मोदी के फैसले से राजनीतिक दलों के मुंह से कुछ इस तरह से निवाला फंसा कि उन्हें खुद ही समझ नहीं आया कि इसे निगला जाए या उगला जाए. अब मोदी से गुहार लगाने की इनकी कोशिशों पर प्रधानमंत्री कितने पिघलते हैं यह देखने वाली बात है. वैसे मोदीजी को मनाना आसान नहीं- वो हुए 56 इंच के सीने वाले इंसान. जिनके सीने का साइज इतना बड़ा हो उनके दिल और दिमाग का अंदाजा लगाना असंभव तो नहीं.
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मोदी जीईईईईईई..... जो किया वह अच्छा नहीं लगा... हमें मात देने के लिए ये शरारत माफी योग्य नहीं है. माना कि कुछ राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. वहां आपकी पार्टी की सत्ता में लौटने की उम्मीद शंकाओं से भरी हुई है तो क्या सबको एक साथ डूबो दोगे? ख्याल हमारा भी रख लिया होता. हम तो पड़ोस की गली में ही रहते हैं... कोई बॉर्डर क्रास करने का झंझट ही नहीं... कोई टोल टैक्स देने की टेंशन नहीं. माना की मनमुटाव होता रहता है लेकिन रहते तो देश की धड़कन कहे जाने वाले दिल्ली में ही ना. राजनीति में नए नवेले हैं...
माना कि राजनीति करते-करते भाषा कड़वी हो जाती है लेकिन इसका मतलब ये थोड़े की सभी को एक ही हंटर से हांक दें. थोड़ा तो ध्यान रखते...
बड़ी मुश्किल से चंदा इकट्ठा किया था. सोचा पार्टी वेबसाइट पर डिटेल डाल दूं, लेकिन घबरा गया. कहीं चंदा देने वालों के यहां छापा डलावा दिया तो... ये तो अपने खांटी कार्यकर्ता हैं,
इनका ध्यान मैं ना रखूं तो कौन रखेगा...आप तो राजनीति में कई सालों से हैं. भंलीभांति जानते हैं ये वोटर- ना आपका, ना मेरा. कैश में लिया था चंदा...अब क्या करूं.
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ये भी पढ़ें- कतार का भी अपना मज़ा है....
मोदी जी, हमारी भी सुन लो...हमसे किस बात की शिकवा...हमने तो संसद में भी आपका साथ दिया...हमने जैसे ही रथ यात्राएं शुरू की आपने...
मोदी के फैसले से राजनीतिक दलों के मुंह से कुछ इस तरह से निवाला फंसा कि उन्हें खुद ही समझ नहीं आया कि इसे निगला जाए या उगला जाए. अब मोदी से गुहार लगाने की इनकी कोशिशों पर प्रधानमंत्री कितने पिघलते हैं यह देखने वाली बात है. वैसे मोदीजी को मनाना आसान नहीं- वो हुए 56 इंच के सीने वाले इंसान. जिनके सीने का साइज इतना बड़ा हो उनके दिल और दिमाग का अंदाजा लगाना असंभव तो नहीं.
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मोदी जीईईईईईई..... जो किया वह अच्छा नहीं लगा... हमें मात देने के लिए ये शरारत माफी योग्य नहीं है. माना कि कुछ राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. वहां आपकी पार्टी की सत्ता में लौटने की उम्मीद शंकाओं से भरी हुई है तो क्या सबको एक साथ डूबो दोगे? ख्याल हमारा भी रख लिया होता. हम तो पड़ोस की गली में ही रहते हैं... कोई बॉर्डर क्रास करने का झंझट ही नहीं... कोई टोल टैक्स देने की टेंशन नहीं. माना की मनमुटाव होता रहता है लेकिन रहते तो देश की धड़कन कहे जाने वाले दिल्ली में ही ना. राजनीति में नए नवेले हैं...
माना कि राजनीति करते-करते भाषा कड़वी हो जाती है लेकिन इसका मतलब ये थोड़े की सभी को एक ही हंटर से हांक दें. थोड़ा तो ध्यान रखते...
बड़ी मुश्किल से चंदा इकट्ठा किया था. सोचा पार्टी वेबसाइट पर डिटेल डाल दूं, लेकिन घबरा गया. कहीं चंदा देने वालों के यहां छापा डलावा दिया तो... ये तो अपने खांटी कार्यकर्ता हैं,
इनका ध्यान मैं ना रखूं तो कौन रखेगा...आप तो राजनीति में कई सालों से हैं. भंलीभांति जानते हैं ये वोटर- ना आपका, ना मेरा. कैश में लिया था चंदा...अब क्या करूं.
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ये भी पढ़ें- कतार का भी अपना मज़ा है....
