थकाऊ मॉनसून सेशन के खूबसूरत खात्मे के बाद सोनिया गांधी रिलैक्स कर रही थीं. राहुल और प्रियंका छुट्टियां प्लान करने के लिए ममा को मनाने में लगे थे लेकिन इधर उधर की बात चलती रही. बीच बीच में झपकी आ रही थी इसलिए फाइनल फैसला टाल दिया गया. नींद बड़ी मीठी आई वैसे भी सरकार को छकाने के बाद इतना तो बनता ही है.
आंख लगे ज्यादा देर भी नहीं हुई कि कब सपने में लक्षद्वीप पहुंच गईं, पता ही नहीं चला. सपने में सोनिया की मां भी साथ थीं - और बच्चे भी.
नई पुरानी बातों के अलावा सेहत को लेकर भी मां ने हाल चाल पूछे. प्रियंका के बच्चों की भी बात चली - अब तो डैडू के साथ जिम भी जाने लगे हैं. घूम फिर कर बात राहुल पर आ टिकी. और मां शुरू हो गईं जैसे सोनिया अब भी बच्ची ही हों. खैर, मां के लिए तो ऐसा लगना लाजिमी है.
"तू इसे कब तक आंचल में छुपा कर रखना चाहती है? ये बड़ा हो गया है. अब इसे खुला छोड़ दे."
"श्योर ममा."
"आखिर तू इस पर अपने फैसले क्यों थोपना चाहती है? इसे जीने दे अपनी जिंदगी. आखिर इसके भी तो कुछ सपने होंगे..."
"बट ममा..."
"नो! इफ-बट नहीं... देख, यही तेरे मुल्क..."
"ममा, डोन्त से अबाउत माय मुल्क..."
"अरे तू तो... मैं तेरे मुल्क के बारे में कुछ क्यों कहूं?"
"बोलना भी मट..."
"और वैसे भी अब तेरे से मुल्क के बारे में कुछ कहने से क्या फायदा. हां, वो मरींस को लेकर जरूर कुछ सोच रही थी, लेकिन अब तेरी सरकार तो रही नहीं."
"जी ममा..."
"खैर छो़ड़, मैं सुषमा से खुद ही बात कर लूंगी. बहुत अच्छी है वो. मैंने काफी सुना है उसके बारे में. सबकी मदद करती है."
"आप राहुल को लेकर कुछ कहना चाह रहे थे..."
"हां, मैं कह रही थी कि इंडिया में ज्यादातर पेरेंट्स बच्चों पर अपने फैसले थोप देते हैं - तू भी वही कर रही है."
"ममा, आप ऐसा कैसे कै सकटे हो?"
"और नहीं तो क्या? उसकी अपनी कोई जिंदगी है कि नहीं?"
"देख, तू एक काम कर. ये पार्टी और पॉलिटिक्स...
थकाऊ मॉनसून सेशन के खूबसूरत खात्मे के बाद सोनिया गांधी रिलैक्स कर रही थीं. राहुल और प्रियंका छुट्टियां प्लान करने के लिए ममा को मनाने में लगे थे लेकिन इधर उधर की बात चलती रही. बीच बीच में झपकी आ रही थी इसलिए फाइनल फैसला टाल दिया गया. नींद बड़ी मीठी आई वैसे भी सरकार को छकाने के बाद इतना तो बनता ही है.
आंख लगे ज्यादा देर भी नहीं हुई कि कब सपने में लक्षद्वीप पहुंच गईं, पता ही नहीं चला. सपने में सोनिया की मां भी साथ थीं - और बच्चे भी.
नई पुरानी बातों के अलावा सेहत को लेकर भी मां ने हाल चाल पूछे. प्रियंका के बच्चों की भी बात चली - अब तो डैडू के साथ जिम भी जाने लगे हैं. घूम फिर कर बात राहुल पर आ टिकी. और मां शुरू हो गईं जैसे सोनिया अब भी बच्ची ही हों. खैर, मां के लिए तो ऐसा लगना लाजिमी है.
"तू इसे कब तक आंचल में छुपा कर रखना चाहती है? ये बड़ा हो गया है. अब इसे खुला छोड़ दे."
"श्योर ममा."
"आखिर तू इस पर अपने फैसले क्यों थोपना चाहती है? इसे जीने दे अपनी जिंदगी. आखिर इसके भी तो कुछ सपने होंगे..."
"बट ममा..."
"नो! इफ-बट नहीं... देख, यही तेरे मुल्क..."
"ममा, डोन्त से अबाउत माय मुल्क..."
"अरे तू तो... मैं तेरे मुल्क के बारे में कुछ क्यों कहूं?"
"बोलना भी मट..."
"और वैसे भी अब तेरे से मुल्क के बारे में कुछ कहने से क्या फायदा. हां, वो मरींस को लेकर जरूर कुछ सोच रही थी, लेकिन अब तेरी सरकार तो रही नहीं."
"जी ममा..."
"खैर छो़ड़, मैं सुषमा से खुद ही बात कर लूंगी. बहुत अच्छी है वो. मैंने काफी सुना है उसके बारे में. सबकी मदद करती है."
"आप राहुल को लेकर कुछ कहना चाह रहे थे..."
"हां, मैं कह रही थी कि इंडिया में ज्यादातर पेरेंट्स बच्चों पर अपने फैसले थोप देते हैं - तू भी वही कर रही है."
"ममा, आप ऐसा कैसे कै सकटे हो?"
"और नहीं तो क्या? उसकी अपनी कोई जिंदगी है कि नहीं?"
"देख, तू एक काम कर. ये पार्टी और पॉलिटिक्स प्रियंका को हैंडओवर कर दे. और तू थोड़ा अपनी तबीयत का भी ख्याल कर."
फिर तीनों प्रियंका की ओर देखने लगे. ऐसा लग रहा था राहुल की भी मौन स्वीकृति है.
"यही सही रहेगा. मौका अच्छा है. वो तेरे यहां चल रहा है ना - बेटी बढ़ाओ, बेटी... ये ठीक रहेगा. और तू फिक्र मत कर. जब इसने रॉबर्ट को रास्ते पर ला दिया... फिर बाकी तो उसके आगे कुछ भी नहीं."
"ओके, ममा..."
"और उससे पहले. सबसे जरूरी काम. राहुल को भी अपना घर बसाने दे."
सोनिया चुपचाप मां की बातें सुन रही थीं. अगले ही पल नानी, नाती से मुखातिब थीं.
"कोई लड़की देख रखी है? देखी है कि नईं? इसको छोड़ो... हो तो बताओ?"
राहुल बस मुस्कुराए. कुछ शर्माते हुए से. गालों पर डिंपल्स गहरे हो गए. सभी की नजरें राहुल के चमकते चेहरे पर फोकस हो गईं.
और...
"मॉम उठो, नानी का फोन है," सामने खड़ी प्रियंका बोलीं. राहुल भी पास थे.
"हेलो, ममा..." काफी देर तक मां-बेटी की बातें चलती रहीं. कुछ सपने, कुछ हकीकत.
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