'बदले की भावना' को इंसान का स्वाभाविक गुण माना जाता है. रामायण में सीताहरण का बदला रावण से लिया गया, महाभारत में द्रौपदी के अपमान का बदला लिया गया. इन उदाहरणों को बताने का मकसद केवल इतना है कि ईरान से लेकर तूरान तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बदला लेने की प्रवृत्ति आमतौर पर हर जगह कुछ कम या ज्यादा मात्रा में मिलती ही रहती है. और, इसमें देवता या मनुष्यों के बीच कोई खास फर्क नहीं होता है. भगवान परशुराम ने तो माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 21 बार इस धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया था. मेरी इस बात को राजनीति (Politics) के क्षेत्र में मत ले जाइएगा. वरना विपक्षी दल तो इसे हाथों हाथ ले लेंगे. क्योंकि, उनके हिसाब से उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का नाम अजय सिंह बिष्ट है. लेकिन, इससे सीएम योगी आदित्यनाथ के भड़कने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. खैर, बदले की भावना में किए गए अपराधों का जिक्र करना यहां मुनासिब नहीं होगा. क्योंकि, वो इतने वीभत्स और भयावह होते हैं कि किसी भी आदमी की रूह कांप जाए.
वैसे, बॉलीवुड (Bollywood) फिल्मों में भी विलेन से 'बदला' लेने के लिए हीरो किसी भी हद से गुजरने को तैयार रहता है. गैंग्स ऑफ वासेपुर में तो सरदार खान बने मनोज बाजपेयी कहते हुए दिखते हैं कि उनकी जिंदगी का एकै मकसद है 'बदला'. वैसे, 80 के दशक में आई फिल्म नागिन का प्लॉट भी बदले पर ही आधारित था. जहां इच्छाधारी नाग की मौत के बाद नागिन उसका बदला (Revenge) लेने के लिए नायकों की पूरी फौज का खात्मा करने निकल पड़ती है. अब बॉलीवुड फिल्मों (Film) में लॉजिक जैसी चिड़िया न उस जमाने में होती थी और न आज होती है, तो मुंबई की मायानगरी से हमें कोई रंज है भी नहीं. दर्शक मनोरंजन के लिए सिनेमा देखने जाता है, जो उसे मिलता है. यहां चेतावनी देना जरूरी है कि मैं किसी भी हाल में सलमान भाई की 'राधे' फिल्म में मनोरंजन ढ़ूंढने को नहीं कह रहा हूं. कुल मिलाकर बदले की ये तमाम कहानियां इंसानों और बॉलीवुड फिल्मों तक ही सीमित नजर आती हैं.
'बदले की भावना' को इंसान का स्वाभाविक गुण माना जाता है. रामायण में सीताहरण का बदला रावण से लिया गया, महाभारत में द्रौपदी के अपमान का बदला लिया गया. इन उदाहरणों को बताने का मकसद केवल इतना है कि ईरान से लेकर तूरान तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बदला लेने की प्रवृत्ति आमतौर पर हर जगह कुछ कम या ज्यादा मात्रा में मिलती ही रहती है. और, इसमें देवता या मनुष्यों के बीच कोई खास फर्क नहीं होता है. भगवान परशुराम ने तो माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 21 बार इस धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया था. मेरी इस बात को राजनीति (Politics) के क्षेत्र में मत ले जाइएगा. वरना विपक्षी दल तो इसे हाथों हाथ ले लेंगे. क्योंकि, उनके हिसाब से उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का नाम अजय सिंह बिष्ट है. लेकिन, इससे सीएम योगी आदित्यनाथ के भड़कने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. खैर, बदले की भावना में किए गए अपराधों का जिक्र करना यहां मुनासिब नहीं होगा. क्योंकि, वो इतने वीभत्स और भयावह होते हैं कि किसी भी आदमी की रूह कांप जाए.
वैसे, बॉलीवुड (Bollywood) फिल्मों में भी विलेन से 'बदला' लेने के लिए हीरो किसी भी हद से गुजरने को तैयार रहता है. गैंग्स ऑफ वासेपुर में तो सरदार खान बने मनोज बाजपेयी कहते हुए दिखते हैं कि उनकी जिंदगी का एकै मकसद है 'बदला'. वैसे, 80 के दशक में आई फिल्म नागिन का प्लॉट भी बदले पर ही आधारित था. जहां इच्छाधारी नाग की मौत के बाद नागिन उसका बदला (Revenge) लेने के लिए नायकों की पूरी फौज का खात्मा करने निकल पड़ती है. अब बॉलीवुड फिल्मों (Film) में लॉजिक जैसी चिड़िया न उस जमाने में होती थी और न आज होती है, तो मुंबई की मायानगरी से हमें कोई रंज है भी नहीं. दर्शक मनोरंजन के लिए सिनेमा देखने जाता है, जो उसे मिलता है. यहां चेतावनी देना जरूरी है कि मैं किसी भी हाल में सलमान भाई की 'राधे' फिल्म में मनोरंजन ढ़ूंढने को नहीं कह रहा हूं. कुल मिलाकर बदले की ये तमाम कहानियां इंसानों और बॉलीवुड फिल्मों तक ही सीमित नजर आती हैं.
