किसी की तबियत खराब हो तो क्या करना चाहिए? अक्ल वालों की तो छोड़ ही दीजिये. कितना बड़ा बैल बुद्धि क्यों न हो, बंदा भन्न से यही कहेगा कि अगले भाई को अस्पताल जाना चाहिए. दवा लेनी चाहिए और कंडीशन खराब न हो इसलिए सुई भी कोंचवा लेनी चाहिए. बात सही भी है आजकल होने वाली मौत का सिस्टम झटपट वाला है. बीमारी के चलते मौत का तो ये है कि आदमी ने रात खाना खाया. टहला घूमा. नित्य क्रिया से फारिग हुआ मौका लगते बीड़ी-सिगरेट, गुटखा-तम्बाकू खाया पीया और फिर अगले दिन उठा ही नहीं. बदन दर्द से लेकर तेज बुखार तक और तेज बुखार, सूखी खांसी से लेकर पेट खराब होने तक हर चीज 'तबियत का खराब' होना है. यूं भी जब इंसान का स्वास्थ्य उसके शरीर का साथ न दे रहा हो तो If और But का कॉन्सेप्ट ही नहीं है. आदमी को तत्काल प्रभाव में डॉक्टर से कंसल्ट करना और जितना जल्दी हो सके अपना इलाज कराना चाहिए. शरीर जब साथ न दे तो आदमी को ट्रेवेल नहीं करना चाहिए ट्रेवल कर भी रहा हो तो ट्रेन से दूरी बनाते हुए उसे चड्ढी में डिब्बे से डिब्बे टहलना घूमना नहीं चाहिए.
ट्रेन, चड्ढी और तबियत चर्चा में हैं. इन्हें चर्चा में लाने का श्रेय किसी आम आदनी को नहीं बल्कि एक जन प्रतिनिधि को जाता है. यूं भी आम आदमी की इतनी औकात कहां कि वो इन चीजों को चर्चा में लाए. हां तो जैसा कि हम बता चुके हैं ट्रेन, चड्ढी और तबियत सुर्खियों में है और ये सब संभव हुआ है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू की पार्टी जेडीयू से विधायक गोपाल मंडल के कारण. वैसे तो गोपाल और विवादों का चोली दामन का साथ है लेकिन इस बार बयाना मोटा फंस गया है. गोपाल ने जो हरकत की है ख़ुद नीतीश बाबू भी सोच रहे होंगे...
किसी की तबियत खराब हो तो क्या करना चाहिए? अक्ल वालों की तो छोड़ ही दीजिये. कितना बड़ा बैल बुद्धि क्यों न हो, बंदा भन्न से यही कहेगा कि अगले भाई को अस्पताल जाना चाहिए. दवा लेनी चाहिए और कंडीशन खराब न हो इसलिए सुई भी कोंचवा लेनी चाहिए. बात सही भी है आजकल होने वाली मौत का सिस्टम झटपट वाला है. बीमारी के चलते मौत का तो ये है कि आदमी ने रात खाना खाया. टहला घूमा. नित्य क्रिया से फारिग हुआ मौका लगते बीड़ी-सिगरेट, गुटखा-तम्बाकू खाया पीया और फिर अगले दिन उठा ही नहीं. बदन दर्द से लेकर तेज बुखार तक और तेज बुखार, सूखी खांसी से लेकर पेट खराब होने तक हर चीज 'तबियत का खराब' होना है. यूं भी जब इंसान का स्वास्थ्य उसके शरीर का साथ न दे रहा हो तो If और But का कॉन्सेप्ट ही नहीं है. आदमी को तत्काल प्रभाव में डॉक्टर से कंसल्ट करना और जितना जल्दी हो सके अपना इलाज कराना चाहिए. शरीर जब साथ न दे तो आदमी को ट्रेवेल नहीं करना चाहिए ट्रेवल कर भी रहा हो तो ट्रेन से दूरी बनाते हुए उसे चड्ढी में डिब्बे से डिब्बे टहलना घूमना नहीं चाहिए.
ट्रेन, चड्ढी और तबियत चर्चा में हैं. इन्हें चर्चा में लाने का श्रेय किसी आम आदनी को नहीं बल्कि एक जन प्रतिनिधि को जाता है. यूं भी आम आदमी की इतनी औकात कहां कि वो इन चीजों को चर्चा में लाए. हां तो जैसा कि हम बता चुके हैं ट्रेन, चड्ढी और तबियत सुर्खियों में है और ये सब संभव हुआ है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू की पार्टी जेडीयू से विधायक गोपाल मंडल के कारण. वैसे तो गोपाल और विवादों का चोली दामन का साथ है लेकिन इस बार बयाना मोटा फंस गया है. गोपाल ने जो हरकत की है ख़ुद नीतीश बाबू भी सोच रहे होंगे कि 'अब कहूं तो कहूं क्या ? करूं, तो करूं क्या?
असल में हुआ कुछ यूं है कि गोपाल मंडल पटना से नई दिल्ली जाने वाली तेजस राजधानी एक्सप्रेस में थे और पूरे रास्ते उन्होंने चड्ढी बनियान में सफर किया. गोपाल मंडल ने ये हरकत अपनी सीट पर की होती तो भी ठीक था मामले में दिलचस्प ये रहा कि गोपाल पूरे रास्ते कंपार्टमेंट से कंपार्टमेंट सिर्फ चड्ढी बनियान में टहलते रहे. सहयात्रियों ने उनसे गमछा डाल लेने का अनुरोध किया मगर विधायक जी तो विधायक जी. कहां ही मानने वाले थे चड्ढी में टहले और डंके की चोट पर टहले.
