31 दिसंबर और 1 जनवरी. अगर कैलेंडर वाला कोई ख़ुदा या भगवान होता तो यकीनन मैं उसके कदमों में लोट जाता. कुछ ले दे के काम बन जाता तो ठीक वरना सेंटी होकर उसे पटाने की पुरजोर कोशिश करता और पूछता कि 'हे ऊपरवाले! तूने हम नीचेवालों के लिए ये दो तारीखें क्यों बनाई? बनाई तो बनाई लेकिन इसमें ये Resolution वाला clause क्यों डाला? आखिर इस टंटे की वजह क्या थी?मितरों, कैलेंडर की ये दो तारीखें वाक़ई बहुत जटिल होती हैं. 31 दिसंबर को आदमी के सामने चुनैतियों का पहाड़ होता है. सबसे पहली चुनौती जो उसके मार्ग में आती है वो होती है पार्टी करने की चुनौती . सवाल आता है कि पार्टी कहां होगी? घर पर होगी या फिर बाहर होगी? घर पर हुई तो मेन्यू क्या होगा और कौन कौन आएगा? बाहर हुई तो पर पर्सन बजट क्या होगा? इन सवालों को आदमी पार कर भी ले तो एक दूसरी चुनौती उसके कदमों में बेड़ियां डाल देती है. ये चुनौती पिछली वाली चुनौती से ज्यादा बड़ी है. इस चुनौती का सारा दारोमदार टिका होता है Resolutions पर. 31 दिसंबर को Resolutions बनते हैं जिन्हें पूरा करना होता है 1 जनवरी को. यानी 31 दिसंबर के बाद 1 जनवरी वो तारीख़ है जब 'छोड़ने और पकड़ने' के खेल में कसमों और वादों को पूरा किया जाता है.
इन दो तारीखों की जटिलताएं क्या हिती हैं? गर जो इसे समझना हो तो किसी भी मिडिल क्लास आदमी के घर का दरवाजा खटखटा लीजिये. 31 दिसंबर का सूरज अभी कोहरे और धुंध से निकल भी नहीं पाया होता है कि एक मध्यम वर्गिय व्यक्ति दाएं हाथ में डायरी बाएं हाथ में पेन लेकर तैयार रहता है कि नए साल में क्या पकड़ना है और क्या छोड़ना है. लोग प्लान तो बनाते हैं मगर ये प्लान कब टाएं टाएं फिस हो जाते हैं इसकी जानकारी न तो प्लान को ही होती है और न ही उसे...
31 दिसंबर और 1 जनवरी. अगर कैलेंडर वाला कोई ख़ुदा या भगवान होता तो यकीनन मैं उसके कदमों में लोट जाता. कुछ ले दे के काम बन जाता तो ठीक वरना सेंटी होकर उसे पटाने की पुरजोर कोशिश करता और पूछता कि 'हे ऊपरवाले! तूने हम नीचेवालों के लिए ये दो तारीखें क्यों बनाई? बनाई तो बनाई लेकिन इसमें ये Resolution वाला clause क्यों डाला? आखिर इस टंटे की वजह क्या थी?मितरों, कैलेंडर की ये दो तारीखें वाक़ई बहुत जटिल होती हैं. 31 दिसंबर को आदमी के सामने चुनैतियों का पहाड़ होता है. सबसे पहली चुनौती जो उसके मार्ग में आती है वो होती है पार्टी करने की चुनौती . सवाल आता है कि पार्टी कहां होगी? घर पर होगी या फिर बाहर होगी? घर पर हुई तो मेन्यू क्या होगा और कौन कौन आएगा? बाहर हुई तो पर पर्सन बजट क्या होगा? इन सवालों को आदमी पार कर भी ले तो एक दूसरी चुनौती उसके कदमों में बेड़ियां डाल देती है. ये चुनौती पिछली वाली चुनौती से ज्यादा बड़ी है. इस चुनौती का सारा दारोमदार टिका होता है Resolutions पर. 31 दिसंबर को Resolutions बनते हैं जिन्हें पूरा करना होता है 1 जनवरी को. यानी 31 दिसंबर के बाद 1 जनवरी वो तारीख़ है जब 'छोड़ने और पकड़ने' के खेल में कसमों और वादों को पूरा किया जाता है.
इन दो तारीखों की जटिलताएं क्या हिती हैं? गर जो इसे समझना हो तो किसी भी मिडिल क्लास आदमी के घर का दरवाजा खटखटा लीजिये. 31 दिसंबर का सूरज अभी कोहरे और धुंध से निकल भी नहीं पाया होता है कि एक मध्यम वर्गिय व्यक्ति दाएं हाथ में डायरी बाएं हाथ में पेन लेकर तैयार रहता है कि नए साल में क्या पकड़ना है और क्या छोड़ना है. लोग प्लान तो बनाते हैं मगर ये प्लान कब टाएं टाएं फिस हो जाते हैं इसकी जानकारी न तो प्लान को ही होती है और न ही उसे बनाने वाले को. बस होता है फिर हो जाता है.
