कर्नाटक के पंडित जी इस्लाम कबूलना चाहते थे...! जी हां पंडित जी का इस्लाम कुबूलना भले ही विरोधाभासी लगे. मगर बात वही है. शौक-शौक में या फिर अपने को फैंटम साबित करने के मकसद से कई बार आदमी मधुमक्खी के छत्ते में हाथ और लकड़बग्घे की मांद में कदम रख देता है. पंडित जो को विधर्मी कहकर कोई ट्रोल करे उससे पहले बता दें कि पंडित जी का 'पिलान' कैंसिल हो गया है पंडिज्जी फ्यूचर में भी पंडिज्जी ही रहेंगे All credit goes to Diabetes. हालांकि किसी के मुसलमान बनने और डायबिटीज में कोई को-रिलेशन नहीं है. बावजूद इसके पंडिज्जी से ज्यादा डायबिटीज सुर्खियां बटोर सकता है. बटोरना भी चाहिए. दरअसल किसी ने पंडिज्जी को 'ज्ञान' दिया कि, वो पंडित से सच्चे मुस्लिम तभी हो पाएंगे जब अपना खतना करवाएंगे. उम्र के ऐसे पड़ाव में ये ज्ञान पंडित जी को इसलिए भी नागवार गुजरा कि कहीं डायबिटीज के कारण लेने के देने न पड़ जाएं. यूं भी जान है तो जहान है और तभी आदमी हिन्दू है और मुसलमान है.
पंडित से मुसलमान बनने की इच्छा जाहिर करने वाले कर्नाटक के एचआर चंद्रशेखरैया ने अपनी व्यथा का बखान करते हुए कहा कि, 'मैं मधुमेह से पीड़ित हूं. मैं यह जानकर डर गया कि रूपांतरण के समय 'खतना' किया जाएगा. मैं इसके संभावित परिणामों से डर गया और अंत में हिंदू धर्म में वापस रहने का फैसला किया.'
मामले में दिलचस्प ये कि एच आर चंद्रशेखरैया शौक से ज्यादा मज़बूरी के नाते मुसलमान बन रहे थे. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके परिवार ने उनके साथ धोखा कर दिया था. वो विरासत के विवाद से आहत थे और उनके रिश्तेदार भी उनसे अलग थलग हो गए थे. पंडित जी को डर सता रहा था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो...
कर्नाटक के पंडित जी इस्लाम कबूलना चाहते थे...! जी हां पंडित जी का इस्लाम कुबूलना भले ही विरोधाभासी लगे. मगर बात वही है. शौक-शौक में या फिर अपने को फैंटम साबित करने के मकसद से कई बार आदमी मधुमक्खी के छत्ते में हाथ और लकड़बग्घे की मांद में कदम रख देता है. पंडित जो को विधर्मी कहकर कोई ट्रोल करे उससे पहले बता दें कि पंडित जी का 'पिलान' कैंसिल हो गया है पंडिज्जी फ्यूचर में भी पंडिज्जी ही रहेंगे All credit goes to Diabetes. हालांकि किसी के मुसलमान बनने और डायबिटीज में कोई को-रिलेशन नहीं है. बावजूद इसके पंडिज्जी से ज्यादा डायबिटीज सुर्खियां बटोर सकता है. बटोरना भी चाहिए. दरअसल किसी ने पंडिज्जी को 'ज्ञान' दिया कि, वो पंडित से सच्चे मुस्लिम तभी हो पाएंगे जब अपना खतना करवाएंगे. उम्र के ऐसे पड़ाव में ये ज्ञान पंडित जी को इसलिए भी नागवार गुजरा कि कहीं डायबिटीज के कारण लेने के देने न पड़ जाएं. यूं भी जान है तो जहान है और तभी आदमी हिन्दू है और मुसलमान है.
