तो जी, हर बार की तरह इस बार भी हम सबके प्रिय मोदी जी की स्पीच (PM Modi Speech) दिल लुभाने वाली रही. कई लोगों ने इसे रिकॉर्ड कर बार-बार सुना और इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा भी की. हमारा नाम उनमें प्रमुख है. अब संक्रमण काल में यही तो मन लगाने और जीने का एकमात्र सहारा है, बाक़ी इस नीरस जीवन में रखा ही क्या है?इसी अद्भुत सोच के साथ शुभ ग्यारह बिंदु हमने भी सत्यापित किये हैं, ग़ौर कीजियेगा -
1- वैसे तो मुझ नासमझ को आपदा को 'अवसर' कहना संवेदनहीन लगा था पर अब जब आपने कहा है तो अवश्य ही कोई अच्छा पॉइंट भी मिल ही जाएगा. हेहेहे, अपने प्रिय भक्तजनों ने तो थीसिस ही लिख डाली होगी न. उसे ही घोंट मन को समझा लेंगे. जबसे हमारे जानूं ने हमें बताया कि बड़े निर्मल मन होते हैं भक्तों के, तबसे हमारे मन में भी एक सॉफ्ट कॉर्नर डेवलॅप होना शुरू हो चुका है. अब इश्क़ क्या न करवाए.
लेकिन ये PPE किट वाला उदाहरण नहीं जमा था हमें क्योंकि ये अवसर नहीं समय की मांग है, मजबूरी है भैये. बताइये, क्या लाशों को देख़ क़फ़न बनाने वाले ख़ुश होते होंगे.
2- 'वसुधैव कुटुम्बकम' की बात तो अपन भी वर्षों से कर रहे पर हम तुच्छ टाइप लोगों की बातों को कोई भैल्यू ही नहीं देता. उसपे बीच-बीच में ट्रम्प अंकल का गुस्सा और पाकिस्तान आ जाता है. अब दुनिया एक कैसे हो. बहुत परेशानी है. लेकिन एक बात से हम अत्यधिक कन्फ्यूज़िया गए हैं कि आपकी ये वाली बात मानें या 'स्वदेशी' (बोले तो make in India) वाली?
स्पष्ट कीजिये न कि आप ग्लोबलाइज़ेशन के पक्ष में हैं कि विपक्ष में? या अवसर के हिसाब से तय करना चाहिए? प्लीज, बताइये फिर हम भी आपके जैसे बनने की कोशिश करेंगे.
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तो जी, हर बार की तरह इस बार भी हम सबके प्रिय मोदी जी की स्पीच (PM Modi Speech) दिल लुभाने वाली रही. कई लोगों ने इसे रिकॉर्ड कर बार-बार सुना और इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा भी की. हमारा नाम उनमें प्रमुख है. अब संक्रमण काल में यही तो मन लगाने और जीने का एकमात्र सहारा है, बाक़ी इस नीरस जीवन में रखा ही क्या है?इसी अद्भुत सोच के साथ शुभ ग्यारह बिंदु हमने भी सत्यापित किये हैं, ग़ौर कीजियेगा -
1- वैसे तो मुझ नासमझ को आपदा को 'अवसर' कहना संवेदनहीन लगा था पर अब जब आपने कहा है तो अवश्य ही कोई अच्छा पॉइंट भी मिल ही जाएगा. हेहेहे, अपने प्रिय भक्तजनों ने तो थीसिस ही लिख डाली होगी न. उसे ही घोंट मन को समझा लेंगे. जबसे हमारे जानूं ने हमें बताया कि बड़े निर्मल मन होते हैं भक्तों के, तबसे हमारे मन में भी एक सॉफ्ट कॉर्नर डेवलॅप होना शुरू हो चुका है. अब इश्क़ क्या न करवाए.
लेकिन ये PPE किट वाला उदाहरण नहीं जमा था हमें क्योंकि ये अवसर नहीं समय की मांग है, मजबूरी है भैये. बताइये, क्या लाशों को देख़ क़फ़न बनाने वाले ख़ुश होते होंगे.
2- 'वसुधैव कुटुम्बकम' की बात तो अपन भी वर्षों से कर रहे पर हम तुच्छ टाइप लोगों की बातों को कोई भैल्यू ही नहीं देता. उसपे बीच-बीच में ट्रम्प अंकल का गुस्सा और पाकिस्तान आ जाता है. अब दुनिया एक कैसे हो. बहुत परेशानी है. लेकिन एक बात से हम अत्यधिक कन्फ्यूज़िया गए हैं कि आपकी ये वाली बात मानें या 'स्वदेशी' (बोले तो make in India) वाली?
स्पष्ट कीजिये न कि आप ग्लोबलाइज़ेशन के पक्ष में हैं कि विपक्ष में? या अवसर के हिसाब से तय करना चाहिए? प्लीज, बताइये फिर हम भी आपके जैसे बनने की कोशिश करेंगे.
3- आत्मनिर्भर वाली बात भी बड़ी जोरदार थी. अरे, जरा कहिये तो अब तक किसके भरोसे जिनगी चल रही हम गृहिणियों की? घर के सारे काम मसलन झाड़ू, पोंछा, बर्तन करने वाली बेन, धोबिन, स्वीपर, मालिन, कुक, टीचर सब हम ही हैं. ये तो बस ट्रेलर है इसके अलावा सौ और भी घरेलू काम हैं जैसे पंखे साफ़ करना, बाथरूम धोना, कपड़े फोल्ड करना, आयरन करना, सबकी फ़रमाइशें पूरी करना और रोज़ सबेरे सबेरे माथा पकड़ बैठ यह सोचना कि आज ख़ाने में क्या बनाएं.
