त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति भाजपा समर्थकों द्वारा तोड़ी गयी है. उसपर बात करने से पहले एक किस्सा बताना बेहद जरूरी है. किस्से कहानियों से हम बात जल्दी समझ जाते हैं. बात पुरानी है. हुआ कुछ यूं था कि मुझे एक इंटरव्यू के सिलसिले में कहीं जाना था. इंटरव्यू से पहले, दो चार टेलीफोनिक राउंड हो चुके थे. अतः एचआर हेड द्वारा मुझे ऑफिस का पूरा पता दे दिया गया. निश्चित तारीख को मैं उस पते पर तो था, मगर ऑटो वाले ने अंजान समझकर मुझे मेरे निर्धारित पते से इतर, दो तीन गली पहले उतार दिया. थोड़ी मदद गूगल मैप से ली और मैं उस चौराहे पर आ गया जिसके नजदीक ही वो ऑफिस था.
वहां लोगों से पड़ताल की तो पता चला कि, इसी चौराहे के बाद एक "टी जंक्शन" आएगा. वहां पर अंगुली का इशारा करती एक विशाल मूर्ति है, उसी से दस कदम दूर एक पार्क है. पार्क के सामने अपार्टमेंट है जिसमें वो ऑफिस है जहां मुझे जाना है.
मैं आज भी अक्सर ही ये सोचता हूं कि यदि उस दिन वो अंगुली दिखाती मूर्ति न होती तो क्या होता? शायद ये कि मैं यूं ही सेक्टर से सेक्टर, गली से गली, मुहल्ले से मुहल्ले भटकता रहता और थक हार के वापस लौट आया होता. सिर्फ मैं ही नहीं, मेरी तरह ऐसे तमाम लोग होंगे जिनकी मदद या ये कहें कि उन्हें मंजिल तक पहुंचाने में इन मूर्तियों का एक बड़ा हाथ है.
सोच कर देखिये, ऐसा अवश्य हुआ होगा कि चौक, चौराहों, मुख्य मार्गों में याद "की निशानी" के तौर पर लगी इन मूर्तियों ने आपकी मदद की और आपका समय बचाया. हो सकता है कि इतना पढ़कर आपके दिमाग में प्रश्न आए कि आखिर यहां मूर्तियों और उनके महत्त्व पर चर्चा क्यों हो रही है. तो बात बहुत सिंपल है. त्रिपुरा में जीत के बाद भाजपा समर्थकों ने लोकप्रिय नेता लेनिन की मूर्ति तोड़ी है.
मूर्ति क्यों...
त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति भाजपा समर्थकों द्वारा तोड़ी गयी है. उसपर बात करने से पहले एक किस्सा बताना बेहद जरूरी है. किस्से कहानियों से हम बात जल्दी समझ जाते हैं. बात पुरानी है. हुआ कुछ यूं था कि मुझे एक इंटरव्यू के सिलसिले में कहीं जाना था. इंटरव्यू से पहले, दो चार टेलीफोनिक राउंड हो चुके थे. अतः एचआर हेड द्वारा मुझे ऑफिस का पूरा पता दे दिया गया. निश्चित तारीख को मैं उस पते पर तो था, मगर ऑटो वाले ने अंजान समझकर मुझे मेरे निर्धारित पते से इतर, दो तीन गली पहले उतार दिया. थोड़ी मदद गूगल मैप से ली और मैं उस चौराहे पर आ गया जिसके नजदीक ही वो ऑफिस था.
वहां लोगों से पड़ताल की तो पता चला कि, इसी चौराहे के बाद एक "टी जंक्शन" आएगा. वहां पर अंगुली का इशारा करती एक विशाल मूर्ति है, उसी से दस कदम दूर एक पार्क है. पार्क के सामने अपार्टमेंट है जिसमें वो ऑफिस है जहां मुझे जाना है.
मैं आज भी अक्सर ही ये सोचता हूं कि यदि उस दिन वो अंगुली दिखाती मूर्ति न होती तो क्या होता? शायद ये कि मैं यूं ही सेक्टर से सेक्टर, गली से गली, मुहल्ले से मुहल्ले भटकता रहता और थक हार के वापस लौट आया होता. सिर्फ मैं ही नहीं, मेरी तरह ऐसे तमाम लोग होंगे जिनकी मदद या ये कहें कि उन्हें मंजिल तक पहुंचाने में इन मूर्तियों का एक बड़ा हाथ है.
सोच कर देखिये, ऐसा अवश्य हुआ होगा कि चौक, चौराहों, मुख्य मार्गों में याद "की निशानी" के तौर पर लगी इन मूर्तियों ने आपकी मदद की और आपका समय बचाया. हो सकता है कि इतना पढ़कर आपके दिमाग में प्रश्न आए कि आखिर यहां मूर्तियों और उनके महत्त्व पर चर्चा क्यों हो रही है. तो बात बहुत सिंपल है. त्रिपुरा में जीत के बाद भाजपा समर्थकों ने लोकप्रिय नेता लेनिन की मूर्ति तोड़ी है.
मूर्ति क्यों तोड़ी है इससे जुड़ी ख़बरों से इंटरनेट पता पड़ा है आप एक वेबसाइट खोलिए वहां आपको दस-दस ख़बरों में डिटेल से मूर्ति तोड़े जाने से जुड़ी हर बात बताई जाएगी. इतना सुनने के बावजूद अगर आप फिर भी जानना चाहते हैं कि मूर्ति क्यों तोड़ी गयी? तो बस ये समझ लीजिये कि भाजपा समर्थक, वाम समर्थकों द्वारा लगातार की जा रही हिंसा से बेहद खफा थे तो उसी एक विरोध स्वरूप उन्होंने इस मूर्ति को तोड़ा.
खैर त्रिपुरा में भाजपा समर्थकों को लेनिन की मूर्ति नहीं तोड़ना चाहिए था. बल्कि हम तो ये कहेंगे कि किसी भी समर्थक को अपने विपक्षी की या फिर उसकी जिससे वो सबसे जयादा नफरत करता है ऐसी कोई भी मूर्ति नहीं तोड़नी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि ये हाथ या अंगुली दिखाती मूर्तियां किसी उत्प्रेरक की तरह हमें हमारी मंजिल पर ले जाती हैं. इन मूर्तियों के जरिये कितनी सहूलियत होती है इंसान को. इंसानों की छोड़िये चील, कव्वों, कबूतरों समेत अन्य चिड़ियों तक को राहत देती हैं ये विशाल मूर्तियां.
आप खुद कल्पना करिए. एक ऐसे दौर में जब हम बड़ी बड़ी इमारतों के लिए लगातार पेड़ काट रहे हैं और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं उस दौर में पक्षियों को पहले उनके प्राकृतिक आवास और अब इन विशाल मूर्तियों से पृथक करना कहां की इंसानियत है.
आप लड़िये, जितना लड़ना हो लड़िये साथी. लात घूंसा चला- चलाकर लड़िये, पत्थरबाजी कर-कर लड़िये, एक दूसरे को खदेड़ के लड़िये, एक दूसरे की छाती पर चढ़-चढ़कर लड़िये. मगर इन मूर्तियों को कुछ न करिए. आप नहीं जानते राह से भटके कितने लोगों को सही राहों में लाती हैं हाथ या कभी-कभी अंगुली दिखाती ये बड़ी-बड़ी मूर्तियां.
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