फिल्मों को छोड़ दिया जाए, तो असल जिंदगी में जानवरों में बदला लेने जैसी भावना आमतौर पर दिखाई नहीं देती है. लेकिन, दिखाई नहीं देने का ये मतलब नहीं है कि ऐसा होना असंभव है. सामान्य तौर पर बंदर (Monkey) अपने बंदर होने का फर्ज निभाते हैं. लोगों से खाने की चीजें छीन लेना, परेशान करने पर लोगों को काट लेने जैसी घटनाएं बंदरों को लेकर गाहे-बगाहे सामने आती रहती हैं. लेकिन, कर्नाटक के चिक्कमगलूर जिले के एक गांव में आम से दिखने वाले बोनट मकाक प्रजाति के एक बंदर ने खलनायक का रूप धारण कर लिया.
बंदर की कहानी के आगे बॉलीवुड की फिल्म फेल
न्यूज 18 में छपी एक खबर के अनुसार, कोट्टगेहारा गांव के रहने वाले जगदीश की जिंदगी को इस बंदर ने नरक से भी बदतर कर दिया था. दरअसल, बंदर अपनी आदत के हिसाब से शरारती तो होते ही हैं, तो ये महाशय भी काफी समय से इस क्षेत्र में भरपूर उत्पात मचा रहे थे. पहले लोगों ने इस बंदर की सामान्य हरकत मानकर नजरअंदाज कर दिया. लेकिन, धीरे-धीरे इन जनाब की कारस्तानियां बढ़ने लगीं. जिसके बाद लोगों ने इस शिकायत वन विभाग के अधिकारियों से कर दी. तो, बंदर पकड़ने के लिए वन विभाग की टीम आई. टीम ने स्थानीय लोगों की मदद से तीन घंटे में इस बंदर को पकड़ लिया. लेकिन, अगर आप सोच रहे हैं कि कहानी खत्म हो गई है, तो ये आपकी भूल है. इन तीन घंटों के दौरान बंदर को पकड़ने के लिए ऑटो चालक जगदीश भी अन्य लोगों के साथ शामिल थे. बंदर को पकड़ने की कोशिश कर रही टीम की मदद के लिए जगदीश ने बंदर को चिढ़ा दिया. जिसके बाद बंदर अचानक से भड़क गया.
बंदर ने आव देखा न ताव सीधे जगदीश पर टूट पड़ा और जगदीश को काट लिया. ऑटो चालक किसी तरह वहां से अपनी जान बचाकर भागा. लेकिन, बंदर को तो जगदीश अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा विलेन नजर आ रहा था, तो हुआ कुछ ऐसा कि बंदर ने ऑटो चालक को दौड़ाना शुरू किया. दौड़ शुरू हुई तो, जगदीश आगे-आगे और बंदर पीछे-पीछे. आखिरकार जगदीश अपनी जान बचाने के लिए अपने ऑटो रिक्शा में छिप गए. बंदर ने ये देख लिया, तो उसने उनकी ऑटो रिक्शा की कवरिंग शीट को पूरी तरह से फाड़ डाला. मतलब एक बंदर के तौर पर वो जो कुछ कर सकता था, उसने किया. जैसे, शराब के नशे में किसी के नौटंकी करने पर 'हाईप्रोफाइल ड्रामा' जैसी लाइनें लिखी जाती हैं. ठीक वैसा ही कुछ यहां भी चला. बंदर ने बदला लेने के लिए जगदीश को काटा और ऑटो रिक्शा को नुकसान पहुंचाया सो अलग. खैर, तीन घंटे की जद्दोजहद के बाद वन विभाग की टीम ने बंदर को पकड़ लिया और उसे 22 किमी दूर एक जंगल में छोड़ आए. लेकिन, ये फिल्मी कहानी यहीं खत्म नहीं होती है.
बंदर के जाने के बाद लोग फिर से अपने रोजमर्रा के काम करने लगे. लेकिन, एक हफ्ते के बाद ये बंदर फिर से गांव में वापस आ गया. मीडिया रिपोर्ट की मानें, तो ये बंदर बदला लेने के लिए फिर से वापस गांव में आ गया. वैसे, चचा डार्विन यूं ही मानव विकास के सिद्धांत में ये नहीं बता गए थे कि बंदरों में हुए क्रमिक विकास से ही मनुष्य बना. अब चचा डार्विन कह गए हैं, तो बंदर में थोड़ी-बहुत अकल होगी ही. तो, बंदर ने अपनी उसी अकल का इस्तेमाल किया और जंगल के बाहर वाली सड़क से गुजर रहे एक ट्रक पर बैठकर गांव वापस आ गया. बताया जा रहा है कि गांव में वापसी के साथ ही बंदर ने जगदीश के घर के आसपास घूमना शुरू कर दिया. बंदर को देखकर दहशत के मारे जगदीश फिर से घर में कैद हो गए. उन्होंने फिर से वन विभाग को शिकायत की. हालांकि, बंदर को फिर से पकड़कर इस बार और दूर के जंगल में छोड़ दिया गया है. लेकिन, जगदीश की हालत ऐसी हो गई है कि हर बंदर को देखकर उन्हें डर लगने लगता है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.