नए मोटर व्हीकल एक्ट के बाद कोई भी नहीं बचेगा. कोई नहीं का मतलब कोई भी नहीं. यानी क्या सेक्रेड गेम वाले बंटी-त्रिवेदी क्या गुरुजी और वासेपुर वाले सरदार खान, रामाधीर धीर सिंह. इस एक्ट के बाद दबंगई किसी की नहीं चलेगी. अगर नियम तोड़े तो पुलिस द्वारा सबका चालान काटने की तैयारी पूरी है. फैजल खान ने कमर कस ली है. ओवर स्पेडिंग, सीट बेल्ट, बिना हेलमेट/ इंश्योरंस/ डीएल, अतिरिक्त सवारी मतलब गलती कैसी भी हो, सबका बदला लिया जाएगा. अगर पकड़े गए तो चालान हर हाल में देना ही होगा. बढ़ती बेरोजगारी और नौकरी जाने की खबर से देश की जनता बहुत दुखी पहले ही थी. इस खबर ने सोने पर सुहागा का काम कर दिया है. लोग समझ नहीं पा रहे कि इस मुश्किल वक़्त में इस खबर पर रियेक्ट कैसे करें? कोई खुश नहीं है. सिवाए चंद लोगों के और ये चंद लोग और कोई नहीं बल्कि पुलिस वाले हैं. हां वही पुलिस वाले जो पुराने वाले मोटर व्हीकल एक्ट के दौरान ये कहकर डराते थे कि, 500 से कम पर साहब नहीं मानेंगे और थक हारकर बाइक/ कार ये कहते हुए छोड़ देते थे कि, अच्छा ठीक है 20 रुपए ही दे दो चाय ही पी लेंगे.
नए व्हीकल एक्ट से भले ही आम आदमी की मिट्टी पलीद हुई हो. मगर लोगों को सुधारने की दिशा में सरकार द्वारा किया गया ये प्रयास पुलिस वालों के लिए आठवां या फिर नवां वेतन आयोग लगने जैसा है. पुलिस वालों के अच्छे दिन आए हैं और छप्पर फाड़ कर आए हैं.
नए मोटर व्हीकल एक्ट के बाद जिस तत्परता से पुलिस वाले ड्यूटी बजा रहे हैं...
नए मोटर व्हीकल एक्ट के बाद कोई भी नहीं बचेगा. कोई नहीं का मतलब कोई भी नहीं. यानी क्या सेक्रेड गेम वाले बंटी-त्रिवेदी क्या गुरुजी और वासेपुर वाले सरदार खान, रामाधीर धीर सिंह. इस एक्ट के बाद दबंगई किसी की नहीं चलेगी. अगर नियम तोड़े तो पुलिस द्वारा सबका चालान काटने की तैयारी पूरी है. फैजल खान ने कमर कस ली है. ओवर स्पेडिंग, सीट बेल्ट, बिना हेलमेट/ इंश्योरंस/ डीएल, अतिरिक्त सवारी मतलब गलती कैसी भी हो, सबका बदला लिया जाएगा. अगर पकड़े गए तो चालान हर हाल में देना ही होगा. बढ़ती बेरोजगारी और नौकरी जाने की खबर से देश की जनता बहुत दुखी पहले ही थी. इस खबर ने सोने पर सुहागा का काम कर दिया है. लोग समझ नहीं पा रहे कि इस मुश्किल वक़्त में इस खबर पर रियेक्ट कैसे करें? कोई खुश नहीं है. सिवाए चंद लोगों के और ये चंद लोग और कोई नहीं बल्कि पुलिस वाले हैं. हां वही पुलिस वाले जो पुराने वाले मोटर व्हीकल एक्ट के दौरान ये कहकर डराते थे कि, 500 से कम पर साहब नहीं मानेंगे और थक हारकर बाइक/ कार ये कहते हुए छोड़ देते थे कि, अच्छा ठीक है 20 रुपए ही दे दो चाय ही पी लेंगे.
नए व्हीकल एक्ट से भले ही आम आदमी की मिट्टी पलीद हुई हो. मगर लोगों को सुधारने की दिशा में सरकार द्वारा किया गया ये प्रयास पुलिस वालों के लिए आठवां या फिर नवां वेतन आयोग लगने जैसा है. पुलिस वालों के अच्छे दिन आए हैं और छप्पर फाड़ कर आए हैं.
