सारी खुदाई एक तरफ़ अपने शराबी भाई एक तरफ़. ये मोह माया के धागों से परे हैं. इनके जीवन का एकमात्र मकसद शराब है. ये कितने संतोषी हैं ये तो पूछिये ही मत अच्छे दिन हुए तो काजू, बादाम, सेब केला और मुफ़लिसी के दिन हुए तो एक चुटकी नमक के संग ये 90 एम एल का पेग गटक जाते हैं. कितना सब्र किया है इन बेचारों ने. जनता कर्फ्यू वाले दिन से अब तक लॉक डाउन की तीन पारियां हो गयी हैं और इतने लंबे इंतजार के बाद भले ही राजस्व के नाम पर ही सही, सरकार ने इनकी सुध ले ली और इजाजत दे दी कि ये शराब खरीद सकते हैं. लॉक डाउन 3 के पहले दिन जिस तरह की तस्वीरें और जैसे रुझान आ रहे हैं चाहे इंग्लिश हो या देसी. चौक वाली हो या चौराहे की. नज़ारा बेहद दिलचस्प है. माहौल बिल्कुल किसी महासेल जैसा और पहले आएं पहले पाएं की तर्ज पर है.
जैसी भीड़ शराब की दुकानों के बाहर है और जिस तरह लोग सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुए कतार में हैं शराब की इस महासेल को देखकर महसूस यही हो रहा है कि शायद शराब में ही जीवन का सार और उसका रहस्य छुपा है.
तकनीक के इस युग में ई कॉमर्स वेबसाइट ही हम जैसे लोगों का सहारा है मगर लोगों को इस तरह खरीदारी करते हुए तो कभी ब्लैक फ्राइडे वाली सेल में भी न देखा.
गृह मंत्रालय द्वारा जारी इस घोषणा के बाद कि 4 मई से शराब की दुकानें खुलेंगी और शराब मिलेगी उम्मीद तो थी कि भीड़ होगी मगर ऐसी होगी...
सारी खुदाई एक तरफ़ अपने शराबी भाई एक तरफ़. ये मोह माया के धागों से परे हैं. इनके जीवन का एकमात्र मकसद शराब है. ये कितने संतोषी हैं ये तो पूछिये ही मत अच्छे दिन हुए तो काजू, बादाम, सेब केला और मुफ़लिसी के दिन हुए तो एक चुटकी नमक के संग ये 90 एम एल का पेग गटक जाते हैं. कितना सब्र किया है इन बेचारों ने. जनता कर्फ्यू वाले दिन से अब तक लॉक डाउन की तीन पारियां हो गयी हैं और इतने लंबे इंतजार के बाद भले ही राजस्व के नाम पर ही सही, सरकार ने इनकी सुध ले ली और इजाजत दे दी कि ये शराब खरीद सकते हैं. लॉक डाउन 3 के पहले दिन जिस तरह की तस्वीरें और जैसे रुझान आ रहे हैं चाहे इंग्लिश हो या देसी. चौक वाली हो या चौराहे की. नज़ारा बेहद दिलचस्प है. माहौल बिल्कुल किसी महासेल जैसा और पहले आएं पहले पाएं की तर्ज पर है.
जैसी भीड़ शराब की दुकानों के बाहर है और जिस तरह लोग सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुए कतार में हैं शराब की इस महासेल को देखकर महसूस यही हो रहा है कि शायद शराब में ही जीवन का सार और उसका रहस्य छुपा है.
तकनीक के इस युग में ई कॉमर्स वेबसाइट ही हम जैसे लोगों का सहारा है मगर लोगों को इस तरह खरीदारी करते हुए तो कभी ब्लैक फ्राइडे वाली सेल में भी न देखा.
गृह मंत्रालय द्वारा जारी इस घोषणा के बाद कि 4 मई से शराब की दुकानें खुलेंगी और शराब मिलेगी उम्मीद तो थी कि भीड़ होगी मगर ऐसी होगी ये तो शायद देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक को अंदाजा नहीं था.
शराब की विंडो तक पहुंचने के लिए कतार में खड़ी भीड़ इस बात की तस्दीख कर देती है कि शराब ही जीवन दायनीय है. शराब ही पालन हार है. बिना शराब के जीवन संभव नहीं है.
