सुबह से ही अभिनेता हो रहे हैं. ट्रोल होना बोले तो उनकी जमकर रगड़ाई चल रही है . उन्होंने अपने ट्विटर से यह खबर साझा किया है कि उन्हें वर्ष 2021 के लीजेंड दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला है. इस खबर के साथ उन्होंने पुरस्कार समारोह की तस्वीरें भी साझा की है. एकबारगी तो इस खबर से मैं भी चौंक गया. भाई चौंकने वाली बात भी है. इस ख़बर को पढ़ने वक्त मैंने भी बहुत लोगों की तरह पुरस्कार के नाम में जुड़े 'लीजेंड' शब्द को इग्नोर कर सिर्फ 'दादा साहब फाल्के' के नाम को ही कायदे से पढ़ा. आखिरकार भाई साहब 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' भारतीय सिनेमा जगत् का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है. अब भी भारतीय सिनेमा जगत की कई नामचीन हस्तियों को यह पुरस्कार नहीं मिला है जो सही मायनों में इसकी हक़दार हैं. ऐसे में सिवाय प्रसिद्ध महाभारत सीरियल में युधिष्ठिर की उल्लेखनीय भूमिका के और कुछ फिल्मों में निभाई फुटकर किंतु सामान्य भूमिकाओं के ऐसा तो कोई ख़ास अवदान गजेंद्र चौहान साहब का है नहीं. जो उन्हें प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लायक समझा गया हो.
ख़ैर अब तो वह दौर चल रहा है जहां लायकपनें के लिए कई और कसौटियां बन चुकी है. 'नेशन ऑफ़ फॉदर' के इस दौर में कुछ भी संभव हैं. वैसे भी सरकार से नजदीकियों के चलते गजेंद्र चौहान भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान ( एफटीआई) पुणे के चेयरमैन की कुर्सी पर बैठ चुके है. उस समय भी इन्हें ऐसी ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. ऐसे ही आज जब लोगों ने गजेंद्र चौहान का ट्वीट पढ़ा तो लगे हल्ला मचाने.
जिन लोगों को लगा कि उन्हें ओरिजनल वाला दादा साहेब...
सुबह से ही अभिनेता हो रहे हैं. ट्रोल होना बोले तो उनकी जमकर रगड़ाई चल रही है . उन्होंने अपने ट्विटर से यह खबर साझा किया है कि उन्हें वर्ष 2021 के लीजेंड दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला है. इस खबर के साथ उन्होंने पुरस्कार समारोह की तस्वीरें भी साझा की है. एकबारगी तो इस खबर से मैं भी चौंक गया. भाई चौंकने वाली बात भी है. इस ख़बर को पढ़ने वक्त मैंने भी बहुत लोगों की तरह पुरस्कार के नाम में जुड़े 'लीजेंड' शब्द को इग्नोर कर सिर्फ 'दादा साहब फाल्के' के नाम को ही कायदे से पढ़ा. आखिरकार भाई साहब 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' भारतीय सिनेमा जगत् का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है. अब भी भारतीय सिनेमा जगत की कई नामचीन हस्तियों को यह पुरस्कार नहीं मिला है जो सही मायनों में इसकी हक़दार हैं. ऐसे में सिवाय प्रसिद्ध महाभारत सीरियल में युधिष्ठिर की उल्लेखनीय भूमिका के और कुछ फिल्मों में निभाई फुटकर किंतु सामान्य भूमिकाओं के ऐसा तो कोई ख़ास अवदान गजेंद्र चौहान साहब का है नहीं. जो उन्हें प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लायक समझा गया हो.
ख़ैर अब तो वह दौर चल रहा है जहां लायकपनें के लिए कई और कसौटियां बन चुकी है. 'नेशन ऑफ़ फॉदर' के इस दौर में कुछ भी संभव हैं. वैसे भी सरकार से नजदीकियों के चलते गजेंद्र चौहान भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान ( एफटीआई) पुणे के चेयरमैन की कुर्सी पर बैठ चुके है. उस समय भी इन्हें ऐसी ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. ऐसे ही आज जब लोगों ने गजेंद्र चौहान का ट्वीट पढ़ा तो लगे हल्ला मचाने.
जिन लोगों को लगा कि उन्हें ओरिजनल वाला दादा साहेब पुरस्कार मिला है वे तो ऐसे ऐसे कमेंट कर रहे कि आपको पढ़ सुनकर हंसी जाए. कोई जहां इन्हें फर्जी कह रहा है तो कोई इनसे उस श्रेणी का नाम पूछ रहा है जिसमें इन्हें यह पुरस्कार मिला है. राजेंद्र नाम के यूजर ने लिखा है कि 'हनुमान यंत्र और लक्ष्मी यंत्र के विज्ञापन वीडियों में आपके शानदार प्रदर्शन और पथप्रदर्शक अभिनय के लिए शानदार अवार्ड.' इसी प्रकार अन्य यूजर ने टिप्पणी कि ...'और इस तरह आज दादा साहब फाल्के की आत्मा ने भी आत्महत्या कर लिया.'
फ़िलहाल फिकर नॉट ब्रो! ऐसा कुछ भी नहीं हुआ कि आप सब कला प्रेमियों को आहत होना पड़े. अभिनेता गजेन्द्र चौहान ने भी कोई गलत या फेक सूचना नहीं दी है. अभिनेता गजेंद्र चौहान के द्वारा तस्वीर में जिस ट्रॉफी के साथ दिख रहे हैं उसके ऊपर ‘KCF’ लिखा हुआ है और वो दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की ट्रॉफी से बिल्कुल अलग दिख रही है. दरअसल ये पुरस्कार कृष्ण चौहान फाउंडेशन की तरफ से दिया जाता है.
इस दादा साहब फाल्के पुरस्कार का नाम 'लीजेंड दादा साहब फाल्के पुरस्कार' है न कि भारत सरकार के द्वारा दिया जाने वाला दादा साहब फाल्के पुरस्कार जो कि भारतीय सिनेमा जगत का सर्वोच्च सम्मान है. वैसे आपको जानकारी के लिए बता दे वर्ष 2019 के लिए सरकार द्वारा प्रख्यात अभिनेता रजनीकांत को देने की घोषणा की गई है जो उन्हें इस वर्ष दिया जाएगा.
इस पूरे मसले में एक बात तो स्पष्ट है कि अभिनेता गजेंद्र चौहान दादा साहब फाल्के अवॉर्ड के नाम के साथ अपना नाम जोड़कर जो हवा बनाना चाह रहे थे... भाई लोगों ने उसकी कायदे से बैंड बजा दी. बैंड ही नहीं छील छील कर पूरा जूलूस ही निकाल दिया. मतलब चौबे जी चले थे छब्बे बनने और दुबे बनकर लौटे.
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