दौर करछी का है. वो कड़ाई से ज्यादा गर्म है और एकदम भकभका रही है. माहौल जब इस लेवल पर जटिल हो तो करछी कुछ भी अंट शंट मांग सकती है. लेकिन Question remain same. मांगने के बाद मिल भी जाए तो क्या करछी में इतना पोटेंशियल है कि वो मेंटेन कर ले? करछी और कड़ाई, गर्म और ठंडा इस उलझन में सर खपाने से बेहतर है कि हम महेंदर ध्वज प्रसाद सिंह का रुख करें और उनकी उस याचिका पर नजर डालें कोर्ट में दायर की है. भाई फैंटम है. जान मांग लेता तो भी ठीक था उन्होंने तो क़ुतुबुद्दीन ऐबक का पूरा गुमान ही छीन लिया. कैसे ? असल में सिंह साहब ने दिल्ली स्थित क़ुतुब मीनार पर दावा ठोंका है और कहा है कि उनके पूर्वज आगरा प्रांत के शासक थे, उनका शासन यमुना से गंगा तक था. कुतुब मीनार समेत दक्षिणी दिल्ली में उनका शासन था, क्योंकि भारत सरकार और आगरा स्टेट के बीच कोई संधि नही हुई थी, इसलिए कुतुब मीनार जिस जमीन पर है उस पर उनका मालिकाना हक है.
मामले में मजेदार ये कि कोर्ट भी इस डिमांड पर सीरियस हो गया और उनकी इस याचिका पर दोनों पक्ष को जवाब दाखिल करने को कहा है. अब इस याचिका पर सुनाई 24 अगस्त को होगी. याचिका पर जो भी फैसला आए. लेकिन चूंकि माहौल से हम आपको पहले ही अवगत करा चुके हैं. कोर्ट को क़ुतुब मीनार, सिंह साहब को सौंप कर एक नयी तरह की नजीर स्थापित करनी चाहिए. लेकिन एक ट्विस्ट के साथ.
क़ुतुब मीनार दे दे बस ये शर्त रखे कि, पक्की रजिस्ट्री दिए जाने के ठीक एक महीने बाद होगी. अब सवाल होगा कि ऐसा क्यों? तो जवाब ये है कि उस एक महीने में सिंह साहब को साफ़ सफाई से लेकर पौधों में पानी डालने और यहां वहां फैली कूड़े की पॉलीथीन बटोरने तक हर वो काम करना होगा जो क़ुतुब मीनार से जुड़ा होगा....
दौर करछी का है. वो कड़ाई से ज्यादा गर्म है और एकदम भकभका रही है. माहौल जब इस लेवल पर जटिल हो तो करछी कुछ भी अंट शंट मांग सकती है. लेकिन Question remain same. मांगने के बाद मिल भी जाए तो क्या करछी में इतना पोटेंशियल है कि वो मेंटेन कर ले? करछी और कड़ाई, गर्म और ठंडा इस उलझन में सर खपाने से बेहतर है कि हम महेंदर ध्वज प्रसाद सिंह का रुख करें और उनकी उस याचिका पर नजर डालें कोर्ट में दायर की है. भाई फैंटम है. जान मांग लेता तो भी ठीक था उन्होंने तो क़ुतुबुद्दीन ऐबक का पूरा गुमान ही छीन लिया. कैसे ? असल में सिंह साहब ने दिल्ली स्थित क़ुतुब मीनार पर दावा ठोंका है और कहा है कि उनके पूर्वज आगरा प्रांत के शासक थे, उनका शासन यमुना से गंगा तक था. कुतुब मीनार समेत दक्षिणी दिल्ली में उनका शासन था, क्योंकि भारत सरकार और आगरा स्टेट के बीच कोई संधि नही हुई थी, इसलिए कुतुब मीनार जिस जमीन पर है उस पर उनका मालिकाना हक है.
मामले में मजेदार ये कि कोर्ट भी इस डिमांड पर सीरियस हो गया और उनकी इस याचिका पर दोनों पक्ष को जवाब दाखिल करने को कहा है. अब इस याचिका पर सुनाई 24 अगस्त को होगी. याचिका पर जो भी फैसला आए. लेकिन चूंकि माहौल से हम आपको पहले ही अवगत करा चुके हैं. कोर्ट को क़ुतुब मीनार, सिंह साहब को सौंप कर एक नयी तरह की नजीर स्थापित करनी चाहिए. लेकिन एक ट्विस्ट के साथ.
क़ुतुब मीनार दे दे बस ये शर्त रखे कि, पक्की रजिस्ट्री दिए जाने के ठीक एक महीने बाद होगी. अब सवाल होगा कि ऐसा क्यों? तो जवाब ये है कि उस एक महीने में सिंह साहब को साफ़ सफाई से लेकर पौधों में पानी डालने और यहां वहां फैली कूड़े की पॉलीथीन बटोरने तक हर वो काम करना होगा जो क़ुतुब मीनार से जुड़ा होगा. क्योंकि सिंह साहब पहले ही कह चुके हैं कि इस भव्य मॉन्युमेंट के मालिक वो खुद हैं इसलिए यदि वो चाहें तो टिकट खिड़की पर भी बैठ सकते हैं (यदि उन्होंने इसे पब्लिक किया - यूं भी लोग आएंगे तो ठीक ठाक चहल पहल रहेगी वरना अकेला क़ुतुब मीनार सिंह साहब और उनके परिवार को काटने को दौड़ेगा) गाइड बन सकते हैं.
सिंह साहब सीटी लेकर गार्ड की भूमिका में आ सकते हैं. सफाई कर्मचारी बन दीवार में यहां वहां थूका गया गुटखा गीले कपडे से साफ़ कर सकते हैं. यदि एक महीने तक इमारत जुड़े सभी काम सिंह साहब ने निष्ठा से किये तो कोर्ट को बिना किसी सेकंड थॉट के इमारत की रजिस्ट्री या फिर पट्टा या फिर पावर ऑफ अटार्नी उनके नाम कर देनी चाहिए.
हो सकता है उपरोक्त लिखी बातें लोगों को मजाक लगें. लोग सिंह साहब का मजाक बनाएं. इतने बड़े क़ुतुब मीनार के कर्त्ता धर्ता सिंह साहब को तमाम ऊल -जलूल चीजें करते देखकर हंसें. लेकिन यकीन जानिये हम इस मामले में बहुत सीरियस हैं. अगर क़ुतुब मीनार सिंह साहब का है तो बिना किसी देरी के कोर्ट या सरकार को मॉन्यूमेंट उन्हें सौंप देना चाहिए. लेकिन जो बातें हमने बताई हैं यदि सिंह साहब उसे पूरा करते हैं तभी.
बात बहुत सीधी है. अगर क़ुतुब मीनार सिंह साहब का है तो वो इस बात को जानते होंगे कि उनके पूर्वजों ने बड़ी ही मेहनत और मुहब्बत से इस इमारत का निर्माण कराया होगा. दुनिया का दस्तूर है जब भी कोई चीज किसी इंसान को फ्री मिलती है वो उसकी कद्र खो देता है. यही बात सिंह साहब पर भी लागू होती है. अब जब वो 1 महीने तक मेहनत करेंगे उनको भी इसकी कीमत का अंदाजा हो जाएगा.
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