जिस दिन रेलवे (Indian Railway) के खाने में मिलने वाली दाल में, दाल के दाने घटाकर पानी बढ़ाया गया उसी दिन हमें महसूस हो गया था कि रेलवे की स्थिति (Railway Loss) भले ही कुछ हो, अच्छी तो बिलकुल नहीं है. अच्छा हां कहने को हम ये कहकर भी बात शुरू कर सकते थे कि ट्रेन लेट हैं या फिर निरस्त हो रही हैं. हमने नहीं कहा. क्यों नहीं कहा? अरे भइया सवा सौ करोड़ की आबादी है सभी को खुश नहीं रखा जा सकता. हो जाता है थोड़ा इधर उधर. हो जाती हैं ट्रेन लेट. हम आम आदमी हैं कर लेंगे 10-12 घंटे इंतेजार वरना बस हैं. कैब हैं. टैक्सी हैं. आसमान में उड़ने वाला जहाज है कैसे भी करके हम अपने गंतव्य तक पहुंच जाएंगे. बात ये है कि चाहे कुछ हो जाए हमें चीजों से समझौता करने की आदत है हमने कर लिया. मगर कैग यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) हमारे आपके जैसा नहीं है. वो जो कहता है खुलकर कहता है और किसी से नहीं डरता है.
कैग ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे को लेकर जो कहा है दो टूक कहा है और इतना कहा है कि केंद्र सरकार के बचाव में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल (Railway Minister Piyush Goyal) आए हैं. मतलब जैसी हालत अलग अलग मुद्दों को लेकर पीयूष गोयल की है. वो उस बाम की तरह हो गए हैं जिसे बदन दर्द, सर्दी जुकाम, चोट लगने, मोच आने किसी में भी इस्तेमाल कर सकते हैं. कैग के अनुसार, भारतीय रेलवे की कमाई 10 साल पीछे चली गई है. संसद में पेश नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, रेलवे का परिचालन अनुपात (ऑपरेटिंग रेशियो) 2015-16 में 90.49 प्रतिशत और 2016-17 में 96.5 प्रतिशत रहा था. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय रेल का परिचालन अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में 98.44 प्रतिशत रहने का मुख्य कारण इसका संचालन खर्च बढ़ना है.
जिस दिन रेलवे (Indian Railway) के खाने में मिलने वाली दाल में, दाल के दाने घटाकर पानी बढ़ाया गया उसी दिन हमें महसूस हो गया था कि रेलवे की स्थिति (Railway Loss) भले ही कुछ हो, अच्छी तो बिलकुल नहीं है. अच्छा हां कहने को हम ये कहकर भी बात शुरू कर सकते थे कि ट्रेन लेट हैं या फिर निरस्त हो रही हैं. हमने नहीं कहा. क्यों नहीं कहा? अरे भइया सवा सौ करोड़ की आबादी है सभी को खुश नहीं रखा जा सकता. हो जाता है थोड़ा इधर उधर. हो जाती हैं ट्रेन लेट. हम आम आदमी हैं कर लेंगे 10-12 घंटे इंतेजार वरना बस हैं. कैब हैं. टैक्सी हैं. आसमान में उड़ने वाला जहाज है कैसे भी करके हम अपने गंतव्य तक पहुंच जाएंगे. बात ये है कि चाहे कुछ हो जाए हमें चीजों से समझौता करने की आदत है हमने कर लिया. मगर कैग यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) हमारे आपके जैसा नहीं है. वो जो कहता है खुलकर कहता है और किसी से नहीं डरता है.
