Maggi Price Hike : दुनिया तरह-तरह के लोगों और पकवानों से भरी पड़ी है. चाहे घर का किचन हो. या नुक्कड़ का कोई ईटिंग जॉइंट. तमाम ऐसे फ़ूड आइटम हमारे आस पास हैं. जिनका जायका तो छोड़ ही दीजिये, जिन्हें सिर्फ देखने मात्र से जीभ के साथ साथ आत्मा तक तृप्त हो जाए. होते होंगे मोमो, बर्गर, पिज्जा, पराठे, पुलाव के शौक़ीन लेकिन शायद ही कोई हो जो आज इस भागादौड़ी भरी ज़िन्दगी में मैगी का या फिर मैगी से मुकाबला कर पाए. मैगी सिर्फ एक शब्द. एक फ़ूड आइटम नहीं बल्कि इमोशन है. इमोशन भी ऐसा जिसको अगर परखें तो ऐसी तमाम यादें हैं जो व्यक्ति चाहे कोई भी हो, उसे नॉस्टेल्जिया में डाल देंगी. होगा कोई इंजीनियरिंग स्टूडेंट जिसके बैकपेपर की साथी रही होगी मैगी या फिर सिविल की तैयारी कर रहे किसी स्टूडेंट ने सिर्फ इस भरोसे के साथ देर रात तक पढ़ाई की होगी कि मैगी उसके पास है. कुछ कर रहे हों तो मैगी. कुछ न हो करने को तो भी मैगी. फिल्म में मैगी. पिकनिक में मैगी. हिल स्टेशन गए वहां मैगी. बीच पर दूर तक फैले समुद्र को अठखेलियां करते हुए देखना और हाथ में मैगी की प्लेट... आह! मैगी एक ऐसा सुख है जिसकी कल्पना शब्दों में नहीं की जा सकती.
अब तक होता यही आया था कि अगर घर पर मां या बीवी ने लौकी, टिंडे, पालक, गोभी जैसी सब्जियां बनाई हों और उसे खाने का मन न हो तो बस जेब से 12 रुपए निकालने की देर थी. दुकानदार हाथ में मैगी का पैकेट पकड़ा देता था. फिर जो मुस्कान चेहरे पर आती क्या ही कहना ऐसा लगता जैसे हम सिकंदर और हमने किला फ़तेह कर लिया.
लेकिन हाय रे जालिम जमाना उससे हम आम लोगों की...
Maggi Price Hike : दुनिया तरह-तरह के लोगों और पकवानों से भरी पड़ी है. चाहे घर का किचन हो. या नुक्कड़ का कोई ईटिंग जॉइंट. तमाम ऐसे फ़ूड आइटम हमारे आस पास हैं. जिनका जायका तो छोड़ ही दीजिये, जिन्हें सिर्फ देखने मात्र से जीभ के साथ साथ आत्मा तक तृप्त हो जाए. होते होंगे मोमो, बर्गर, पिज्जा, पराठे, पुलाव के शौक़ीन लेकिन शायद ही कोई हो जो आज इस भागादौड़ी भरी ज़िन्दगी में मैगी का या फिर मैगी से मुकाबला कर पाए. मैगी सिर्फ एक शब्द. एक फ़ूड आइटम नहीं बल्कि इमोशन है. इमोशन भी ऐसा जिसको अगर परखें तो ऐसी तमाम यादें हैं जो व्यक्ति चाहे कोई भी हो, उसे नॉस्टेल्जिया में डाल देंगी. होगा कोई इंजीनियरिंग स्टूडेंट जिसके बैकपेपर की साथी रही होगी मैगी या फिर सिविल की तैयारी कर रहे किसी स्टूडेंट ने सिर्फ इस भरोसे के साथ देर रात तक पढ़ाई की होगी कि मैगी उसके पास है. कुछ कर रहे हों तो मैगी. कुछ न हो करने को तो भी मैगी. फिल्म में मैगी. पिकनिक में मैगी. हिल स्टेशन गए वहां मैगी. बीच पर दूर तक फैले समुद्र को अठखेलियां करते हुए देखना और हाथ में मैगी की प्लेट... आह! मैगी एक ऐसा सुख है जिसकी कल्पना शब्दों में नहीं की जा सकती.