ये मल्टीटास्किंग सदियों से करे जा रहे हैं. थोड़ी सी जमीन दिला दीजिए तो खेती-बाड़ी कर अपनी पसंद की सब्जियां भी उगा लेंगे. वहीं खेत में कहीं एक कुंआ खोद अपने पानी की व्यवस्था भी हो जाएगी. एक महान बात और, इसका हमको कोई वेतन नहीं मिल रहा, लेकिन मलाल भी नहीं करेंगे क्योंकि अगर ऐसे मलाल करने लगते तो जाने कबके काल के गाल में पैक हो जाते.
मॉरल ऑफ़ द स्टोरी कि हम इस शब्द का अर्थ समझते हैं. अब और कितने आत्मनिर्भर और देशप्रेमी बनें जी?
4- हर बार की तरह इस बार भी सबसे 'कूल' हमें आपका श्लोक बोलना लगा. भारतीय संस्कृति की अनुपम एवं भव्य तस्वीर आँखों में तैरने लगती है. एक राज़ की बात बताएं कि हम तो संस्कृत सीख ही इसलिए रहे जिससे श्लोक के अर्थ समझ सकें और कभी ईश्वर ने चाहा तो इस देवभाषा में आपसे गुफ़्तगू कर सकें!
5- लीजिए अभी याद आया कि आपकी इस बात पर हमें बहुत हँसी आई थी कि "खुले मैं शौच से मुक्त होने पर दुनिया की तस्वीर बदलेगी" हाहा, तुसी बड़े मज़ाकिया हो! दुनिया की काहे अपने देश की ही तो तस्वीर बदलेगी. स्वच्छ खेतों में बिना गंदगी से डरे आसानी से चल सकेंगे. हाँ, लोटों की बिक्री पर इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है.
6- कोरोना में क्या करना चाहिए, क्या जरूरी है, बताने का हार्दिक आभार! वैसे ये तो बच्चा-बच्चा भी जानता है पर करेगा कौन महाराज! तनिक इस पर रोशनी का एक बिंदु भी प्रक्षेपित होता तो क्या बात थी!
7- जब 18वें मिनट पर अहम कड़ी आई तब एकबारगी तो हमें लगा, "हैं कहीं ये वहम तो नहीं!" बीस लाख करोड़ सुनते ही हम मूर्छितावस्था को प्राप्त होने लगे और सुबह होने तक जीरो ही नहीं गिन पाए. बीच में एक इम्पोर्टेन्ट सपना भी आ गया था लेकिन आपने जब इस आँकड़े से सम्बल मिलने की बात की तो आकस्मिक रूप से हमें ट्रेन में बंद होने वाले कम्बल का दुख छेड़ने लगा. पर हमने उसे समझा दिया कि आज सम्बल मिला है तो कल कम्बल भी अवश्य आयेगा.
8- आपकी जिस बात ने हमारा दिल जीत लिया वो ये कि "भारत बहुत अच्छा कर सकता है." हम भी बिलकुल यही मानते हैं. भूकम्प के समय कच्छ की हालत और फिर कुछ ठान लेने वाला किस्सा भी प्रेरक रहा. उसके ज़िक्र की यहाँ अत्यधिक आवश्यकता थी. शुक्रिया.
9- 'लोकल पे वोकल' वाली लाइन भी मारक रही और हमें हमारे शहर के बहुत सारे रेहड़ी वाले, मोची, टेलर काका, सुबह 8 बजे चौराहे पर रोटी के इंतज़ाम में खड़े श्रमिक सब याद आ गए. इनमें से कुछ लोग तो चले गए. कोई शहर से, तो कोई इस दुनिया से ही. उन पर कोई इस अदा से कभी वोकल हुआ ही न था पहले कभी. सुनते तो भी ये लोग शायद ख़ुशी से ही मर जाते. मन भावुक है हमारा जिसे आपका संवेदनशील हृदय भी खूब समझता है.
10- इकोनॉमी, इंफ्रास्ट्रक्चर, सिस्टम, डेमोग्राफी और डिमांड ये 5 पिलर वाली बात सुन पहले तो हम चकरा ही गए कि कहीं किसी दुष्ट विपक्षी ने लाल किले वाली स्क्रिप्ट तो न बदल दी! पर थोड़ी देर बाद इसका 'कोरोना कनेक्शन' समझ आ गया. अब जिनको न समझा 'लेट्स इग्नोर दैम'.
11- कुछ लोग कह रहे कि 'आप दिल में आते हैं, समझ में नहीं' क्योंकि समझने के लिए जो दिमाग चाहिए होता है न! उसका इन दिनों थोड़ा सा अभाव चल रहा है उनमें. खैर, हम तो आपके कट्टर प्रशंसक हैं तो जो भी कहेंगे सच ही कहेंगे. क्या करें, हमारा दिल ही कुछ ऐसा है. बहुत से लोग हम पर हर बात में रायता फैलाने का आरोप लगाते हैं. लेकिन अब हमें पूरी उम्मीद है कि वे ऐसा नहीं कहेंगे. वो कहते हैं न -
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'
कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था.
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