भोलापन और उसकी पराकाष्ठा क्या है? इस छोटे से सवाल के एक लाख जवाब हो सकते हैं लेकिन कोई मुझसे पूछे तो बिना 1 मिनट गंवाए मेरा जवाब होगा भरतीय रेलवे और उसके अतरंगे नियम. तो गुरु ऐसा है कि रेलवे से जुड़ी खबरें अब तक रोज की बात थी. लेकिन जिस तेजी से रेलवे नियमों में फेरबदल कर रहा है, पूरी गारंटी है हमारी कि उतनी तेजी से कोबरा भी अपनी केंचुल नहीं बदलता. बात बाकी ये है कि बदलाव से ही नए का सृजन होता है लेकिन मजा तब है जब बदलाव रचनात्मक हो ये क्या ही इलाहाबाद को आदमी प्रयागराज कर दे और गरीब आदमीसिविल लाइन पर पहले की तरह जाम से निकलने के लिए कभी रिक्शा तो कभी ई रिक्शा से संघर्ष करे. मित्रों मुद्दा इलाहाबाद नहीं बल्कि रेलवे है तो पहले नए नियम से जुड़ी खबर जान लीजिए.
असल में कई बार ऐसा होता है कि हमें बिना किसी पूर्व निर्धारित प्लानिंग के अचानक ही रेल यात्रा करनी पड़ जाती है. स्थिति जब ऐसी हो तो ट्रेन में रिज़र्वेशन मिलने का सवाल ही नहीं पैदा होता. और कहीं त्योहार हो तो हालात कैसे होते हैं कहने बताने की जरूरत ही नहीं है सब जानते हैं कि क्या होता है. आदमी की किस्मत है गर जो उसे तत्काल का टिकट मिल जाए. जिन लोगों ने भी अपने जीवन में इसे भोगा होगा जानते होंगे कि पीक टाइम या त्योहारों में ट्रेन में सफर करने के लिए हमें और आपको कौन कौन से पापड़ नहीं बेलने पड़ते.
आज़ादी के इतने साल बाद अब जाकर रेलवे ने इसकी सुध ली है और अपनी तरह का अनोखा नियम बनाया है.रेलवे कह रहा है कि अगर आपके पास कंफर्म रेलवे टिकट नहीं है या आपने रिज़र्वेशन नहीं करवाया है तो भी आप ट्रेन में सफ़र कर सकते हैं. भरतीय रेलवे के अनुसार अगर आपके पास टिकट और रिजर्वेशन दोनों ही नहीं है और...
भोलापन और उसकी पराकाष्ठा क्या है? इस छोटे से सवाल के एक लाख जवाब हो सकते हैं लेकिन कोई मुझसे पूछे तो बिना 1 मिनट गंवाए मेरा जवाब होगा भरतीय रेलवे और उसके अतरंगे नियम. तो गुरु ऐसा है कि रेलवे से जुड़ी खबरें अब तक रोज की बात थी. लेकिन जिस तेजी से रेलवे नियमों में फेरबदल कर रहा है, पूरी गारंटी है हमारी कि उतनी तेजी से कोबरा भी अपनी केंचुल नहीं बदलता. बात बाकी ये है कि बदलाव से ही नए का सृजन होता है लेकिन मजा तब है जब बदलाव रचनात्मक हो ये क्या ही इलाहाबाद को आदमी प्रयागराज कर दे और गरीब आदमीसिविल लाइन पर पहले की तरह जाम से निकलने के लिए कभी रिक्शा तो कभी ई रिक्शा से संघर्ष करे. मित्रों मुद्दा इलाहाबाद नहीं बल्कि रेलवे है तो पहले नए नियम से जुड़ी खबर जान लीजिए.
असल में कई बार ऐसा होता है कि हमें बिना किसी पूर्व निर्धारित प्लानिंग के अचानक ही रेल यात्रा करनी पड़ जाती है. स्थिति जब ऐसी हो तो ट्रेन में रिज़र्वेशन मिलने का सवाल ही नहीं पैदा होता. और कहीं त्योहार हो तो हालात कैसे होते हैं कहने बताने की जरूरत ही नहीं है सब जानते हैं कि क्या होता है. आदमी की किस्मत है गर जो उसे तत्काल का टिकट मिल जाए. जिन लोगों ने भी अपने जीवन में इसे भोगा होगा जानते होंगे कि पीक टाइम या त्योहारों में ट्रेन में सफर करने के लिए हमें और आपको कौन कौन से पापड़ नहीं बेलने पड़ते.
