एक हिंदुस्तान में दो तीन नहीं कई कई हिंदुस्तान बसते हैं. समझो जैसे बर्फ के गोले का ठेला. बर्फ के गोले की तरह हम लोग अलग अलग रंग में रचे बसे. हम आप से दूर 5000 फेसबुक की दुनिया से इतर भी भारत है. वो नारंगी हरे लाल नीले पीले इनको छोड़ कर भी. पीले? ये कौन से वाले हैं. अमा जाओ यार! रंग भी नहीं छोड़ रहे हो. ऐसे ही बोल दिए भाई, वी पीपुल्स आर बर्फ का गोला एंड सिचुएशन इस कलर. अब तुमको मतलब निकालना है तो अपने आप से निकालो हमको न बदनाम करना. हम बस कह रहे थे की कई परतों में भारत है. है की नहीं? कहीं परात भर खाना कहीं ज़मीन ही परती पड़ी है. कहीं एंटिला जैसा मकान और कहीं रैन-बसेरा के आगे भी कंबल के लिया लाइन. कहीं शर्मा चायवाले और कहीं मो.... मतलब ठंड है अलग अलग किस्म की चाय अलग अलग किस्म की बात अलग अलग किस्म का नशा.
अरे नशे को ऐसे हिकारत से न देखें. हम आप, कल्लू दूधवाला ,छुट्ट्न सब्ज़ी वाला, रिक्शेवाला, पुलिसवाला, चायवाला, चैनलवाला धंधे वाला, और तो और हमारे आपके अब्बा जान, पिता जी सब नशे में हैं. हां हां माताएं बहने भी. जेंडर इक्वालिटी में फुल बिलीफ. पंगे में जरूर घसीटो इनको हक वक को गिव अ ...किक!
लैंग्वेज भाईसाहब! थोड़ा देख के...
हां तो बात थी नशे की. भई सबका अपना अपना नशा है. चाय का, चरस का... न न घबराइए नहीं! रखे थोडे न है. 3500 किलो अडानी के पोर्ट पे पकड़ी गई कोई कुछ बोला? बिजनेस हैं न भाई. उसमे चलता है. बाकि ऐसे तनी मनी टुच्चापन कर के लोफरई करोगे तो पकड़े ही न जाओगे!
हां तो नशा होता है - अहम का, सत्ता का, भाजपा का, कांग्रेस का, बसपा का, सपा का, अक्ल का सच का झूठ का भक्ति का बराबरी का. अहम तो रावण को ले फूंका. और सत्ता का नशा!...
एक हिंदुस्तान में दो तीन नहीं कई कई हिंदुस्तान बसते हैं. समझो जैसे बर्फ के गोले का ठेला. बर्फ के गोले की तरह हम लोग अलग अलग रंग में रचे बसे. हम आप से दूर 5000 फेसबुक की दुनिया से इतर भी भारत है. वो नारंगी हरे लाल नीले पीले इनको छोड़ कर भी. पीले? ये कौन से वाले हैं. अमा जाओ यार! रंग भी नहीं छोड़ रहे हो. ऐसे ही बोल दिए भाई, वी पीपुल्स आर बर्फ का गोला एंड सिचुएशन इस कलर. अब तुमको मतलब निकालना है तो अपने आप से निकालो हमको न बदनाम करना. हम बस कह रहे थे की कई परतों में भारत है. है की नहीं? कहीं परात भर खाना कहीं ज़मीन ही परती पड़ी है. कहीं एंटिला जैसा मकान और कहीं रैन-बसेरा के आगे भी कंबल के लिया लाइन. कहीं शर्मा चायवाले और कहीं मो.... मतलब ठंड है अलग अलग किस्म की चाय अलग अलग किस्म की बात अलग अलग किस्म का नशा.
अरे नशे को ऐसे हिकारत से न देखें. हम आप, कल्लू दूधवाला ,छुट्ट्न सब्ज़ी वाला, रिक्शेवाला, पुलिसवाला, चायवाला, चैनलवाला धंधे वाला, और तो और हमारे आपके अब्बा जान, पिता जी सब नशे में हैं. हां हां माताएं बहने भी. जेंडर इक्वालिटी में फुल बिलीफ. पंगे में जरूर घसीटो इनको हक वक को गिव अ ...किक!
लैंग्वेज भाईसाहब! थोड़ा देख के...
हां तो बात थी नशे की. भई सबका अपना अपना नशा है. चाय का, चरस का... न न घबराइए नहीं! रखे थोडे न है. 3500 किलो अडानी के पोर्ट पे पकड़ी गई कोई कुछ बोला? बिजनेस हैं न भाई. उसमे चलता है. बाकि ऐसे तनी मनी टुच्चापन कर के लोफरई करोगे तो पकड़े ही न जाओगे!
हां तो नशा होता है - अहम का, सत्ता का, भाजपा का, कांग्रेस का, बसपा का, सपा का, अक्ल का सच का झूठ का भक्ति का बराबरी का. अहम तो रावण को ले फूंका. और सत्ता का नशा! अब क्या ही बोले लाखों लाख लोग्स जब आपका नाम पुकार पुकार कर जी हलकान कर रहें हो तो काहे नहीं होगा नशा. सो हिटलर को भी था सत्ता का नशा.
