फुरसत का शहर है लखनऊ. मतलब लोगों में इतनी फुरसत है कि हज़रतगंज और गोमतीनगर वाले को तो छोड़िये काकोरी, मलिहाबाद, माल, बीकेटी रहने वाला टैक्सी नहीं तो फिर ई रिक्शा करके अमौसी एयरपोर्ट जाने में गुरेज नहीं करता. नहीं उसे कोई काम वाम नहीं होता. उसे बस मुंह में कमला पसंद फंसाकर मेट्रो में बैठकर लखनऊ दर्शन करना होता है. भले ही आप अख़बारों या वेब साइटों में पढ़ें कि किसी और शहर की तरह लखनऊ विकास के पथ पर दौड़ रहा हो लेकिन सच्चाई ये है कि बालागंज में रहने वाला चौक तक ब्रिस्क वॉकिंग इसलिए करता है कि वो गोल दरवाजे के अंदर जाकर सेवक राम की कचौड़ी खा ले. देसी घी वाली जलेबी के साथ. यही हाल अमीनाबाद वाले का है. चाहे दुर्गा और अजय के हों या रत्तीलाल के लखनऊ में खस्ते इसी लिए धड़ल्ले से बिक इसी लिए रहे हैं क्योंकि लोगों की प्रियोरिटी उन्हें फुरसत से खाना है. लखनऊ का आदमी कितना शौक़ीन और किस हद तक तसल्लीबक्श है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि Petrol Price Rise वाले इस दौर में 15 रूपये की शर्मा की चाय पीने के लिए वो मटियारी और इंजीनियरिंग कॉलेज से लालबाग़ आ जाता है और उसे इस बात की कोई चिंता नहीं होती कि 15 रूपये की चाय के चक्कर में उसे 100 या 120 का पेट्रोल फूंकना होगा.
हो सकता है कि इतनी बातें सुनकर औरों को हंसी आए और अपने लखनऊ का कोई भाई बंधू गंभीर रूप से आहत हो जाए. तो गुरु ऐसा कि यहां हमें इस बात को समझना होगा कि लखनऊ की बुराई नहीं हो रही. बस बात लखनऊ की तासीर की है. इस बात को ऐसे समझिये कि दिल्ली के तमाम लोग अपनी अपनी नौकरी के लिए गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद, नॉएडा जाते हैं और उनके माथे पर कोई शिकन नहीं. वहीँ लखनऊ के आदमी का मिजाज कुछ ऐसा कि अगर...
फुरसत का शहर है लखनऊ. मतलब लोगों में इतनी फुरसत है कि हज़रतगंज और गोमतीनगर वाले को तो छोड़िये काकोरी, मलिहाबाद, माल, बीकेटी रहने वाला टैक्सी नहीं तो फिर ई रिक्शा करके अमौसी एयरपोर्ट जाने में गुरेज नहीं करता. नहीं उसे कोई काम वाम नहीं होता. उसे बस मुंह में कमला पसंद फंसाकर मेट्रो में बैठकर लखनऊ दर्शन करना होता है. भले ही आप अख़बारों या वेब साइटों में पढ़ें कि किसी और शहर की तरह लखनऊ विकास के पथ पर दौड़ रहा हो लेकिन सच्चाई ये है कि बालागंज में रहने वाला चौक तक ब्रिस्क वॉकिंग इसलिए करता है कि वो गोल दरवाजे के अंदर जाकर सेवक राम की कचौड़ी खा ले. देसी घी वाली जलेबी के साथ. यही हाल अमीनाबाद वाले का है. चाहे दुर्गा और अजय के हों या रत्तीलाल के लखनऊ में खस्ते इसी लिए धड़ल्ले से बिक इसी लिए रहे हैं क्योंकि लोगों की प्रियोरिटी उन्हें फुरसत से खाना है. लखनऊ का आदमी कितना शौक़ीन और किस हद तक तसल्लीबक्श है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि Petrol Price Rise वाले इस दौर में 15 रूपये की शर्मा की चाय पीने के लिए वो मटियारी और इंजीनियरिंग कॉलेज से लालबाग़ आ जाता है और उसे इस बात की कोई चिंता नहीं होती कि 15 रूपये की चाय के चक्कर में उसे 100 या 120 का पेट्रोल फूंकना होगा.