आज़ादी के इतने साल बाद अब जाकर रेलवे ने इसकी सुध ली है और अपनी तरह का अनोखा नियम बनाया है.रेलवे कह रहा है कि अगर आपके पास कंफर्म रेलवे टिकट नहीं है या आपने रिज़र्वेशन नहीं करवाया है तो भी आप ट्रेन में सफ़र कर सकते हैं. भरतीय रेलवे के अनुसार अगर आपके पास टिकट और रिजर्वेशन दोनों ही नहीं है और आपका कहीं जाना बहुत जरूरी है तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है आप आसानी से जा सकते हैं. इसके लिए आपके पास बस प्लेटफॉर्म टिकट होना चाहिए.
मतलब आदमी के पास प्लेटफॉर्म टिकट होना चशिये आप ट्रेन में चढ़ सकते हैं लेकिन ट्रेन में पहुंचते साथ ही आपको ट्रेन के टीटीई से संपर्क साधना होगा. टीटीई गन्तव्य तक का टिकट आसानी से बना देंगे. रेलवे की तरफ से ये भी कहा गया है कि ऐसी स्थिति में आपको 250 रुपये पेनाल्टी चार्ज के साथ यात्रा का कुल किराया जोकर टीटीई को देना होगा और आपको आपका टिकट मिल जाएगा.
लेकिन हां इस तरह टिकट बनवाने में रेलवे की तरफ से कुछ टर्म और कंडीशन भी लगाई गई है. रेलवे कह रहा है कि ट्रेन में सीट खाली नहीं होने पर वो आपको रिजर्व सीट देने से मना कर सकते हैं. लेकिन क्योंकि आपके पास प्लेटफॉर्म टिकट होगा इसलिए घबराने वाली बात कुछ नहीं है.
गौरतलब है कि यात्री को उसी स्टेशन से किराया चुकाना होगा, जहां से उसने प्लेटफॉर्म टिकट लिया है. किराया वसूलते वक्त डिपार्चर स्टेशन भी उसी स्टेशन को माना जाएगा और सबसे बड़ी बात कि आपको किराया भी उसी श्रेणी का देना होगा जिसमें आप सफर कर रहे होंगे.
जैसा कि हमने ऊपर ही इस बात का जिक्र किया था कि किसी नए सृजन के लिए बदलाव जरूरी है और नाजा तब है जब बदलाव नया हो रचनात्मक हो. भारतीय रेलवे के इस नए नियम के बाद एक सवाल ये है कि आखिर इस नियम में नया क्या है? प्लेटफॉर्म टिकट वाला क्लॉज छोड़ दें तो बिना टिकट लिए टीटीई से मिलने की परंपरा पुरानी है देश में.
याद कीजिये अपनी रेल यात्राओं को. कई बार आपने टीटीई से मुखातिब लोगों को कहते सुना होगा - अंकल सुनिए प्लीज या फिर लोगों को बाथरूम के पास टीटीई से बतियाते देखा होगा. हो सकता है आपने लोगों को टीटीई सर को कुछ पैसे देकर मामला सेटल करते हुए भी देखा हो.
बात सीढ़ी और एकदम साफ़ है बिना टिकट यात्रा करने वाले लोगों के लिए जो नया नियम इंडियन रेलवे ने बनाया है उस भोलेपन के लिए सरकार और रेलवे दोनों पर सदके जाने का मन करता है बाकी जैसा करप्शन का कीड़ा हम भारतीयों के अंदर है इस बात में कोई शक नहीं है कि टीटीई अंकल को छोटी दूरी की यात्रा के लिए 100 / 200 और लम्बी दूरी के लिए 500 देने वाला खेल अब और मजबूती से चलेगा. डंके की चोट पर चलेगा और बिना किसी डर के चलेगा.
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