कुछ दिन पहले मुझसे किसी ने सवाल किया पाप क्या है ? पाप की सजा क्या है ? मैंने सोचने में दो मिनट भी नहीं लगाए और झट से उत्तर दे दिया. मैंने कहा किसी भी यात्रा के दौरान ट्रेन (Train) में पेंट्री वाले भइया से खाना खरीदना पाप है. साथ ही सजा पर पूछे गए सवाल पर मेरा जवाब था किसी से रेलवे की पेंट्री का खाना (Railway Food ) (असल बात ये है कि वो खाना कभी था ही नहीं) खाने को कहना. न मैं कालिदास हूं, न रसखान. न मैं पिकासो हूं. गर जो होता अब तक न जाने कितने महाकाव्य और पेंटिंग्स मैंने सिर्फ रेलवे के खाने को सोच कर रच देने थे. सच में जहर होता है रेलवे का खाना. पानी वाली दाल. ये मोटे मोटे छोटे छोटे चावल. कच्ची सब्जी जली नहीं तो फिर गीली रोटी. रेलवे का खाना जुल्म है. अत्याचार है. शोषण है. इतनी बातें हो गयीं अब आपके दिमाग में बात आएगी कि हम इतनी बात रेलवे के खाने पर क्यों कर रहे ? सवाल अच्छा है और जवाब उससे भी कहीं ज्यादा अच्छा है. रेलवे ने अपने इस जहर, जिसे देश की जनता 'खाना' समझती है उसके रेट बढ़ा दिए हैं (Price Rise In Train Food).
रेलवे ने ट्रेन में परोसे जा रहे खाने के दामों में वृद्धि कर दी है
एक ऐसे वक़्त में जब क्या हो जाए किसी को नहीं पता. रेलवे का इस तरह दाम बढ़ाना कई मायनों में चकित करने वाला है. मामले के मद्देनजर रेलवे बोर्ड में पर्यटन एवं खान-पान विभाग के निदेशक की तरफ से सर्कुलर भी जारी कर दिया गया है.
सर्कुलर के मुताबिक, राजधानी, शताब्दी और दुरंतो ट्रेनों में चाय, नाश्ता एवं खाना महंगा होने जा रहा है. ध्यान रहे कि इन ट्रेनों की टिकट लेते वक्त ही चाय, नाश्ते और खाने का पैसा देना होता है.
हाई प्रोफाइल ट्रेनों में कुछ यूं बढ़े हैं खाने के दाम
हम आम आदमी हैं आम आदमी फर्स्ट एसी या सेकंड एसी में सफ़र नहीं करता उसके लिए जनरल डिब्बे और स्लीपर ही मोक्ष और निर्वाण का माध्यम होते हैं. सवाल है कि क्या इन्हें भी महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी. हमारे ऊपर कौन सा सुरखाब या मोर के पंख लगे हैं. जवाब है हैं. दूसरी ट्रेनों के यात्रियों को भी महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी. दाम इनके भी बढ़े हैं खाना इनका भी महंगा हुआ है. जो वेज थाली पहले 50 की आती थी वो अब 80 की होगी. इसी तरह नॉन वेज थाली जिसे पहले हम 55 रुपए में खरीदते थे उसके लिए अब 90 रुपए चुकाने होंगे.
वो ट्रेनें जिसमें देश का आम आदमी सफ़र करता है उसमें भी खाने की कीमतें बढ़ा दी गई हैं
बताया जा रहा है कि नए मेन्यू और शुल्क 15 दिनों में अपडेट हो जाएंगे और चार महीने बाद इसे लागू कर दिया जाएगा. नया मेन्यू जब आएगा तब आएगा. न तो इससे हमें कोई खास फर्क पड़ने वाला है और न ही उन खाना बनाने वालों को जो ट्रेन की पेंट्री में दाल उबाल रहे हैं, रोटी के लिए आंटा गूंथ रहे हैं, सब्जी भून रहे हैं, न तो इन्हें ही क्वालिटी से कोई मतलबी है न ही कभी हमने सुध ली की खाना खाने लायक हो.
बात साफ़ सीधी है. हम दिन भर में हजार अत्याचार सहते हैं अब जबकि रेट बढ़ गए हैं तो एक अत्याचार और सही. रेलवे कौन सा हमारा सगा है जो हमपर किसी तरह का एहसान करता. महंगाई बढ़ रही है. प्याज के दाम तो हमारे सामने हैं ही. जाहिर सी बात थी चीजों के दाम बढ़ जाएंगे. मगर क्योंकि हम आम आदमी हैं और आम आदमी स्वाभाव से बड़ा कैलकुलेटिव होता है तो हम रेलवे से केवल अनुरोध ही कर सकते हैं. हमारी रिक्वेस्ट है कि अब आगे रेलवे दाल में पानी जरा कम मिलाए और उसने थोड़ा नमक मिला दे. यूं भी कब तक आदमी अचार और 10 रुपए वाली दही के सहारे खाना खाएगा.
बहरहाल महंगाई के इस दौर में हम खाने के सुधार को लेकर किसी तरह की कोई बता नहीं करेंगे. हमें कारण पता हैं. हम जानते हैं कि रेलवे के खाने की क्वालिटी सही होना एक मुश्किलों भरा टास्क है. कर लेंगे एडजस्ट. खा लेंगे खाना. दे देंगे ज्यादा पैसे. पैसों का क्या है वैसे भी हमारे बड़े बुजुर्ग यही कहकर गए हैं कि पैसा हाथ का मैल है. अब जब मैल ही झाड़ना है तो फिर किसी से किसी तरह का क्या मोह रखना.
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भारी भरकम लगेज वालों को तो रेलवे ने मुसीबत में डाल दिया है!
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