मजबूत विपक्ष क्या होता है? कैसे बनता है? किन परिस्थितियों में बनता है? इसके लिए जरूरी फैक्टर क्या होते हैं? जवाब भतेरे हैं. लेकिन इसका सबसे बेस्ट जवाब या तो कोई पॉलिटिकल साइंस का प्रोफेसर ही दे पाएगा या फिर बीए का वो पढ़ाकू छात्र जिसकी कम से कम 90 परसेंट अटेंडेंस हो और जो वाक़ई पढ़ कर परीक्षा दे रहा है. लेकिन चूंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं और लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा का मामला हमारे सामने है तो लिबरल और सेक्युलर यही बता रहे हैं कि मजबूत विपक्ष कांग्रेस पार्टी और प्रियंका गांधी जैसा होता है. हंसने की जरूरत नहीं है. सच में मजबूत विपक्ष प्रियंका गांधी जैसा ही होता है. जो घटना के बाद अपनी राजनीतिक संभावनाएं तलाशने के लिए लखीमपुर जाने को आतुर दिखता है. सीतापुर के गेस्ट हाउस में रखा जाता है और चकाचक साफ कमरे में झाड़ू लगाता है. मीडिया को बाइट देता है. न केवल फ़ोटो क्लिक कराता है बल्कि उसे अपने ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर चेपता है.
नहीं साहब हमारी कहां बिसात की हम किसी और की नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी की खिल्ली उड़ाए. न ही हम सर्कास्टिक हो रहे हैं. हम तो बस वो कह रहे हैं जिस बात को दुनिया कह रही है. और दुनिया के मुताबिक प्रियंका मैडम ने लखीमपुर खीरी में सजी नेताओं की महफ़िल लूट ली है.
वाक़ई इस बात में रत्ती भर भी शक नहीं है कि लखीमपुर हिंसा को एक घटना से मुद्दा जिस तरह कांग्रेस और कांग्रेस में भी प्रियंका गांधी ने बनाया है वो अपने में कमाल है. देश स्तब्ध है. आलोचक तक हैरत में पड़ मुंह में...
मजबूत विपक्ष क्या होता है? कैसे बनता है? किन परिस्थितियों में बनता है? इसके लिए जरूरी फैक्टर क्या होते हैं? जवाब भतेरे हैं. लेकिन इसका सबसे बेस्ट जवाब या तो कोई पॉलिटिकल साइंस का प्रोफेसर ही दे पाएगा या फिर बीए का वो पढ़ाकू छात्र जिसकी कम से कम 90 परसेंट अटेंडेंस हो और जो वाक़ई पढ़ कर परीक्षा दे रहा है. लेकिन चूंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं और लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा का मामला हमारे सामने है तो लिबरल और सेक्युलर यही बता रहे हैं कि मजबूत विपक्ष कांग्रेस पार्टी और प्रियंका गांधी जैसा होता है. हंसने की जरूरत नहीं है. सच में मजबूत विपक्ष प्रियंका गांधी जैसा ही होता है. जो घटना के बाद अपनी राजनीतिक संभावनाएं तलाशने के लिए लखीमपुर जाने को आतुर दिखता है. सीतापुर के गेस्ट हाउस में रखा जाता है और चकाचक साफ कमरे में झाड़ू लगाता है. मीडिया को बाइट देता है. न केवल फ़ोटो क्लिक कराता है बल्कि उसे अपने ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर चेपता है.
नहीं साहब हमारी कहां बिसात की हम किसी और की नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी की खिल्ली उड़ाए. न ही हम सर्कास्टिक हो रहे हैं. हम तो बस वो कह रहे हैं जिस बात को दुनिया कह रही है. और दुनिया के मुताबिक प्रियंका मैडम ने लखीमपुर खीरी में सजी नेताओं की महफ़िल लूट ली है.
