अपन को पूरे 20 सालों से जानते हैं. कहने का तात्पर्य यह कि अपन उनके प्रिय, भरोसेमंद और बिना चिकचिक के पैसे...
हमें अहमदाबाद आए हुए पूरे इक्कीस बालिग वर्ष हो चुके हैं. बीते वर्षों में इस शहर और प्रदेश के समस्त गुणधर्मों को अपनी अंतरात्मा में चस्पा कर लिया है हमने. यहां की बुराई हमसे तनिक भी बर्दाश्त नहीं होती जी! इसीलिए जब ये खबर हमारे कानों में पड़ी कि दोपहर में सोने के कारण एक महिला से उसके पति और ससुराल वालों ने मारपीट की, तो हमारी आंखों में ही लालिमा गहरी नहीं हुई बल्कि कानों से भी खून के फव्वारे बह निकले. मतलब हद्द ही कर दी इन लोगों ने तो! सबसे पहली बात तो ये कि किसी स्त्री से मारपीट करने का दुस्साहस कैसे किया उन दुष्टों ने. और दूसरी सख्त आपत्ति इस बात से भी है कि दोपहर में सोना कोई अपराध है क्या? मतलब इंसान काम तो खूब करे, पर आराम नहीं! वो भी गुजरात में? ओ हैलो, तुमको यहां के कायदे-कानून नहीं मालूम क्या? वाह जी वाह! ये तो महानता का नेक्स्ट लेवल ही रच दिया, ससुराल वालों ने. क्रोध के साथ आश्चर्य रस का भाव इसलिए भी विकसित हो रहा कि यह उसी प्रदेश का शहर है जहां हमने दोपहर में दुकानदारों को भी निश्चिंत भाव से सोते देखा है.
मल्लब आप आराम से प्रवेश करके चाहे जितनी दुकान लूट लो पर बंदा न उठने वाला. अब ये अलग बात है कि यहां के लोग ईमानदार हैं और चोर-उचक्कों के लिए सीसीटीवी कैमरा पान वालों ने भी लगवाए हुए हैं. अच्छा, एक विषयेतर जानकारी भी ले लीजिए कि यहां 'पान पार्लर' होते हैं भिया. आप तो स्टैंडर्ड का लेवल देखते जाओ बस!
एक हमारे टेलर काका हैं, जो रिपेयरिंग का काम करते हैं. वो सुबह 9 बजे मशीन लेकर बैठते हैं. 12 बजे खाना खाकर सो जाते हैं और फिर 2 बजे उठते हैं. आदरणीय अपन को पूरे 20 सालों से जानते हैं. कहने का तात्पर्य यह कि अपन उनके प्रिय, भरोसेमंद और बिना चिकचिक के पैसे देने वाले स्थायी कस्टमर हैं. लेकिन हमारी क्या मज़ाल जो 12 से 2 के बीच उनकी सिलाई मशीन के सामने से भी गुजर जाएं!
एक बार ये भीषण गलती किये थे, कि घर के कामों से निबटे और 12.10 हो गए. अपन ये सोच उचकते हुए काका के पास चले गए कि वहां से आकर खाना खाके हम मासूम सी झपकी ले लेंगे. ओहोहो! वहां जाकर जो हुआ कि क्या ही कहूं!
ऐसी घनघोर बेइज्जती तो कभी न हुई रे! काका खाना खाकर बस लेटे ही थे कि अपन खीखी करते उधर जा खड़े हुए. शब्दों में अतिरिक्त मुलायमियत का छौंक लगाते हुए कहा, 'काका, कपड़े....!' अभी बात गले से निकल मुंह से गुज़र, ज़बान की गलियों से पूरी सरक ही रही थी कि दन्न से काका का जवाब आया, '2 बजे बाद आना. ये मेरा सोने का टाइम है'.
हमने हिम्मत जुटाते हुए पुनः आवेदन पत्र आगे बढ़ाया कि 'अभी दे दीजिए न प्लीज!' उन्होंने मेरी बात का जवाब न देकर दूसरी तरफ मुंह फेर लिया. हमें तत्काल ही यह दिव्य जानकारी प्राप्त हो गई कि अपन घनघोर वाले बेइज्जत हो चुके हैं. अब क्या करते! चुपचाप अपना यही मौलिक मुंह लेकर घर लौट आए.
घर आकर खाना तो खा लिया पर उस दिन झपकी को 2 बजे तक जिस तरह कंट्रोल किया न, उसका असर आज भी हमारी दिनचर्या पर दिख रहा है. दिन तो क्या अब रात की नींद भी गायब हैं. हां, तबसे अपने हाथों से अपने ही दोनों कान पकड़कर तौबा किये हैं कि किसी की दिन की नींद डिस्टर्ब नहीं करनी है.
अब जब ये सोने को लेकर मारपीट वाली खबर देखती हूं तो हैरत होती है कि भिया, बस संविधान में ही लिखने से रह गया वरना यहां तो दोपहर में सब सोते हैं. हमारे अड़ोस-पड़ोस में भी सन्नाटा छाया होता है. तबहि तो हम दुपहरिया में लिख पाते हैं. चोर जी, अगर आप ये पढ़ रहे हों तो प्लीज हमारे मोहल्ले को लूटने मत आ जाना!
अच्छा! ये बात तो तय है कि गुजरात में विकास बहुत तेजी से हो रहा है और बस अंधाधुंध होता ही चला जा रहा है. ये न तो किसी के रोकने से रुका है और न ही आगे कभी रुकेगा. इसकी दिल कशिश रफ़्तार देख हम न केवल आनंदित बल्कि भीतर तक आश्चर्यचकित भी हैं. यही कारण है कि जब इस चमकीली तस्वीर पर धूल के कण भी दिखने लगें तो जी बेचैन हो उठता है.
हमें याद है कि लॉकडाउन के समय गुजरात के बड़ौदा मे लूडो में हारने के कारण एक् पति ने अपनी पत्नी को पीट दिया था. तब भी हमें बहुत शर्मिंदगी हुई थी और बचपन में भाई के साथ लूडो को बीच में से चीरते हुए के तमाम दृश्य आंखों में तैरने लगे थे. भई, अब बस करो! ये सब किस्से सिर्फ़ तुमको ही नहीं सबको जलील करते हैं. जहां भी रहो, मोहब्बत से रहो. अपना तो एक ही नारा है, 'सोओ और चैन से सोने दो!'
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