इंसान के जीवन का सबसे अच्छा क्षण उसका बचपन होता है. बात बचपन की हो और व्यक्ति अपने पिटने का जिक्र न करे तो कही गयी सारी बात का रस खत्म हो जाता है. व्यक्ति अपनी मां से पिटता है, पिता से डपटा जाता है, भाई या बहन से दो-चार हाथ खाता है. ये सारी प्रक्रिया घर के अन्दर होती है. घर के अन्दर हम बात-बेबात बेल्ट, पानी के पाइप, चप्पल, बेलन और कभी-कभी छड़ी से मार खाए हुए होते हैं. घर में हमारी भले ही कितनी दुर्दशा हुई हो. मगर घर के बाहर खुले में या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो मजाल है हमारी अपार शरारतों के बावजूद पड़ोस वाले गुप्ता जी की मिसेज गुप्ता ने कभी हमें छुआ भर हो. या फिर कभी बबलू की मम्मी ने हमें घूरने की गलती की हो. इसकी वजह पर गौर करिए तो मिलता है कि भले ही हमारे अन्दर शरारत कूट-कूट के भरी थी, भले ही हम घर में उस कुटी हुई शरारत के लिए जी भर के कूटे गए लेकिन बाहर वालों के सामने हमेशा ही हमारे घर वालों ने हमें "राजा बेटा" "अच्छा बेटा" कहा और हमारी गलती के बावजूद उन बाहर वालों के रोष और आक्रोश से बचाया.
यही बात राजनीति में भी लागू होती है.पार्टी के लड़के भले ही काम पूरा न कर पा रहे हों, भले ही उनकी कार्यप्रणाली से सब नाखुश हों मगर सीनियर्स द्वारा सदैव ही जूनियर्स को बचाया जाता है. सीनियर, जूनियर को घर के अन्दर कुछ भी कह सकता है, मगर बात जब जूनियर की साख की आएगी तो इसमें कोई संदेह नहीं कि अपने बड़प्पन का परिचय देते हुए सीनियर द्वारा उसे पूरा सपोर्ट दिया जाएगा. कहा जा सकता है कि राजनीति में एक ही पार्टी का सीनियर कभी अपने जूनियर का बुरा नहीं चाहेगा. वो सदैव उसे बचाएगा और कभी उसका अहित नहीं चाहेगा. इस बात को समझने के लिए हम कांग्रेस के वरिष्ठ...
इंसान के जीवन का सबसे अच्छा क्षण उसका बचपन होता है. बात बचपन की हो और व्यक्ति अपने पिटने का जिक्र न करे तो कही गयी सारी बात का रस खत्म हो जाता है. व्यक्ति अपनी मां से पिटता है, पिता से डपटा जाता है, भाई या बहन से दो-चार हाथ खाता है. ये सारी प्रक्रिया घर के अन्दर होती है. घर के अन्दर हम बात-बेबात बेल्ट, पानी के पाइप, चप्पल, बेलन और कभी-कभी छड़ी से मार खाए हुए होते हैं. घर में हमारी भले ही कितनी दुर्दशा हुई हो. मगर घर के बाहर खुले में या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो मजाल है हमारी अपार शरारतों के बावजूद पड़ोस वाले गुप्ता जी की मिसेज गुप्ता ने कभी हमें छुआ भर हो. या फिर कभी बबलू की मम्मी ने हमें घूरने की गलती की हो. इसकी वजह पर गौर करिए तो मिलता है कि भले ही हमारे अन्दर शरारत कूट-कूट के भरी थी, भले ही हम घर में उस कुटी हुई शरारत के लिए जी भर के कूटे गए लेकिन बाहर वालों के सामने हमेशा ही हमारे घर वालों ने हमें "राजा बेटा" "अच्छा बेटा" कहा और हमारी गलती के बावजूद उन बाहर वालों के रोष और आक्रोश से बचाया.
यही बात राजनीति में भी लागू होती है.पार्टी के लड़के भले ही काम पूरा न कर पा रहे हों, भले ही उनकी कार्यप्रणाली से सब नाखुश हों मगर सीनियर्स द्वारा सदैव ही जूनियर्स को बचाया जाता है. सीनियर, जूनियर को घर के अन्दर कुछ भी कह सकता है, मगर बात जब जूनियर की साख की आएगी तो इसमें कोई संदेह नहीं कि अपने बड़प्पन का परिचय देते हुए सीनियर द्वारा उसे पूरा सपोर्ट दिया जाएगा. कहा जा सकता है कि राजनीति में एक ही पार्टी का सीनियर कभी अपने जूनियर का बुरा नहीं चाहेगा. वो सदैव उसे बचाएगा और कभी उसका अहित नहीं चाहेगा. इस बात को समझने के लिए हम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर और राहुल गांधी का उदाहरण ले सकते है.
घर की बात को घर में करते हुए, मणिशंकर ने राहुल गांधी को औरंगजेब बताया है, मगर उनकी इस बात से भारत की पूरी सियासत में कोहराम बच गया है और तीनों कांग्रेस, मणिशंकर अय्यर और राहुल गांधी लोगों की आलोचना का केंद्र बन गए हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. सोशल मीडिया पर एक निजी चैनल का विडियो वायरल हुआ है जिसमें मणिशंकर अय्यर कांग्रेस पार्टी के दफ्तर के बाहर हैं और पत्रकार द्वारा शहजाद पूनावाला द्वारा लगाए गए वंशवाद के आरोप पर सवाल पूछने पर कह रहे हैं कि. 'जब जहाँगीर की जगह शाहजहाँ आए तो कोई इलेक्शन हुआ? जब शाहजहाँ की जहां औरंगजेब आए तो कोई इलेक्शन हुआ? पहले से पता था जो बादशाह है उनकी औलाद ही राजा बनेगी इसलिए राहुल ही राजा बनेंगे.
बात घर की है. मणिशंकर, राहुल को औरंगजेब कहें या छत्रपति शिवाजी ने उनके और राहुल के बीच का मामला है. हमें इस पर भावुक और विपक्ष को इस पर जरा भी जज्बाती नहीं होना चाहिए और हंसते मुस्कुराते हुए इस बात को हवा में उड़ा देना चाहिए. बाक़ी अगर बात ज्यादा सीरियस हो गयी है तो फिर इसके लिए हमें और विपक्ष को नहीं, बल्कि राहुल गांधी को गंभीर होना चाहिए और उन कारणों को तलाशना चाहिए जिनके चलते घर के बड़े और रिश्ते से चाचा मणिशंकर ने उन्हें राजा तो कहा मगर एक से दौर में जब रोज नया इतिहास बन रहा है, तुलना औरंगजेब से कर दी.
ध्यान रहे इतिहास ने कभी औरंगजेब को नेक नहीं माना है और एक ऐसे बादशाह की संज्ञा दी जिसकी हठधर्मिता से उसके राज्य का प्रत्येक नागरिक परेशान था. बहरहाल अब जब मणिशंकर अय्यर ने राहुल को औरंगजेब कह दिया है तो हमें ये मान लेना चाहिए कि उनके जिद्दी स्वाभाव से न सिर्फ उनसे "मम्मी" "चाचा" "बुआ" "दीदी" "जीजाजी" परेशान हैं. बल्कि अगर वो पार्टी के अध्यक्ष बन गए तो इस ऐतिहासिक घटना से पूरा देश परेशान होगा.
बहरहाल इस बयान पर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर लोगों का अपना मत है और वो दिल खोल के अपने खास अंदाज में अपनी बात रख रहे हैं.
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