जानू-बेबी के लिए रेड रोज़ भी लिया. चॉकलेट भी खरीदी टेडी भी गिफ्ट कर दिया. खूब मेहनत हुई खूब मशक्कत लगी. वैलेंटाइन वीक के खर्चे वाले दिन बीत गए. अब फ्री वाले दिन आए हैं. जो ज्यादा इम्पॉर्टेन्ट हैं. फ्री वाले दिन मतलब प्रॉमिस डे, हग डे और किस डे. बात एकदम क्लियर है. वैलेंटाइन वीक के वो दिन जिनमें मोटा खर्च होता है और जेब खाली होती है उनसे तो आदमी फिर भी ये कहकर कन्नी काट सकता है कि महंगाई के इस दौर में बटुए में पैसे नहीं हैं लेकिन जब चीजें फ्री वाली हों तो इनसे कहां बचा जा सकता है. 11 फरवरी इश्क़ वाले हफ्ते में ये दिन दर्ज है 'प्रॉमिस डे' के रूप में. मतलब इस दिन का तो ऐसा है कि इस दिन आशिक और माशूका एक दूसरे से तमाम तरह के वादे करते हैं. किस्म किस्म की कसमें खाई जाती है. चांद, सूरज और सितारों को एक दूसरे के सामने लाने की पेशकश होती है. प्रॉमिस डे के कसमे वादे कितने और किस हद तक पूरे होते हैं? ये जानना जितना दिलचस्प आपके लिए है उतना ही हमारे लिए भी.
बात चूंकि प्रॉमिस डे की हुई है तो जैसे ही ये शब्द 'प्रॉमिस' हमारे सामने आता है न चाहते हुए भी हमारा ध्यान भारतीय राजनीति की तरफ चला जाता है. रियल न होकर भले ही विर्चुअल ही सही मगर प्रॉमिस शब्द सुनकर हमें नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, योगी आदित्यनाथ, राहुल गांधी, नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, असदुद्दीन ओवैसी, शिवराज सिंह चौहान जैसे राजनेता अपने अपने जहन में दिखाई देते हैं और महसूस यही होता है कि कहीं चुनाव हो और ये लोग भाषण दे रहे हों.
इश्क़ के इस पावन महीने यानी फ़रवरी में पड़ने वाले वैलेंटाइन डे और इस वैलेंटाइन में प्रॉमिस डे पर बातें चाहे जितनी बार बड़ी क्यों न हो जाएं लेकिन सच्चाई यही है कि...
जानू-बेबी के लिए रेड रोज़ भी लिया. चॉकलेट भी खरीदी टेडी भी गिफ्ट कर दिया. खूब मेहनत हुई खूब मशक्कत लगी. वैलेंटाइन वीक के खर्चे वाले दिन बीत गए. अब फ्री वाले दिन आए हैं. जो ज्यादा इम्पॉर्टेन्ट हैं. फ्री वाले दिन मतलब प्रॉमिस डे, हग डे और किस डे. बात एकदम क्लियर है. वैलेंटाइन वीक के वो दिन जिनमें मोटा खर्च होता है और जेब खाली होती है उनसे तो आदमी फिर भी ये कहकर कन्नी काट सकता है कि महंगाई के इस दौर में बटुए में पैसे नहीं हैं लेकिन जब चीजें फ्री वाली हों तो इनसे कहां बचा जा सकता है. 11 फरवरी इश्क़ वाले हफ्ते में ये दिन दर्ज है 'प्रॉमिस डे' के रूप में. मतलब इस दिन का तो ऐसा है कि इस दिन आशिक और माशूका एक दूसरे से तमाम तरह के वादे करते हैं. किस्म किस्म की कसमें खाई जाती है. चांद, सूरज और सितारों को एक दूसरे के सामने लाने की पेशकश होती है. प्रॉमिस डे के कसमे वादे कितने और किस हद तक पूरे होते हैं? ये जानना जितना दिलचस्प आपके लिए है उतना ही हमारे लिए भी.
बात चूंकि प्रॉमिस डे की हुई है तो जैसे ही ये शब्द 'प्रॉमिस' हमारे सामने आता है न चाहते हुए भी हमारा ध्यान भारतीय राजनीति की तरफ चला जाता है. रियल न होकर भले ही विर्चुअल ही सही मगर प्रॉमिस शब्द सुनकर हमें नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, योगी आदित्यनाथ, राहुल गांधी, नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, असदुद्दीन ओवैसी, शिवराज सिंह चौहान जैसे राजनेता अपने अपने जहन में दिखाई देते हैं और महसूस यही होता है कि कहीं चुनाव हो और ये लोग भाषण दे रहे हों.
इश्क़ के इस पावन महीने यानी फ़रवरी में पड़ने वाले वैलेंटाइन डे और इस वैलेंटाइन में प्रॉमिस डे पर बातें चाहे जितनी बार बड़ी क्यों न हो जाएं लेकिन सच्चाई यही है कि गर्ल फ्रेंड से लेकर बॉयफ्रेंड तक जानते दोनों ही इस बात को बखूबी हैं कि एक दूसरे से झूठ बोला जा रहा है और जैसे ही दिन बीतेगा सब बातें हवा हवाई साबित होँगी और सारा मामला हवा हवाई हो जाएगा.
इश्क़ के नाम पर जिस साफगोही से झूठ के ऊपर झूठ बोला जाता है ये कुछ वैसा ही है जैसे चुनाव से पहले हमारे लोकप्रिय नेता का कहना कि तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें लाइट दूंगा, पानी दूंगा और उस पानी को बहाने के लिए उन स्थानों पर खुदाई कराकर सीवर दूंगा जहां अभी पिछले हफ्ते ही सीवर के नाम पर खुदाई हुई थी.
देखो गुरु बुराई प्यार करने में नहीं है बल्कि बेमतलब के वादे करने में है. मतलब ये बात वाक़ई समझ के परे है कि जो आदमी ईमानदारी से पांच रुपए की धनिया या पाव भर दही लेने बाजार नहीं जाता वो आखिर जानू बेबी के लिए चांद, तारे, सूरज लेने ऊपर कैसे जाएगा?
खुद सोचिये कितना बड़ा फ्रॉड है ये. देखिये भाई बात ये है कि ये उतना ही बड़ा फ्रॉड है जितना नेता जी का कहना कि हमारी पार्टी हिंदू मुस्लिम की राजनीति के सख्त खिलाफ है. अब सच्चाई क्या है ये न हमसे छुपी है न आपसे.
तो भइया वैलेंटाइन डे की इस पावन बेला पर हम इतना ही कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि बस उतनी ही बात कीजिये जितनी लॉजिकल है. इललॉजिकल बातों का कोई वजन नहीं है. ये बातें सुनने में भले ही अच्छी लगती हों लेकिन जब बात सच्चाई की हो तो इनके सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक होती हैं जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है.
ये हवा हवाई होती हैं. कब आती हैं कब चली जाती हैं कुछ पता नहीं चलता. पता तो चुनाव बाद नेता जी का भी नहीं चलता मगर जैसे ही चुनाव नजदीक आते हैं वो हमारे सामने प्रकट हो जाते हैं और न चाहते हुए भी हमें उन्हें झेलना ही पड़ता है.
खैर झेलिये. इस वैलेंटाइन वीक में इस प्रॉमिस डे को भी झेलिये. इसका भी अपना एक अलग ही स्वैग है और हां इसके बिना मुहब्बत वाक़ई बेरंग है.
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