मामला क्योंकि एक जनप्रतिनिधि द्वारा की गई ओछी हरकत से जुड़ा है इसलिए विधायक पर नई दिल्ली के जीआरपी थाने में एफआईआर दर्ज कर ली गई है. एफआईआर बिहार स्थित जहानाबाद के प्रहलाद पासवान नाम के शख्स ने दर्ज कराई है. अब जब विधायक जी ने इतना सब रायता फैला ही दिया है तो क्यों न बात उस एफआईआर पर भी हो जाए.
एफआईआर में कहा गया है कि पटना-नई दिल्ली तेजस राजधानी एक्सप्रेस के कोच नंबर 22 में यात्रा कर रहे गोपाल मंडल रात करीब 8.26 बजे शराब पीकर अंडरवियर और बनियान में घूमने लगे थे. लेकिन जब सहयात्रियों ने उनसे गमछा लपेटने को कहा तो वे बदतमीजी पर उतर आए. विधायक जी न केवल मारपीट पर उतरे बल्कि उन्होंने लोगों को गोली तक मारने की धमकी दी.
गौरतलब है कि, गोपाल मंडल तेजस राजधानी एक्सप्रेस के जिस कोच में में सफर कर रहे थे उसमें तमाम लोग ऐसे थे जी अपने परिवार के साथ यात्रा कर रहे थे और दिल्ली जा रहे थे.इसी बीच लोगों ने जेडीयू विधायक को कपड़े उतारकर चड्ढी-बनियान में घूमते देखा. गोपाल चड्ढी-बनियान में टॉयलेट गए थे. ये बात लोगों को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने विरोध किया जिसके बाद विधायक जी ने अपने वर्चस्व का पूरा इस्तेमाल किया और कांड कर दिया.
मामले के मद्देनजर ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि भले ही विधायक जी की आंखों में 'पावर' का चश्मा चढ़ा लो लेकिन एक जन प्रतिनिधि होने के नाते जिस तरह वो चलती ट्रेन में सिर्फ चड्ढी बनियान में घूमे हैं ये शर्मनाक है. अपने इस बर्ताव पर जो तर्क विधायक जी ने दिया है वो इस मामले से भी रोचक है.
'एएनआई से बातें करते हुए गोपाल मंडल ने कहा है कि वास्तव में हम चड्ढी-बनियान में थे. क्योंकि जैसे ही ट्रेन में चढ़े, मेरा पेट खराब हो गया. मैं जो बोलता हूं सच बोलता हूं. झूठ मैं बोलता नहीं हूं. झूठ बोलने से मुझे फांसी नहीं लग जाएगी. वहीं जब बात पुलिस तक पहुंची तो शराब वाली बात को उन्होंने निराधार बताया और सिरे से खारिज किया.
तो आखिर कौन था वो महान जिसकी बदौलत मिला इंडियन रेलवे को टॉयलेट
बात विधायक के चड्डी पहनने और उसी अवस्था में 'पेट खराब' होने के कारण टॉयलेट जाने से शुरू हुई है तो यूं ही हमारे भी खुराफाती दिमाग में एक सवाल आया कि आखिर ट्रेन में टॉयलेट होते क्यों हैं? हमने बिना किसी कमेटी के अपने इस सवाल पर शोध किया तो नतीजे चौंकाने वाले आए. असल में ट्रेन में टॉयलेट का कांसेप्ट न तो मनमोहन लाए न ही इसमें पीएम मोदी का कोई हाथ है.
इतिहास की मानें तो अंग्रेजों ने पहले ट्रेनों में टॉयलेट नहीं बनवाए थे, फिर इन महाशय जैसे ही एक शख्स ने पेट खराब होने का हवाला दिया. तभी से ट्रेनों में टॉयलेट लगाए गए. बात 1909 की है. जुलाई का महीना था और 2 तारीख थी. पश्चिम बंगाल स्थित साहेबगंज डिवीजनल ऑफिस में एक चिट्ठी आई. चिट्ठी को ओखिल चंद्र सेन नाम के एक व्यक्ति ने लिखा था.
पत्र में जो अंग्रेजी ओखिल बाबू ने लिखी थी उसने अंग्रेजों तक के छक्के छुड़ा दिए थे लेकिन मॉरल ऑफ द स्टोरी यही था कि रास्ते में ओखिल बाबू ने दबाकर कटहल खाए और बाद में पेट ने हाथ खड़े कर दिए और हल्ला मचाना शुरू कर दिया. ओखिल बाबू चलती ट्रेन में दरवाजे के पास काम निपटा रहे थे और गार्ड ने सीटी बजा दी जिस कारण उन्हें हाथ में लोटा लेकर भागना पड़ा.
ओखिल ने तब रेलवे से निवेदन किया था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों को तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसलिए अब वो वक़्त आ गया है जब ट्रेन में टॉयलेट बनवा देना चाहिए. रेलवे को ओखिल की अर्जी माकूल लगी. घटना के फ़ौरन बाद ही ट्रेन में टॉयलेट बनवा दिया गया. जिसमें आज जेडीयू विधायक चड्ढी पहने वॉक करते पकड़े गए और चड्ढी के जरिये ही उन्होंने उड़ता तीर दबोच लिया.
बहरहाल जैसा मामले के मद्देनजर विधायक जी का तर्क है कि उन्होंने चड्ढी इसलिए पहनी क्योंकि उनका पेट ख़राब था, ऐसे में हमारा भी सवाल बस इतना ही है कि तब उस क्षण क्या होता जब विधायक जी का पेट नहीं बल्कि दिमाग ख़राब हो गया होता? हमारा दावा है विधायक ने तो बवाल ही कर दिया होता. वैसी ग़दर हमें बोगी में देखने को मिलती जिसका जिक्र इतिहास की किताबों ने अपनी मध्यकालीन इतिहास वाली केटेगरी में भी न किया होता.
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