ये तय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव ना सिर्फ जीवन का सबसे महत्वपूर्ण बल्कि निर्णायक चुनाव भी है. 2014 से पहले करीब 13 वर्ष तक देश ने उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर देखा था. 2014 लोकसभा चुनाव प्रचार में मोदी ने गुजरात के अपने विकास मॉडल को आगे रखकर देश के लोगों से प्रधानमंत्री बनाने के लिए समर्थन मांगा. देश की जनता ने उन पर विश्वास कर ऐसा समर्थन दिया कि देश में तीन दशक बाद केंद्र में किसी पार्टी को खुद के बूते सरकार बनाने के लिए बहुमत मिला.
लेकिन मोदी के लिए केंद्र में 2019 की चुनौती 2014 से ज़्यादा कठिन है. मोदी 2014 में गुजरात से बाहर समूचे देश की जनता के लिए बंद मुट्ठी के समान थे. लेकिन अब वो बंद मुट्ठी खुल चुकी है. मोदी की अगुआई में एनडीए सरकार के करीब 58 माह के कार्यकाल को देश देख चुका है और उसी आधार पर 2019 लोकसभा चुनाव का फैसला 23 मई को सुनाएगा. अब ये मोदी के लिए अच्छा होगा या बुरा, ये मन की बात तो अभी देश की जनता के मन में ही छुपी है.
खैर अभी देखते हैं कि 26 मई 2014 को देश का प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने सबसे पहला और अहम फैसला क्या लिया था. तब 64 वर्ष के मोदी ने साफ किया था कि बीजेपी में 75 वर्ष से ऊपर के लोगों को मंत्री पद नहीं मिलेगा. इससे 2014 में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, सुब्रहामण्यण स्वामी और शांता कुमार जैसे 75 वर्ष की आयु पार कर चुके नेताओं का पत्ता स्वत: ही मंत्री पद के लिए कट गया. ज़ाहिर है इसकी खोंच इन सभी नेताओं के मन में अवश्य रही होगी.
मोदी ने उम्र का ये जो पैमाना तय किया, उस के हिसाब से 2024 के बाद खुद उन पर भी ये लागू हो जाएगा. 17...
ये तय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव ना सिर्फ जीवन का सबसे महत्वपूर्ण बल्कि निर्णायक चुनाव भी है. 2014 से पहले करीब 13 वर्ष तक देश ने उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर देखा था. 2014 लोकसभा चुनाव प्रचार में मोदी ने गुजरात के अपने विकास मॉडल को आगे रखकर देश के लोगों से प्रधानमंत्री बनाने के लिए समर्थन मांगा. देश की जनता ने उन पर विश्वास कर ऐसा समर्थन दिया कि देश में तीन दशक बाद केंद्र में किसी पार्टी को खुद के बूते सरकार बनाने के लिए बहुमत मिला.
लेकिन मोदी के लिए केंद्र में 2019 की चुनौती 2014 से ज़्यादा कठिन है. मोदी 2014 में गुजरात से बाहर समूचे देश की जनता के लिए बंद मुट्ठी के समान थे. लेकिन अब वो बंद मुट्ठी खुल चुकी है. मोदी की अगुआई में एनडीए सरकार के करीब 58 माह के कार्यकाल को देश देख चुका है और उसी आधार पर 2019 लोकसभा चुनाव का फैसला 23 मई को सुनाएगा. अब ये मोदी के लिए अच्छा होगा या बुरा, ये मन की बात तो अभी देश की जनता के मन में ही छुपी है.
खैर अभी देखते हैं कि 26 मई 2014 को देश का प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने सबसे पहला और अहम फैसला क्या लिया था. तब 64 वर्ष के मोदी ने साफ किया था कि बीजेपी में 75 वर्ष से ऊपर के लोगों को मंत्री पद नहीं मिलेगा. इससे 2014 में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, सुब्रहामण्यण स्वामी और शांता कुमार जैसे 75 वर्ष की आयु पार कर चुके नेताओं का पत्ता स्वत: ही मंत्री पद के लिए कट गया. ज़ाहिर है इसकी खोंच इन सभी नेताओं के मन में अवश्य रही होगी.
मोदी ने उम्र का ये जो पैमाना तय किया, उस के हिसाब से 2024 के बाद खुद उन पर भी ये लागू हो जाएगा. 17 सितंबर 1950 को जन्मे मोदी के लिए उसी साल 75 वां वर्ष शुरू हो जाएगा. इसके क्या मायने निकालें जाएं कि मोदी 2019 का चुनावी रण जीत जाते हैं तो 2024 लोकसभा चुनाव से पहले खुद ही पार्टी में किसी और के लिए प्रधानमंत्री पद से दावेदारी छोड़ देंगे? क्या ये भी हो सकता है कि मोदी 2024 का लोकसभा चुनाव ही ना लड़ें. इस हिसाब से देखा जाए तो क्या मोदी 2019 में वाराणसी से आख़िरी बार चुनावी ताल ठोकने जा रहे हैं?
