तमाम ये डे, वो डे के बीचNo Smoking Day का आना अंतर्मन के किसी कोने को आहत करता है. डे है तो एंटी नेशनल, लेकिन जैसे इसे लेकर लोग ट्विटर पर युधिष्ठिर बन बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं मूड ख़राब होता है. उन निर्लज्जों को देखकर जो पहला विचार दिमाग में कौंधता है वो ये कि इस डे की वकालत करने वाले ये लोग हमें अपने देश का विकास करने से रोक रहे हैं. अरे मजाक की बात नहीं है न ही इसपर इतना लोड लेने की जरूरत है. होते होंगे वो, जो कहते होंगे कि देश के विकास में, उसे आगे ले जाने के लिए डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, रिसर्चर हैं मगर क्या देश के विकास में इन्हीं लोगों का रोल है? आखिर ये जालिम जमाना देश की उन्नति में सिग्रेटचियों के योगदान को कैसे भूल बैठा?
आप मानें न मानें. मगर ये सिग्रेटचियों की सुलगती सिगरेट से गिरती तंबाकू की राख ही है जिसने एक ऐसे किले का निर्माण किया है जिसके तहखाने को यदि खोदा जाए तो वहां पैसों का ढेर है. पैसा इतना है कि कई जेसीबी लगेंगी और उन्हें इसे समेटने के लिए कई कई घंटों की मेहनत करनी होगी.
देखो बाबूजी मैटर ये है कि ये कह देना कि सिगरेट छोड़ दो. है तो बड़ा आसान. लेकिन यकीन जानों देश के वो तमाम लोग जो अपने आप को सिगरेटची कहने में गर्व की अनुभूति करते हैं यदि वाक़ई तुम्हारी बातों के झांसे में आकर सिगरेट छोड़ दें. तो गुड़ का गोबर हो जाएगा. वो अर्थव्यवस्था जिसकी आड़ लेकर तुम अपने को विश्व गुरु वाली क्लास का मॉनिटर बता रहे हो, उसकी लंका लग जाएगी
शायद तुम्हें ये जानकार हैरत हो, लेकिन मौजूदा वक़्त का सच यही है कि अगर सिगरेट या ये कहें कि वो लोग जो तंबाकू से जुड़े हैं अपना काम धंधा छोड़कर गुड बॉय बन जाएं तो एक...
तमाम ये डे, वो डे के बीचNo Smoking Day का आना अंतर्मन के किसी कोने को आहत करता है. डे है तो एंटी नेशनल, लेकिन जैसे इसे लेकर लोग ट्विटर पर युधिष्ठिर बन बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं मूड ख़राब होता है. उन निर्लज्जों को देखकर जो पहला विचार दिमाग में कौंधता है वो ये कि इस डे की वकालत करने वाले ये लोग हमें अपने देश का विकास करने से रोक रहे हैं. अरे मजाक की बात नहीं है न ही इसपर इतना लोड लेने की जरूरत है. होते होंगे वो, जो कहते होंगे कि देश के विकास में, उसे आगे ले जाने के लिए डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, रिसर्चर हैं मगर क्या देश के विकास में इन्हीं लोगों का रोल है? आखिर ये जालिम जमाना देश की उन्नति में सिग्रेटचियों के योगदान को कैसे भूल बैठा?
आप मानें न मानें. मगर ये सिग्रेटचियों की सुलगती सिगरेट से गिरती तंबाकू की राख ही है जिसने एक ऐसे किले का निर्माण किया है जिसके तहखाने को यदि खोदा जाए तो वहां पैसों का ढेर है. पैसा इतना है कि कई जेसीबी लगेंगी और उन्हें इसे समेटने के लिए कई कई घंटों की मेहनत करनी होगी.
देखो बाबूजी मैटर ये है कि ये कह देना कि सिगरेट छोड़ दो. है तो बड़ा आसान. लेकिन यकीन जानों देश के वो तमाम लोग जो अपने आप को सिगरेटची कहने में गर्व की अनुभूति करते हैं यदि वाक़ई तुम्हारी बातों के झांसे में आकर सिगरेट छोड़ दें. तो गुड़ का गोबर हो जाएगा. वो अर्थव्यवस्था जिसकी आड़ लेकर तुम अपने को विश्व गुरु वाली क्लास का मॉनिटर बता रहे हो, उसकी लंका लग जाएगी
शायद तुम्हें ये जानकार हैरत हो, लेकिन मौजूदा वक़्त का सच यही है कि अगर सिगरेट या ये कहें कि वो लोग जो तंबाकू से जुड़े हैं अपना काम धंधा छोड़कर गुड बॉय बन जाएं तो एक देश के रूप में जो लंका अपने देश हिंदुस्तान की लगेगी उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता.