मोदी जी, हमारी भी सुन लो...हमसे किस बात की शिकवा...हमने तो संसद में भी आपका साथ दिया...हमने जैसे ही रथ यात्राएं शुरू की आपने नोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी.
अब आप ही बताओ- रथ यात्राएं होती किसके लिए हैं...दरअसल, कार्यकर्ता ही तो वह भीड़ है जो रथ के आसपास पहुंचते हैं. उन्हें खाली हाथ भेजेंगे तो नुकसान तो होगा ही ना...
इसलिए बड़ी-बड़ी गाड़ियों में ‘इंतजाम’ इसी बात का होता है. अब क्या. किस मुंह जाएं कार्यकर्ताओं के बीच. आपसे एक निवेदन है कि 10 दिन के लिए यह फैसला वापस ले लें.. ताकि हम अअअअ...सब कुछ बयां करना जरूरी थोड़ा होता है. आपभी तो इसी राजनीति से प्रधानमंत्री बने...
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मोदी जी, आप तो हुए देश के प्रधानमंत्री. कुछ तो अपनी बहन का ख्याल रखा होता...राखी भले ही नहीं बांधती हूं पर क्या बहन नहीं हूं मैं आपकी. ज्यादा नहीं थोड़ा ही तो उपहार में मांग रही हूं. चुनाव होने देते फिर नोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर लेते...संसद में पूरा सहयोग देती...ऐसा तो नहीं है कि आप नहीं जानते होंगे कि मेरा पूरा कुनवा कैश पर निर्भर है. गरीब तबका, पिछड़ा वर्ग, दलित वर्ग- सब मेरे ही तो हैं. इनके पास बैंक अकाउंट होता ही कहां है जो कि पार्टी के लिए ऑनलाइन फंडिंग के लिए कहूं. सारे भावी प्रत्याक्षियों ने टिकट के लिए पैसे जमा करवा दिये हैं. अब क्या करूं... टिकट ना दूं तो खाई- दे दूं तो कुआं वाली स्थिति है मेरी. क्योंकि पैसा तो अब ‘बर्बाद’ हो गया.
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मोदी जी, हमारी जरूर सुन लेना... मुख्य विपक्षी होकर नकार मत देना... मुद्दों पर गिले-शिकवे हो सकते हैं... ये गिले-शिकवे तो जब तक कैमरा ऑन होता है तब तक के लिए होते हैं- आप भी इस बात को बखूबी जानते हैं... याद करो- जब हम इफ्तार पार्टी में मिले थे... याद करो जब यदा-कदा शादी पार्टियों में मिल जाया करते हैं... गले भले ही नहीं मिलते लेकिन आपका लिहाज रहने में कोई कोर-कसर छोड़ी हो तो कहना...
'कुछ आदतें ऐसी हैं कि छूटती नहीं' |
साथियों, आप लोगों से पत्र मुझे प्राप्त हुए. पर क्या करूं. कुछ आदतें ऐसी हैं कि छूटती नहीं. मन में कुछ दबा के रखा नहीं जाता और हो जाती है ‘मन की बात’. जानता हूं चुनाव सिर पर हैं. पार्टी के नेता कई वर्षों से गाढ़ी काली कमाई करने में जुटे थे. यह समय उनकी कमाई को ठिकाने लगाने का था. लेकिन नहीं सोचा.
मैं अरूण जी के बहकावे में आ गया. उन्होंने कहा कि 56 इंच का सीना परदेशियों को दिखाया, स्वदेशी इंतजार में हैं. उन्होंने मुझे मेरे मुख्यमंत्री रहते एक सिफारिश की याद दिलाई जिसे तब की केंद्र सरकार ने नकार दिया था. बात कुछ आगे बढ़ी तो अपने ‘फीडिंग फ्रेंड्स’ की याद आना स्वाभाविक था. उन्होंने सुझाया कि कुछ वक्त उन्हें दिया जाए, सो हमने उन्हें धन ‘एडजस्ट’ करने का वक्त दिया. जहां तक है कार्यकर्ताओं का सवाल तो उन्हें कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए. कई वर्षों से राजनीति में हूं इसलिए जानता हूं वोटर तो ‘बिन पेंदी के लोटे’ की तरह लुड़कता रहता है.
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साथियों, तीर तो कमान से निकल चुका है, लेकिन आपकी बातों को ध्यान में रखते हुए मैंने अस्पताल, सीएनजी पंप, पेट्रोल पंप, रेलवे काउंटर, मेट्रो काउंटर, एयरपोर्ट में कुछ दिनों की मौहल्लत और दी है. आखिर अस्पताल, सीएनजी पंप, पेट्रोल गरीब के थोड़े होते हैं.
आपका,
मोदी जी
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