कैग ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे को लेकर जो कहा है दो टूक कहा है और इतना कहा है कि केंद्र सरकार के बचाव में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल (Railway Minister Piyush Goyal) आए हैं. मतलब जैसी हालत अलग अलग मुद्दों को लेकर पीयूष गोयल की है. वो उस बाम की तरह हो गए हैं जिसे बदन दर्द, सर्दी जुकाम, चोट लगने, मोच आने किसी में भी इस्तेमाल कर सकते हैं. कैग के अनुसार, भारतीय रेलवे की कमाई 10 साल पीछे चली गई है. संसद में पेश नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, रेलवे का परिचालन अनुपात (ऑपरेटिंग रेशियो) 2015-16 में 90.49 प्रतिशत और 2016-17 में 96.5 प्रतिशत रहा था. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय रेल का परिचालन अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में 98.44 प्रतिशत रहने का मुख्य कारण इसका संचालन खर्च बढ़ना है.
कैग के आरोप गंभीर थे. सरकार की तरफ से किसी को तो आना था. बात रेल से जुड़ी थी तो खुद केंद्रीय रेलमंत्री पीयूष गोयल ने मोर्चा संभाला और वो बातें कह दीं जिसे सुनकर भले ही कोई आहत हो न हो रेलवे के कर्मचारी तो जरूर अवसाद में आ गए होंगे. मंत्री जी ने इन सब के लिए सातवें वेतन आयोग को जिम्मेदार बताया है. लोकसभा में लिखित जवाब में कहा कि सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद से रेलवे कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर 22 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च हो रहा है, जिसके वजह से वित्तीय असर पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि सामाजिक दायित्वों के लिए कुछ ऐसे इलाकों नई लाइनों के निर्माण कर ट्रेन चलाई जा रही है जिससे नुकसान का सामना करना पड़ रहा है और इसमें फंड का बड़ा हिस्सा खर्च भी हो रहा है.
प्रश्नकाल के दौरान पीयूष गोयल ने कहा कि सातवें वेतन आयोग लागू होने के बाद से रेलवे कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन पर 22 हजार करोड़ रुपये का अधिक खर्च हो रहा है. परिचालन के घाटे में इसका महत्वपूर्ण योगदान है. रेलवे साफ-सफाई, उपनगरीय ट्रेन चालने और गेज बदलाव पर भी काफी खर्च कर रहा है. उन्होंने कहा इन सभी खर्च से रेलवे पर असर पड़ता है.
इसके अलावा रेलमंत्री ने ये भी कहा है कि, जब हम पूरे तस्वीर को देखते हैं तो सातवें वेतन आयोग से वेतन बढोतरी और सामाजिक दायित्व के तहत ट्रेनों को चलाने से परिचालन अनुपात एक साल में 15 पर्सेंट नीचे चला जाता है. गोयल का मानना है कि अब वो समय आ गया है कि हम सामाजिक दायित्वों पर खर्च और लाभकारी सेक्टर्स के लिए बजट को अलग करने की कोशिश करें.
कुल मिलाकर जो बातें संसद में गोयल ने कहीं साफ़ था कि सारी परेशानियों की जड़ सातवां वेतन आयोग और उसके अंतर्गत दी जा रही तनख्वाह है. वाकई ये बात हैरत में डालने वाली है. एक ऐसे देश में जहां हमारे सांसद ध्वनि मत से अपनी तनख्वाह, सुख सुविधाओं इत्यादि को पारित करा लेते हैं वहां कर्मचारियों की सैलरी समस्या का मूल है. शायद मंत्री जी ये भूल गए कि चाहे सातवां लगे या आठवां कर्मचारी को बढ़ी हुई सैलरी यूं ही नहीं मिलती. तमाम सिफारिशें होती हैं. कुछ लेना देना पड़ता है तब जाकर सैलरी में इजाफा होता है.
बाकी बात बस इतनी है गरीब आम आदमी को, छोटी से लेकर बड़ी तक हर महफ़िल में दबाया गया है. समस्या सरकार ने बता दी है. कल अगर इसी बात को आधार बनाकर लोगों को उनकी ड्यूटी से नौ दो ग्यारह कर दिया जाए तो किसी को बुरा नहीं मनाना चाहिए. रेलवे घाटे में है और ये घाटा इस देश का आम आदमी अपने प्राणों की आहुति देकर पूरा करेगा.
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