अब तक होता यही आया था कि अगर घर पर मां या बीवी ने लौकी, टिंडे, पालक, गोभी जैसी सब्जियां बनाई हों और उसे खाने का मन न हो तो बस जेब से 12 रुपए निकालने की देर थी. दुकानदार हाथ में मैगी का पैकेट पकड़ा देता था. फिर जो मुस्कान चेहरे पर आती क्या ही कहना ऐसा लगता जैसे हम सिकंदर और हमने किला फ़तेह कर लिया.
लेकिन हाय रे जालिम जमाना उससे हम आम लोगों की ख़ुशी देखी न गयी. मैगी महंगी हो गयी है. 2 रुपए महंगी. कहने वाले कह देंगे इस महंगाई के दौर में क्या होता है 2 रुपयों में? बात सही है लेकिन विषय चूंकि मैगी है तो मैगी पर दो रुपए बढ़ना किसी भी सूरत में सही नहीं है. ये आम आदमी का, उसकी भावना का शोषण है. इसका विरोध होना चाहिए. हर सूरत में होना चाहिए.
जिस तरह का ये अत्याचार है अपन तो ये तक कहेंगे कि लखनऊ- अयोध्या-पटना- बेंगलुरु वालों दिल्ली चलो. दिल्ली वालों तुम जंतर मंतर चलो. मैगी के दाम बढ़ें हैं. और हालात क्योंकि हमारे पक्ष में नहीं हैं हम मैगी लवर्स को उन सवालों से, उन तर्कों से भी दो चार होना पड़ रहा है जिसमें वाक़ई कोई लॉजिक नहीं है.
ध्यान रहे तमाम मैगी हेटर्स द्वारा कहा गया है कि पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं. डीजल के दाम बढ़ रहे हैं. शक्कर, दूध,साग, सब्जी, नमक और सबसे बढ़कर सरसों का तेल और रिफाइंड की कीमतें बढ़ रही हैं तो क्यों मैगी पर इतना और इस हद तक हो हल्ला करना.
सब बात ठीक है लेकिन फिर हम अपने सवालों पर जस का तस हैं. हमारा एजेंडा एकदम क्लियर है. एलपीजी, पेट्रोल, डीजल जाए भाड़ में गुजरे एक हफ्ते से मैगी 2 रुपए महंगी हुई है और ये हमारे लिए किसी क़यामत से कम नहीं है.
आगे बात होगी और भरपूर होगी लेकिन वो तमाम लोग जो इतनी बातों को पढ़कर हमें अति भावुक का तमगा लगा दें पहले इस बात को जान लें कि ये कोई पहली बार नहीं है जब महंगाई की सारी गाज मैगी पार गिरी है. याद कीजिये वो दौर जब मैगी को लेकर MSG वाला 'प्रोपोगेंडा' फैलाया गया. तब इस बेचारी मैगी ने क्या कुछ नहीं सहा और नौबत वो भी आई जब हफ़्तों हफ़्तों तक बाजार की शेल्फ से मैगी गायब रही और मौकापरस्तों की भेंट चढ़ी तब भी हमने क़ुरबानी दी और इसे उनकी मुंह मांगी कीमतों पर खरीदा.
क्या ये कम नहीं था? फिर वो वक़्त क्यों नहीं मैगी के आलोचकों को याद आता जब अभी दो साल पहले कोरोना के चलते देश में लॉक डाउन लगा था. दुकानें बंद होने वाली थी. क्या बच्चे क्या बड़े सभी घरों में थे तो भर भर के लोगों ने इसे अपने अपने घरों में स्टॉक किया. तब भी हम मैगी लवर्स ने मैगी के और उसकी बढ़ी हुई कीमतों के लिहाज से बड़ी कीमत चुकाई.
फिर जब लॉक डाउन ख़त्म हुआ तो हमारी 10 की मैगी 12 की हो गयी. और आज 14 की... बस यही हकीकत है और फिर इसके बाद जो है वो कोरा फ़साना है. मैगी प्राइस राइस का जिम्मेदार राज्य है या केंद्र फैसला जनता करे लेकिन सरकार को एक बार फिर इस विषय में सोचना चाहिए.
ये जो हुआ है बिलकुल भी अच्छा नहीं हुआ है. मैगी खाने वालों पर उनकी भावना पर बड़ा और करारा हमला किया गया है. विपक्ष इसे मुद्दा बनाए. सदन में उठाए और चाहे तो सत्ता पक्ष का इस्तीफ़ा मांग ले.
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