वाक़ई इस बात में रत्ती भर भी शक नहीं है कि लखीमपुर हिंसा को एक घटना से मुद्दा जिस तरह कांग्रेस और कांग्रेस में भी प्रियंका गांधी ने बनाया है वो अपने में कमाल है. देश स्तब्ध है. आलोचक तक हैरत में पड़ मुंह में अंगुली दबाए इस बात को चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि लखीमपुर के लिए जो प्रियंका गांधी ने कर दिया है वो इतिहास की किताबों में दर्ज हो गया है.
प्रियंका के लखीमपुर अवतार के बाद कद और काठी में कैसा भी हो किसी भी कांग्रेसी नेता की टाइमलाइन देख लीजिए. तमाम बातें शीशे की तरह साफ़ हो जाएंगी. कांग्रेसी नेताओं के बीच चर्चा तेज है कि लखीमपुर में किसानों की मौत का मामला सामने आना भर था. नवरात्रि से पहले ही मां दुर्गा ने अवतार लिया है. हालांकि ये बातें क्यों हो रही हैं?
वजह चाटुकारिता तो है ही लेकिन एक अन्य कारण ये भी है कि वो कांग्रेसी नेता जिनके चाल चरित्र चेहरे के कारण जमाने ने उन्हें नकार दिया है या ये कहें कि सिरे से खारिज कर दिया है. प्रियंका के कंधों पर बंदूक रखकर अपने कमबैक के लिए युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं.
नहीं मतलब आप खुद बताइये.क्या कभी किसी ने सोचा था कि यूपी जैसे राज्य के लिए कांग्रेस और प्रियंका गांधी इतनी मेहनत करेंगी? लोगों को उम्मीद सपा और बसपा से थी. माना यही जा रहा था कि एक ऐसे वक्त में जब लखीमपुर खीरी में इतनी बड़ी घटना घट चुकी हो अखिलेश और मायावती जो स्वयं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं दौड़कर आएंगे और मुद्दे को लपक लेंगे. अखिलेश और मायावती सोचते ही रह गए और प्रियंका ने न केवल खीर पकाई बल्कि पलक झपकते ही उसे चट भी कर दिया.
सीधी सी बात है. सवाल जब उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने विपक्ष का होगा तो आदमी कांग्रेस को दरकिनार अखिलेश और मायावती का ही नाम लेगा मगर जिस तरह अखिलेश और मायावती ने लखीमपुर हिंसा को हल्के में लिया महसूस हुआ कि अब ये लोग वो बुझी हुई कारतूस में परिवर्तित हो गए हैं जिसने भाजपा के सामने 22 के युद्ध से बहुत पहले ही हथियार डाल दिये हैं.
सपा समर्पित राजनीतिक पंडित इस बात को लेकर अवसाद में हैं कि आखिर अपने टीपू को हुआ क्या है. मुद्दे की राजनीति से यूं इस तरह भटकने की वजह क्या है? इसी तरह बेचैनी बसपा के खेमे में भी है. वहां भी लोग भारी टेंशन में हैं कि आखिर बहनजी ने इतने बड़े और वोट जुटाने वाले मुद्दे पर अपनी नजरे इनायत क्यों नहीं की?
सवाल लगातार उठ रहे हैं. जवाब कुछ भी हो सकता है लेकिन जिस तरह प्रियंका गांधी ने न केवल लखीमपुर मुद्दे पर पैनी निगाह रखी बल्कि अपने पंजों से उसे दबोचा कहना गलत नहीं है कि इंदिरा की पोती में 25 परसेंट इंदिरा वाले गुण आ गए हैं.
चाहे भाजपा के कार्यकर्ता और एक पत्रकार की मौत हो. या फिर किसानों का स्वर्गवास लखीमपुर में जो हुआ है वो गहरा आघात देता है मगर जिस तरह प्रियंका ने उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर लखीमपुर खीरी में मोर्चा संभाला है दिल कहता है कि दादी का, डैडी का भाई की लगातार होती बेइज्जती का मम्मी के विदेशी टैग का सबका बदला लेगी ये प्रियंका.