चूंकि शराब को लेकर सरकार की तरफ से भी बड़ा फैसला हुआ था इसलिए दुकानदारों तक सप्लाई कैसे हुई? कब हुई ? दुकानदार नई शराब पिला रहे हैं या फिर ग्राहकों को पुराना ही माल पकड़ाया जा रहा है इसका जवाब या तो भगवान जानता है या फिर दुकानदार. मगर सरकार के इस फैसले से उन चेहरों पर ज़रूर मुस्कान है जो गुजरे एक डेढ़ महीनों से हंसना भूल गए थे. जिनके शरीर को मिलने वाली ऑक्सीजन जैसे किसी ने रोक दी थी.
बात शराब की बिक्री की हुई है साथ ही वर्णन उनका भी हुआ है जो कोरोना के रूप में इस महामारी को खारिज करके लंबी लंबी कतारों में खड़े हैं तो कहा यही जा सकता है कि त्योहार रूपी इस महासेल की महिमा वाक़ई अपरंपार है. लोग यहां ऐसे खड़े हैं जैसे कल प्रलय आ जाएगी और दुनिया खत्म हो जाएगी.
वैसे शराब की इस महासेल में जो बात सबसे अच्छी है वो है अनेकता में एकता. न, न कंफ्यूज होने की कोई ज़रूरत नहीं है क्या रेड ज़ोन, क्या ग्रीन और ऑरेंज ज़ोन आज इस शराब के मोह में दुनिया के सभी शराबी एक हो गए हैं. न कोई छोटा है न कोई बड़ा सबका उद्देश्य बस एक है कि कैसे भी करके वो शराब का एक घूंट अपनी हलक तले उतार सकें.
आज जिस तरह इस कोरोना काल मे देश के सारे शराबी एकजुट हुए हैं और जैसे उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई हैं महसूस हो रहा है कि मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी वो पंक्तियां जिसमें उन्होंने हाला और प्याला का जिक्र करते हुए मधुशाला के गुणों को बताया था उन पंक्तियों में कुछ भी रैंडम नहीं था. अब जब मूड बन गया है तो आइये कुछ और बात करने से पहले उन पंक्तियों को एक बार याद कर लिया जाए. कवि हरिवंश राय बच्चन कहते हैं कि...
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
'किस पथ से जाऊं?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूं-
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला.
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूं आगे को साहस है न फिरूं पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला.
वहीं कुछ पंक्तियों बाद कवी ने ये भी कहा कि
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला..
वहीं हरिवंश राय बच्चन की इस कविता में कुछ पंक्तियां ऐसी भी हैं जिनको देखकर लगता है कि शायद बच्चन जानते थे कि 2020 में लॉक डाउन आएगा
और लोग दीवानों की तरह शराब की दुकानों पर टूट पड़ेंगे.
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला
जिस तरह लोगों ने सरकार से शराब की दुकान खोले जाने का निवेदन किया बच्चन की वो पंक्तियाँ भी बहुत सटीक हैं जिसमें उन्होंने कहा कि
सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यदि साकीबाला,
मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो आकर, पर मधुशाला की,
कहा करो 'जय राम' न मिलकर, कहा करो 'जय मधुशाला'.
जैसे ही ये खबर आई कि लोगों की भीड़ मदिरालयों की तरफ कूच कर रही है शासन और प्रशासन के भी होश फाख्ता हो गए और उन दुकानों को बंद करा दिया गया जहां शराब बिक रही थी.
बहरहाल कुछ के गले तर हो गए हैं कुछ के होने बाकी हैं मगर एक ब्लंडर हुआ है जिसकी कीमत देश और देश के प्रधानमंत्री दोनों को चुकानी होगी। जैसे लोग सड़क में निकले हैं उसने उन सभी प्रयासों को ठेंगा दिखा दिया है जो अब तक कोरोना वायरस के खिलाफ जारी इस लड़ाई में हुए हैं. कोई बड़ी बात नहीं कि जब आने वाले वक़्त में हम उन ख़बरों को सुनें जिनमें दिल्ली के तब्लीगी जमात की ही तरह कोरोना फैलने में एक बड़ी भूमिका शराबियों की हो.
भविष्य क्या होगा इसका जवाब वक़्त देगा लेकिन जो वर्तमान है और जैसे उसमें हमने लोगों को भागते हुए ठेके की तरफ जाते देखा एक बड़ी चूक हुई है और शराब की इस महासेल में स्वास्थ्य पर असर उनके पड़ेगा जो अंगूर की बेटी के इस शौक से कोसों दूर थे.
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