अजीब कश्मकश में बीत रही है ज़िन्दगी! तमाम सवाल हैं, जिनके जवाब लाख ढूंढने के बावजूद नहीं मिले. मतलब घर की रसोई का पूरा पोस्टमार्टम कर दिया फिर भी नहीं पता चला कि रसोड़े में कौन था? हो सकता है वहां चूहा रहा हो या फिर कॉकरोच या आने को तो वहां दो तीन छिपकलियां भी आ सकती हैं और शोर मचा सकती है लेकिन मैं निरुत्तर ही रहा. अभी मैं इस व्यथा से उभर भी नहीं पाया था कि रसोड़े वाले टीवी सीरियल यानी 'साथ निभाना साथिया' में जो चीज मैंने देखी, मेरे होश फाख्ता हो गए हैं. बीपी के इंस्ट्रूमेंट से शुगर की जांच चल रही थी. जिन व्यक्तिगत आंखों से मैंने ऐसे बेतुके विजुअल्स देखे, यकीन ही नहीं हो रहा कि मेरी अपनी एकदम पर्सनल आंखें मुझे जिंदगी में कभी ऐसा मंजर भी दिखाएंगी. सीरियल के एक दृश्य में ज्ञान, विज्ञानं, लॉजिक, रीजनिंग का जिस तरह मखौल उड़ाया गया महसूस यही हुआ कि काश प्रलय आ जाती. धरती फट जाती और मैं उसमें समाहित हो जाता.
असल में चर्चित टीवी शो साथ निभाना साथिया पुनः सुर्ख़ियों में है. शो चर्चा में आया कारण न तो हिटलर सास यानी अपनी कोकिला बेन हैं. न ही इस बार हमेशा की तरह गोपी बहू ने कोई मेलोड्रामा किया है. शो के पूरे इंटरनेट पर जंगल की आग की तरह फैलने की वजह एक डॉक्टर और उसका बीपी इंस्ट्रूमेंट है. डॉक्टर ने ब्लड प्रेशर के इंस्ट्रूमेंट को छत्तीस खाने का रिंच मान कर शुगर की भी जांच कर ली और ज्ञान, विज्ञानं, तकनीक का किस्सा हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया है.
अब जबकि बतौर दर्शक हम टीवी पर ऐसा दिल दहला देने वाला मंजर देख ही चुके हैं, न चाहते हुए भी इस महा के वाहियात शो यानी 'साथ निभाना साथिया' के स्क्रिप्ट राइटर को दंडवत होकर सलाम करने का मन करता...
अजीब कश्मकश में बीत रही है ज़िन्दगी! तमाम सवाल हैं, जिनके जवाब लाख ढूंढने के बावजूद नहीं मिले. मतलब घर की रसोई का पूरा पोस्टमार्टम कर दिया फिर भी नहीं पता चला कि रसोड़े में कौन था? हो सकता है वहां चूहा रहा हो या फिर कॉकरोच या आने को तो वहां दो तीन छिपकलियां भी आ सकती हैं और शोर मचा सकती है लेकिन मैं निरुत्तर ही रहा. अभी मैं इस व्यथा से उभर भी नहीं पाया था कि रसोड़े वाले टीवी सीरियल यानी 'साथ निभाना साथिया' में जो चीज मैंने देखी, मेरे होश फाख्ता हो गए हैं. बीपी के इंस्ट्रूमेंट से शुगर की जांच चल रही थी. जिन व्यक्तिगत आंखों से मैंने ऐसे बेतुके विजुअल्स देखे, यकीन ही नहीं हो रहा कि मेरी अपनी एकदम पर्सनल आंखें मुझे जिंदगी में कभी ऐसा मंजर भी दिखाएंगी. सीरियल के एक दृश्य में ज्ञान, विज्ञानं, लॉजिक, रीजनिंग का जिस तरह मखौल उड़ाया गया महसूस यही हुआ कि काश प्रलय आ जाती. धरती फट जाती और मैं उसमें समाहित हो जाता.
असल में चर्चित टीवी शो साथ निभाना साथिया पुनः सुर्ख़ियों में है. शो चर्चा में आया कारण न तो हिटलर सास यानी अपनी कोकिला बेन हैं. न ही इस बार हमेशा की तरह गोपी बहू ने कोई मेलोड्रामा किया है. शो के पूरे इंटरनेट पर जंगल की आग की तरह फैलने की वजह एक डॉक्टर और उसका बीपी इंस्ट्रूमेंट है. डॉक्टर ने ब्लड प्रेशर के इंस्ट्रूमेंट को छत्तीस खाने का रिंच मान कर शुगर की भी जांच कर ली और ज्ञान, विज्ञानं, तकनीक का किस्सा हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया है.