नए मोटर व्हीकल एक्ट के बाद जिस तत्परता से पुलिस वाले ड्यूटी बजा रहे हैं वो देखने लायक है. सबकी बांछें खिली हुई हैं. सब कल्पनाओं के घोड़े दौड़ा रहे हैं कि, चलो खाते में 15 लाख नहीं आए न सही. अब हर रोज जेब में 500-500 के नोट आएंगे. 500 न भी हुए तो 200 या 100 के तो आ ही जाएंगे. पुलिस महकमे में जो जैसा है इस नए एक्ट के बाद उसकी ख़ुशी का लेवल वैसा है. होम गार्ड खुश है अब दिन लद गए उन 10 के नोटों के. कांस्टेबल भी राहत में है कि अब उसे 20-50 रुपए के लिए घंटों धूप में खड़े रहकर मगजमारी नहीं करनी होगी. इसी तरह हेड कांस्टेबल, एसआई और इंस्पेक्टर की भी हालत है. सब एक साथ एक सुर में एक जुट होकर कह रहे हैं कि बागों में बहार आई है और बड़े दिनों के बाद आई है.
पुलिस से इतर जब हम पब्लिक की बात करें तो वहां काटो तो खून नहीं वाली स्थिति है. जिनके पास गाड़ियां हैं उन्होंने अपनी अपनी गाड़ियां खड़ी कर दी हैं. लोग खुद को देख रहे हैं. खुद की गाड़ियों को देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि अगर गलती से गलती हो गई तो क्या होगा. लोग तो यहां तक फुसफुसा रहे हैं कि आम आदमी के साथ इतना जुल्म तो 2001 में आई आशुतोष गोवारिकर की फिल्म लगान में भूवन के गांव वालों के साथ कैप्टन रसेल ने नहीं किया. उसने तो केवल दोगुना लगान मांगा था.
लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि ये तो निश्चित है कि एक न एक दिन मौत होनी है. मगर मौत पाकिस्तान की तरफ से फेंके गए न्यूक्लियर बम से होगी या फिर विदआउट हेल्मेट/ डीएल/ आरसी वाले चालान से होगी ये नहीं पता. इतने अहम मुद्दे पर बातों का दौर, जिसने गति पकड़ ली है. थमने का नाम नहीं ले रहा है.
जब खबर ऐसी आएगी तो लोग आवाज बुलंद तो करेंगे ही. लोग कह रहे हैं कि अगर सड़क पर गड्ढे हैं तो उसका क्या? इधर उधर मवेशी टहल रहे हैं तो उसका क्या? घुटने से ऊपर पानी भरा है उसका क्या? लोग जानते हैं उन्हें इन सवालों का जवाब कभी नहीं मिलेगा. मगर वो पूछ रहे हैं. लोकतंत्र में सवाल पूछे जाते हैं. लोकतंत्र में सवाल पूछे भी जाने चाहिए. यही उसकी खूबसूरती है.
इस बात में कोई संदेह नहीं कि सरकार ने अच्छा काम किया है. लेकिन इससे भी और अच्छे काम हो सकते थे. सरकार नया मोटर व्हीकल एक्ट लाई है. सरकार ने देश की सड़कों की हालत देखी है. वो चाहती तो पुराने वाले को अपडेट कर सकती थी. यूं भी अपडेट अब हमारे जीवन से जुड़ गया है. हर तीन से चार महीने में हम फोन और हर दूसरे हफ्ते में हम उसी फोन में मौजूद एप को अपडेट तो करते ही हैं.
बात पुलिस और उसकी कार्यप्रणाली से शुरू हुई है. हम बता चुके हैं कि इस नए एक्ट से फायदा केवल और केवल पुलिस का है. साफ़ है कि इस नए एक्ट के बाद पुलिस को रेगिस्तान में न सिर्फ पानी की आस दिखी है बल्कि उसे एक ऐसा तलब मिला है जिसमें पीने लायक पानी है. बाकी राज्य कोई भी हो. जैसा हमारी पुलिस का रवैया है, इतना विश्वास तो हमें भी है कि वो इस पानी को तब तक नहीं छोड़ेगी जब तक वो इसे पूरी तरफ से खाली न कर दे.
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