हालांकि 75 वर्ष की उम्र में चुनाव लड़ना और उम्र के इस पड़ाव को पार करने के बाद मंत्री ना बनाए जाना दोनों अलग अलग बातें हैं. यही वजह है कि बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव के लिए साफ़ कर दिया है कि चुनाव लड़ने के लिए उम्र की सीमा किसी के लिए बाधा नहीं बनेगी. यानि 75 वर्ष की उम्र से ऊपर के नेताओं को भी बीजेपी चुनाव लड़ाएगी बशर्ते कि वो स्वास्थ्य की दृष्टि से फिट हों और उनमें चुनाव जीतने का दमखम हो. यानि पार्टी लाल कृष्ण आडवाणी (91), मुरली मनोहर जोशी (85), बी सी खंडूरी (84), कलराज मिश्र (77), शांता कुमार (84) को भी चुनाव लड़ा सकती है. बीजेपी में करीब फिलहाल एक दर्जन लोकसभा सदस्य ऐसे हैं जो 75 की उम्र पार कर चुके हैं. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन भी इस साल अप्रैल में 76 साल की हो जाएंगी.
जब इन 75 पार के नेताओं को बीजेपी चुनाव लड़ा सकती है तो फिर 2024 में मोदी के लोकसभा चुनाव लड़ने में आखिर कौन सी दिक्कत पेश होगी? सूत्रों के मुताबिक मोदी ने खुद ही गुजरात में अपने बहुत भरोसे के एक वरिष्ठ नौकरशाह को ये संकेत दिया है. सब जानते हैं कि मोदी अलग हट के फैसले लेते हैं और अचानक उनका एलान कर सभी को चौंकाते हैं. पहले देश, फिर पार्टी और अंत में व्यक्ति के सिद्धांत की वक़ालत करने वाले मोदी इस तरह का संकेत देकर जहां पार्टी के आगे के रोडमैप को दिशा देना चाहते हैं, साथ ही पार्टी के बुज़ुर्ग नेताओं को इशारा देना चाहते हैं कि वो खुद ही चुनावी राजनीति से अलग होकर पार्टी की युवाशक्ति को मज़बूत बनाने के लिए अपने समृद्ध अनुभवों से उनका मार्गदर्शन करें. ऐसा होता है और अगर 75 पार के नेता खुद को चुनावी राजनीति से अलग कर लेते हैं तो फिर सत्ता आने पर उन्हें मंत्री पद ना मिलने से असंतोष भी नहीं होगा.
इस तरह से फैसले से उन आलोचकों को भी जवाब मिल जाएगा जो दबे मुंह इस तरह की आशंकाएं जताते रहते हैं कि मोदी आपातकाल लागू कर खुद को अधिक से अधिक वक्त तक प्रधानमंमत्री बनाए रखने का रास्ता ना साफ़ कर दें. ऐसे आरोप लगाने वाले विपक्षी दलों या आलोचकों को अलग रखें तो मोदी की अपनी ही पार्टी के सांसद साक्षी महाराज ने हाल में जो बयान दिया वो अहम है.
अब ये बात अलग है कि साक्षी महाराज खुद ही इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी का टिकट मिलने को लेकर आश्वस्त नहीं है. अपना टिकट पक्का करने के प्रयास में वे यूपी बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय को चिट्ठी भी लिख चुके हैं. हालांकि बाद में वो स्पष्ट कर चुके हैं कि पार्टी से टिकट नहीं मिलेगा तो भी वो पार्टी के लिए जी-जान से प्रचार करेंगे.
साक्षी महाराज को टिकट मिले या ना मिले लेकिन उनका ये कहना कि इस चुनाव के बाद 2024 में चुनाव नहीं होगा, बहुत मायने रखता है. आख़िर उनका ये कहने का क्या मतलब है? क्या साक्षी महाराज ये मानते हैं कि तब तक देश में अधिनायकवाद आ जाएगा. और ऐसी आशंकाओं को निर्मूल करने के लिए ही मोदी साफ कर देना चाहते हैं कि वो 2024 में खुद ही चुनावी राजनीति से अलग हो जाएंगे और तब पार्टी की कमान कोई और सशक्त चेहरा संभालेगा.
ये सब मेरे ज़ेहन में उधेड़बुन चल ही रही थी कि जग से ठंडा पानी छपाक से मेरे चेहरे पर पड़ा और मेरी तरंग टूट गई. सामने पत्नीश्री खड़ी थीं और कह रही थीं- ‘छोटी होली पर रात को कितनी भंग चढ़ा ली जो ना जाने क्या अंट-शंट बके जा रहे हो. उठो अब जाकर नहा भी लो’...
ओह तो ये सब ठंडाई की भांग और चुनावी चक्कलस के कॉकटेल का असर था जो मुझसे ये बड़-बड़ करा रहा था.
बुरा ना मानो होली है!
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