हो सकता है तुम लोग ये कह दो कि ये सब सिगरेट की लत को न छोड़ने का बहाना है. तो आओ आंकड़ों पर बात कर ली जाए.आंकड़ों पर यदि नजर डाली जाए और गत वर्ष हुई एक रिसर्च का अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि हाल के तंबाकू इंडस्ट्री11,79,498 करोड़ रुपये के कुल आर्थिक मूल्य सृजन के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान देने वालों में से एक है.
थॉट आर्बिट्रेज रिसर्च इंस्टीट्यूट (TARI) द्वारा उद्योग निकाय Assocham के साथ साझा एक अध्ययन के अनुसार, 'तंबाकू भारत में वाणिज्यिक फसलों के कुल मूल्य का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत योगदान देता है, जो कृषि के मामले में भारी सामाजिक-आर्थिक लाभ पैदा करता है. इससे जहां लोगों को रोजगार मिलता है तो वहीं किसानों की आय बढ़ती है और देश को भारी राजस्व और विदेशी मुद्रा प्राप्त होते हैं.
ज्ञान से लेकर किसी को किसी चीज को छोड़ने पकड़ने के लिए नसीहत करना दुनिया का सबसे आसान काम है. इसके लिए किसी तरह की कोई रॉकेट साइंस नहीं लगती. तो भइया मेरे प्यारे सिगरेट विरोधियों अब जो अगली बात हम तुम्हें बताने वाले हैं वो तुम्हें और जलाएगी. शायद तुम्हें हैरत हो मगर भारत में लगभग 4.57 करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए तंबाकू क्षेत्र पर निर्भर हैं. रिपोर्ट बताती हैं कि इनमें 60 लाख किसान हैं.दो करोड़ खेतिहर मजदूर हैं. 40 लाख लोग ऐसे हैं जो तंबाकू के पत्ते तोड़ने वाले हैं. प्रसंस्करण, निर्माण और निर्यात में काम करने वाले 85 लाख लोग हैं और 72 लाख लोग ऐसे हैं जो खुदरा बिक्री और व्यापार में लगे हैं.
समझ रहे हो एक सिगरेटची क्यों देश के लिए जरूरी है? अगर अब भी तुम्हें डाउट है तो यकीन जान लो भइया न कभी तुम्हारा कुछ हुआ है और तुम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यही चाहते हो कि देश बिल्कुल तुम्हारे जैसा निठल्ला ही रहे. बाकी अगर कोई ये चाह रहा है कि स्मोकिंग के मुद्दे पर देश या सरकार सामने आए और कोई कड़ा कदम उठाए. तो न कभी ऐसा कुछ हुआ है न कभी होगा. सरकार जानती है कि सिगरेट या तंबाकू सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है. ऐसी मुर्गी को अगर कोई काटे तो जमाना, दुनिया जहान उसे क्या कहेंगे ये किसी से छुपा थोड़े ही न है.
अब आते हैं उस मुद्दे पर जिसका हवाला देकर उन तमाम लोगों को डराया जाता है जो सिगरेट पीते हैं. जी हां सही पकड़ा आपने हमारा इशारा स्वास्थ्य की तरफ है. देखिये बात बहुटी सीधी है. आज के टाइम में आदमी इतना होशियार है कि वो अपना अच्छा बुरा जानता है. उसे परवाह रहती है अपने स्वास्थ्य की और वो नहीं चाहता कि कोई इस बात को मुद्दा बनाए और उसपर ज्ञान की गंगा बहाकर चला जाए.
अंत में बस इतना ही कि अगर कोई सिगरेट पी रहा है तो वो गुनाह नहीं कर रहा. बाकी वो लोग जिन्होंने एक सिग्रेटची को गुनहगार मान ही लिया है. जान ले कि सिगरेट पीने वाला ही सच्चा राष्ट्रवादी और देश के लिए फायदेमंद है. ये न हो तो फिर हालत ख़राब हो जाएगी. इसलिए ऐसे लोगों को तिरस्कार और तानों की नहीं सहेजे जाने की जरूरत है.
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