एक मिंट आप क्या सोचे? थम जाइये आर्टिफिसियल इंटेलिजेन्स सीरी अलेक्सा कोई सुन लिए न भइया धरे जाओगे लम्बे में बता दे रहे हैं. आगे चलो. पार्टियों का नशा - नाइट पार्टी नहीं. प्लोटिकल पार्टी, जो जिस पाल्टी का है उ उसी की गाता है. प्लोटिकल नशा अलग होता है सबके बस का नहीं. मने कहे के मतलब है की फूल प्लैटर ऑफ़ नशा इस अवेलेबल बट इ कउनो विलायती नशा किये हैं.
इस नशा में हिम्मत बहुत गज्जब का आता है और दिमाग ज़रूरे घास चरने जाता है. जो शिवकुमार बाबू टाइट हो कर बोल दिए हैं कि, 'दिस इस नॉट कोविड कर्फ्यू बट बीजेपी कर्फ्यू!' और जरूर से जरूर इनके पास नया पैसा आया है इस नशे को करने को नहीं. तो ये 2020 में 21 दिन में ही न बोल दिए होते कि, 'भाइयों और बहनों ये चक्र टूटना चाहिए,' वाला भाषण या, 'ताली थाली कटोरी चम्मच बजाने से साउंड वेव पैदा होगा और कोरोना मर जायेगा.' ऐसे वाला मैसेज झूठ है.
मैसेज - माई लार्ड मेसेज आये थे कोई बोलै नहीं था हुजूर. माई बाप हम भी वही कह रहें हैं. आईटी सेल में बहुत से 10 वीं 12वीं फेल टेक सैवी बैठ कर करोड़ों के बिल में 10 हजार की नौकरी पर ऐसे उल जुलूल मेसेज बना कर बदनाम करते हैं. वरना पढ़े लिखे लोग भला ऐसा कभी बोल सकते हैं. पढ़े लिखे? ओके नो एंट्री ज़ोन! इस पर नो चर्चा, एज़ भारत में जॉब ऑफ़ पॉलिटिशियन नीड्स नो एडुकेशन.
कसम से बहुत बार कोसते हैं अपनी ओभर क्वालिफिकेशन को! हां तो शिव कुमार बाबू ये कौन नशा कर लिए हैं आप जो कह रहें हैं कि 'दिस इस नॉट कोविड कर्फ्यू बट बीजेपी कर्फ्यू! कहे से कि आप 'पीने के पानी की खातिर आंदोलन करने जा रहे हैं,तो आप पर रूल लागू नहीं होना चाहिए?, बुड़बक समझे है? 62 देशों में घूम घूम के ऑनसाइट लर्निंग इसलिए किये की तुम खेल में, 'हम दूध भात! हम आऊट नहीं होंगे.' ऐसा कहोगे और हम मान लेंगे?
'हे शिवकुमार तुम अपने युवराज से कह दो की चक्रव्यूह चहुं ओर से बन चूका है और अब तुम्हारा उठाया एक भी कदम तुम्हारे गले की रस्सी को कसेगा. पुल पर सड़क पर पानी पर जहां रोकोगे इस व्यूह के चारो ओर फैली ज़हरीली हवा तुमको बौरा देगी! जाओ वत्स!' मतलब इन शार्ट आप देखे हैं की कैल्कुलेशन कितना स्ट्रांग हैं! बंगाल में इलेक्शन हुआ, कहीं कर्फ्यू नहीं था. हारने मतलब इलेक्शन के बाद कोरोना नाराज़ हुआ तो यू सी गॉड हैं! गॉड? ओह गॉड! मतलब की उपरवाले का न्याय हैं न.
आप कर्नाटक का नाटक छोड़िये हमारे यूपी का देखिये. नाटक नहीं मैनेजमेंट ! पिछले वेव में कोई नहीं मरा ऑक्सीजन की कमी से! और इस बार तो तमंचे पे डिस्को करा रहे हैं मजाल है की कानपूर लखनऊ काशी इलाहबाद में आ जाये कोरोना. इलाहाबाद? नहीं प्रयागराज. इलाहबाद होता तो शायद आ भी जाता. अब तो माँ गंगा की कृपा से नामकरण के धागे से शुद्धि हो गयी है.
तो नशा छोड़ो और बुद्धि की शुध्दि करो. 2 डिग्री की ठंड में बाहर निकलोगे तो कोरोना धरेगा ही न. इसलिए कबसे मने कबसे नाइट कर्फ्यू लग गया. और एलक्शन रैली पर रोक भी लगा दिया गया की सब सुरक्षित रहें. आनन फानन में इत्ता इत्ता रैली तुम काहे नहीं प्लान किये. तुम्हरा बाबू गए ननिआउर और भैया दिने दिन में सपना से भौकाल मारे है, तो अइसा है सिवकुमार बाबू की चलो मान लेते हैं की हां, 'दिस इस नॉट कोविड कर्फ्यू बट बी जे पी कर्फ्यू!' तब क्या? क्या ही कर लीजियेगा. नशा हैं बाबू. एक्टिव नशेड़ी बनो या पैसिव नशे का असर तो होबे करेगा न. तो बस मास्क ऑन एंड कोरोना गोन.
ये भी पढ़ें -
Rahul Gandhi को प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध केस भी राफेल जैसा लगता है!
IPS असीम अरुण होंगे P भाजपा का नया दलित चेहरा, क्या सपा-बसपा को परेशान होना चाहिए?
Virtual rally से cVIGIL app तक, जानिए किस तरह पहली बार डिजिटल होगा इलेक्शन
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.