हो सकता है कि इतनी बातें सुनकर औरों को हंसी आए और अपने लखनऊ का कोई भाई बंधू गंभीर रूप से आहत हो जाए. तो गुरु ऐसा कि यहां हमें इस बात को समझना होगा कि लखनऊ की बुराई नहीं हो रही. बस बात लखनऊ की तासीर की है. इस बात को ऐसे समझिये कि दिल्ली के तमाम लोग अपनी अपनी नौकरी के लिए गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद, नॉएडा जाते हैं और उनके माथे पर कोई शिकन नहीं. वहीँ लखनऊ के आदमी का मिजाज कुछ ऐसा कि अगर निशातगंज का आदमी नौकरी के लिए चारबाग जा रहा है तो ये उसके लिए एक टास्क है और तब उसका एटीट्यूड देखने लायक होता है.
जिक्र शहर की तासीर का हुआ है और फुरसत का हुआ है. तो इतना जान लीजिये कि यहां लोग सिर्फ पराठे खाने फ़ैजाबाद, सीतापुर और न जाने कहां कहां चले जाते हैं. ध्यान रहे हर शहर का अपना एक मनोविज्ञान होता है जो ये बताता है कि शहर कैसे है? लोग कैसे हैं? उनकी फितरत क्या है? ऐसे में जब हम बात लखनऊ की करें तो यहां काशी की तरह न तो फक्कड़पन है और न ही मेरठ और मुज़फ्फरनगर की तरह किसी तरह का कोई अक्खड़पन. लखनऊ का आदमी अलग है. पहले आप पहले आप कहने वाला. अमा हो जाएगा का राग अलापने वाला.
अच्छा हां इतनी बात हो गयी शहर ए लखनऊ पर लेकिन हमने कॉन्टेक्स्ट नहीं बताया. तो मैटर है आईपीएल, आईपीएल में अपने लखनऊ की टीम यानी लखनऊ सुपर गायंट्स और टीम के कप्तान के एल राहुल. असल में हुआ कुछ यूं है कि लखनऊ सुपर जायंट्स के कप्तान केएल राहुल पर मुंबई इंडियंस (MI) के खिलाफ खेले गए आईपीएल मैच में 24 लाख रुपये का जुर्माना लगा है. क्यों? वजह है स्लो ओवर रेट. बताया जा रहा है कि इस सीजन में ये दूसरी बार है जब लखनऊ के कप्तान के रूप में के एल राहुल ने इतना बड़ा क्राइम किया है. बताते चलें कि अभी कुछ दिन पहले ही इसी स्लो ओवर रेट के कारण केएल राहुल पर 12 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था.
बात जुर्माने की चली है तो हमें आईपीएल के उस बयान पर भी नजर डालनी होगी जिसमें कहा गया था कि,'केएल राहुल पर 24 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया और प्लेइंग इलेवन के बाकी सदस्यों पर 6 लाख रुपये या मैच फीस का 25% जुर्माना लगाया गया है.'
जैसा कि हम बता चुके हैं इस सीजन में ये दूसरी बार हुआ है जब केएल राहुल स्लो ओवर रेट के दोषी पाए गए हैं. वहीं कहा ये भी गया है कि अगर राहुल ने फिर ऐसी गुस्ताखी की तो टीम लखनऊ के कप्तान पर एक मैच का बैन लगा दिया जाएगा. भले ही इस जीत के साथ पॉइंट्स टेबल में लखनऊ चौथे नंबर पर आ गई हो लेकिन मामले के मद्देनजर खूब हो हल्ला हो रहा है और बतौर कप्तान केेएल राहुल की जमकर आलोचना हो रही है.
अब सवाल ये है कि आखिर आलोचना हो ही क्यों रही है. अगर वाक़ई कोई अपने को लखनवी कहलाने का हकदार है तो वो और कोई नहीं बल्कि केएल राहुल हैं. केएल राहुल ने एक कप्तान के रूप में वही किया (वही स्लो ओवर रेट) है जो लखनऊ का कोई आरामतलब, पूर्णतः फुर्सत वाला तसल्लीबख्श आदमी करता. दुनिया करे तो करे मगर टीम लखनऊ और ओवर रेट को देखकर यदि कोई लखनऊ वाला आहत है तो वो अपने दिमाग से आलोचना को निकाल दे और खुलेमन से टीम लखनऊ पर गर्व करे.
हम फिर से इस बात को कह रहे हैं लखनऊ अलग मिजाज का शहर है और अगर इसे समझना हो तो हमें कहीं दूर नहीं जाना हम सत्यजीत रे की फिल्म शतरंज के खिलाडी देख सकते हैं. फिल्म में जो लखनऊ दिखाया गया है वही लखनऊ आज भी है. हां बस लोगों के कपडे बदल गए हैं.
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