एक किस्सा सुनिए. दिल थाम के सुनिए. आगे तमाम बातें होंगी इस किस्से से आगे की बातों को समझने में मदद मिलेगी. तो गुरु किस्सा पिछले से पिछले साल का है. एक सज्जन थे. खाते पीते सज्जन. कहां पूड़ी अच्छी मिलती है? किस रेस्टुरेंट का भटूरा ज्यादा क्रिस्पी होता है? किस ठेले के गोलगप्पे का पानी आत्मा को तृप्त करता है किस दुकान की बिरयानी और कोरमा सीधे व्यक्ति को सातवें आसमान पर ले जाते हैं सवाल कोई भी हो आप उनसे पूछ लीजिये.
इन सज्जन की शादी हुई. किसी ने कह दिया दूल्हा मोटा दिख रहा. ये बात भाई ने दिल पर ले ली और 31 दिसंबर के ऐतिहासिक दिन ये फैसला किया कि अब चाहे कुछ हो जाए 1 जनवरी को जिम जाकर कसरत शुरू करनी है और उस कमर को जो कमरा बन गई है उसे किसी भी हाल में 40 से 32 पर लाना है. 31 दिसंबर को शाम होते होते, जब दुनिया पब, डिस्क और बार में होती है अपना ये भाई जिम था. इसने न केवल रजिस्ट्रेशन कराया बल्कि पूरे साल की फीस इकट्ठा दी और अपने लिए पर्सनल ट्रेनर किया. जिम वाले से वादा हुआ कि कल ( 1 जनवरी) से जिम आऊंगा. लेकिन न बाबा मरे न बैल बंटे.
वो कमर जिसे कमरे से कमर करना था आज छोटा मोटा जिला है जिसपर बांग्लादेश से आए घुसपैठिए झोपड़ी डाल कर आराम से रह सकते हैं और मजाल है कि देश के प्रधानमंत्री या गृह मंत्री उन्हें कुछ कह दें.इस मामले में मॉरल ऑफ द स्टोरी ये रहा है कि ये जरूरी नहीं कि जो मन से मुलायम हो इरादे उसके लोहा ही हों. अरे भइया धोखा इंसानों को ही होता है और इस मामले में भी भयंकर वाला हुआ. अब क्या किया जाए. चिड़िया तो खेत चुगकर कबका जा चुकी है.
हम में से कितने लोग होंगे जो उपरोक्त पंक्तियों में बताए गए भाईसाहब की तरह होंगे. कोई साल के पहले दिन शराब, सिगरेट, गुटखा, तंबाकू छोड़ने की बात करता है. तो कोई कहता है कि अब फिट होना है इसलिए बाहर का खाना और जंक फूड बंद लेकिन जो असलियत है वो किसी से छिपती नहीं. साफ है कि दुनिया के वो तमाम रेजॉलूशन जो 31 दिसंबर को बनते हैं उनमें से 90 प्रतिशत 1 जनवरी का मुंह नहीं देखते. Resolutions कल की भेंट चढ़ जाते हैं और फिर तारीख पर तारीख पड़ती है लेकिन इंसाफ नहीं होता.
लोग धड़ल्ले से शराब, सिगरेट, गुटखे, तंबाकू, बाहर के खाने का सेवन कर रहे होते हैं और ये कहकर तनाव मुक्त हो जाते हैं कि अब अगले साल, साल के पहले दिन कुछ तूफानी करते हुए अपनी सारी बुरी आदतों की तिलांजलि दे देंगे. मुद्दा और एजेंडा दोनों ही एकदम क्लियर है. या तो Revolutions न बनाइये और गर जो बनाइये तो उन्हें पूरा करने में जान लगा दीजिये. याद रखिये जुबान की वैल्यू बहुत है और तब ये और दो गुनी हो जाती है जब व्यक्ति दुनिया के सामने कहता है कि वो कोई काम करने जा रहा है. ऐसी स्थिति में दुनिया उसी व्यक्ति पर नजरें गड़ाए रहती है.
तर्क चाहे जितने क्यों न दे दिए जाएं. कितनी ही कसमें क्यों न खा ली जाएं लेकिन ये 31 दिसंबर के Resolutions और फिर उन्हें बनाते हुए ये कहना कि इसे 1 जनवरी को पूरा किया जाएगा दुनिया का सबसे बड़ा झूठ, फ्रॉड, फर्जीवाड़ा, धोखा, फरेब वो सब कुछ है जिसकी कल्पना आप कर सकते हैं. बाकी होने को तो आज साल का पहला दिन यानी 1 जनवरी 2021 है गुजरे साल के आखिरी दिन हमनें Resolutions बनाए थे.
उम्मीद है ये 2022 में नहीं तो फिर उसके अगले या फिर अगले साल अमल में ला ही दिए जाएंगे. अंत में आप सबको हैप्पी वाला न्यू ईयर. हमारा सुझाव यही है कि Resolutions को मारिये गोली. खाइये, पीजिये, मस्त रहिये. यूं भी ज़िन्दगी 4 दिन की है. व्यक्ति उसे हंसकर गुजार लें नहीं तो फिर रोते हुए हर साल New Year Resolutions बनाने में.
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