पंडित से मुसलमान बनने की इच्छा जाहिर करने वाले कर्नाटक के एचआर चंद्रशेखरैया ने अपनी व्यथा का बखान करते हुए कहा कि, 'मैं मधुमेह से पीड़ित हूं. मैं यह जानकर डर गया कि रूपांतरण के समय 'खतना' किया जाएगा. मैं इसके संभावित परिणामों से डर गया और अंत में हिंदू धर्म में वापस रहने का फैसला किया.'
मामले में दिलचस्प ये कि एच आर चंद्रशेखरैया शौक से ज्यादा मज़बूरी के नाते मुसलमान बन रहे थे. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके परिवार ने उनके साथ धोखा कर दिया था. वो विरासत के विवाद से आहत थे और उनके रिश्तेदार भी उनसे अलग थलग हो गए थे. पंडित जी को डर सता रहा था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो शायद ही कोई उनका अंतिम संस्कार करे, इसलिए उन्होंने कानून की मदद ली और इस्लाम धर्म अपनाने का फैसला लिया.
पंडित जी के अनुसार, ' उन्हें इस्लाम के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उन्हें बस इतना पता था कि वो जहां रहते हैं वो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है और उनके कई मुस्लिम दोस्त वहां रहते हैं. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, 'सनातन हिंदू धर्म सर्वोच्च है. मुझे एहसास हुआ कि इस्लाम में परिवर्तित होने का मेरा निर्णय गलत था. अज्ञान दूर हो गया है, धर्म बदल जाने पर कोई 'मुक्ति' नहीं है.
वहीं उन्होंने ये भी कहा कि धार्मिक संतों द्वारा हिंदू धर्म में वापस स्वागत किए जाने के बाद वह शांति से हैं. जन्म के बाद से, उनकी विचार प्रक्रिया और जीवन पद्धति हिंदू धर्म के साथ तालमेल बिठाती है और उन्होंने जल्दबाजी में लिए गए निर्णय से निराश महसूस किया है.
भले ही एच आर चंद्रशेखरैया के मुसलमान बनने के फैसले ने दो चार दिन के लिए इलाके की राजनीति में हलचल पैदा कर दी हो. लेकिन दाद देनी होगी उस ज्ञानवीर की जिसने उन्हें 'खतने' का हवाला देकर डराया होगा. सवाल वही है जो जॉली एलएलबी में अरशद वारसी ने जज साहब से पूछा था - कौन हैं ये लोग? कहां से आते हैं ऐसे लोग?
चूंकि हिंदू से मुस्लिम होने वाले बुजुर्ग पंडित को खतने का हवाला देकर डराया गया है. ऐसे में हमें अपने बड़े बुजुर्गों की वो कहावत याद आती है जिसमें मौके- बेमौके उन्होंने उस बात पर बल दिया था कि अगर दोस्ती करो तो पढ़े लिखे से करो वरना जाहिल से जो की तो लंका लगनी तय है. न ख़ुदा मिलता है. या विसाल ए यार!
मामला देखकर यूं तो तमाम तरह की बातें हो सकती हैं लेकिन इतना कन्फर्म है कि देश में सही शिक्षा और सही जानकारियों का अभाव है. और ये अभाव कितना है? इस पर हार्ड बाउंड या पेपर बैक में मोटी मोटी किताबें लिखी जा सकती हैं. वो तो अच्छा हुआ कर्नाटक के पंडित जी खतने के डर से मुसलमान नहीं बने गर जो बन गए होते तो वाक़ई बड़ा ब्लंडर हो जाना था.
बहरहाल, भले ही पंडित जी जैसे थे वैसे हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या अब भी लोग उन्हें उतनी ही इज्जत देंगे? उन्हें अपने अपने घरों में पूजा-अर्चना करने के लिए बुलाएंगे? आप इस सवाल को लेकर कुछ कह दीजिये? हमारा दिल रखने के लिए कितने भी तर्क क्यों न दे दीजिये लेकिन जैसा आजकल का माहौल है. हमें डाउट है.
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