..."शहर का किनारा. उसे छोड़ते ही भारतीय देहात का महासागर शुरू हो जाता था. वहीं एक ट्रक खड़ा था. उसे देखते ही यकीन हो जाता था, इसका जन्म केवल सड़कों के साथ बलात्कार करने के लिए हुआ है. जैसे कि सत्य के होते हैं, इस ट्रक के भी कई पहलू थे. पुलिसवाले उसे एक ओर से देखकर कह सकते थे कि वह सड़क के बीच में खड़ा है, दूसरी ओर से देखकर ड्राइवर कह सकता था कि वह सड़क के बीच में खड़ा है. चालू फैशन के हिसाब से ड्राइवर ने ट्रक का दाहिना दरवाजा खोलकर डैने की तरह फैला दिया था. इससे ट्रक की खूबसूरती बढ़ गई थी, साथ ही यह खतरा मिट गया था कि उसके वहां होते हुए कोई दूसरी सवारी भी सड़क के ऊपर से निकल सकती है."
'रागदरबारी' लिखते वक्त मशहूर व्यंग्यकार पंडित श्री लाल शुक्ल ने अपने उपन्यास के ओपनिंग पैरा की शुरुआत में ट्रक का जिक्र यूं ही नहीं किया. इसके पीछे एक भयंकर लॉजिक है. लॉजिक बहुत ही सिंपल है. कभी हाईवे पर चलते या फिर धर्मकांटे पर तौले जाते, नहीं तो फिर सड़क किनारे खड़े ट्रकों को ध्यान से देखिए. जैसी बनावट होती है एक अलग ही भौकाल होता है इनका. सड़कों के शहंशाह होते हैं ट्रक. तेजी से बगल से गुजर जाए तो मजबूत कलेजे और 56 इंची सीने वाला आदमी तक थर थर कांपने लगे.
लेकिन गुरु हर दिन एक समान नहीं होता कभी 2014 जैसा भी वक़्त आता है जब कांग्रेस का 70 सालों का शासन खत्म हो जाता है भाजपा की सरकार आती है और एक चाय वाला जिसका नाम नरेंद्र मोदी होता है देश के प्रधानमंत्री की शपथ ले लेता है. पिछले दो तीन दिन से ट्रैक्टर की हालत भी नरेंद्र मोदी वाली है. जिसने राहुल गांधी रूपी ट्रक को न केवल खुली चुनौती दी...
..."शहर का किनारा. उसे छोड़ते ही भारतीय देहात का महासागर शुरू हो जाता था. वहीं एक ट्रक खड़ा था. उसे देखते ही यकीन हो जाता था, इसका जन्म केवल सड़कों के साथ बलात्कार करने के लिए हुआ है. जैसे कि सत्य के होते हैं, इस ट्रक के भी कई पहलू थे. पुलिसवाले उसे एक ओर से देखकर कह सकते थे कि वह सड़क के बीच में खड़ा है, दूसरी ओर से देखकर ड्राइवर कह सकता था कि वह सड़क के बीच में खड़ा है. चालू फैशन के हिसाब से ड्राइवर ने ट्रक का दाहिना दरवाजा खोलकर डैने की तरह फैला दिया था. इससे ट्रक की खूबसूरती बढ़ गई थी, साथ ही यह खतरा मिट गया था कि उसके वहां होते हुए कोई दूसरी सवारी भी सड़क के ऊपर से निकल सकती है."
'रागदरबारी' लिखते वक्त मशहूर व्यंग्यकार पंडित श्री लाल शुक्ल ने अपने उपन्यास के ओपनिंग पैरा की शुरुआत में ट्रक का जिक्र यूं ही नहीं किया. इसके पीछे एक भयंकर लॉजिक है. लॉजिक बहुत ही सिंपल है. कभी हाईवे पर चलते या फिर धर्मकांटे पर तौले जाते, नहीं तो फिर सड़क किनारे खड़े ट्रकों को ध्यान से देखिए. जैसी बनावट होती है एक अलग ही भौकाल होता है इनका. सड़कों के शहंशाह होते हैं ट्रक. तेजी से बगल से गुजर जाए तो मजबूत कलेजे और 56 इंची सीने वाला आदमी तक थर थर कांपने लगे.
लेकिन गुरु हर दिन एक समान नहीं होता कभी 2014 जैसा भी वक़्त आता है जब कांग्रेस का 70 सालों का शासन खत्म हो जाता है भाजपा की सरकार आती है और एक चाय वाला जिसका नाम नरेंद्र मोदी होता है देश के प्रधानमंत्री की शपथ ले लेता है. पिछले दो तीन दिन से ट्रैक्टर की हालत भी नरेंद्र मोदी वाली है. जिसने राहुल गांधी रूपी ट्रक को न केवल खुली चुनौती दी बल्कि जिस हिसाब से मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक ट्रैक्टर का जिक्र हो रहा है ये गाड़ियों का शहंशाह बन इतिहास के पन्नों में एक नए अध्याय का 'शिर गणेश' करता नजर आ रहा है.
अपने जीवन में आपने भी ट्रैक्टर अवश्य ही देखा होगा. एक तरफ जहां ट्रक देखने पर सिर्फ और सिर्फ भौकाली नजर आता है और महसूस होता है कि इसमें तो दबंगई कूट कूट के भरी है. तो वहीं जब हम ट्रैक्टर की तरफ़ नजर डालते हैं उसकी बेचारगी हमें बिल्कुल देश के आम आदमी या बहुत सीधे कहें तो मिडिल क्लास की याद दिलाती थी.