अब जबकि बतौर दर्शक हम टीवी पर ऐसा दिल दहला देने वाला मंजर देख ही चुके हैं, न चाहते हुए भी इस महा के वाहियात शो यानी 'साथ निभाना साथिया' के स्क्रिप्ट राइटर को दंडवत होकर सलाम करने का मन करता है. सच में धन्य है भारतीय टीवी सीरियल.
डॉ गिल नामक एक यूजर द्वारा ट्विटर पर एक सीन शेयर किया गया है, क्लिप में, एक डॉक्टर को परिवार के एक सदस्य का चेकअप करते हुए देखा जा सकता है जो बेहोश है. मामले में दिलचस्प ये कि सीन में बीपी इंस्ट्रूमेंट का इस्तेमाल करने के बाद डॉक्टर पूरे परिवार के सामने इस बात का ऐलान करती है कि मरीज का शुगर लेवल डाउन है जिस कारण उसे चक्कर आ गए और बाद में वो बेहोश हो गई.
एक ऐसे वक़्त में जब सोशल मीडिया पर यूजर राय का पहाड़ बनाने में बिलकुल भी टाइम नहीं वेस्ट करते, इस क्लिप को भी हाथों हाथ लिया गया है. क्लिप को 6 हजार से ऊपर व्यू मिले हैं और इसपर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. लोग दंग इस बात को लेकर है कि अपने को जिम्मेदार कहने वाला टीवी चैनल आखिर कैसे ऐसे बेतुके और लॉजिक रीजनिंग से परे शो को अपने में टेलीकास्ट कर रहा है?
चूंकि सोशल मीडिया मिली जुली प्रतिक्रियाओं का अड्डा है ये बात हमें साफ़ तौर पर इस मामले में भी दिखाई पड़ती है. लोग शो के निर्माता निर्देशकों को मूर्ख नहीं बल्कि भोला बता रहे हैं. कहा जा रहा है कि जैसे मेकर्स वैसी ही जनता.
यदि ऐसा है तो सवाल ये है कि क्या ओटीटी के इस दौर में, जब तमाम लोगों द्वारा सारा फोकस एंटरटेनमेंट की क्वालिटी पर हो क्या ऐसे सीरियल्स बनाने और ऐसे सीन्स डालने की गुंजाईश है? इस सवाल का ईमानदारी भरा जवाब क्या होगा? जनता अपने हिसाब से खुद देख ले.
सच में, इस सीन में ऐसा बहुत कुछ है जो दिल दिमाग के अलावा आत्मा को भी विचलित करता हुई. मन से टीस निकलती है जो सिर्फ और सिर्फ यही कहती है कि ऐसा क्या गुनाह किया जो लुट गए हम और ऐसा लुटे की इस तरह का कंटेंट देखने को मजबूर हो गए हम.
यूं तो सिर्फ इस सीन में दिखाई गयी बेहूदगी के कारण साथ निभाया साथिया की आलोचना में कई कई हजार शब्द लिखकर उन्हें कम्पाइल कराने के बाद हार्ड बाउंड में 5 वॉल्यूम में किताबें छपवाई जा सकती हैं और उन्हें डेली सोप के शौकीनों के बीच फ्री बांटा जा सकता है लेकिन अब इस भागम दौड़ी भरे दौर में इतना करे कौन? मामले के मद्देनजर हम बस इतना ही कहेंगे कि चाहे वो साथ निभाना साथिया हो या कोई और शो. अब वो वक़्त आ गया है जब निर्माता निर्देशकों को भोली भाली जनता को मूर्ख, एकदम मूर्ख समझ लेना बंद कर देना चाहिए.
मेकर्स याद रखे कि आज का दौर सोशल मीडिया का दौर है. चाहे वो फेसबुक और उसका मौसिया भाई इंस्टाग्राम हों या फिर 160 शब्दों में सारी बात ख़त्म कर देने वाला ट्विटर. ऐसे माध्यमों में पूरी ताकत है कि वो किसी चीज का पोस्ट मार्टम कर उसकी बखिया उधेड़ दें. बाकी इस मामले के मद्देनजर हम बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि यहां आलोचना का मौका खुद मेकर्स ने यूजर्स को दिया है. अब जब वो ट्रोल हो रहे हैं तो उन्हें न तप रोना चाहिए और न ही मुंह बनाना चाहिए.
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