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एक कुत्ते ने प्रधानमंत्री को लिखा खुला पत्र

    • प्रथम द्विवेदी
    • Updated: 17 जुलाई, 2017 07:38 PM
  • 17 जुलाई, 2017 07:38 PM
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हमने किसी का क्या बिगाड़ा है? पर जब किसी को गाली देने का मन हो तो हमारा इस्तेमाल, जब किसी का मज़ाक उड़ाना हो तो हमारा इस्तेमाल, यहां तक कि कुछ लोग तो हमें मार कर खा जाते हैं. हम कब तक सहेंगे ये अत्याचार?

सेवा में श्रीमान,

आपके सामने मैं एक गंभीर मुद्दा रखना चाहता हूं. एक आप ही हैं जो अब हमारी नाक बचा सकते हैं. हमने भी इंसानों की तरह एक लंबा सफर तय किया है. महाभारत से लेकर शोले तक, तेरी मेहरबानियां से लेकर पपी वीडियो तक, घायल से लेकर डॉग फिल्टर तक, कभी हम हीरो बने तो कभी हमें विलेन की संज्ञा दी गयी.

हमने किसी का क्या बिगाड़ा है? हम सदियों से इंसानों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे हैं. कभी सैनिकों के साथ लेफ्ट राइट किया तो कभी मोहल्ले के चोरों को सबक सिखाया. कभी सर्कस में, कभी सिनेमा में और कभी कुत्तों के फैशन शो में कैटवॉक करके. चाहे हमारी मर्ज़ी हो या ना हो हमने हर तरीके से लोगों का मनोरंजन किया. और तो और, कई बार हमने उधारी वसूलने के लिए जबरदस्ती घर में घुसने वाले लोगों को भी भौंक-भौंक कर भगाया.

कुत्तों पर अत्याचार अब और नहीं..

इस सब के बावजूद हमें रह-रह कर तिरस्कार क्यों झेलना पड़ता है? क्यों हमारे भाइयों-बहनों को बासी रोटी से गुजारा करना पड़ता है? शैतानी करने पर हमें डंडों से क्यों पीटा जाता है? कई बार तो हम पर गोलियां भी चलीं हैं. हमारे बच्चे, जब छोटे होते हैं तो लोगों को बड़े प्यारे लगते हैं, थोड़ा बड़े होते हैं तो वो उनके दोस्त बन जाते हैं, थोड़ा और बड़े होते हैं वो उनके रखवाले बन जाते हैं लेकिन जब बुढ़ापे में हमें लोगों के सहारे की जरूरत होती है तब लोग हमें घर में पड़े पुराने फर्नीचर की तरह समझने लगते हैं.

जब किसी को गाली देने का मन हो तो हमारा इस्तेमाल, जब किसी का मज़ाक उड़ाना हो तो हमारा इस्तेमाल, वैज्ञानिक रिसर्च में हमारा इस्तेमाल, विधानसभा में छुपा विस्फोटक खोजना हो तो हमारा इस्तेमाल, यहां तक कि कुछ लोग हमारा इस्तेमाल खाने तक में करते हैं, मार कर खा जाते हैं हमें. हम कब तक सहेंगे ये अत्याचार. क्या हम सिर्फ...

सेवा में श्रीमान,

आपके सामने मैं एक गंभीर मुद्दा रखना चाहता हूं. एक आप ही हैं जो अब हमारी नाक बचा सकते हैं. हमने भी इंसानों की तरह एक लंबा सफर तय किया है. महाभारत से लेकर शोले तक, तेरी मेहरबानियां से लेकर पपी वीडियो तक, घायल से लेकर डॉग फिल्टर तक, कभी हम हीरो बने तो कभी हमें विलेन की संज्ञा दी गयी.

हमने किसी का क्या बिगाड़ा है? हम सदियों से इंसानों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे हैं. कभी सैनिकों के साथ लेफ्ट राइट किया तो कभी मोहल्ले के चोरों को सबक सिखाया. कभी सर्कस में, कभी सिनेमा में और कभी कुत्तों के फैशन शो में कैटवॉक करके. चाहे हमारी मर्ज़ी हो या ना हो हमने हर तरीके से लोगों का मनोरंजन किया. और तो और, कई बार हमने उधारी वसूलने के लिए जबरदस्ती घर में घुसने वाले लोगों को भी भौंक-भौंक कर भगाया.

कुत्तों पर अत्याचार अब और नहीं..

इस सब के बावजूद हमें रह-रह कर तिरस्कार क्यों झेलना पड़ता है? क्यों हमारे भाइयों-बहनों को बासी रोटी से गुजारा करना पड़ता है? शैतानी करने पर हमें डंडों से क्यों पीटा जाता है? कई बार तो हम पर गोलियां भी चलीं हैं. हमारे बच्चे, जब छोटे होते हैं तो लोगों को बड़े प्यारे लगते हैं, थोड़ा बड़े होते हैं तो वो उनके दोस्त बन जाते हैं, थोड़ा और बड़े होते हैं वो उनके रखवाले बन जाते हैं लेकिन जब बुढ़ापे में हमें लोगों के सहारे की जरूरत होती है तब लोग हमें घर में पड़े पुराने फर्नीचर की तरह समझने लगते हैं.

जब किसी को गाली देने का मन हो तो हमारा इस्तेमाल, जब किसी का मज़ाक उड़ाना हो तो हमारा इस्तेमाल, वैज्ञानिक रिसर्च में हमारा इस्तेमाल, विधानसभा में छुपा विस्फोटक खोजना हो तो हमारा इस्तेमाल, यहां तक कि कुछ लोग हमारा इस्तेमाल खाने तक में करते हैं, मार कर खा जाते हैं हमें. हम कब तक सहेंगे ये अत्याचार. क्या हम सिर्फ चोरों, बदमाशों और आतंकियों के खिलाफ ही आवाज़ उठाते रहेंगे?

लोग अपनी आज़ादी के नाम पर हमारा खूब इस्तेमाल करते हैं, हमारे नाम पर सालों-साल रॉयल्टी खाते है और हमें क्या मिलता है, वो सुप्रसिद्ध ग्लूकोज़ बिस्किट जिसे लोगों ने नैशनल डॉग फूड बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बहुत हुआ नाटक, हमें हमारा हक चाहिए, हमें भी आज़ादी चाहिए. हमारे गले में भी टैग हो, हमारा भी आधार कार्ड हो. हमें भी अपनी जान-माल की सुरक्षा चाहिए. हमारी हत्या पर भी सज़ा का प्रावधान होना चाहिए. हमारी मांगें पूरी नहीं हुई तो हम जंतर-मंतर में धरना देंगे, उससे काम नहीं चला तो सेल्फ इमोलेशन भी करेंगे. हमने एक ऑनलाइन कैंपेन भी चलाया है जिसमे देशभर के कुत्तों ने अपने-अपने डिजिटल सिग्नेचर करके हमारे पास भेजे हैं मैं उस साइट का लिंक भी आपके मोबाइल में भेजुंगा. आशा करता हूं कि आप मेरे पत्र का जवाब जल्दी ही देंगे.

प्रार्थी,

टाइगर

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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