ट्रक जहां मनमौजी, घुमक्कड़, आज़ाद और आवारा लगता है. तो वहीं ट्रैक्टर उस आदर्श मिडिल लड़के की तरह है. जिसके जीवन का बस एक ही मकसद रोजी रोटी का जुआड़ करना है. कभी आराम आराम से सड़क के किनारे चलते किसी ट्रैक्टर पर ध्यान दीजियेगा. मिलेगा कि ट्रैक्टर शक्ल से जितना मासूम है ये उतना ही बेबस भी है. ये बेचारा हमारी आपकी तरह मेहनत मजदूरी करने सुबह सुबह अपने घर से निकलता है और जब शाम होती है तो ये थका हारा और धूल से पटा घर लौटता है.
आप सड़क पर चलते किसी भी ट्रैक्टर को देख लीजिए दिलचस्प बात ये है कि कमोबेश उनकी चाल और एक्सप्रेशन एक जैसे ही होते हैं. यूपी और बिहार में तो कम से कम ऐसे ही ट्रैक्टर हैं. खैर, ट्रैक्टर जो अपनी पूरी ज़िंदगी में करने में नाकाम रहा वो मुकाम इस किसान आंदोलन ने उसे दे दिया है. 26 जनवरी वाले कांड के बाद जैसी फुटेज ट्रैक्टर को मिली है अब ये दबा कुचला न होकर इंटरवल के बाद वाला मित्थुन चक्रवर्ती है जिसे गुंडों से अपनी मां बहन के अलावा प्रेमिका तक का हिसाब लेना है.
अच्छा क्योंकि ट्रैक्टर गाड़ियों के बीच का 'मैंगो मैन" है इसलिए वो सवारियां जैसे स्कूटी, ई रिक्शा, ऑटो, ओला उबेर और भी बहुत कुछ जिसे साइड नहीं देते थे ट्रैक्टर के इस बदले अंदाज से आश्चर्य में हैं. दुनिया का दस्तूर है पहले से सफल इंसान अपने आगे किसी को बढ़ने नहीं देता है. कुछ कुछ वैसा ही हिसाब शायद गाड़ियों का भी है. 26 जनवरी के दिन किसानों के हाथों जब ट्रैक्टर ने दिल्ली पुलिस और मीडिया की तरफ उन्हें रौंदने की नीयत से कूच किया गाड़ियों ने भी अपने को दो वर्गों में बांट लिया है. 26 जनवरी वाले किसान कांड के बाद गाड़ियों का एक ग्रुप सरकार के साथ है जबकि दूसरा उसके खिलाफ.
ट्रैक्टर के इस बदले हुए अवतार के मद्देनजर गाड़ियों के बीच भी बहस तेज है. ई-रिक्शा जिसकी ट्रैक्टर के सामने यूं भी कोई औकात नहीं है, सरकार के साथ है और बीते दिन वाली घटना के बाद ट्रेक्टर को एंटीनेशनल, अर्बन नक्सल, खालिस्तानी आतंकी देश द्रोही और न जाने क्या क्या बता रहा है. वहीं ऑटो ने इसे केंद्र सरकार और मोदी के खिलाफ बड़ी साजिश मानकर सारी बहस को विराम देने की कोशिश तो की. मगर साईकल बीच में आ गयी और ट्रैक्टर का पक्ष लेते हुए कहने लगी कि किसी को इतना भी नहीं सताना चाहिए कि वो बागी बन गुस्ताख़ हो जाए.
बहरहाल कहना गलत नहीं है कि पंजाब और हरियाणां के ट्रैक्टर्स ने ट्रैक्टर बिरादरी के लिए संजीवनी का काम किया है. ट्रैक्टर ऐसे भी हो सकते हैं ? इनका रौद्र रूप भी देखने को मिल सकता है? क्या ये ट्रक जितने उग्र हो सकते हैं जैसे सवालों के बीच यूपी बिहार के ट्रैक्टर और उन्हें देखता देश का आम आदमी खुद पशोपेश में हैं. लेकिन अब जबकि अच्छे दिन आए हैं तो किसी को कुत्ते ने थोड़ी काट रखा है कि वो उसे एन्जॉय करने से खुद को रोकें.
और हां चूंकि बात ट्रक और श्री लाल शुक्ल से शुरू हुई थी तो बताते चलें कि ट्रैक्टर के इस बदले हुए रूप से ट्रक खासा नाराज है. उसे बिल्कुल नहीं पसंद की कोई बिना हॉर्न और डिपर दिए उसकी सीमा में प्रवेश करे और वो मुकाम हासिल करे जिसपर अभी कुछ दिनों पहले तक उसी का दबदबा था. परिवर्तन दुनिया का दुनिया का नियम है. अब कोई कुछ भी कहे तो कहता रहे Tractor is the new Dabangg in the town. हो सकता है भविष्य में कोई दूसरा श्री लाल शुक्ल ट्रैक्टर के गुण बताते हुए अपना उपन्यास लिख दे जो रागदरबारी जितना ही कालजयी हो जाए.
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