किसी आदमी को बेवकूफ कहना हो, तो लोग उसे सीधे बेवकूफ न कहकर 'गधा' कह देते हैं. बचपन में हमारे मास्टर जी भी हमको खूब गधा/गदहा (Donkey) बुलाते थे और हमने भी कभी इस बात का घमंड नहीं किया. घमंड करते भी तो किस मुंह से गधों का नाम वैसे ही आदिकाल से बदनाम हो रखा है. गधा को सबसे मूर्ख जानवर माना जाता है. ऐसी कई कहानियां हैं, जो इस बात को सिद्ध करने के लिए गढ़ी गई हैं. कहानियों की जगह विज्ञान की मानें, तो ये सारी बातें बेमानी लगने लगेंगी. कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि गधा 30 साल बाद भी आपको देखे, तो पहचान सकता है. इस हिसाब से गधों की स्मरण शक्ति काफी तेज होती है. आपने शायद गधों को अपनी पीठ पर दर्जनों की संख्या में ईंट लादे देखा ही होगा. मेहनत करने में अव्वल ये जानवर बड़े से बड़ा बोझ भी आसानी से उठा लेता है. थोड़ा अड़ियल होता है, लेकिन काम पूरा करता है. गधे को अगर आप काम करते देख लेंगे, तो उसे गधा कहने में आपको ठीक वैसी ही शर्म लगेगी. जैसी आपको अपने 'डॉग' को 'कुत्ता' कहने में लगती है.
कानपुर जैसे शहर में हर शब्द के पहले 'अबे' जोड़ने की परंपरा हड़प्पा और मोहनजोदारो के समय से भी पहले से चली आ रही है. ये एक ऐसा संपुट है, जो गधे के पहले आकर उसका वजन और बढ़ा देता है. शब्द के साथ जुड़कर चार चांद लगा देता है. मतलब हमाए यहां आप किसी को गधा (Donkey) कह दीजिए, वो बुरा नहीं मानेगा. लेकिन, अगर 'अबे गधे' कह दिया, तो नौबत जूतमपैजार तक की आ जाती है. खैर, इस संपुट पर बात कभी और होगी, अभी हम गधे पर ही बने रहते हैं. गधे की सहनशीलता से आप सभी परिचित ही होंगे. एक कहानी है 'मैनी इयर्स एगो' वाली उसे 'टू लाइन स्टोरी' बना कर बता रहा हूं कि धोबी ने अपने गधे पर कपड़ों का पहाड़ लाद दिया और चलने का इशारा किया. बावजूद इसके गधा अड़ा रहा और मालिक से खूब डंडे खाए, फिर भी टस से मस नहीं हुआ. यहां तो जब बचपन में मास्टर जी हौंकते थे, आधे मिनट तक तो उछलते ही रहते थे. लेकिन, गधा अपने सहनशील स्वभाव की वजह से सब कुछ सह जाता है.
भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने अपना करोड़ों का कर्ज इन गधों के सहारे ही उतारा है.
भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने अपना करोड़ों का कर्ज इन गधों के सहारे ही उतारा है. शायद 2019 में एक खबर आई था कि चीन का कर्ज उतारने के लिए पाकिस्तान उसे गधे देगा. गधों की अर्थव्यवस्था में इतनी मजबूत पकड़ होने के बावजूद इनको आजतक वो सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वे असल में हकदार हैं. घोड़े के साथ तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study) की बात करें, गधा उससे कहीं आगे है. घोड़ा केवल घुड़सवारी या तांगे में काम आता है. वहीं, गधा मल्टी टैलेंटे़ड होता है. कड़ी से कड़ी मेहनत वाले काम के साथ अपने मालिक को भी सैर करवा सकता है. शर्त केवल ये है कि मालिक भी उस पर बैठना चाहे. मादा गधा के दूध का इस्तेमाल कॉस्मेटिक्स और फार्मा क्षेत्र में किया जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो मादा गधा के दूध की कीमत 5000 रुपये लीटर तक जाती है.
कुल मिलाकर गधे में अपार संभावनाएं हैं. मेहनतकश और सहनशीलता जैसे कई गुणों को खुद में समेटे रहने वाला गधा हमेशा एक ही भावहीन चेहरा लिए खड़ा रहता है. सुख हो या दुख, होली हो या दिवाली गधे को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. गधों के ऊपर बड़ी संख्या में कहावतें भी भारत में पाई जाती है. गधा, घोड़े की ही एक उपजाति के अंतर्गत आता है. मैंने अभी तक जो कुछ भी लिखा है, उसे गधे पर निबंध के रूप में मत लीजिएगा. दरअसल, इन दिनों भारत में गधों की संख्या में बहुत तेजी से कमी आई है. भारत में विलुप्त हो रहे जानवरों की लिस्ट में गधों का नाम भी शामिल है. कई राज्यों में तो गधा विलुप्त होने की कगार पर पहुंच भी गया है.
यहां तक आ ही गए हैं, तो अब थोड़ा गंभीर बात कर लेते हैं. आंध्र प्रदेश में इंसान कहलाने वाले मूर्ख प्राणी के मन में धारणा घर कर गई है कि गधे का मांस खाने से उसकी यौन क्षमता बढ़ जाएगी. इसी वजह से अब सबसे मूर्ख प्राणी बन चुका इंसान, गधे की प्रजाति को खत्म करने में जुट गया है. आंध्र प्रदेश में गधों को उनके मांस के लिए बड़ी मात्रा में मारा जा रहा है. भौगोलिक स्थितियों के हिसाब से मांसाहार करने वालों के साथ मेरा कोई विवाद नहीं है. लेकिन, भारत जैसे देश में जहां खाने के लिए तमाम विकल्प मौजूद हैं. लोग गधों का मांस खा रहे हैं, ये सबसे बड़ी विडंबना है. पशुओं से क्रूरता के मामले में भारत शायद 'वर्ल्ड रिकॉर्ड' होल्डर होगा. आए दिन पशुओं के साथ हो रही क्रूरता की खबरें हमारे सामने आती ही रहती हैं. इस स्थिति में कहा जा सकता है कि गधा केवल नाम का खामियाजा भुगत रहा है, असली मूर्ख तो इंसान ही है.
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