चूंकि उत्तर प्रदेश चुनाव कुछ ही किलोमीटर दूर हैं और बात कांग्रेस के सिलसिले में हुई हैं लखीमपुर मुद्दे को अपने पंजे में जकड़ कर बैठने वाली प्रियंका गांधी के सिलसिले में हुई है तो हम भाई यानी राहुल गांधी को क्यों छोड़ दें.
यूं तो अमेजन प्राइम की वेब सीरीज मिर्जापुर में मुन्ना भइया की हरकतों से त्रस्त कालीन भइया ने मक़बूल से मुन्ना के संदर्भ में तमाम बातें पहले ही कह दी थीं मगर मुन्ना भइया को किंग ऑफ मिर्ज़ापुर बनना था तो ऐसी तमाम मूर्खताएं की जिसके बाद न ही माया मिली और न ही मिले राम. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी का भी मामला कुछ मुन्ना भइया जैसा है. जिनकी कारगुजारियों का खामियाजा किसी न किसी बहाने कांग्रेस पार्टी को भगतना पड़ता है.
आलोचक तो आलोचना में राहुल गांधी के लिए मोटे मोटे ग्रंथ पलक झपकते ही लिख देंगे मगर समर्थक तक दबे स्वर में ये कहते पाए जाते हैं कि जब बात फैसले लेने की आती है तो राहुल गांधी के दिमाग का प्रोसेसर स्लो है. जब तक निर्णय आता है देर हो जाती है और गाड़ी प्लेटफॉर्म छोड़ देती है.
बात बीते दिनों की है जिस वक़्त प्रियंका लखीमपुर-लखीमपुर खेल रही थीं. राहुल गांधी जिनका ध्यान कहीं और था जागे और उन्होंने ट्वीट कर जिम्मेदारी पल्ला झाड़ा.
बाद में प्रियंका को हिरासत में लिया गया तो फिर राहुल गांधी के अंदर का क्रांतिकारी जागा और उन्होंने अपने अंदर के दर्द को बाहर निकालने के लिए अपने पक्के दोस्त (हालांकि इस दोस्त ने भी अभी कुछ पहले ही उन्हें धोखा दिया था.) ट्विटर का सहारा लिया.
इस ट्वीट के बाद राहुल गांधी चुप हो गए लेकिन प्रियंका मोर्चे पर एक्टिव रहीं। बाद में देश ने लखनऊ में राहुल गांधी को लखनऊ एयरपोर्ट पर बैठे देखा। राहुल भी बहन की तरह लखीमपुर खीरी जाना चाहते थे.
इस पूरे प्रकरण में जो सबसे दिलचस्प पहलू है वो ये कि अपनी मेहनत से डिश प्रियंका गांधी वाड्रा ने तैयार की थी वहीं बात अगर राहुल गांधी की हो तो वो हमेशा की तरह उस घरी धनिया की पत्ती जैसे निकले जिसका इस्तेमाल डिश को गार्निश करने के लिए किया जाता है.
अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि इस बार प्रियंका ने लखीमपुर में प्रियंका ने वो पारी खेली जिसकी उम्मीद हमें अखिलेश यादव या फिर मायावती से थीं वहीं बात अगर मुद्दे पर हरी धनिया बन गार्निशिंग के लिए आए राहुल गांधी की हो तो ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि लखीमपुर खीरी किसान हत्या मामले में अंगुली कटाकर उन्होंने भी शहीदों में नाम लिखा लिया है.
अच्छा, क्योंकि ये सारा सियासी नाटक आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए हुआ है तो ये कांग्रेस और प्रियंका/ राहुल गांधी को कितना फायदा पहुंचाएगा इसका फैसला तो वक़्त करेगा लेकिन क्योंकि प्रियंका ने कमाल किया है तो उनको मुबारकबाद और राहुल के लिए इतना ही कि माशाअल्लाह बॉय प्लेड वेल.
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